दीपक अपनी बहन गीता से 3 साल बड़ा था. वह कालेज के पहले साल में पढ़ रहा था. उस के दोस्त कभीकभार घर भी आ जाते थे. उन में से एक दोस्त का नाम मोहन था जो घर आ कर गीता पर डोरे डालने लगा था.

पहले तो गीता ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन एक दिन जब मौका पा कर मोहन ने गीता का हाथ पकड़ लिया तो वह सावधान हो गई, क्योंकि मोहन की हरकतें उसे पहले से ही अच्छी नहीं लगती थीं, पर गांव के माहौल में वह चुप्पी साध कर बैठ गई.

मोहन को लगा कि गीता की तरफ से हरी झंडी मिल गई है और एक दिन खेत के कच्चे रास्ते पर उस ने गीता को दबोच कर अपनी मनमानी कर दी.

गीता इस कांड से इतनी दुखी हुई कि उस ने गले में चुन्नी लपेट कर खुदकुशी कर ली.

यह कोई एक वारदात नहीं है जब किसी लड़के के दोस्त ने उसी की घर की इज्जत पर डाका डाला हो. हिंदी फिल्मों में तो अकसर अपनी बहन को छेड़ने वाले से लड़ाई दिखाई जाती है, चाहे वह उस का दोस्त ही क्यों न हो.

हां, भाई के दोस्त से प्यार करने में कोई बुराई नहीं है पर असली मुसीबत तो तब होती है जब वह दोस्त छिछोरा निकलता है और उसे लड़की के प्यार से कोई मतलब नहीं होता है.

गीता के मामले में प्यार की कोई गुंजाइश नहीं थी. मोहन के इरादे साफ थे जिन्हें गीता समय रहते नहीं समझ पाई.

तो क्या इस में गीता की गलती थी? नहीं, क्योंकि उसे कुछ कहने या समझने का मौका नहीं मिला था. हां, उस ने इस बारे में अपने भाई को नहीं बताया, जो उस की नादानी या चूक कही जाएगी, जो उस की जिंदगी की सब से बड़ी गलती बन गई.

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