कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘एक बार अपने फैसले पर दोबारा विचार कर लें. पतिपत्नी में झगड़ा होता ही रहता है. तलाक ही समस्या का समाधान नहीं होता. आप की एक बच्ची भी है. उस के भविष्य का भी सवाल है,’’ जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने अपने चैंबर में सामने बैठे सोमदत्त और उन की पत्नी सविता को समझाने की गरज से औपचारिक तौर पर कहा. यह औपचारिकता हर जज तलाक की डिगरी देने से पहले पूरी करता है.

सोमदत्त ने आशापूर्ण नजरों से सविता की तरफ देखा. मगर सविता ने दृढ़तापूर्वक इनकार करते हुए कहा, ‘‘जी नहीं, मेलमिलाप की कोई गुंजाइश नहीं बची है.’’

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी.’’

अदालत से बाहर आ पतिपत्नी अपनेअपने रास्ते पर चल दिए. उस की पत्नी इतनी निष्ठुर हो जाएगी, सोमदत्त ने सोचा भी नहीं था. मामूली खटपट तो आरंभ से थी. मगर विवाद तब बढ़ा जब सविता ने आयातनिर्यात की कंपनी बनाई. वह एक फैशन डिजाइनर थी. कई फर्मों में नौकरी करती आई थी. बाद में 3 साल पहले उस ने जमापूंजी का इंतजाम कर अपनी फर्म बनाई थी.

सोमदत्त सरकारी नौकरी में था. अच्छे पद पर था सो वेतन काफी ऊंचा था. शुरू में आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उस ने पत्नी को नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित किया था. धीरेधीरे हालात सुधरते गए. सरकारी मुलाजिमों का वेतन काफी बढ़ गया था.

सविता काफी सुंदर और अच्छे व्यक्तित्व की स्त्री थी. उस की तुलना में सोमदत्त सामान्य व्यक्तित्व और थोड़ा सांवले रंगरूप का था. सरकारी नौकरी का आकर्षण ही था जो सविता के मातापिता ने सोमदत्त से बेटी का रिश्ता किया था. सविता को अपना पति पसंद नहीं था तो नापसंद भी नहीं था. जैसेतैसे जिंदगी गुजारने की मानसिकता से दोनों निबाह रहे थे.

ये भी पढ़ें- जीना इसी का नाम है : सांवरी क्या यहां भी छली गई

सविता के अपने अरमान थे, उमंगें थीं, महत्त्वाकांक्षाएं थीं. फैशन डिजाइनर की नौकरी से उस को अपनी कुछ उमंगें पूरी करने का मौका तो मिला था मगर फिर भी उस का मन हमेशा खालीखाली सा रहता था.

सोमदत्त अपनी पत्नी के सुंदर व्यक्तित्व से दबता था. इसलिए वह उस को उत्पीडि़त करने में आनंद पाता था. कई बार सविता घर देर से लौटती थी. उस का चालचलन, चरित्र सब बेबाक था. इसलिए उस को अपने पति द्वारा कटाक्ष करना, शक करना अखरता था.

बाद में जब सविता ने अपनी आयातनिर्यात की फर्म बना ली और अच्छी आमदनी होने लगी तो सोमदत्त खुद को काफी हीन समझने लगा. उस की खीज बढ़ गई. रोजरोज क्लेश और झगड़े की परिणति तलाक में हुई. दोनों की एक बच्ची थी, जो 12-13 साल की थी और कान्वैंट में पढ़ रही थी. बच्ची की सरपरस्ती भी सविता को हासिल हुई थी.

तलाक का फैसला होने के बाद सविता अपने आफिस पहुंची तो उस की स्टेनो रेणु ने उस का अभिवादन किया. लगभग 22-23 साल की रेणु पूरी चमकदमक के साथ अपनी सीट पर मौजूद थी.

स्टेनो से लगभग 20 साल बड़ी उस की मैडम यानी मालकिन सविता भी अपने व्यवसाय और चलन के हिसाब से ही बनीठनी रहती थी. वह अपनी फिगर का ध्यान रखती थी. उस का पहनावा भी अवसर के अनुरूप होता था.

सविता को स्टेनो रेणु ने मोबाइल से आफिस में बैठे विजिटर के बारे में बता दिया था. उस ने स्वागतकक्ष में बैठे आगंतुकों की तरफ देखा. कई चेहरे परिचित थे तो कुछ नए भी. सभी का मुसकरा कर मूक अभिवादन करती वह अपने कक्ष में चली गई.

मिलने वालों में कुछ वस्त्र निर्माता थे तो कुछ अन्य सामान के सप्लायर. एकएक कर सभी निबट गए. अंत में एक सुंदर लंबे कद के नौजवान ने अंदर कदम रखा.

उस का विजिटिंग कार्ड ले कर सविता ने उस को बैठने का इशारा किया. विवेक बतरा, एम.बी.ए., आयातनिर्यात प्रतिनिधि. साथ में उस का पता और मोबाइल नंबर दर्ज था.

‘‘मिस्टर बतरा, आप एक्सपोर्ट एजेंट हैं?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘कितने समय से आप इस लाइन में हैं?’’

‘‘2 साल से.’’

‘‘आप के काम का एरिया कौन सा है?’’

‘‘सिंगापुर और अमेरिका.’’

‘‘क्या आप के पास कोई एक्सपोर्ट आर्डर है?’’

‘‘बहुत से हैं,’’ कहने के साथ विवेक बतरा ने अपना ब्रीफकेस खोला और सिलेसिलाए वस्त्रों के नमूने निकाल कर मेज पर फैला दिए. साथ ही उन की डिटेल्स भी समझाने लगा. कुछ परिधान जनाना, कुछ मरदाना और कुछ बच्चों के थे.

ये भी पढ़ें- कब जाओगे प्रिय: क्या कविता गलत संगत में पड़ गई थी?

‘‘इन सब की प्रोसैसिंग में तो समय लगेगा,’’ सविता ने सभी आर्डरों के वितरण समझने के बाद कहा.

‘‘कोई बात नहीं है. हमारे ग्राहक इंतजार कर सकते हैं.’’

‘‘क्या कमीशन लेते हैं आप?’’

‘‘5 प्रतिशत.’’

‘‘बहुत ज्यादा है. हम तो 3 प्रतिशत तक ही देते हैं.’’

‘‘मैडम, मेरा काम स्थायी और कम समय में लगातार आर्डर लाने का है. दूसरे एजेंटों के मुकाबले में मेरा काम बहुत तेज है,’’ विवेक बतरा के स्वर में आत्मविश्वास था जिस से सविता बहुत प्रभावित हुई.

‘‘ठीक है मिस्टर बतरा, फिलहाल हम प्रोसैसिंग के बेस पर आप के साथ एक्सपोर्ट आर्डर ले लेते हैं, काम का भुगतान होने के बाद आप को 5 प्रतिशत कमीशन दे देंगे.’’

‘‘ठीक है, मैडम.’’

‘‘क्या आप रसीद या लिखित मेें कोई करार करना चाहते हैं?’’

‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है. मुझे आप पर विश्वास है,’’ कहता हुआ विवेक बतरा उठ खड़ा हुआ. अपना ब्रीफकेस बंद किया और ‘बैस्ट औफ लक’ कहता चला गया.

सविता उस के व्यक्तित्व और बेबाक स्वभाव से प्रभावित हुई. थोड़े दिनों में विवेक बतरा के निर्यात आदेशों में अधिकांश सिरे चढ़ गए. सविता की कंपनी को पहली बार ढेर सारा काम मिला था. विवेक ने भी भारी कमीशन कमाया.

फिर कामयाबी का सिलसिला चल पड़ा. विवेक बतरा नियमित आर्डर लाने लगा. बाहर जाने, विदेशी ग्राहकों से मिलने, बात करने, डील फाइनल करने आदि कामों के सिलसिले में सविता, विवेक के साथ जाने लगी. नियमित मिलनेजुलने से दोनों करीब आने लगे. विवेक बतरा इस बात से काफी प्रभावित था कि सविता एक किशोरवय की बेटी की मां होने के बाद भी काफी जवान नजर आती थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...