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मैं ने उस दुकानदार की बात का जवाब देना जरूरी नहीं सम झा और उठ कर तेजी से बाहर आ गया. सब से पहले मैं ने अपना ही मुआयना किया. हैलमैट की वजह से सिर तो सलामत रह गया था, मगर घुटने और कुहनियां ऐसे लगने लगे थे, मानो किसी ने उन पर रंदा चला दिया हो. सूट भी फट गया था.

दूसरी ओर पड़े अधेड़ सज्जन बुरी तरह चीखते हुए मु झे गालियां दे रहे थे और मेरा ड्राइविंग लाइसैंस रद्द करने की मांग भी उठा रहे थे. आसपास के लोगों ने उन्हें अपने घेरे में ले रखा था और टटोलटटोल कर उन की चोटों का मुआयना कर रहे थे.

मैं ने वहां से निकल कर भागना चाहा और स्कूटर उठा कर उसे स्टार्ट करने की कोशिश की, लेकिन नाजुक मौके पर वह भी धोखा दे गया.

तभी मोटाताजा सा एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘‘अपनेआप को हवाईजहाज का पायलट सम झता है क्या? और अब भागता है, चल इधर, उस आदमी को अस्पताल पहुंचा.’’

उस ने मु झे घसीटा, तो मैं मिमियाया, ‘‘भाई साहब, मेरा स्कूटर...’’ सामने ही एक स्कूटर मेकैनिक ने अपना दरबार फैला रखा था. वह दौड़ कर आया और स्कूटर को अपने कब्जे में लेते हुए बोला, ‘‘आप का स्कूटर मेरे पास है, शाम तक इसे बिलकुल चकाचक कर दूंगा.’’

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मैं विरोध करने की हालत में नहीं था और घिसटता हुआ घायल आदमी के पास चला गया. वह लगातार मरनेमारने की बात कर रहा था.

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