कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आज आधी रात को नशे में टुन्न हो कर महेश किराए के कमरे में पहुंचा ही था कि झमाझम बारिश होने लगी. हवा सांयसांय ऐसे चलने लगी, मानो खिड़कीदरवाजा तोड़ डालेगी.

गरज व चमक इस कदर बढ़ गई, जैसे गाज अभी के अभी और यहीं गिर पड़ेगी. ऐसे में सीमा के साथ हुए हादसे से उस के जेहन में खौफ समा गया. उस के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहाने लगीं.

जैसे ही महेश ने दरवाजे का ताला खोलने के लिए चाबी निकाली, वैसे ही वह चकरा गया और वह बड़बड़ाया, ‘‘अरे, ताला कहां गया? मैं ने तो ताला लगाया था, तभी तो चाबी मेरी जेब में है...’’ वह दिमाग पर जोर दे कर गुत्थी सुलझा ही रहा था कि हवा का एक तेज झोंका आया, जो उसे धकियाते हुए कमरे के अंदर ले गया.

महेश तुरंत पलटा और किवाड़ बंद करने की कोशिश की, पर हवा समेत पानी की बौछार इतनी तेज थी कि वह उसे बमुश्किल बंद कर पाया.

‘ओह, मेरे मन में इतना भरम कैसे समा गया है कि मैं ने किवाड़ पर ताला लगाया था या नहीं, भूल गया हूं?’’ महेश ने हांफतेहांफते अपनेआप से कुढ़ कर सवाल किया

महेश अक्खड़ और पियक्कड़ था. रंगरूप का कालाकलूटा बैगन लूटा. तन की तरह उस का मन भी काला. ऊपर से शराब पीपी कर खुद को ब्लड प्रैशर का मरीज बना लिया.

सीमा की मौत से उपजी फिक्र में अमनचैन व भूखप्यास उड़ जाने से महेश मरियल सा दिखने लगा था मानो उस का खून किसी ने चूस लिया हो.

भी हवापानी से नशा हिरन हो गया, तो उसे फिर दारू की तलब हुई. उस ने टेबल से देशी दारू का पौआ उठाया और दो घूंट हलक के नीचे उतारीं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...