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वह रोती हुई अपने कमरे में घुस गई. अमित के समझाने पर भी वह मन का संदेह नहीं दबा पा रही थी. उस का अब पढ़ने में रत्ती भर भी मन नहीं लगता था. उस ने घबरा कर अपनी नानी को खत लिख दिया. नानाजी तो थे नहीं, सोचा, नानी यहां घर पर रह कर सब संभाल लेंगी. तब तक उस की परीक्षा भी निबट जाएगी.

हफ्ते भर के अंदर नानी आ गईं. महेंद्र अचानक उन्हें देख कर चौंके जरूर परंतु ज्यादा कुछ कहा नहीं, ‘‘अरे अम्मांजी, आप...अचानक कैसे आ गईं?’’

‘‘भैया महेंद्र, 6 मास से बच्चों को नहीं देखा था. इसलिए नरेंद्र को ले कर चली आई. यह तो कल लौट जाएगा, मैं रहूंगी.’’

‘‘अच्छा किया आप ने, बच्चों की परीक्षाएं भी पास हैं. आभा को भी कुछ राहत मिलेगी. वैसे मालती बहुत अच्छी औरत हमें मिल गई है. सुबहशाम काम कर के चली जाती है. काम भी सफाई से करती है.’’

‘‘ठीक है  भैया, अब तो अमित का एम.ए. फाइनल होने जा रहा है. आभा भी बी.ए. कर लेगी. अमित के लिए लड़की और आभा के लिए अच्छा घरवर देख कर दोनों को निबटा दो. बहू आने से घर- गृहस्थी की समस्याएं सुलझ जाएंगी.’’

‘‘अम्मांजी, अमित अपने पैरों पर तो खड़ा हो ले, तभी तो कोई अपनी बेटी देगा उसे. आभा के लिए भी अभी देर है. वह एम.ए. करना चाहती है. 2 साल और सही. अभी तो सब काम चल ही रहा है.’’

‘‘ठीक है भैया, जैसा तुम चाहो. पर एक बात पर और ध्यान दो, माया के सब सोनेचांदी के जेवर लाकर में रख दो. घर पर रखना ठीक नहीं है. तुम तीनों घर से बाहर रहते हो, बडे़ नगरों में चोरियां बहुत होती हैं, इसलिए कह रही हूं.’’

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