मेरी एक पोती है. कुछ दिन हुए उस का जन्मदिन मनाया गया था. इस तरह वह अब 6 वर्ष से ज्यादा उम्र की हो गई है. उस की और मेरी बहुत छनती है. मेरे भीतर जो एक छोटा सा लड़का छिपा हुआ है वह उस के साथ बहुत खेलती है. उस के भीतर जो एक प्रौढ़ दिमाग है उस के साथ मैं वादविवाद कर सकता हूं. जब वह हमारे पास होती है तो उस का सारा संसार इस घर तक ही सीमित हो कर रह जाता है. जब वह चली जाती है तो फिर फोन पर बड़ी संक्षिप्त बात करती है. खुद कभी फोन नहीं करती. हम करें तो छोटी सी बात और फिर ‘बाय’ कह कर फोन रख देती है.
आज अचानक उस का फोन आ गया. मैं ने पूछा तो बोली, ‘‘बस, यूं ही फोन कर दिया.’’
‘‘क्या तुम स्कूल नहीं गईं?’’
‘‘नहीं, आज छुट्टी थी.’’
‘‘तो फिर हमारे पास आ जाओ. लेने आ जाऊं?’’
‘‘नहीं. मम्मी घर पर नहीं हैं. उन की छुट्टी नहीं.’’
‘‘तो उन को फोन पर बता दो या मैं उन को फोन कर देता हूं.’’
‘‘नहीं, मैं आना नहीं चाहती.’’
‘‘तो क्या कर रही हो?’’
‘‘वह जो कापी आप ने दी थी ना, उस पर लिख रही हूं.’’
‘‘कौन सी कापी?’’
‘‘वही स्क्रैप बुक जिस में हर सफे पर एक जैसे आदमी का नाम लिखना होता है, जो मुझे सब से ज्यादा अच्छा लगता हो.’’
‘‘तो लिख लिया?’’
‘‘सिर्फ 3 नाम लिखे हैं. सब से पहले सफे पर आप का. दूसरे सफे पर मम्मी का, तीसरे पर नानी का...बस.’’
मैं ने सोचा, बाप के नाम का क्या हुआ, दादी के नाम का क्या हुआ? वह उसे इतना प्यार करती है. बेचारी को बहुत बुरा लगेगा. किंतु यह तो दिल की बात है. मेरी पोती की सूची, स्वयं उस के द्वारा तैयार की गई थी. किसी ने उसे कुछ बताया व सिखाया नहीं था. फिर मैं ने कहा, ‘‘उस के साथ उन लोगों की तसवीरें भी लगा देना.’’