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यह जोड़ी बहुत ही बेमेल थी. 50 साल के ठाकुर भवानी सिंह तो 25 साल की ठकुराइन सुहानी देवी. बेमेल भले ही हो, पर लोगों की नजरों में तो यही जोड़ी सब से बेजोड़ थी, क्योंकि ठाकुर भवानी सिंह 50 साल के हो कर भी दमखम के मामले में किसी जवान लड़के को मात देते थे और ठकुराइन सुहानी देवी का रूप अपनी हद पर था. ठाकुर भवानी सिंह की पहली पत्नी 5 साल पहले ही चल बसी थीं. उन के पहली पत्नी से कोई औलाद नहीं थी. रिश्तेदारों के कहने पर उन्होंने दूसरी शादी के लिए हां कर दी थी और अपने मुकाबले थोड़े कम पैसे वाले ठाकुरों के यहां से सुहानी देवी को ब्याह लाए थे.

भवानी सिंह सुहानी देवी के सामने बड़े ही गर्व से अपनी ठकुराई का बखान करते और अपने खानदान की तलवार दिखाते थे. शान के साथ अपनी खानदानी बातें बताते और हर रीतिरिवाज का बखान करते थे. हर महीने सुहानी देवी के लिए 4-5 जोड़े कपड़े और गहने लाना तो ठाकुर भवानी सिंह के लिए आम बात थी. उन का मानना था कि गहनेकपड़े औरतों के लिए ठीक उसी तरह जरूरी हैं, जैसे मर्दों के लिए शराब और मांस. उन्हें इस के लालच में फंसाओ और खुद चाहे जो भी करो. औरतें घर की चारदीवारों में नियमों, परंपराओ में फंसी रह कर भी अपनेआप को धन्यभागी समझती रहेंगी. जब सुहानी देवी नईनई ब्याह कर आई थी, तो उस की सास उसे बताती थीं कि तुम ठकुराइन हो...

फलां काम तुम्हें इस तरह से करना है और फलां काम कुछ इस तरह से... हम ठकुराइनों के खांसने और छींकने में भी एक शालीनता और एक अदा होती है और अगर घर में कोई शोक हो तो भी हमें चीखचीख कर नहीं रोना... रोने के लिए एक अलग जाति की औरतें होती हैं, जो इन्हीं मौकों पर बुलाई जाती हैं. न जाने और क्याक्या बताया गया था सुहानी देवी को, पर उसे इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. ठकुराइन होने का भार उस के लिए कुछ ज्यादा ही था. एक बार जब जेठ की दोपहरी में गरमी से परेशान हो कर सुहानी देवी ने अपने बदन के गहने उतार दिए और एक हलके कपड़े वाली साड़ी पहन ली, तो उस की सास ने कितना डांटा था उसे, ‘‘ये भारी कपड़ेलत्ते तो हम ठकुराइनों की शान हैं. इन्हें जीतेजी अपने बदन से अलग नहीं करते... दोष होता है.’’

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