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मीरा ने सिसकते हुए टूटेफूटे शब्दों में उसे अपने साथ हुई त्रासदी के बारे में बताया. सुन कर श्याम सन्न रह गया. उस का चेहरा विवर्ण हो गया. उस ने अपना सिर दोनों हाथों में थाम लिया. फिर रुआंसे शब्दों में बोला, ‘‘हे भगवान, मैं नहीं जानता था कि मेरे दोस्त ऐसी घिनौनी हरकत करेंगे. यह तो हैवानियत की हद हो गई.’’

वह उत्तेजित सा हो कर कमरे में चहलकदमी करने लगा.

‘‘अब मेरा क्या होगा?’’ मीरा ने आंसू बहाते हुए कहा.

‘‘तुम क्यों फिक्र करती हो? इस में तुम्हारा कोई कसूर थोड़े ही है. मैं तुम्हें जरा भी दोष नहीं दूंगा. लेकिन एक बात बताओ. क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि जो लोग तुम्हें स्टेशन पर लेने आए थे वे मेरे ही दोस्त थे? वे कोई गुंडे मवाली तो नहीं थे न, जो तुम्हें अकेली देख बहलाफुसला कर अपने साथ ले गए.’’

‘‘ये आप क्या कह रहे हैं?’’ मीरा ने तड़प कर कहा, ‘‘मैं क्या इतनी बेवकूफ हूं कि किसी भी अनजान आदमी के साथ मुंह उठा कर चल दूंगी? क्या मुझे किसी भलेमानस और गुंडेमवाली में फर्क करने की तमीज नहीं है? वैसे भी आप ही ने तो कहा था कि आप के दोस्त हमें स्टेशन पर लेने आएंगे. उन्हें मैं ने पहचान भी लिया था, तभी तो उन पर भरोसा कर के उन के साथ गई. पर उन्होंने इस बात का नाजायज फायदा उठाया और मेरे साथ ऐसा वहशियाना सलूक किया.’’

पति का प्यार, जो सिर्फ नाटक था मीरा अपना मुंह ढांप कर सिसकने लगी. श्याम ने उसे अपनी बांहों में ले लिया और उसे दिलासा दी. उस के आंसू पोंछे, ‘‘रोओ नहीं, जो हो गया सो हो गया. बीती बात पर खाक डालो. इस घटना को एक हादसा समझ कर भूल जाओ.’’

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