विश्वनाथ ने अपने घर में बगिया लगाई हुई थी. एक आम पर कच्ची कैरियां लदी थीं. गरीब घर के मोहित और राधिका ने कैरियां तोड़ कर खा लीं. यह देख कर विश्वनाथ को अपना बचपन याद आ गया, जब वे किसी को अपने मकान के पेड़ से फल नहीं तोड़ने देते थे. क्या उन्होंने मोहित और राधिका को सजा दी?

विश्वनाथ पटना शहर में बने आलीशान घर में अकेले ही रहते थे. उन के बच्चे विदेश में अपनी ही दुनिया में मस्त थे. विश्वनाथ ने भी अपनेआप को बिजी रखने के लिए घर के पिछले हिस्से में कई तरह के फलदार पेड़ लगा रखे थे.

विश्वनाथ सुबहसुबह रोजाना एक घंटा बगिया में काम करते थे. उन की मेहनत रंग लाई. इस बार आम का पेड़ कैरियों से लद गया था.

झुग्गियों में रहने वाले मोहित और राधिका कालोनी में लोगों की कारों की सफाई करने का काम करते थे.

एक दिन दोपहर में वे दोनों जब विश्वनाथ के घर के पिछवाड़े में लगे आम के पेड़ की छांव में सुस्ताने बैठ गए, तो उन का ध्यान ऊपर गया.

कच्ची कैरियों को देख कर राधिका का मन ललचा उठा, ‘‘मोहित, मेरे लिए एक आम तोड़ दो.’’

‘‘नहीं, किसी से बिना पूछे फल नहीं लेते,’’ मोहित बोला.

‘‘तू तो ऐसे कह रहा है, जैसे पूछने से तुझे तोड़ने देंगे...’’

‘‘इतना ही खाना जरूरी है, तो खरीद कर क्यों नहीं खाती...’’

‘‘मोहित, मैं तुझे धन्ना सेठ नजर आती हूं क्या? इतना कमा लेती तो दुकान से बढि़या कपड़े न खरीद लेती. बालटी उठाउठा कर कमर दोहरी हो जाती है, तब कहीं 10-20 रुपए हाथ आते हैं. उन को भी मां को देना पड़ता है, तब कहीं मेरे घर चूल्हा जलता है.’’

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