राजस्थान के एक जज शर्माजी ने कहा था कि मोर सारी जिंदगी ब्रह्मचारी रहता है. वह रोता है तो उस के आंसू मोरनी पी लेती है और पेट से हो जाती है इसलिए मोर को राष्ट्रीय पक्षी बनाया गया है. भारत सरकार द्वारा अब गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर देना चाहिए और उसे मारने वाले को ताउम्र कैद की सजा देनी चाहिए.

हम सब लोग शर्माजी की खिल्ली उड़ा रहे हैं. लेकिन क्या हम सभी लोग शर्माजी जैसे ही दंतकथाओंअंधविश्वासों को जानकारी मान कर नहीं जी रहे हैं?

मैं इंगलैंड में पढ़ेलिखे जयपुर के एक बड़े अस्पताल में प्रैक्टिस करने वाले एक ऐसे डाक्टर को जानता हूं जो सच में मानता है कि उस का बेटा गुरुओं के आशीर्वाद से ही पैदा हुआ है. कुछ सालों पहले तक मैं भी मानता था कि मंगलवार को व्रत रखने से मेरे सभी काम बन जाएंगे. इतना ही नहीं, जब बच्चा ज्यादा रोता है तो ज्यादातर घरों में उस की नजर उतारी जाती है.

हम मोर वाली कहानी पर ही यकीन नहीं करते बल्कि नाग की मणि, छींकने पर काम बिगड़ जाना, बिल्ली का रास्ता काट जाना, स्वर्गनरक, पूजानमाज वगैरह पर भी यकीन रखते हैं.

अब मैं खुद को अपने आसपास अकेला पाता हूं. कुछ महीने पहले जब मेरी मां की मौत हुई तो मैं ने घोषणा की थी कि कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं होगा. मां के शव को मैडिकल कालेज को दान दिया जाएगा तो मेरी बड़ी बहन ने कहा कि बिना अंतिम संस्कार के आत्मा की मुक्ति कैसे होगी?

मैं ने कहा कि आत्मा और रूह कुछ नहीं होती. दरअसल, आप खुद कुछ भी नहीं सोचते. आप सोच की परंपरा की अगली कड़ी बन जाते हैं और हजारों सालों तक समाज एक ही ढर्रे पर चलता रहता है.

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