16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में 23 वर्षीय पैरामैडिकल की छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, जिस के फलस्वरूप अधिकांश जनमानस आंदोलित हो उठा था. लेकिन उस के बाद भी मासूम बच्चियों से ले कर प्रौढ़ों तक कई सामूहिक बलात्कार की घटनाएं घटीं. इस बात पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है कि आखिर बलात्कारियों की संख्या क्यों बढ़ रही है? ऐसे कौन से कारण हैं जिन से कोई किशोर या प्रौढ़ अपनी मानमर्यादा व आचारविचार छोड़ कर दुष्कर्म जैसा कुकृत्य कर बैठता है? इस का मुख्य कारण केवल कामवासना है या महिलाओं के खिलाफ आक्रोश की अभिव्यक्ति?

खुलापन और आधुनिकता इस अंध यौन लिप्सा के सामने असहाय क्यों हैं? पहले किशोरकिशारियों के आपस में न मिल पाने को दोष दिया जाता था, तो अब कहा जा रहा है कि युवतियां बिंदास व उन्मुक्त हो रही हैं तथा युवाओं से अधिक घुलमिल रही हैं, जिस कारण वे कभी रेप तो कभी गैंगरेप या फिर कभी अपने ही किसी रिश्तेदार की शिकार हो जाती हैं.

नैशनल इलैक्शन वाच और एसोसिएशन फौर डैमोक्रेटिक रिफौर्म की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 साल में देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने 260 ऐसे उम्मीदवारों को अपनी पार्टियों से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए जिन पर दुष्कर्म व महिला उत्पीड़न जैसे संगीन आरोप थे. इन प्रमुख राजनीतिक दलों में कांग्रेस सब से आगे है, उस ने 26 बलात्कारियों को टिकट दिया है. इस के बाद भाजपा ने 24 को, बसपा ने 18 को और सपा ने 16 आरोपियों को टिकट दिया.

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