जगह काफी दूर थी, पर जीपीएस लगा था. अजय ने लड़की को उस की जगह पर पहुंचाया. उतरते हुए लड़की ने 2,000 का एक नोट निकाल कर उसे देते हुए कहा, ‘‘यह आप का मेहनताना है.’’ अजय बोला, ‘‘मैडम, आप मुसीबत में थीं, इसलिए मैं ने मदद की. जिस दिन आप मुझे ड्राइवर रख लेंगी, उस दिन मुझे यह पैसे भी दे देना,’’ यह कहते हुए उस ने चाबी लड़की के हाथों में पकड़ाई और तेज कदमों से चला गया. कुछ कदम चलने के बाद अजय को कार की डिक्की के खुलने की आवाज आई. वह लड़की एक बड़ा सा सूटकेस उस कार की डिक्की से निकाल रही थी,
पर उस से निकल नहीं रहा था. अजय ने सोचा कि वह उस की मदद करे, इसलिए वह लौटा और बोला, ‘‘क्या मैं मदद करूं?’’ लड़की थोड़ी सकपकाई, फिर अपनी हालत देखते हुए बोली, ‘‘हां, इस सूटकेस को अंदर ले जाना है.’’ सूटकेस बहुत भारी था, पर अजय के लिए मुश्किल नहीं था. वह उसे आसानी से उठा कर ले गया. लड़की ने उसे बैडरूम में पलंग के गद्दे को उठा कर सामान रखने की जगह में रखवा दिया. अजय को कुछ अजीब सा लगा, पर फिर उस ने कंधा उचकाया कि उसे क्या लेनादेना. लड़की ने कहा, ‘‘थैंक यू वैरी मच जैंटलमैन.’’ अजय घर से निकल कर चला आया.
सड़क पर लगे नल पर सुबह अजय नहाधो कर तैयार हुआ और सेठजी के कारखाने के पास जा पहुंचा. तकरीबन 10 बजे कारखाने का दफ्तर खुला. उसे अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई. वह दरबान के करीब गया और कार्ड दिखा कर बोला, ‘‘मुझे बड़े साहब से मिलना है.’’ दरबान ने मिलने का कार्ड बनवा दिया. तकरीबन साढ़े 10 बजे एक कार अहाते के अंदर घुसी. दरबान ने अजय को बताया, ‘‘साहब आ गए हैं.’’ कार में से एक आदमी उतरा. देखने से ही वह कोई बहुत बड़े सेठ मालूम पड़ रहे थे, लेकिन अजय उन को देखते ही उदास हो गया, क्योंकि ये सेठ तनेजा नहीं थे. उस ने दरबान से पूछा, ‘‘क्या ये ही बड़े सेठजी हैं?’’ दरबान ने बताया, ‘‘हां, आजकल ये ही बड़े सेठजी हैं. इन से बड़े सेठजी का देहांत हुए तो डेढ़ साल हो गया. उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.’’ अब तो अजय की रहीसही हिम्मत भी जाती रही.
वह लौटने के लिए मुड़ा ही था कि दिल के किसी कोने से आवाज आई, ‘एक बार कोशिश कर के तो देखो. क्या पता, काम बन जाए.’ दिल की बात मान कर अजय छोटे सेठजी के पास जाने के लिए तैयार हो गया. उस ने उन के दफ्तर का दरवाजा खोला और पूछ कर अंदर चला गया. उस ने उन्हें प्रणाम किया, तो उन्होंने उसे निहारा और सामने वाली कुरसी पर बैठने के लिए कहा. अजय बैठ तो गया, लेकिन वैसे ही हाथ जोड़े रखा. सेठजी ने वह कार्ड देख कर कहा, ‘‘अच्छा, तो तुम्हारा नाम अजय?है? मैं इस कारोबार का साझेदार प्रदीप हूं. सेठजी ने तुम्हारे बारे में सबकुछ बता दिया था.
तुम्हारी ईमानदारी की तारीफ वे अकसर करते थे. खैर, यह बताओ कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’ ‘‘जी… जी… मैं काम की तलाश में यहां आया हूं. मैं ने बीकौम कर लिया है. मैं कार चलाना और ठीक करना भी जानता हूं.’’ ‘‘ठीक है, तुम्हें काम मिल सकता है. क्या ड्राइवरी का काम कर सकते हो? वेतन 20,000 रुपए होगा, साथ में रहने के लिए जगह भी, लेकिन पता नहीं, तुम यह काम करना चाहोगे या नहीं.’’ ‘‘मैं सीखने के लिए सबकुछ करने को तैयार हूं.’’ ‘‘अच्छा, तो मैं तुम्हें ऐसी लड़की की गाड़ी संभालने का काम दे रहा हूं, जो बहुत भली है, लेकिन अब ‘भटक’ गई है, बातबात पर बिगड़ती है.’’ अजय ने सोचा, ‘कितनी भी बिगड़ी क्यों न हो, आखिर है तो लड़की ही.’ वह उस का पता ले कर चल पड़ा. उस पते के मुताबिक सेठ तनेजा की लड़की ‘मधु’ की गाड़ी उसे संभालनी थी. वह जिस घर में पहुंचा, वह वही था, जहां रात को आया था. वह मधु से मिलने गया. घर के अहाते में बैठ कर वह उसी का इंतजार कर रही थी. उस लड़की के पास पहुंच कर उस ने देखा, वह वही रात वाली लड़की थी, जिस ने उसे पहुंचाया था. वह आसानी से सोच सकता था कि वह बिगड़ी हुई?है.
‘‘तो तुम ही हमारे नए ड्राइवर हो? हम तुम्हारे एहसानमंद हैं, क्योंकि तुम ने हमारे पिताजी की जान बचाई थी. तुम एक तारीख से काम संभाल लो,’’ मीठी, लेकिन सख्त आवाज में मधु ने कहा. उसे बिलकुल याद नहीं था कि यह अजय ही था, जो रात उस के साथ घर तक आया था. अंधेरे की वजह से और नशे के चलते वह उसे पहचान ही नहीं पाई. अजय ने सोचा, ‘इस लड़की का राज पता करना पड़ेगा. वह जो भी कहेगी और जैसा कहेगी मैं करूंगा.’ उस ने हामी भर दी. अगले दिन वह सामान ले कर घर पहुंच गया. वह रामू काका से मिला. रामू काका ने जो सेठजी के यहां 20 साल से नौकरी कर रहे हैं, उसे बताया कि मधु की मरजी और समय का खयाल रखना, वह पागल नहीं?है, जो तुम पर बिगड़ेगी. अगली सुबह अजय मधु के सामने जा पहुंचा और प्रणाम कर के खड़ा हो गया. ‘‘गाड़ी तैयार रखो. मुझे एक जगह जाना है.’’ अजय गाड़ी में चालक की जगह पर बैठ गया. मधु आई तो भड़क उठी. बोली, ‘‘तुम मालिक नहीं हो. जब भी गाड़ी चलाओ, ड्राइवर की वरदी पहनो और बिल्ला लगाओ. जाओ, जल्दी करो.’’ अजय को गुस्सा तो बहुत आया, पर उसे अपना मकसद पूरा करना था,
इसलिए वह दी गई वरदी पहन कर आ गया. उसे अहसास हो गया कि कुछ लोग मधु को ब्लैकमेल कर रहे हैं और उस से वे काम करवा रहे हैं, जो मधु के पैसे और कारखाने को हथियाना चाहते हैं. जल्दी ही अजय ने एकएक का पूरा खाका बना लिया. अब उसे सरगना की तलाश थी. इसी तरह पूरा महीना बीत गया. इस दौरान अजय मधु के हर तेवर को बरदाश्त करता रहा. एक दिन तो गजब हो गया. मधु की सहेली प्रिया को उस के घर छोड़ने के लिए मधु ने ही अजय से कहा था. घर के पास पहुंचने पर प्रिया ने अजय के गाल को चूम लिया. तब उस के होंठों पर लिपस्टिक की लाली साफ उतर गई. प्रिया उसे रिझाने लगी और अजय से कहा, ‘‘मुझे कमरे तक ले चलो न. मुझ से चला नहीं जाता.’’ अजय प्रिया के बारे में जानना चाहता था, इसलिए उस ने उस की बात मान ली. घर में और कोई नहीं था, पर एक दीवार पर 4-5 टीवी स्क्रीनें थीं, जिन में जगहजगह की लाइव पिक्चरें आ रही थीं. पहली मंजिल के कमरे पर जैसे ही उस ने प्रिया को लिटाया, उस ने उस के गले में बांहें डाल दीं और कहा, ‘‘डियर, तुम सिर्फ मधु को मजे देते हो, आज मेरीतुम्हारी रात मेरे साथ,’’ कहते हुए प्रिया कपड़े उतारने लगी.
अजय सकपकाया, पर संभलते हुए बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. तुम्हारे जैसी कमसिन बाला को कोई छोड़ भी कैसे सकता है. बस, बाथरूम तक हो कर आया,’’ कह कर वह कमरे से बाहर निकला, फिर घर का दरवाजा बंद कर के गाड़ी से घर चला आया. अगले दिन मधु ने अजय से तुरंत नौकरी छोड़ देने के लिए कह दिया. प्रिया ने शिकायत की थी कि अजय ने उस के साथ बदतमीजी की थी. अजय भी जोशीला था. सुबह गाड़ी से जाने के लिए उस ने अपना सामान बांधा और जब वह स्टेशन पर पहुंचा, तब गाड़ी आने में 2 घंटे की देरी थी. अजय इंतजार करने लगा. वह मधु के बारे में ही सोच रहा था. उस दौरान उस ने मधु को सारी घटना मैसेज कर दी. थोड़ी देर में ट्रेन प्लेटफार्म पर आती दिखाई दी, तभी उस की नजर पास खड़ी मधु पर पड़ी. वह चौंक गया. ऐसा लगता था, जैसे रातभर वह सोई नहीं थी. ‘‘चलो अजय,’’ मधु ने उदास लहजे में कहा. अजय चुपचाप खड़ा रहा, फिर वह उस के साथ चल पड़ा. दोनों गाड़ी में बैठे. मधु गाड़ी चलाने लगी. वह उसे तेज रफ्तार से चला रही थी. अजय कुछ समझ नहीं पा रहा था कि वह उसे कहां ले जा रही है. एक वीरान सी जगह पर पहुंच कर मधु ने कार रोक दी.
वहां कंटीली झाडि़यां, घासफूस उगे थे. पास ही छोटी सी झील थी. मधु वहीं बैठ गई. वह कंटीली झाडि़यों को निहारती रही, फिर बोली, ‘‘अजय, मेरी जिंदगी इन्हीं कांटों से हो कर गुजरी है. तुम समझते हो कि मैं जन्म से ही बिगड़ी हूं, लेकिन ऐसी बात नहीं?है. ‘‘मैं जब 7 साल की थी, तो मेरी मां मुझे छोड़ कर चली गईं. पिताजी को अपने कारोबार से ही फुरसत नहीं थी, जो मुझ से 2 मिनट मीठी बातें करें. ‘‘मुझे पैसों की कमी नहीं थी, राजकुमारी की तरह मुझे पालापोसा जा रहा था, लेकिन उन्हें कौन समझाता कि मुझे पैसे नहीं, प्यार चाहिए. ‘‘पिताजी के दिल में मेरे लिए प्यार बहुत था, लेकिन समय नहीं था. सगेसंबंधियों के समझाने पर और मेरी खुशी की खातिर उन्होंने दूसरी शादी कर ली. पहले तो नई मां ने मुझे दुलार दिया, लेकिन जब मेरी सौतेली बहन पैदा हुई, तो मां का ध्यान उस की तरफ ज्यादा रहने लगा. मेरा भाई भी कुछ नहीं कर पाया. ‘‘मेरे पिता पर उस ने ऐसा जादू किया था कि सचाई जानने के बावजूद भी वे कुछ कर नहीं सकते थे.’’ फिर कुछ पर रुक कर मधु बोली, ‘‘मैं खून के आंसू रोती रही. एक दिन मेरी सौतली मां व बहन को उन की करतूत की सजा मिल गई. वे कार दुर्घटना में मारी गईं. तब पिताजी कुछ समय के लिए गमगीन रहे, लेकिन फिर मुझ पर ध्यान दिया.