राजू चीख रहा था. पुलिस वालों की मंशा उसे समझते देर नहीं लगी. राजू अपना सामान वहीँ छोड़ कर जीप के पीछे दौड़ रहा था...बेतहाशा...पागलों की तरह. पर भला एक थके हुए आदमी के पैरों और एक जीप का क्या मुकाबला. कुछ देर बाद राजू सड़क पर ही गिर गया, बेहोश हो गया. वह कितनी देर बेहोश रहा, उसे नहीं पता.
पीछे से आते मजदूरों के जत्थे ने उसे उठाया और पानी आदि पिलाया. होश में आते ही राजू ललिया...ललिया कह कर चिल्लाते हुए वहां से तेज़ी से चल दिया.
राजू अब खाली हाथ था. उसे अपने सामान की फ़िक्र नहीं थी. उसे तो अपनी ललिया की चिंता थी. उस की चिंता तब दूर हुई जब उस ने ललिया को सड़क के किनारे अपने पैरों में सिर डाल कर बैठे देखा.
“का हुआ ललिया,” राजू ने ललिया के कंधे पकड़ कर हुए कहा.
ललिया का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था. उस के बदन पर खरोंच के निशान थे.
राजू ने ललिया को अपने सीने में भींच लिया. न यहां किसी प्रश्न की गुंजाइश थी और न ही किसी उत्तर की. ललिया की सिसकियों ने ही सबकुछ बयां कर दिया था.
राजू की बेटी भी रोए जाती थी. शायद कुछ गलत हुआ है, इस का एहसास उस को भी हो गया था.
राजू और ललिया का अब सबकुछ लुट चुका था. पीछे जाते न बनता था. और आगे जाने की शक्ति नहीं बची थी. पर फिर भी आगे बढ़ने के अलावा कोई चारा न था. किसी से कुछ कहने से कुछ होने वाला भी न था. राजू अच्छी तरह जानता था कि किसी थाने में रिपोर्ट लिखाने से और भी परेशानी हो सकती है, इसलिए इस दुर्घटना को राजू ने भूल जाना ही उचित समझा. तभी ललिया की नज़र सड़क पर लगे एक सरकारी नल पर गई. ललिया राजू से हाथ छुड़ा कर नल पर गई और उसे चलाने लगी और जब पानी की धार बह निकली तो अपने शरीर को उस के नीचे कर दिया और रगड़रगड़ कर अपने को धोने लगी. उस की आंखों में गुस्सा और लाचारी के भाव आजा रहे थे.
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