झारखंड भारत का एक ऐसा राज्य है, जहां आदिवासी समाज की बहुलता है. यहां तकरीबन 26 फीसदी आबादी आदिवासी समाज की बताई जाती है और अमूमन यह माना जाता है कि यह समाज धार्मिक कुरीतियों से बचा हुआ है, पर अगर एक खबर पर ध्यान दें तो राज्य सरकार की अनदेखी और जानकारी की कमी में आदिवासी समाज बिखरता जा रहा है. हालात ये हैं कि झारखंड में आदिवासियों का एक धर्म कोड नहीं मिलने से उन्हें 47 धर्मों में बांट दिया गया है.

जनगणना 2001 के आंकड़ों के मुताबिक, खडि़या और हो जनजाति में धर्म का बिखराव कम है. झारखंड में खडि़या के 12 धर्म और हो के 15 धर्म हैं. मुंडा जनजाति के 16 धर्म और उरांव जनजाति के 17 धर्म हैं.

सब से ज्यादा धर्म का बिखराव संथालों में है. संथालों के 36 धर्म हैं. हो जनजाति को 2001 की जनगणना में हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई, मानवता, सिंहबोंगा, मरंगबुरु, दिउरी, संसार, बौध, जैन, आदिवासी, गोंड, हो, मुंडा, उरांव, सरना, सनार आदि धर्मों में गिना गया है. तकरीबन सभी आदिवासी समूहों का यही हाल है.

यह सब बताने की सब से बड़ी वजह यह है कि एक ओर इस राज्य से आदिवासी भाग रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर वे उन धर्मों की तरफ खिंच रहे हैं, जो उन्हें अंधविश्वासी बनाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे हैं.

जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र में आई है, हर जगह धर्म के नाम की दुहाई पर लोगों के मन में यह भरा जा रहा है कि धर्म ही आप को मुक्ति के रास्ते पर ले जा सकता है. इसी मुक्ति को पाने के लिए लोग धार्मिक पर्यटन के घेरे में घूमते जा रहे हैं कि अपनी जान को दांव पर लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...