गुमटी चलाने वाले रवि की उम्र भी तकरीबन 20 साल होगी. वह भी गोरा, लंबा और हैंडसम था. इस के अलावा वह बहुत हंसमुख लड़का था. किसी भी ग्राहक से मुसकराते हुए बातें करता था. उस की दुकान अच्छी चलती थी.
हर उम्र के लोग रवि की गुमटी पर दिखते थे. बच्चे चौकलेट और चिप्स के लिए, बुजुर्ग पान के लिए, तो नौजवान बीड़ीसिगरेट के लिए, तो औरतें साबुन और शैंपू के लिए.
रवि की गुमटी एक बड़ी बस्ती में थी, जहां कई गांवों के लोग खरीदारी करने के लिए आते थे. इस बस्ती में एक हाईस्कूल था, जहां आसपास के कई गांवों के लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते थे. इस स्कूल में इंटर क्लास तक की पढ़ाई होती थी. इस बस्ती में जरूरत की तकरीबन हर चीज मिल जाती थी.
रवि के पिता दमा की बीमारी से परेशान रहते थे. घर का सारा काम रवि की मां करती थीं. इस परिवार का सहारा यही गुमटी थी. सुबह 7 बजे से ले कर रात 9 बजे तक रवि इसी गुमटी में बैठ कर सामान बेचा करता था. उसे खाने और नाश्ता करने तक के लिए फुरसत नहीं मिलती थी.
रवि खुशमिजाज होने के साथसाथ दिलदार भी था. किसी के पास अगर पैसे नहीं होते थे तो वह उसे उधार सामान दे दिया करता था. ग्राहकों को चाचा, भैया, दीदी, चाची से ही संबोधित करता था.
स्कूल में सालाना जलसा मनाया जा रहा था. आज भी वह लड़की जींसटौप पहने रवि की गुमटी पर चिप्स और चौकलेट लेने आई थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी.