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सीमा ने जो कल बताया कि समीर किसी खूबसूरत औरत के साथ खुशीखुशी शौपिंग कर रहा था, मुंबई के बजाय बड़ौदा में था, उस का सारा सुखचैन एक डर में बदल गया कि कहीं समीर उस खूबसूरत औरत के चक्कर में तो नहीं पड़ गया है. उसे यकीन न था कि समीर जैसा चाहने वाला शौहर ऐसा कर सकता है. सीमा ने उसे समझाया था, अभी कुछ न कहे जब तक परदा रहता है, मर्द घबराता है. बात खुलते ही वह शेर बन जाता है.

समीर दूसरे दिन लौट आया. वही प्यार, वही अपनापन. रूना का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह परेशान हो गया. रूना ने सिरदर्द का बहाना बना कर टाला. रूना बारीकी से समीर की हरकतें देखती पर कहीं कोई बदलाव नहीं. उसे लगता कि समीर की चाहत उजली चांदनी की तरह पाक है, पर ये अंदेशे? बहरहाल, यों ही 1 माह गुजर गया.

एक दिन रात में पता नहीं किस वजह से रूना की आंख खुल गई. समीर बिस्तर पर न था. बालकनी में आहट महसूस हुई. वह चुपचाप परदे के पीछे खड़ी हो गई. वह मोबाइल पर बातें कर रहा था, इधर रूना के कानों में जैसे पिघला सीसा उतर रहा था, ‘आप परेशान न हों, मैं हर हाल में आप के साथ हूं. आप कतई परेशान न हों, यह मेरी जिम्मेदारी है. आप बेहिचक आगे बढ़ें, एक खूबसूरत भविष्य आप की राह देख रहा है. मैं हर अड़चन दूर करूंगा.’

इस से आगे रूना से सुना नहीं गया. वह लौटी और बिस्तर पर औंधेमुंह जा पड़ी. तकिए में मुंह छिपा कर वह बेआवाज घंटों रोती रही. आखिरी वाक्य ने तो उस का विश्वास ही हिला दिया. समीर ने कहा था, ‘परसों मैं होटल पैरामाउंट में आप से मिलता हूं. वहीं हम आगे की सारी बातें तय कर लेंगे.’

यह जिंदगी का कैसा मोड़ था? हर तरफ अंधेरा और बरबादी. अब क्या होगा? वह लौट कर चाचा के पास भी नहीं जा सकती. न ही इतनी पढ़ीलिखी थी कि वह नौकरी कर लेती और न ही इतनी बहादुर कि अकेले जिंदगी गुजार लेती. उस का हर रास्ता एक अंधी गली की तरह बंद था.

सुबह वह तेज बुखार से तय रही थी. समीर ने परेशान हो कर छुट्टी के लिए औफिस फोन किया.  उसे डाक्टर के पास ले गया. दिनभर उस की खिदमत करता रहा. बुखार कम होने पर समीर ने खिचड़ी बना कर उसे खिलाई. उस की चाहत व फिक्र देख कर रूना खुश हो गई पर रात की बात याद आते ही उस का दिल डूबने लगता.

दूसरे दिन तबीयत ठीक थी. समीर औफिस चला गया. शाम होने से पहले उस ने एक फैसला कर लिया, घुटघुट कर मरने से बेहतर है सच सामने आ जाए, इस पार या उस पार. अगर दुख  को उस की आखिरी हद तक जा कर झेला जाए तो तकलीफ का एहसास कम हो जाता है. डर के साए में जीने से मौत बेहतर है.

उस दिन समीर औफिस से जल्दी आ गया. चाय वगैरह पी कर, फ्रैश हुआ. वह बाहर जाने को निकलने लगा तो रूना तन कर उस के सामने खड़ी हो गई. उस की आंखों में निश्चय की ऐसी चमक थी कि समीर की निगाहें झुक गईं, ‘‘समीर, मैं आप के साथ चलूंगी उन से मिलने,’’ उस के शब्द चट्टान की मजबूती लिए हुए थे, ‘‘मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी,’’ उस ने आगे कहा.

समीर को अंदाजा हो गया, आंधी अब नहीं रोकी जा सकती. शायद, उस के बाद सुकून हो जाए. समीर ने निर्णयात्मक लहजे में कहा, ‘‘चलो.’’

रास्ता खामोशी से कटा. दोनों अपनीअपनी सोचों में गुम थे. होटल पहुंच कर कैबिन में दाखिल हुए. सामने एक खूबसूरत औरत, एक बच्ची को गोद में लिए बैठी थी. रूना के दिल की धड़कनें इतनी बढ़ गईं कि  उसे लगा, दिल सीना फाड़ कर बाहर आ जाएगा, गला बुरी तरह सूख रहा था. रूना को साथ देख कर उस के चेहरे पर घबराहट झलक उठी. समीर ने स्थिर स्वर में कहा, ‘‘रोशनी, इन से मिलो. ये हैं रूना, मेरी बीवी. और रूना, ये हैं रोशनी, मेरी मां.’’

रूना को सारी दुनिया घूमती हुई लगी. रोशनी ने आगे बढ़ कर उस के सिर पर हाथ रखा. रूना शर्म और पछतावे से गली जा रही थी. कौफी आतेआते उस ने अपनेआप को संभाल लिया. बच्ची बड़े मजे से समीर की गोद में बैठी थी. समीर ने अदब से पूछा, ‘‘आप कब जाना

चाहती हैं?’’

‘‘परसों सुबह.’’

‘‘कल शाम मैं और रूना आ कर बच्ची को अपने साथ ले जाएंगे,’’ समीर ने कहा.

वापसी का सफर दोनों ने खामोशी से तय किया. रूना संतुष्ट थी कि उस ने समीर पर कोई गलत इल्जाम नहीं लगाया था. अगर उस ने इस बात का बतंगड़ बनाया होता तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाती.

घर पहुंच कर समीर ने उस का हाथ थामा और धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘रूना, मैं

बेहद खुश हूं कि तुम ने मुझे गलत नहीं समझा. मैं खुद बड़ी उलझन में था. अपने बड़ों के ऐब खोलना बड़ी हिम्मत का काम है. मैं चाह कर भी तुम्हें बता नहीं सका. करीब 4 साल पहले, पापा ने रोशनी को किसी प्रोग्राम में गाते सुना था. धीरेधीरे उन के रिश्ते गहराने लगे. उस वक्त मैं अहमदाबाद में एमबीए कर रहा था.

‘‘मेरी अम्मी हार्टपेशैंट थीं. अकसर ही बीमार रहतीं. पापा खुद को अकेला महसूस करते. घर का सारा काम हमारा पुराना नौकर बाबू ही करता. ऐसे में पापा की रोशनी से मुलाकात, फिर गहरे रिश्ते बने. रोशनी अकेली थी. रिश्तों और प्यार को तरसी हुई लड़की थी. बात शादी पर जा कर खत्म हुई. अम्मी एकदम से टूट गईं. वैसे पापा ने रोशनी को अलग घर में रखा था. लेकिन दुख को दूरी और दरवाजे कहां रोक पाते हैं.

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