कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुनावी प्रचार का शुभारम्भ ‘गंगा यात्रा’ से करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. इस बार का लोकसभा चुनाव सीधे-सीधे कांग्रेस और भाजपा के बीच होने वाला महायुद्ध नजर आ रहा है. प्रयागराज के मनैया घाट से अपनी तीन दिन की ‘गंगा-यात्रा’ का आगाज करके प्रियंका ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. वही गंगा, काशी में जिसके तट पर खड़े होकर 2014 में नरेन्द्र मोदी ने ललकार लगायी थी - ‘मुझे मां गंगा ने बुलाया है...’ वही गंगा, जिसके घाट पर 56 इंच की छाती ठोंक कर नरेन्द्र मोदी ने उसे प्रदूषण-मुक्त करने की शपथ उठायी थी और आजतक गंगा को प्रदूषण-मुक्त न कर सके, प्रयागराज में उसी गंगा की गोद में बैठ कर काशी तक 140 किलोमीटर का रास्ता बोट से तय करके प्रियंका गांधी वाड्रा ने भाजपा और मोदी की नींद उड़ा दी है. गंगा तट पर खड़े होकर उन्होंने गंगा मय्या में दूध अर्पित करते वक्त कहा - ‘मैं गंगा की बेटी हूं और मां का दर्द बेटी ही समझ सकती है.’ प्रियंका की यह भावनात्मक बात मोदी के दंभ और दावे पर भारी पड़ती है. वहीं गंगा तट पर घने बसे अत्यन्त पिछड़ी जाति के लोगों से सीधा सम्वाद स्थापित करके उन्होंने बसपा नेत्री मायावती का ब्लडप्रेशर भी बढ़ा दिया है. गंगा तट पर बसे केवट और मछुआरों को ही नहीं, बल्कि गैर यादव, गैर कुर्मी और गैर जाटव जातियों को अपने पाले में लाने की कोशिश में प्रियंका मोदी के ‘मन की बात’ सरीखी एकतरफा संवाद के विपरीत लोगों से जिस तरह आमने-सामने बातचीत कर रही हैं, उसके परिणाम कांग्रेस के हित में सिद्ध होंगे, इसमें दोराय नहीं है. गौरतलब है कि अत्यन्त पिछड़ी जातियों की संख्या उत्तर प्रदेश में करीब 34 फीसदी है, जिसमें निषाद, मछुआरा, बिंद, चौहान, धोबी, कुम्हार, केवट आदि शामिल हैं. यह जातियां गंगा के किनारे वाले इलाकों में बहुतायत से बसी हैं और  मिर्जापुर, जौनपुर, इलाहाबाद, लखीमपुर खीरी, फतेहपुर, मुजफ्फरनगर, अंबेडकर नगर, भदोही, बनारस जैसी सीटों पर इनका खासा प्रभाव है. इस तबके को जहां भाजपा की ’सवर्ण-मानसिकता’ अपने निकट भी फटकने नहीं देती, वहीं बसपा के सत्ता में रहने पर भी इस तबके को कभी कोई खास फायदा नहीं मिला है. प्रियंका की नजर उत्तर प्रदेश के मछुआरों और निषादों पर खासतौर पर है, जो पिछले चुनावों में भाजपा को वोट करते रहे हैं. पूरे सूबे में इन जातियों की आबादी करीब 12 फीसदी है. दरअसल, गोरखपुर उपचुनाव के परिणामों के बाद निषाद सूबे में एक बड़ी ताकत बनकर उभरे थे. निषादों को अपने पाले में बनाये रखने के लिए भाजपा भी जीतोड़ मेहनत कर रही है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तो निषादराज की भव्य प्रतिमा बनवाने का ऐलान कर चुकी है. निषादों को साथ लाने के लिए प्रियंका ने संगम के पास छतनाग से ‘गंगा यात्रा’ शुरू करने के बजाय मनैया के घाट को चुना क्योंकि मनैया निषादों द्वारा बसाया गया गांव है. कहना गलत न होगा कि प्रियंका की ‘गंगा यात्रा’ के निहितार्थ गहरे हैं, होमवर्क पूरा है और शायद यही वजह है कि किसी भी गठबंधन से दूर कांग्रेस ने पूरे देश में अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है.

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