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‘‘नहीं, आभा, अभी हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे. पहले मालती का पीछा कर उस के घर व घरवाले का पता लगाऊंगा, तब तुम मेरा खेल देखना. पापा अपने को बहुत होशियार समझते हैं.’’

‘‘मुझ को डर लग रहा है कि कहीं वह कमबख्त इस घर में धरना ही न दे दे.’’

‘‘अपना उतना बड़ा परिवार छोड़ कर क्या वह यहां पापा के साथ आ सकेगी?’’

‘‘ऐसी औरतें सब कर सकती हैं. अखबार में जबतब पढ़ते नहीं कि अपने 6 बच्चों को छोड़ कर फलां औरत अपने प्रेमी के साथ भाग गई, पति बेचारा ढूंढ़ता फिर रहा है.’’

‘‘उस औरत को भी क्या कहें? अभी मां को गए एक साल भी पूरा नहीं हुआ और पापा को औरत की जरूरत पड़ गई, धिक्कार है.’’

‘‘भैया, अगर ऐसी नौबत आई तो मैं मामा के पास चली जाऊंगी,’’ वह आंसू पोंछ कर बोली.

‘‘अपने भैया को बेसहारा छोड़ कर? तब मैं कहां जाऊंगा?’’

‘‘तब तो हम दोनों को नौकरी की तलाश करनी चाहिए. हम किराए का मकान ले कर रह लेंगे. सौतेली मां की छांह से भी दूर. तब मामा आदि के पास क्यों जाएंगे भला, इसी शहर में रहेंगे.’’

‘‘मां, तुम हम दोनों को बेसहारा छोड़ कर क्यों चली गईं. राह दिखाओ मम्मी, हम दोनों कहां जाएं, क्या करें?’’ अमित का धैर्य भी आंसू बन कर फूट पड़ा, आभा भी रो पड़ी.

दूसरे दिन अमित जल्दी घर से निकल कर मालती के इंतजार में स्कूटर लिए छिपा खड़ा था. जैसे ही वह घर से निकली वह छिपताछिपाता पीछे लग गया. उस का घर लगभग 2 किलोमीटर दूर था. अमित ने देखा उस के घर से छिपा कर लाई रोटीसब्जी मालती ने अपने बच्चों और पति में बांट दी. बच्चे खा कर यहांवहां खेलने निकल गए और जल्दी से अपने घर का काम निबटा कर मालती अपने घरवाले के जाते ही सजधज कर निकली. अमित उस के पीछेपीछे चलता रहा. वह मेन बाजार में जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर बाद पापा गाड़ी ले कर आए. मालती लपक कर कार में बैठ गई. कार फिर उसी होटल की ओर बढ़ी. वे दोनों फिर उसी होटल में जा पहुंचे. अमित लौट आया.

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