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रमेश का परिवार गांव का खातापीता परिवार था. उस का पूरा नाम था रमेश सिंह चौहान, पर लोग उसे रमेश ही कहा करते थे. इस समय उस की हालत चाहे साधारण हो, पर वह खुद को बहुत बड़े जमींदार परिवार से संबंधित बताता था. उस ने पढ़लिख कर या तो बापदादाओं का कारोबार खेती करना ही उचित सम?ा या उसे कहीं नौकरी नहीं मिली. वजह कुछ भी हो, पर गांव में रह कर पिता के साथ खेती का काम देखता था. पढ़ालिखा भी वह खास नहीं था. केवल 12वीं जमात पास था.

चाहे उस के भाग्य से सम?ो या उस की योग्यता के चलते सम?ो, उस की शादी शहर की एक पढ़ीलिखी लड़की शीला से हो गई.

शीला के मांबाप के पास कोई और सजातीय लड़का नहीं था और इसलिए उन्होंने शीला की शादी गांव में कर दी.

शीला रमेश के बराबर ही पढ़ीलिखी थी. खूबसूरती में वह उस से कहीं ज्यादा थी. उस के पिता ने शादी में इतना दिया, जितना रमेश अपना घरजमीन बेच कर भी नहीं पा सकता था.

रमेश की मां अभी भी पुराने विचारों की थीं. उन्होंने सास के जोरजुल्म सहे थे. न जाने क्यों वे शीला से उस का बदला लेना चाहती थीं.

रमेश पुराने विचारों का तो नहीं था, पर औरत और खासकर पत्नी के बारे में उस के विचार दकियानूसी ही थे. वह औरत को पैर की जूती सम?ाता था. उस के विचार में पत्नी को अपनी सास के खिलाफ मुंह खोलने का हक नहीं था. वह भी टैलीविजन पर आने वाले सीरियल देखता था. उस की सोच थी कि शादी की ही इसलिए जाती है कि आदमी माता के ऋण से छूट सके. पिता के ऋण से तो वह खुद ही सेवा कर के छुटकारा पा सकता है. उस ने यह कभी नहीं सोचा था कि पत्नी की अपने मातापिता के प्रति भी कोई जवाबदेही होती है, खासतौर पर अब जब ज्यादा भाईबहन न हों.

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