‘‘अस्सलाम अलैकुम,’’ कुरैशा ने नकाब उठा कर सलाम किया.
‘‘वालेकुम अस्सलाम,’’ कमरे में मौजूद कई औरतों ने एकसाथ जवाब दिया. वहां धार्मिक ज्ञान के आदानप्रदान के लिए औरतों की एक बैठकी होनी थी.
‘‘अजीजा नहीं आई?’’ खाला बी ने छूटते ही पूछा. सुन कर कुरैशा का चेहरा तमतमा गया. गुस्से से कुछ कहना चाहती थी लेकिन कमरे में बैठी 20-25 औरतों के चलते उस ने सख्ती से होंठ भींच कर चुप्पी साध ली.
इत्र और अगरबत्ती की खुशबू ने महिलाओं के नकाबों से उठती पसीने की बदबू को कुछ हद तक दबा दिया था.
महल्ले में सब से ज्यादा धार्मिक जानकारी रखने वाली खाला बी ने कुदरत की तारीफ करने के साथ बैठकी की शुरुआत की. रोजा व नमाज हर मर्द और औरत का फर्ज है, यह बता कर पाबंदी से उस की अदायगी के तरीके समझाए. कब और किन परिस्थितियों में औरत को नमाज नहीं पढ़नी है, यह भी बताया. किसी की बुराई करने, किसी का अधिकार छीनने पर कुदरत की मार पड़ने की जानकारी देते हुए वे देर तक मजहबी बातें बताती रहीं.
दोपहर और शाम के बीच की नमाज की अजान होते ही महिलाएं नमाज पढ़ने लगीं. उस के बाद खाला बी की तलाकशुदा बेटी ट्रे में चाय के कप ले कर हाजिर हो गई. बहुत देर से जबान बंद रखने की सजा पर सब्र किए बैठी, हमेशा बोलते रहने वाली कुदरत खाला ने बारबार फिसलते दुपट्टे को सिर पर ठीक से रखते हुए कुरैशा से पूछ ही लिया, ‘‘आप की बहन अजीजा दिखाई नहीं देती, तबीयत खराब है क्या? वह तो कभी गैरहाजिर नहीं रहती?’’
बारबार अपनी बड़ी बहन अजीजा के बारे में पूछे जाने पर कुरैशा की आंखों से चिनगारियां फूटने लगीं, तभी खाला बी बोल पड़ीं, ‘‘अल्लाह जाने, हमारे छोटे बेटे इदरीस मियां बता रहे थे कि अजीजा कल अपने शौहर अनवार मियां के साथ तांगे पर बैठ कर कहीं जा रही थी.’’
सुनते ही हलीमा खाला झनझना गईं, ‘‘तौबातौबा, जिस शौहर ने 6 महीने पहले तलाक दे कर घर से बेघर कर दिया, उसी के साथ फिर मिलनाजुलना? छीछीछी, गुनाह है गुनाह.’’
‘‘मौलाना साहब बता रहे थे कि अजीजा को तलाक दे कर अनवार मियां बहुत दुखी और शर्मिंदा हैं. अपनी बिखरी जिंदगी को फिर से संवारने के लिए…’’ कुरैशा की तरफ गहरी नजर डालते हुए बोलतेबोलते बीच में रुक गईं मौलाना साहब की बीवी.
‘‘हांहां, बताइए न, क्या चाह रहे हैं अनवार मियां? क्या बतला रहे थे मौलाना साहब?’’ नसरीन आपा की चटपटी खबर को जानने की उत्सुकता छिपाए न छिपी.
‘‘तो क्या अनवार मियां दोबारा अजीजा से निकाह करना चाहते हैं?’’ बहुत देर से चुप बैठी बिलकीस फूफी ने पान का बीड़ा मुंह में डालते हुए गंभीरता से पूछा.
मौलाना साहब की बीवी कुरता उठा कर अपने बच्चे को दूध पिलाती हुई बोलीं, ‘‘महल्ले में तो यही खबर गरम है.’’
‘‘जी, मैं ने भी कुछ ऐसा ही सुना है. फरहान के अब्बू बतला रहे थे कि अनवार मियां अपने दोस्त कुरबान कसाई से अजीजा का निकाह करवा कर दूसरे ही दिन तलाक करवा कर खुद अजीजा के साथ दोबारा निकाह कर लेंगे,’’ इशाक साइकिल वाले की बीवी ने जानकारी दी.
‘‘हलाला यानी कि तलाक के बाद उसी औरत से दोबारा निकाह करना चाहते हैं अनवार मियां,’’ तभी हुसैना फूफी ऐसी बेफिक्री से बोलीं जैसे हलाला सिर्फ एक धार्मिक रस्म की अदायगी भर है.
‘‘तो क्या अजीजा भी अनवार मियां से दोबारा निकाह करने के लिए तैयार है?’’ सईद ठेकेदार की पत्नी ने कुरैशा की तरफ व्यंग्यात्मक नजर डालते हुए पूछा.
‘‘अगर न होती तो जाती ही क्यों तलाक देने वाले शौहर के साथ,’’ एक महिला ने कहा.
कुरैशा को लगा कि एक करारा थप्पड़ जड़ दिया किसी ने उस के गाल पर.
‘क्या हो गया अजीजा को? क्यों सरेआम अपनी और मेरी बेइज्जती करवा कर अपने ही हाथों अपनी खिल्ली उड़वा रही है,’ सोचती हुई बड़ी बहन के प्रति घृणा से भर गई कुरैशा.
‘‘बराबर के 6 बच्चों के सामने अजीजा के शौहर ने उसे तलाक दिया. कितनी बदनामी हुई समाज में, कितनी जिल्लत उठानी पड़ी. अब रहीसही इज्जत भी हलाला के तहत उसी शौहर से दोबारा निकाह करने पर मिट्टी में मिल जाएगी,’’ हिफाजत तांगे वाले की अम्मा ने चिंता जताई.
‘‘इस में इज्जत जाने वाली क्या बात है? दरअसल, यह शौहर को अपनी गलती पर पछतावा कर के फिर से नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करने का एक मौका है,’’ इकबाल टायर वाले की बीवी ने कहा.
‘‘अपनी गलती की सजा शौहर को खुद भुगतनी चाहिए, न कि दूसरे मर्द के पास बीवी को भेज कर जिंदगी भर अपनी ही नजर में गिर कर जलील होने की सजा देनी चाहिए?’’ कुरैशा भड़क उठी.
‘‘कुरैशा, जब हमारा मजहब ही मुसलमान मर्दों को अपनी गलती सुधारने का मौका देता है तो किसी को भला क्यों एतराज होगा,’’ खाला बी की दलीलों में इसलामी कानून का जिक्र आते ही सारी औरतें चुप हो गईं.
मजहब के इस कानून को औरतजात का शारीरिक व मानसिक शोषण मानने वाली आधुनिक सोच रखने वाली कुरैशा ने पूरी ताकत से अपनी आवाज बुलंद की, ‘‘बहनो, जरा सोचिए, छोटी सी बात को ले कर मर्द ने औरत को तलाक दे कर समाज की नजर से गिरा दिया, फिर औरत को ही अपने शौहर को दोबारा हासिल करने के लिए एक रात दूसरे मर्द के साथ जिस्मानी रिश्ते से गुजरना पड़े तो क्या यह औरतजात के डूब मरने के लिए काफी नहीं है?
मैं कहती हूं, यह जुल्म है, इंसानियत के नाम पर धब्बा है, मानवाधिकारों का हनन है, औरत के स्वाभिमान को कुचलने की साजिश है. कोई भी औरत कभी भी ऐसी शर्तों को मानने के लिए न तो दिल से तैयार होती है न ही जिस्मानी तौर पर,’’ गुस्से की उत्तेजना से कुरैशा का सांवला रंग तांबई हो गया.
‘‘लेकिन कुरैशा, मजहब के कानून में अगरमगर या बहस और शक की कोई गुंजाइश नहीं होती. इसलामी कायदेकानून में सूत बराबर भी फेरबदल करने वाला शख्स मुसलमान होने की शर्त से ही खारिज कर दिया जाता है,’’ खाला बी ने समझाने की कोशिश की.
‘‘लेकिन औरतें इस जलील समझौते के लिए तैयार क्यों हो जाती हैं? मेरी समझ में नहीं आता. क्या औरत की अपनी कोई इज्जत नहीं? उस की अपनी राय और फैसले की कोई अहमियत नहीं? क्या उस का जमीर खुद उसे झकझोरता नहीं कि वह अपने ही शौहर को हासिल करने के लिए दूसरे मर्द की बांहों में जाने के लिए मजबूर हो? भले ही एक रात के लिए. अपनी पाकीजगी पर धब्बे लगा कर औरतजात के पैदा होने को ही उस की बदनसीबी साबित कर दे.
‘‘पता नहीं अनवार मियां ने सीधीसादी, अनपढ़ अजीजा को ऐसी क्या उलटीसीधी पट्टी पढ़ा दी है कि वह उन के साथ दोबारा निकाह करने के लिए तैयार हो गई…बेवकूफ, बुजदिल कहीं की,’’ कुरैशा के अंदर का सुलगता ज्वालामुखी फट पड़ा, जिस की तपन में महफिल झुलस गई.