यों तो भगत सिंह अपने शहीदी दिवस या फिर जन्मशताब्दी आदि के मौकों पर स्कूलों में याद कर लिए जाते हैं. कुछ सरकारी व निजी संस्थाएं कार्यक्रम कर के उन की स्मृतियों की इतिश्री कर लेती हैं. लेकिन बीते दिनों भगत सिंह का जिक्र 2 रोचक घटनाओं के जरिए सुनने को मिला.

हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विधानसभा में नारे लगाने और परचे फेंकने वाले 2 लोगों से, डपटते हुए, सवाल किया है कि आप लोग स्वतंत्र देश में रहते हैं तो भगत सिंह की तरह व्यवहार क्यों कर रहे थे. भगत सिंह ने जो भी किया, उसे दोहराने का क्या मकसद है?

दरअसल यह मामला तब का है जब इन दोनों को दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने 30 दिनों के लिए सश्रम कारावास की सजा के लिए भेजने का आदेश दिया था.

बाद में सदन के अध्यक्ष के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अदालत ने सवाल उठाते हुए यह कहा है. अदालत इसे ध्यान खींचने वाला स्टंट इसलिए भी मान रही है क्योंकि तब भगत सिंह ने यह कारनामा अंगरेजों की मुखालफत में किया था और आज की यह हरकत महज राजनीतिक तमाशा है.

भगत सिंह से जुड़ी दूसरी खबर यह भी है कि जब लाहौर में वे जेल में थे तब उन्होंने लगभग 404 पेज की एक डायरी लिखी थी. अब उस ऐतिहासिक डायरी को हिंदी में अनुवादित कर प्रकाशित करने की तैयारी चल रही है. इस काम में उन के वंशज यादवेंद्र संधु, इतिहासकार डा. मोहन चंद्र और प्रो. पी एन सिंह मोरचा संभाले हैं. अंगरेजी व उर्दू में लिखी गई इस डायरी का हिंदी में आना सुखद समाचार है.

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