हमारे देश में औरतों और बच्चों के हालात में सुधार तभी मुमकिन है, जब मर्दों के मानसिक लैवल में बदलाव हो. उन की सोच बदले, क्योंकि हमारा समाज अभी भी पुरुष प्रधान है. केवल 20 से 30 फीसदी ही औरतों के हालात में सुधार हुआ है. ये आंकड़े शहरों के हैं, जबकि गांवों में अभी भी औरतों के हालात चिंताजनक हैं. महाराष्ट्र सरकार को आज भी महिला और बालबाड़ी और आंगनबाड़ी चलाने पड़ रहे हैं,

क्योंकि मर्द अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभाते हैं और बच्चों को प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई तक नहीं मिलती है. बालबाड़ी और आंगनबाड़ी में बच्चों के जन्म से ले कर 6 साल तक उन की देखभाल की जाती है. महाराष्ट्र के सभी शहरों और गांवों में सभी तरह की स्वास्थ्य संबंधी जांच और टीकाकरण का काम हो रहा है. इस विकास के नारे के बावजूद बच्चों को भरपेट खाना नहीं मिलता, पेट से हुई औरतों की जांच नहीं हो पाती और उन के खानेपीने का इंतजाम भी नहीं हो पाता है,

ताकि जन्म के बाद बच्चे कुपोषण के शिकार न हों. महाराष्ट्र में तकरीबन 86,000 आंगनबाडि़यां हैं. यही हाल हर राज्य का है. राज्य सरकारों को अनाथ गरीब बच्चों या फिर घर से बिछुड़े बच्चों को माली मदद देनी होगी. सभी राज्यों में यह स्कीम भी उन बच्चों के लिए है, जो कम उम्र में अपराध करते हैं और उन्हें जेल में नहीं भेजा जाता है. उन्हीं बच्चों को रखने, उन के खानेपीने और सुधार में तरक्की मुमकिन है. बाल कल्याण समिति भी इस दिशा में काम कर रही है. कई बार बच्चे सड़क पर मिलते हैं, जो या तो बेघर होते हैं या अपनों से बिछुड़ जाते हैं. ऐसे बच्चों को बाल कल्याण समिति में रखा जाता है या फिर कोर्ट के आदेश के मुताबिक घर भेज दिया जाता है.

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