पिछले कुछ सालों से बाजारवाद के चलते जनता सेहत के प्रति बहुत जागरूक हुई है. जागरूक होना अच्छी पहल है, लेकिन इस जागरूकता के पीछे बाजारवाद का होना खतरनाक है.

टैलीविजन चैनलों पर देशी नुसखे और 100 फीसदी फायदे की गारंटी के साथ इश्तिहार दिखाए जाते हैं. इन में 7 दिनों में सिर पर बाल आना, 10 दिनों में डायबिटीज की बीमारी ठीक होना और 7 दिनों में चेहरे की झुर्रियां गायब कर देने की देशी दवाएं बताई जाती हैं. बाद में एक बात कही जाती है कि

इसे सब्सक्राइब करें यानी इन का यह सब्सक्राइब हजार से ऊपर होने पर चैनल उस पर उसी हिसाब से इश्तिहार डालता है और हर इश्तिहार की कमाई का एक बड़ा हिस्सा फर्जी लोगों के पास चला जाता है.

कुछ लोगों के इंटरव्यू भी दिखाए जाते हैं. उसी के साथ एक झूठी कहानी भी बताई जाती है कि किस तरह अफ्रीका के घने जंगलों में फलां फल को खोजा गया और उस का इस्तेमाल किया गया, जिस से शर्तिया फायदा मिल गया.

कौन सा फल? उस के रासायनिक गुण क्या हैं? उस के साइड इफैक्ट क्या हैं? इस बारे में कुछ भी नहीं बताया जाता है, जो ड्रग ऐेंड कंट्रोल के कायदे के मुताबिक कंपनी द्वारा बताया जाना जरूरी है.

पिछले दिनों शुगर की बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए एक ऐसा ही तकरीबन 2,000 रुपए का प्रोडक्ट आया. हैरानी की बात यह है कि उसे लाखों लोगों ने खरीदा, जिस से कंपनी करोड़पति बन गई. पर उस प्रोडक्ट में जो दवाएं मिलाई गई थीं वे कितनी मात्रा में थीं, इस का कहीं भी जिक्र नहीं था और उस का भी प्रचार अफ्रीका के जंगलों और हिमालय पर्वत की घाटियों से लाई गई जड़ीबूटियों के नाम से किया गया था.

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