विवाह के बाद जो सुकून मिलना चाहिए था, वह अधीर को कभी नहीं मिला. मीनू की परवरिश ही कुछ ऐसे माहौल में हुई थी कि उस के लिए अपने मांबाप, भाईबहन आदि के अलावा किसी दूसरे से तालमेल बैठा पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव सा था.
पहले अधीर मीनू के ताना मारने पर प्रतिक्रियाएं व्यक्त करता था, जिस से बात बढ़ कर बतंगड़ बन जाती थी और फिर धुआंधार बहस में माहौल इतना गरम हो जाता कि तलाक के लिए वकील का दरवाजा खटखटाने तक की नौबत आ जाती थी.
पर अधीर बड़े धीरज से काम लेता था. सो उस ने मीनू से जबानजोरी करनी छोड़ दी और उस को शांत करने के लिए सारी हिकमत अपनानी शुरू कर दी. सुबह उस से पहले उठ कर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, सुबह की चाय बनाना और लंच के लिए खाना तैयार करने में उस का हाथ बंटाना आदि.
ये भी पढ़ें- अपनी अपनी खुशियां : शिखा ने ऐसा क्या किया
बहरहाल वह मीनू के स्वभाव को बदलने में हमेशा नाकामयाब रहा. मीनू सारी हदें लांघ कर अमर्यादित तरीके से बरताव करने लगी थी. बच्चों और पति को झिड़कना और डांटना तो मामूली बात थी, अब तो वह गालीगलौज करने पर आमादा हो गई थी. उसे बेलगाम विस्फोटक होने से बचाने के लिए अधीर सुबह से ही ऐसे कामों को निबटाने में जुट जाता था जिन्हें करने से मीनू जी चुराती थी.
उसे संतुष्ट करने के लिए वह अपनी नौकरी को भी दांव पर लगा बैठा था. आफिस देर से पहुंचना, पहले लौट आना और काम को गंभीरतापूर्वक न लेना उस की आदत बन गई थी. इतने पर भी मीनू को अधीर की हर बात से शिकायत थी.