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तनु ने मुझे धीरे से छुआ, तो मैं ने उस की ओर देखा. उस ने इशारे से मुझे बाहर चलने को कहा. चाह तो मैं भी यही रही थी. सो, हम दोनों चुपचाप बाहर निकल आईं.

अब तक बरसात कुछ कम हो गई थी. बरामदे के नीचे के हिस्से में आग जल रही थी और उस की रोशनी में बरामदे से बाहर उन लोगों की परछाइयां दिखाई दे रही थीं.

तीनों आपस में धीरेधीरे बातें कर रहे थे और अंगीठी पर अपने कपड़े सुखा रहे थे. हम दोनों और भी चुप हो कर उन की बातें सुनने लगी थीं.

मैं सोच रही थी कि एक हिसाब से तो हरीश की बात में सच था. आजकल चोरियां भी बढ़ गई थीं और गांव में शाम से ही बिजली भी नहीं थी. अंधेरे में हम उन तीनों को ठीक से पहचान भी नहीं पाए थे. हरीश ने भी रामू को आवाज से ही पहचाना था. अब उन के बात करने से पता चला कि उन में से एक रामू का ताऊ है यानी बूढ़ा आदमी.

‘‘ताऊजी, अगर आज मांजी घर पर न होतीं, तो हम तीनों तो किसी बाघभालू के पेट में होते या फिर सुबह हमारी लाशें सड़क पर मिलतीं, ठंड से सिकुड़ कर,’’ रामू की आवाज खुशी से कांप रही थी.

‘‘बेटे ने तो साफ मना कर दिया था, पर इन का भी क्या कुसूर है. न तो अंधेरे में कोई किसी को पहचान पा रहा है और न ही आजकल किसी पर भरोसा किया जा सकता है. दुनिया में चोरउचक्के भी तो बहुत बढ़ गए हैं.’’

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