साक्षी और सिंधु ने साबित कर दिया कि घर के लिए सब्जी, बच्चों की पीटीएम से ले कर ओलिंपिक में मैडल लाने तक के लिए महिलाओं को ही आगे आना पड़ता है. इतनी बड़ी कामयाबी के साथ एक और छोटी खबर जो पिछले दिनों चर्चा में रही, वह थी ‘सिंधु का मोबाइल से अलगाव’  वह भी पूरे 3 महीने के लिए. आज शायद यह ओलिंपिक में मैडल जीतने से भी ज्यादा कठिन कार्य है. महान तपस्या है. जब मोबाइल यत्रतत्रसर्वत्र छाया है, तो इस के बिना रहने की कल्पना करने से भी डर लगता है. घर, बाहर, मैट्रो स्टेशन या एयरपोर्ट सब जगह मोबाइल पर जुटे लोग दिख जाएंगे. बीएमडब्लू वाला हो या रिकशे वाला हर कोई इस का दीवाना है. सुबह से ले कर रात और रात से ले कर सुबह, अनवरत मोबाइल देवो भव:.

अब आप ही बताइए उस सफलता या उपलब्धि के क्या माने हैं जिस की पलपल की खबर लोगों तक न पहुंचे. कैसा होगा वह करुणामय पल जब सिंधु ने भरे मन से मोबाइल का त्याग किया होगा? कितनी मुश्किल से मोबाइल अपने बैग या जेब से निकाल कर दिया होगा? क्या उस का हाथ नहीं कांपा होगा?

क्या उस के मन में एक बार भी नहीं आया होगा कि अब मैं सैल्फी कैसे लूंगी? मैं फेसबुक पर पोस्ट कैसे डालूंगी? ट्विटर पर ट्वीट कैसे करूंगी? कैसे इंस्टाग्राम पर धड़ाधड़ पिक्स डालूंगी. शायद इन में से अगर एक खयाल भी दिमाग में आ जाता तो बेचारी के तो आंसू निकल जाते और शायद वह कह भी देती, ‘भाड़ में जाए ओलिंपिक्स’ इस महान कार्य के लिए ‘भारत रत्न’ तो बहुत छोटी चीज है. उस से भी बड़ा कोईर् अवार्ड है तो  उसे मिलना चाहिए था, जैसे ‘संभाले जनून अवार्ड’ या फिर ‘काबिलेतारीफ अवार्ड.’

क्या फायदा ऐसी सफलता का जब तक उस की पलपल की खबर फेसबुक पर किसी ने न ली. आज कोई भी नौजवान  नाम से कम इस बात से ज्यादा जाना जाता है कि उस ने सोशल मीडिया पर कितनी पोस्ट डालीं.

सोचो जरा, कैसी खुशी रही होगी सिंधु के मुख पर जब वह रियो पहुंची होगी. क्याक्या सत्कार हुआ होगा उस का? पर सब बेकार, जब उन हसीन लमहों को किसी ने फेसबुक पर देखा ही नहीं, लाइक ही नहीं किया और न ही कोई कमैंट किया. आज के ज़माने में इसे बेइज्ज़ती कहते हैं, अगर कोई लाइक या कमैंट न करे, और जो पोस्ट न डाले वह बैकवर्ड.

वह ज़माने लद गए जब बच्चे मां के उठाने पर या घड़ी के अलार्म से उठते थे. अब उन की नींद व्हाट्सऐप या फेसबुक के मैसेज से खुलती है. चाहे मां कितनी भी आवाज लगा लें मजाल है कि बच्चे जरा हिल भी जाएं और वहीं अगर वह वाईफाई औन कर दें, तो देखो नज़ारा, एक मिनट में उठ जाएंगे और पूरी मुस्तैदी से फोन उठा कर मैसेज पढ़ना शुरू कर देंगे. अब आप यह न कहना कि हमारा बच्चा पढ़ता नहीं है.

देखो, कितने मनोयोग से पढ़ रहा है. फिर चाहे वह ग्रुप के मैसेज हों या पिछली रात वाली चैट.

सुबह बेशक अपने सामने खड़ी मम्मी को नमस्ते, गुडमौर्निंग न बोले पर मजाल है, अपने व्हाट्सऐप ग्रुप पर ‘गुडमौर्निंग फैं्रड्स’ लिखना भूल जाए. जैसे वे तो ताक लगाए बैठे हैं कि कब आप का बच्चा गुडमौर्निंग बोले और वे अपने दिन का शुभारंभ करें.

फेसबुक पर भी वे ऐसीऐसी पोस्ट डालेंगे कि फै्रंड्स पुरजोर कोशिश करेंगे कि उन की खबर दुनिया के कोनेकोने तक पहुंच जाए. इतना लाइक करेंगे कि हरेक कमैंट का जवाब देंगे. सैल्फी डालेंगे और लोगों को पकाएंगे. पिछली रात का एकएक मिनट का लेखाजोखा होगा. तिस पर उन का बस चले तो अपनी नींद में आने वाले सपने भी फेसबुक पर डाल दें, पर कमबख्त याद ही नहीं रहते बड़ा अफसोस है.

वह जमाना गया जब लोग समय देखने के लिए घड़ी देखते थे. अब तो वह बेचारी दीवार टंगेटंगे ही ‘टैं’ बोल जाती है, किसी को उस का ध्यान ही नहीं आता. अब लोग वक्तबेवक्त मोबाइल चैक करते हैं. हर आधे सैकंड में जैसे इतने समय में कोईर् भूकंप न आ गया हो, उन के फोन और उन्हें देखना क्या होता है कि कितने लाइक आए हैं, कितने कमैंट मिले हैं या फिर किस ने क्या पोस्ट डाली है. शायद उन्हें लगता है कि लोग टौर्च ले कर उन्हें ही ढूंढ़ रहे हैं. कितने फौलोअर हो गए, कितने लाइक, कमैंट जैसे इस में कोई विश्व रिकौर्ड बनाना है.

लोगों की गुडमौर्निंग, गुडईवनिंग, बर्थ के विशेज, हर त्योहार की शुभकामनाएं यहां तक कि विमंस डे, फादर्स डे आदि की अवधारणाएं भी सुबहसुबह व्हाट्सऐप बीप के साथ सब का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

जहां इतना जनून उबल रहा हो, ऐसे में सिंधु का अलगाव ए मोबाइल वाकई काबिलेतारीफ है. एक भारत रत्न तो इस उपलब्धि के लिए भी बनता है जी.

पहले बच्चे किताबें ले कर खुश होते थे और अब मोबाइल. उन्हें कह दो, ‘बेटा नोट्स बना लो,’ तो जवाब मिलेगा, ‘क्या जरूरत है मौम? व्हाट्सऐप ग्रुप पर कोई भी डाल देगा?’

नोट्स भी अब इंस्टैंट पिज्जा की तरह हो गए हैं. 15 मिनट के बाद फ्री, क्योंकि 15 मिनट में ही बच्चे उन नोट्स पर इतने कमैंट्स डाल कर बेइज्जती कर देते हैं कि बनाने वाला सोच में पड़ जाता है कि मैं ज्यादा समझदार हूं या फिर ये सब लोग, जो अपनी ऐक्सपर्ट राय दे रहे हैं. उसे अपने ही बनाए नोट्स की गुणवत्ता पर शक होने लगता है.

और तो और व्हाट्सऐप अब रैगिंग का नया तरीका बन गया है. पहले फै्रशर्स को अच्छेअच्छे सब्ज़बाग दिखा कर ग्रुप में जोड़ लेते हैं. टीचर्स भी कहते हैं, ‘सीनियर्स से बना कर रखो. काम आएगी यह दोस्ती आगे बढ़ने में.’

फिर वह इसी ग्रुप पर कालेज की छुट्टी का ऐलान कर के क्लास बंक करवा देते हैं.

पर अफसोस, सिंधु ने ये सब अविस्मरणीय पल खो दिए सिर्फ ओलिंपिक में मैडल की चाह में.

VIDEO : पीकौक फेदर नेल आर्ट

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