बाहर सड़क किनारे, बिजली के खंभे के नीचे पड़े, पेड़ के एक तने पर ही बैठ कर गोपाल की बाकी की पढ़ाई शुरू हो गई थी और तब तक चलती रही जब तक अगले दिन के इम्तिहान की तैयारी पूरी नहीं हो गई.
कुछ दिन बाद जब इंटरमीडिएट इम्तिहान का नतीजा निकला तो गोपाल को खुद भी विश्वास नहीं हुआ कि उस ने पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में पहला नंबर हासिल किया था.
रिजल्ट देख कर बड़े भैया भी खुश हुए और बोले, ‘‘तुम्हारे नंबर अच्छे आए हैं, अब तुम्हे कहीं न कहीं क्लर्क की नौकरी तो मिल ही जाएगी. चलो, मैं कल ही कहीं बात करता हूं.’’
गोपाल ने तुरंत कहा, ‘‘नहींनहीं, मुझे नौकरी नहीं करनी है, बल्कि मुझे आगे पढ़ाई करनी है और मां के सपने को पूरा करना है. वे चाहती हैं कि मैं खूब पढ़ाई कर के एक बड़ा अफसर बनूं.’’
बड़े भैया ने कुछ अनमने से हो कर कहा था, ‘‘अब मैं तुम्हारा खर्चा और नहीं उठा सकता हूं. समय आ गया है कि अब तुम खुद कुछ कमाना शुरू करो.’’
यह सुन कर गोपाल को अच्छा नहीं लगा था, पर इतने अच्छे नंबर और बोर्ड में पहला नंबर आने से उस का आत्मविश्वास बढ़ गया था, ‘‘पर भैया, मैं ने बोर्ड में टौप किया है. मुझे लगता है कोई न कोई कालेज तो
मेरी फीस माफ कर ही देगा. आप मुझे बस 50 रुपए दे दीजिए.’’
‘‘अच्छा ठीक है. जब मुझे ट्यूशन के पैसे मिलेंगे, मैं तुम्हे दे दूंगा,’’ भाई की यह बात सुन कर गोपाल का दिल बल्लियों उछलने लगा था.