उस के पिता के पास जमीन नहीं थी, जो छुईखदान में यहांवहां मेहनतमजूरी किया करते थे, पर महेश लफंगई व गुंडई करता था. महेश अपने घर का एकलौता लड़का था. लाड़प्यार में पला था. उस के पीछे एक बहन थी.
महेश अपने सरीखे लुच्चे यारों के साथ कभीकभार दारू पी लेता था और मातापिता के मना करने पर उन्हीं से लड़ पड़ता था कि शराब पीने के लिए रोकोगेटोकोगे, तो मेरा मुंह न देख सकोगे. मैं घर से भाग जाऊंगा.जब महेश ने देखा कि सीमा छुईखदान छोड़ कर राजनांदगांव रहने लगी है, तब उस ने राजनांदगांव में एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में जैसेतैसे अपने लिए काम ढूंढ़ा और किराए का एक कमरा ले कर आउटर में रहने लगा.
अब वे 2 प्रेमी अकसर मिलने लगे. कभी पार्क में, तो कभी रत्नागिरी पहाड़ी में. कभी रेलवे स्टेशन में, तो कभी बसस्टैंड में. कभी ओवरब्रिज के नीचे, तो कभी रानी सागर के किनारे. कभी सिनेमाघर में, तो कभी बाजार में. मिलन के दरमियान वे मीठीमीठी बातें किया करते थे और जिंदगीभर साथ निभाने का वादा करते थे.
जब सीमा को लगा कि इस से उस की पढ़ाईलिखाई पर बुरा असर पड़ रहा है और वह सब की निगाह में आने लगी है, तब उस ने महेश से मिलनाजुलना कम कर दिया और किसी न किसी बहाने उसे टरकाने लगी.यह बात महेश को नागवार गुजरने के साथसाथ झटका देने वाली थी. वह सीमा की मजबूरी को न समझ कर उस पर शक करने लगा कि वह जरूर किसी दूसरे लड़के के चक्कर में पड़ गई है और उस से पीछा छुड़ा रही है.