एक आला अफसर की नाजों पली बीवी देवी ठाकुर ने आज एक बार फिर पति की थाली में जली हुई दालरोटी के साथसाथ रात की बासी सब्जी परोस दी.

अफसर पति ने कहा, ‘‘देवीजी, कुछ तो मेरी अफसरी का खयाल कर के ताजा भोजन खिला दिया होता. जली हुई दालरोटी खाते देख कर क्या तुम्हें नहीं लगता कि मैं अफसर नहीं, बल्कि कोई चपरासी हूं?’’ देवी ठाकुर बोलीं, ‘‘अफसरी का इतना ही रुतबा है, तो घर में काम करने वाले एक चपरासी का इंतजाम क्यों नहीं करते? तुम्हें पता है न कि अफसरों की बीवियां किटी पार्टियों में जाती हैं. क्या तुम नहीं चाहते कि मैं भी उन पार्टियों में जाऊं?’’

‘‘दफ्तर में एकाध दिन में कोई नया चपरासी आ जाएगा. समझ लो, वह तुम्हारा और तुम्हारे घर का सारा काम करेगा, मगर फिलहाल कुछ दिनों तक तो अपने हाथ से ढंग का खाना खिला दो. आखिर मैं पति हूं तुम्हारा,’’ बहुत ही खुशामद वाले अंदाज में अफसर पति ने कहा.

देवी ठाकुर निराले अंदाज में पति से बोलीं, ‘‘तुम्हें पता है, हम बीवियां पति की इज्जत बढ़ाने के लिए दूसरों से कभी पीछे नहीं रहतीं. खाना बनाने जैसा छोटा काम भी तो चपरासियों का ही है.’’

इज्जत बढ़ाने की बात पर अफसर पति पूछ बैठा, ‘‘आप लोग पार्टियों में हमारी इज्जत कैसे बढ़ाती हैं?’’

देवी ठाकुर बोल उठीं, ‘‘चाय के बदले कौफी, पकौड़ों के बदले समोसे, जलेबी के बदले कलाकंद का आर्डर दे कर पार्टियों में हम पतियों की तारीफ करती हैं और सब को बताती फिरती हैं कि मेरे पति बड़े अफसर हैं, जिन में जरा भी कंजूसी नहीं है.

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