लोकसभा में  युवा सांसदों की बढ़ती तादाद ने राजनीति को एक संभावित कैरियर क्षेत्र बना दिया है. इस क्षेत्र में आने के लिए युवाओं को काफी मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं. उन्हें सही प्लेटफौर्म नहीं मिल पाता. यदि कहीं कोई आसार दिखते भी हैं तो वहां पहले से ही सीटें भरी हैं. वैसे तो इस के कई कारण हो सकते हैं, पर सब से बड़ा कारण है, वंशवाद, धनी और बाहुबली लोगों का वर्चस्व.

भारत दुनिया का सब से बड़ा लोकतांत्रिक देश है. प्रजातंत्र पर टिकी इस की राजनीति आज भी अपने स्वरूप को स्पष्ट नहीं कर पाई है. भारतीय राजनीति पर गौर करें तो पाएंगे कि इस का रास्ता बड़ा कठिन व टेढ़ामेढ़ा है, जो आम लोगों के लिए सुलभ नहीं है. यहां सिर्फ वही चल सकता है, जो धनी व बाहुबली हो, जो धांधलेबाजी व घोटाले करने में  माहिर हो. जो अपनी बात मनवाने के हथकंडे जानता हो, जो रातोंरात मालदार बनने का गुड़ जानता हो. फास्ट मनी की कला में माहिर हो.

युवा जहां हर क्षेत्र चाहे वह इंजीनियरिंग का हो, मैडिकल या फिर आईटी, हर जगह पूरे जोशखरोश के साथ दिखते हैं. वहीं फास्ट मनी कमाने वाले क्षेत्र राजनीति को नगण्य मानते हैं.

एक आम युवा राजनीति में हिस्सेदार नहीं बनना चाहता है. वह राजनीति के पचड़े से कोसों दूर रहना चाहता है. दूसरी तरफ युवाओं में यह धारणा भी बनी है कि भारतीय राजनीति वंशवाद की जंजीरों में जकड़ी हुई है.

भारतीय राजनीति में शुरू से ही वंशवाद का बोलबाला रहा है. युवा नेताओं की बात की जाए तो जो युवा आज राजनीति में हैं, उन की पृष्ठभूमि पहले से ही राजनीति से जुड़ी है. उन की राजनीतिक पारिवारिक विरासत की जड़ें बहुत गहरी हैं.

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