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‘छि:, बहुत हो गया. यह घर रोजरोज नरक बनता जा रहा है. न सुख है और न शांति.’ चिढ़ता हुआ संपत बाहर चला गया. पद्मजा रोतीबिलखती बिस्तर पर लेट गई.

पद्मजा रोज की तरह उस दिन भी  बाजार गई और वह सब्जी खरीद रही थी कि सामने एक ऐसा नजारा दिखाई पड़ा कि वह फौरन पीछे मुड़ी और बिना कुछ खरीदे ही घर लौट आई.

संपत स्कूटर पर कहीं जा रहा था और पीछे कोई खूबसूरत लड़की बैठी थी. दोनों अपनी दुनिया में मस्त थे. आपस में बातें करते हुए, हंसते हुए लोटपोट हो रहे थे. बस, इसी दृश्य ने पद्मजा को उत्तेजित, पागल और बेचैन कर दिया.

आते ही पद्मजा ने प्लास्टिक की थैली एक कोने में फेंक दी और सीधा रसोईघर में घुस गई. अलमारी से किरोसिन का डब्बा उठा कर उस ने अपने शरीर पर सारा तेल उड़ेल दिया. बस, अब तीली जला कर आत्महत्या करने ही वाली थी कि बाहर स्कूटर की आवाज सुनाई पड़ी.

पद्मजा का क्रोध मानो सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस के मन में ईर्ष्या ने ज्वालामुखी का रूप धारण कर लिया.

‘अब मुझे मर ही जाना चाहिए. जीवन भर उसे 8-8 आंसू बहाते, तड़पतड़प कर रहना चाहिए,’ पद्मजा का दिमाग ऐसे विचारों से भर गया.

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संपत को घर में कदम रखते ही मिट्टी के तेल जैसी किसी चीज के जलने की गंध लग गई. रसोई में झांक कर देखा तो ज्वालाओं से घिरी पद्मजा दिखाई पड़ी. संपत हक्काबक्का रह गया. वह जोश में आ कर रसोई का दरवाजा पीटने लगा और पद्मजा को बारबार पुकार रहा था. अंत में दरवाजा टूट गया. 40 प्रतिशत जली पद्मजा अस्पताल में भरती कराई गई. फिर बड़ी मुश्किल से वह बच पाई. पद्मजा को जब यह पता चला कि उस दिन संपत के स्कूटर के पीछे बैठी नजर आई लड़की कोई और नहीं वह तो संपत के ताऊ की बेटी थी, बस, पद्मजा का मन पश्चात्ताप से भर गया. उसे अपनी गलती महसूस हुई.

पद्मजा में अपने प्रति ग्लानि तब और बढ़ गई जब पति ने इलाज के दौरान जीतोड़ कर सेवा की. उसे बड़ी शरम महसूस हुई और अपनी जल्दबाजी, मूर्खता पर स्वयं को कोसने लगी.

दौड़ती कार के अचानक रुकते ही पद्मजा वर्तमान में आ गई. अतीत के सारे चलचित्र ओझल हो गए.

‘‘गाड़ी क्यों रोकी?’’ उस ने ड्राइवर से पूछा.

‘‘मांजी, यहां एक छोटा होटल है. सोचा, आप थक गई होंगी. प्यास भी लग गई होगी. क्या मैं आप के लिए थोड़ा ठंडा पानी ले आऊं?’’

‘‘नहीं, इस समय मुझे कुछ भी नहीं चाहिए. मुझे फौरन वहां पहुंचना है वरना…’’ इतना कहतेकहते ही पद्मजा का गला भर गया. उस समय केवल समीरा ही उन के दिलोदिमाग पर छाई हुई थी.

पद्मजा पीछे सीट की तरफ झुक गई. खिड़की के शीशे नीचे कर देने से ठंडी हवा के झोंके भीतर आ कर मानो उस की थकावट दूर करते हुए सांत्वना भी दे रहे थे. बस, उस ने अपनी आंखें मूंद लीं.

गाड़ी अचानक ब्रेक के कारण एक झटके के साथ रुकी तो पद्मजा एकदम सामने वाली सीट पर जा गिरी. तभी उस की आंख खुल गई. वह एकदम उछल पड़ी. चारों ओर नजर दौड़ाई. स्थिति सामान्य देख कर वह बोल पड़ी, ‘‘सत्यम, अचानक गाड़ी क्यों रोक दी तूने?’’ पद्मजा ने पूछा.

‘‘आप नींद में चीख उठीं, तो मैं डर गया कि आप के साथ कोई अनहोनी हुई होगी,’’ उस ने अपनी सफाई दी.

कार शहर में पहुंच गई थी और रामनगर महल्ले की तरफ जाने लगी. पद्मजा मन ही मन सोचने लगी कि उस की बिटिया सहीसलामत रहे.

लेकिन, जैसा उस के मन में डर था. पद्मजा ने वहां ऐसा कुछ भी नहीं पाया था. वातावरण एकदम शांत था. गाड़ी के रुकते ही वह दरवाजा खोल कर झट से कूदी और भीतर की तरफ दौड़ पड़ी.

घर के भीतर खामोशी फैली हुई थी. सहमी हुई पद्मजा ने भीतर कदम रखा कि उसे ये बातें सुनाई पड़ीं.

समीरा बोल रही थी. बेटी की आवाज सुन कर पद्मजा के सूखे दिल में मानो शीतल वर्षा हुई.

‘‘आप ने क्यों बचा लिया मुझे? एक पल और बीतता तो मैं फांसी के फंदे में झूल जाती और इस माहौल से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता.’’

‘‘समीरा…’’ यह आवाज पद्मजा के दामाद की थी.

‘‘मैं ने यह बिलकुल नहीं सोचा कि तुम इतनी ‘सेंसिटिव’ हो. अरे, पतिपत्नी के बीच झड़प हो जाती है, झगड़े भी हो जाते हैं. क्या इतनी छोटी सी बात के लिए मर जाएंगे? समीरा, मैं तुम को दिल से चाहता हूं. क्या तुम यह नहीं जानतीं कि मैं बगैर तुम्हारे एक पल भी नहीं रह सकता?’’

‘‘आप जानते हैं कि मुझे शराबियों से सख्त नफरत है. फिर भी आप…’’

‘‘समीरा, मैं शराबी थोड़े ही हूं. तुम्हारा यह सोचना गलत है कि मैं हमेशा पीता रहता हूं लेकिन कभीकभी पार्टियों में दोस्तों का मन रखने के लिए थोड़ा पीता हूं. यह तो सच है कि परसों रात मैं ने थोड़ी सी शराब पी थी लेकिन तुम ने जोश में आ कर भलाबुरा कहा, मेरा मजाक उड़ाया और बेइज्जती की और मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सका.

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