बीते दिनों रामपुर में सुबह देर से उठने पर एक औरत के पति ने उसे तीन तलाक दे दिया. सुप्रीम कोर्ट में रोक लगने के बाद भी देशभर में तीन तलाक के सैकड़ों मामले सामने आए हैं.
मुरादाबाद की रहने वाली वरिशा को उस के पति ने मनमुताबिक दहेज न देने के चलते तीन तलाक देने की धमकी दी है. वरिशा ने आरोप लगाया कि उन से एक कार और 10 लाख रुपए नकद अपने मायके से लाने को कहा गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त, 2017 को तीन तलाक को गैरकानूनी करार दिया था. माना जा रहा था कि तीन तलाक पर रोक लगेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका है. मुसलिम तबके में तलाक के मामलों को देखें तो 4 तलाकशुदा औरतों की तुलना में सिर्फ एक मर्द ही तलाकशुदा है.
जनगणना के आंकड़े भी यही बताते हैं कि 2001 से 2011 के बीच मुसलिम औरतों को तलाक देने में 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जब तलाक के आंकड़ों की बात चली है तो फिर तलाकशुदा औरतों की हालत पर गौर करने के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर दूसरे नजरिए से भी नजर डालनी होगी.
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, प्रति एक लाख मुसलिमों में 1590 तलाकशुदा मर्द हैं, जबकि हिंदू मर्दों में यह आंकड़ा 1470 प्रति लाख है. फर्क बहुत कम है.
देश में प्रति एक लाख औरतों में से महज 3100 औरतें तलाकशुदा हैं, लेकिन इन में बगैर तलाक के छोड़ी हुई औरतें भी शामिल हैं.
आंकड़े बताते हैं कि मुसलिम औरतों में प्रति एक लाख में 5630 औरतें तलाकशुदा हैं, जबकि हिंदू औरतों में यह आंकड़ा केवल 2600 ही बताया जाता है.
इस से साफ जाहिर है कि मुसलिम समाज में तलाकशुदा औरतों की आबादी तलाकशुदा मर्दों के मुकाबले साढ़े 3 गुना ज्यादा है.
आंकड़ों की जबानी देशभर में तलाकशुदा औरतों की आबादी में सब से ज्यादा 39 फीसदी 20 से 34 साल की उम्र की हैं, जबकि मुसलिम समुदाय में इस उम्र सीमा की सब से ज्यादा तलाकशुदा औरतें हैं.
तलाकशुदा औरतों में 43.9 फीसदी औरतें 20 से 34 साल की उम्र की हैं, जबकि इसी उम्र सीमा में सिख समुदाय में 42.2 फीसदी, बौद्ध समुदाय में 40 फीसदी, हिंदू समाज में 37.6 फीसदी, ईसाई समाज में 33.5 फीसदी और जैन समाज में 25.5 फीसदी औरतें हैं.
तलाकशुदा औरतों में 19 साल से कम उम्र की औरतें 3.2 फीसदी हैं. इस में भी मुसलिम औरतों की हिस्सेदारी सब से ज्यादा 3.9 फीसदी है.
हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदाय में तलाक अदालत के जरीए ही हो सकता है. लिहाजा, इन समुदायों में तलाक पर इतना बवाल नहीं मचता, लेकिन मुसलिम समाज में जबानी तलाक को मंजूरी है और आसान होने के चलते इसी का चलन भी ज्यादा है.
इन आंकड़ों से साफ है कि एक बार में तीन तलाक रोकने के लिए एक सख्त कानून बनाए जाने की जरूरत पहले से महसूस की जा रही थी. एक बार में तीन बार तलाक यानी तलाक ए बिद्अत को जुर्म ऐलान करने और सजा तय करने संबंधी विधेयक गुरुवार, 28 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में तकरीबन 6 घंटे की लंबी बहस के बाद पास हो गया. पर अब राज्यसभा में अटक गया है.
लोकसभा में पेश तीन तलाक बिल के मुताबिक, अब जबानी, लिखित या किसी इलैक्ट्रौनिक तरीके जैसे ह्वाट्सऐप, ईमेल और एसएमएस से एकसाथ तीन तलाक देना गैरकानूनी व गैरजमानती भी होगा. इस कानून में एक बार में तीन तलाक कहना अपराध होगा और कुसूरवार को 3 साल की सजा होगी. इस में औरत अपने नाबालिग बच्चों की सिक्योरिटी और गुजारा भत्ते का दावा भी कर सकेगी.
यकीनी तौर पर यह बिल जकिया हसन, उत्तराखंड की सायरा बानो, फरहत नकवी, यासमीन, नगमा जैसी सैकड़ों मुसलिम औरतों की जद्दोजेहद और लंबी कोशिश की जीत है.
दरअसल, मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड अगर समय के साथ तीन तलाक को खत्म करने की कोशिश करता तो आज अदालत को दखल नहीं देना पड़ता और सरकार को बिल नहीं लाना पड़ता.
बंगलादेश, मिस्र, मोरक्को, इराक, इंडोनेशिया, मलयेशिया, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात, जौर्डन, कतर, श्रीलंका व पाकिस्तान समेत 22 मुसलिम देशों में बहुत पहले से ही तीन तलाक को कानून बना कर रोका जा चुका है.
मिस्र ने साल 1929 में ही इस पर रोक लगा दी थी. लेकिन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक देश में तीन तलाक का जारी रहना चिंता की बात थी. इसीलिए देश की सब से बड़ी अदालत ने कई मुसलिम औरतों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए तीन तलाक को गैरकानूनी करार दे कर लाखों मुसलिम औरतों की आबरू की हिफाजत की थी और सरकार से इस पर कानून बनाने के लिए कहा था.
तीन तलाक के खिलाफ आए बिल पर जब कानून बन जाएगा तो इस से मुसलिम औरतों की आबरू की हिफाजत होगी, उन्हें कानूनी सिक्योरिटी मिलेगी और इज्जत से जीने का हक मिलेगा. साथ ही, उन के पास तीन तलाक के खिलाफ एक कानूनी हथियार होगा.
अब यह भी दिलचस्प है कि इस कानून का असर क्या होगा मुसलिम औरतों को अब अगर कोई तीन तलाक देता है तो उन के सामने क्या रास्ता होगा इस से उन की जिंदगी में क्या कुछ बदलेगा. तीन तलाक विरोधी कानून लागू होने के बाद अगर कोई पति अपनी पत्नी को एक समय में तीन बार तलाक देने की बात कहता है तो पत्नी कानून की शरण में जा कर इंसाफ की लड़ाई लड़ सकेगी यानी यह कानून मुसलिम औरतों को कानूनी ताकत देगा.
तीन तलाक का बनने वाला नया कानून पीडि़त औरत को मजिस्ट्रेट के पास जाने का मौका देगा. इस से वह औरत अपने साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ सकेगी.
एकसाथ तीन तलाक देने वाले को एक साल से 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है. इस के लिए पत्नी को कोर्ट में यह साबित करना पड़ेगा कि उस के पति ने उसे एक समय में तीन तलाक दिया है.
तीन तलाक पीडि़त पत्नी और बच्चों को इज्जत की जिंदगी जीने के लिए गुजारा भत्ता मिलेगा. साथ ही, पत्नी अपने नाबालिग बच्चों की सिक्योरिटी की भी हकदार है. लेकिन इसी के साथ कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि पति जब जेल में होगा तो पत्नी और बच्चों का खर्च कौन देगा जब तीन तलाक गैरकानूनी है तो सजा क्यों और कैसी और किसी तीसरे की शिकायत पर केस कैसे क्या इस से तीन तलाक रुक जाएगा. यह हिंदू सरकार की मनमानी है.
शरीअत में तलाक ए अहसन और तलाक ए हसन नाम से शादी खत्म करने के 2 और रास्ते हैं. इस के तहत एक तय समय के अंतराल के बाद तलाक कहने का प्रावधान है और सुलह की गुंजाइश रखी गई है.
तलाक की यह प्रक्रिया काजी या मौलवी की देखरेख में गवाहों के साथ होती है. इसीलिए मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के इन दावों में कोई दम नहीं है कि इस के जरीए सरकार शरीअत में दखल देना चाहती है.
देश के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में कहा कि यह केवल तलाक बिद्दत को ले कर है.
बिल पेश होने के बाद जिस तरह से मुसलिम औरतों ने खुशी जाहिर की है और बड़ी तादाद में वे कानून मंत्री से मिलने उन के घर गईं, उस से लगता है कि तीन तलाक के खिलाफ कठोर कानून यकीनी तौर पर जरूरी है.
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