भीमा कोरेगांव 2 जगहों के नामों के मेल से बना है. भीमा नदी का नाम है, जो कोरेगांव नाम के एक गांव से गुजरती है, इसीलिए इस गांव को भीमा कोरेगांव कहा जाता है.
यह गांव पुणे से 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा है. इस गांव में एक स्मृतिस्तंभ है, जिसे अंगरेज सरकार ने बनवाया था. इस स्तंभ को विजयस्तंभ या शौर्यस्तंभ भी कहा जाता है. इस शौर्यस्तंभ को देखने के लिए हर साल 1 जनवरी को महाराष्ट्र के दूरदराज से लोग आते हैं. आजकल तो देश के दूसरे हिस्सों से भी लोग यहां आने लगे हैं.
इस साल भी 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव का शौर्यस्तंभ बनने के 200 साल पूरे होने के मौके पर लाखों लोग आ रहे थे, लेकिन कुछ कट्टर लोगों ने भीमा कोरेगांव को योजना बना कर दंगल का मैदान बना दिया.
ऐसे में भीमा कोरेगांव के वीरता से भरे इतिहास के बारे में जानना बेहद जरूरी है कि आखिर क्यों देश का दलित तबका इस शौर्यस्तंभ को अपनी विजयगाथा के रूप में देख रहा है, क्या है भीमा कोरेगांव का इतिहास?
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भीमा कोरेगांव की जड़ें सामाजिक नाइंसाफी और वर्ण व्यवस्था से जुड़े जोरजुल्म से संबंध रखती हैं. सन 1680 में शिवाजी की हत्या और उन के बेटे संभाजी के 1689 में औरंगजेब द्वारा मारे जाने के बाद उन के राज्य को उन के ब्राह्मण सलाहकार पेशवाओं ने हड़प लिया था. सत्ता में आते ही देशस्थ ब्राह्मण पेशवाओं ने वर्ण व्यवस्था का कड़ाई से पालन करने का हुक्म दिया था.
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