उत्तर प्रदेश का बनारस शहर साल 2014 के लोकसभा चुनाव में चर्चा में था. तब अपने भाषणों में बनारस लोकसभा सीट से चुनाव लड़े नरेंद्र मोदी ने खुद को कभी गंगा का बेटा बताया तो कभी कहा कि वे बनारस आए नहीं हैं, उन को मां गंगा ने बुलाया है. कभी कहा कि गंगा की सफाई होगी, गंगा में पानी के जहाज चलेंगे वगैरह.
प्रधानमंत्री बनने के बाद 5 साल का समय गुजर रहा है. बनारस और उस के आसपास के शहरों में बदलाव की जो उम्मीद की जा रही थी, वह जरा भी पूरी नहीं हुई है. भाजपा सरकार इस बात को समझ रही है. इस वजह से ‘मोदीयोगी’ दोनों ही बनारस में पत्थरों को टांकने की झड़ी लगा रहे हैं.
2019 के आगामी लोकसभा चुनाव में बनारस और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके की अहमियत ज्यादा है. उत्तर प्रदेश का यह इलाका बिहार तक असर डालता है. उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही प्रदेश 2019 के लोकसभा चुनाव को ले कर अहम हैं.
अगर भाजपा यहां अपना प्रदर्शन दोहरा नहीं पाई तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य उत्तर प्रदेश के इलाकों की हार को पूरा नहीं कर पाएगी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ‘कैराना’ लोकसभा सीट पर कोई धार्मिक धुव्रीकरण भाजपा के काम नहीं आया था. ऐसे में बनारस के ये पत्थर भी ‘मोदीयोगी’ को लोकसभा चुनाव में जीत नहीं दिला पाएंगे.
उत्तर प्रदेश में हालात लगातार खराब होते गए हैं. कानून व्यवस्था के साथसाथ हर शहरकसबे में भगवा गमछाधारी ऐंटी रोमियो और गौरक्षा करने वालों की एक भीड़ सी उमड़ पड़ी है. बनारस जैसे शहरों में सैलानी कम हुए हैं. अकेले लड़कालड़की साथ चलने में डरने लगे हैं. जानवरों का कारोबार करने वालों ने गौरक्षकों के डर से कारोबार बंद कर दिया है. पत्थर पूजन इस की अहम वजह है.