शादी के बाद रमेश पहली बार अपनी दुलहन को फिल्म दिखाने गांव से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर शहर ले जा रहा था. सवारी के लिए उस के पास मोटरसाइकिल थी. लोक रिवाजों के चलते घर के सामने से वह पत्नी को मोटरसाइकिल पर बैठा नहीं सकता था. पत्नी गांव से बाहर तक पैदल आई, फिर रमेश ने सड़क पर उसे मोटरसाइकिल पर बैठाया और फर्राटा भरते हुए शहर की ओर चल पड़ा. फिल्म देखने और शहर घूमने के बाद वे दोनों रात में अपने गांव वापस आ गए. केवल पत्नी को फिल्म दिखाने की ही बात नहीं है, किसी बीमार को अस्पताल ले जाना हो या घर और खेत के लिए जरूरी सामान लाना हो, तो मोटरसाइकिल सब से उपयागी सवारी हो गई है. हाल ही के कुछ सालों में मोटरसाइकिल गांव में रोजगार का आसान साधन बन कर उभरी है.
मोटरसाइकिल पर सवारी करने के साथसाथ जरूरत का सामान भी ले जाया जाता है. गांव के लोगों की ज्यादातर नातेरिश्तेदारी 50 से 60 किलोमीटर के बीच ही होती है. मोटरसाइकिल की सवारी से यह दूरी तय करना काफी आसान हो गया. शहर से 30 किलोमीटर दूर रह कर दूध की डेरी चलाने वाले नरेश यादव ने शुरुआत में मोटरसाइकिल पर दूध के डब्बे लाद कर शहर पहुंचाना शुरू किया था. वह अपनी मोटरसाइकिल पर दूध के 4 डब्बे ले कर शहर जाता था.
सब्जी का कारोबार करने वाले श्याम प्रसाद कहते हैं, ‘‘अब कम सब्जी पैदा होने पर भी मोटरसाइकिल से शहर की सब्जी मंडी में सब्जी को पहुंचाया जा सकता है. पहले इस के लिए ज्यादा सब्जी के तैयार होने का इंतजार करना पड़ता था या फिर बिचौलिए को ही बेच दिया जाता था.’’
दरअसल, हाल के कुछ सालों में गांवों को बड़े पैमाने पर सड़कों से जोड़ने का काम किया गया है. जहां पक्की सड़कें नहीं हैं, वहां भी खड़ंजा या ऐसा पक्का रास्ता जरूर बन गया है, जिस पर मोटरसाइकिल से आनाजाना आसान हो गया है. ज्यादातर गांव पक्की सड़कों से जुड़ चुके हैं.
पहले गांवों में पुराने टाइप की ज्यादा तेल की खपत वाली बुलेट, यजदी और राजदूत मोटरसाइकिलें चलती थीं, जिन को चलाना महंगा होता था, लेकिन अब 100 सीसी इंजन वाली कम पैट्रोल से चलने वाली मोटरसाइकिल आने से इन का इस्तेमाल करना किफायती होता है.
दिनोंदिन बदले दोपहिया
मोटरसाइकिल से पहले साइकिल गांव में आनेजाने का अहम साधन होती थी. पहले देश में साइकिलें बनाई नहीं जाती थीं. विदेशों से बन कर साइकिलें यहां आती थीं. साल 1944 में मुंजाल ब्रदर्स ने साइकिल के पार्ट बनाने की कंपनी खोली थी. साल 1951 में एटलस कंपनी ने भारत में साइकिलें बनानी शुरू की थीं. तब से ले कर अब तक तमाम तरह के बदलावों के बाद साइकिल मोटरसाइकिल हो गई है.
साधारण साइकिल से ले कर स्पोर्ट्स की साइकिल तक बहुत सारे प्रयोग किए गए. साल 1956 में मुंजाल ब्रदर्स से हीरो ग्रुप बनाया. साल 1975 तक हीरो कंपनी ने रोजाना 75 सौ साइकिल बनाने का रिकौर्ड बना लिया था. इस के बाद हीरो देश की सब से बड़ी साइकिल बनाने वाली कंपनी के रूप में उभरी थी.
इस समय तक देशभर में मोटरसाइकिल भी आ चुकी थी. साल 1955 में भारत सरकार ने पहली बार सेना और पुलिस के लिए ब्रिटेन से रौयल एनफील्ड मोटरसाइकिल को मंगवाया था. इन को चेन्नई में असैंबल किया जाता था. इन में बुलेट, जावा, यजदी और राजदूत प्रमुख थीं.
पुराने जमाने की ये मोटरसाइकिलें नए जमाने में नौजवानों को अपनी ओर खींच नहीं पा रही थीं. साल 1972 में लैंब्रैटा स्कूटर बाजार में आया. इस के बाद वैस्पा, बजाज सुपर और बजाज चेतक स्कूटर बाजार में आए. स्कूटरों को गांव में बाजार नहीं मिल सका.
साल 1984 में हीरो कंपनी ने जापानी होंडा कंपनी के साथ हाथ मिलाया और हीरो होंडा मोटरसाइकिल बाजार में उतारी. 100 सीसी इंजन वाली यह मोटरसाइकिलें एक लिटर पैट्रोल में 70 किलोमीटर की दूरी तय करती थी. उस समय तक भारत में चलने वाली मोटरसाइकिलें एक लिटर पैट्रोल में 35 किलोमीटर से ज्यादा नहीं जाती थीं. टीवीएस की विक्की भी इस दौर में आई, जिस को पैडल से स्टार्ट किया जाता था. इस की शुरुआती कीमत 35 सौ रुपए थी.
दमदार मोटरसाइकिल की मांग
हीरो होंडा ने मोटरसाइकिल को बहुत लोकप्रिय कर दिया. 100 सीसी की हीरो होंडा मोटरसाइकिल ज्यादा वजन उठाने में दमदार नहीं थी. इस को समझते हुए साल 1994 में हीरो होंडा ने स्प्लैंडर बनाई. इस के बाद दमदार मोटरसाइकिल को बाजार में उतारने की होड़ लग गई.
साल 2000 के बाद तो 100 सीसी पावर वाले इंजन की जगह पर 150 सीसी इंजन वाली मोटरसाइकिल को ज्यादा पसंद किया जाने लगा.
साल 2001 में बजाज पल्सर ने दमदार मोटरसाइकिल में अपना अलग बाजार बना लिया था. कुछ नौजवानों को 250 सीसी पावर वाली यमहा फेजर भी खूब पसंद की जाने लगी.
बजाज कंपनी ने 125 सीसी पावर वाली डिस्कवर को भी गांव के बाजार को ध्यान में रख कर तैयार किया. हीरो होंडा के बाद सब से कामयाब मोटरसाइकिल में डिस्कवर गिनी जाती है.
नए जमाने की मोटरसाइकिल सेल्फ स्टार्ट इंजन वाली आने लगी हैं. इस के बावजूद लोग किक स्टार्ट वाली मोटरसाइकिल को पसंद करते हैं.
वाहन बाजार पर लिखने वाले रजनीश राज कहते हैं, ‘‘पूरी दुनिया में तमाम तरह की मोटरसाइकिलों का कारोबार बढ़ रहा है. गांव के यातायात में मोटरसाइकिल तेजी से अपना दबदबा बढ़ाती जा रही है.
‘‘पिछले कुछ समय से यह भी देखा गया है कि केवल लड़के ही नहीं, लड़कियां भी मोटरसाइकिल का जम कर इस्तेमाल करने लगी हैं. स्कूटर के मुकाबले मोटरसाइकिल से सफर करना आसान होता है. थकान कम लगती है और खराब रास्तों पर भी यह स्कूटर से बेहतर चलती है.’’
जरूरत व शौक का बाजार
शौक के लिए मोटरसाइकिल रखने वाले लोग दमदार मोटरसाइकिल को पसंद करते हैं. जौन अब्राहम और दूसरे फिल्मी कलाकारों की तरह नौजवान मोटरसाइकिल का शौक रखते हैं.
लखनऊ शहर में ही बुलेट मोटरसाइकिल के 6 से ज्यादा शोरूम हैं. इस के बाद भी बुलेट खरीदने के लिए 4 से 6 महीने तक का इंतजार करना पड़ता है. रौयल एनफील्ड की एक लाख, 25 हजार से ले कर एक लाख, 75 हजार रुपए के बीच कीमत की मोटरसाइकिलें बाजार में मुहैया हैं.
दिल्ली के बाजार में स्पोर्टी और भारीभरकम मोटरसाइकिल देखने को मिलती हैं. दिल्ली के आसपास गुड़गांव, नोएडा के गांवों तक में अपने रईसी शौक के चलते लोगों ने लग्जरी मोटरसाइकिल भी खरीदी हैं.
पहाड़ों पर दमदार मोटरसाइकिल को ज्यादा पसंद किया जाता है. मोटरसाइकिल का बीमा और सर्विस दोनों ही जब से मोटरसाइकिल बेचने वाली एजेंसी से ही होने लगी है, तब से लोगों को आरटीओ दफ्तर के चक्कर नहीं लगाने पड़ते, जिस से इन की खरीदारी बढ़ी है
कारों से महंगी मोटरसाइकिलें
हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में महंगी मोटरसाइकिलें भी दिखने लगी हैं. थंडरबर्ड एलटी जैसी मोटरसाइकिल होंडा सिटी, फौक्सवैगन वैंटो, हुंडई वरना और स्कौडा रैपिड जैसी फुलसाइज सिडान कारों से महंगी है. 1699 सीसी की क्षमता वाली थंडरबर्ड 15 लाख, 75 हजार की कीमत वाली है. महंगी मोटरसाइकिल में कावासाकी, हार्ले डेविडसन और डुकाटी मौजूद हैं. अब इटली की बेनेली कंपनी ने 3 लाख से 11 लाख के बीच की कीमत वाली 5 मोटरसाइकिलों के मौडल लौंच किए हैं.
महंगी मोटरसाइकिल बनाने वाली कंपनियों की नजरें भी देश के गांवदेहात के बाजार पर हैं. जिस तरह से गांवों में फार्म हाउस कल्चर बढ़ रहा है, उस से इस तरह की महंगी मोटरसाइकिलों का चलन भी बढ़ने लगा है. महंगी कारों के बाद अब गांवों में महंगी मोटरसाइकिलें भी दिखने लगी हैं. जिन गांवों में पहले 100 सीसी इंजन वाली 35 से 40 हजार कीमत वाली मोटरसाइकिलें खरीदी जाती थीं, वहीं अब 150 से 250 सीसी इंजन वाली महंगी मोटरसाइकिलें खरीदी जाने लगी हैं.
बदलती लाइफ स्टाइल का असर
भोजपुरी फिल्मों की हीरोइन पूनम दुबे कहती हैं, ‘‘फिल्मों में भी लड़केलड़कियों को मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते दिखाया जाता है, जिस से नौजवानों में इस के प्रति रुझान बढ़ रहा है. अब छोटे शहरों और गांवों में भी सब से ज्यादा मोटरसाइकिलों का इस्तेमाल हो रहा है.’’
नौजवानों में बढ़ा है क्रेज
वाहन बाजार पर लिखने वाले रजनीश राज कहते हैं, ‘‘तकरीबन 70 फीसदी नौजवान मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते हैं. कम तेल के खपत वाली मोटरसाइकिल आने के बाद गांवों में लोगों का इस पर सवारी करना आसान हो गया. अब गांव के पास से सड़कें और हाईवे निकलने लगे हैं, जहां पर पैट्रोल की सुविधा मिलने लगी है. अब तो जगहजगह पैट्रोल पंप खुल गए हैं.’’