चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने वकीलों की तेज आवाज में बहस करने की आदत पर घोर नाराजगी जताते उदाहरण भी दे डाले कि दिल्ली सरकार वाले मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के तर्क बेहद उद्दंड और खराब थे और अयोध्या विवाद में पैरवी कर रहे वकीलों का लहजा तो और भी खराब था. इस विरोधाभासी टिप्पणी से यह तय कर पाना मुश्किल है कि अदालत की घुड़की दलीलों के खोखलेपन पर थी या उन की तेज आवाज पर थी.

तेज आवाज में बहस करना वकीलों की आदत नहीं, बल्कि काबिलीयत मानी जाती है. निचली अदालतों में तो दलाल मुवक्किलों को यही दिखाने के लिए ले जाते हैं कि देखो, क्या जोरदार वकील है. इधर, दीपक मिश्रा की तल्खी से खफा राजीव धवन ने वकालत छोड़ने का ही फैसला कर लिया तो किसी ने नहीं कहा कि वकीलों की भी अपनी इज्जत होती है, वे वकालत छोड़ देंगे पर अपनी तेज आवाज पर पहरेदारी बरदाश्त नहीं करेंगे.

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