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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

हवेलीनुमा घर के एक हाल में बने एक शानदार औफिस में एक युवक, जिस की उम्र बामुश्किल 30 से 35 साल होगी, एक ऊंची पुश्त वाली कुरसी पर बैठा हुआ कुछ फाइलों के पन्ने पलट रहा था.

‘‘देखिए, आप लोगों के कागज तो पूरे हैं, पर इस में ‘सपोर्टिंग डौक्यूमैंट्स‘ की कमी है,‘‘ उस युवक ने अपनी आंखों के सवाल को सामने बैठी 2 महिला में से एक की आंखों की तरफ उछाला.

‘‘पर, हम ने तो सारे कागज लगा दिए हैं सर,‘‘ एक महिला उत्तेजित स्वर में बोल उठी.

उस की ये बात सुन कर उस युवक के चेहरे पर एकसाथ कई रंग आए और गए.

‘‘अरे, तू चुप रह... सर, यह अभी नईनई आई है न, इसे पता नहीं है आप का तरीका. मैं आप के ‘सपोर्टिंग डौक्यूमैंट्स‘ पूरे कर दूंगी. बस, आप इतना बता दीजिए कि ये बाकी के कागजात कहां पहुंचाने हैं,‘‘ एक महिला ने कहा.

‘‘वहीं, जहां आप हर बार पहुंचाती आई हैं... पर, इस बार मेरी एक छोटी सी शर्त है,‘‘ युवक ने कहा.

‘‘जी... कैसी शर्त?‘‘

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‘‘यही शर्त कि बाकी के कागजात जब आप देने आएं तो इन्हें भी साथ ले कर आएं,‘‘ युवक ने दूसरी महिला के बदन को घूरते हुए कहा.

‘‘जी, बिलकुल. आप के कागज भी पहुंच जाएंगे.... और ये भी,‘‘ महिला इतना कह कर मुसकराते हुए औफिस से बाहर चली गई और वह युवक अपनी ऊंची पुश्त वाली कुरसी में आराम से धंस गया और सिगरेट सुलगा कर गोला छल्ले उड़ाने लगा.

उस युवक का नाम रणबीर सिंह था, जो कि शहर के एक बड़े नेता का सारा कामकाज देखता था.

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