समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के ताजा बयान से यह साफ हो चुका है कि मुलायम परिवार का विवाद खत्म नहीं हुआ था. साधना गुप्ता के बयान से यह भी साफ हो गया है कि उनकी अपनी महत्वाकांक्षा है. अब वह खुद राजनीति में न आना चाहती हों, पर अब वह पर्दे के पीछे नहीं रहना चाहती. साधना चाहती हैं कि उनका बेटा प्रतीक राजनीति में आये. साधना गुप्ता का मर्म कुछ ऐसा ही है जैसा साल 2000 के करीब था. साल 2000 में जब साधना गुप्ता की कोई पहचान नहीं नही थी. साल 2003 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो पहली बार साधना गुप्ता उनके साथ मुख्यमंत्री आवास में रहने गई. पहली बार मुलायम के सर्मथकों को यह पता चला था कि मुलायम की दूसरी पत्नी है.
इसी दौर में मुलायम पर आय से अधिक जायदाद का मसला उठा. वहां से प्रमाण मिला कि प्रतीक यादव मुलायम का बेटा है. उसके बाद साधना गुप्ता को सबकुछ ठीक लगने लगा था. परिवार में अंदर और बाहर साधना गुप्ता का अपना प्रभाव बन गया था. साल 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तब से साधना गुप्ता को परिवार में दूरी का अहसास होने लगा. यह सच है कि मुलायम और साधना की मुलाकात जिस समय हुई थी उस समय साधना राजनीति में आना चाहती थीं. अब साधना खुद स्वीकार करती हैं कि नेताजी ने उनको राजनीति में नहीं आने दिया.
2017 के विधानसभा चुनाव के पहले मुलायम परिवार में उठे झगड़े में साधना गुप्ता पूरी तरह से चुप थीं. चुनाव खत्म होते होते जिस तरह से साधना गुप्ता ने खुलकर अपनी बातचीत की और उसको बाकायदा प्रचारित किया गया उससे साफ है कि चुनाव परिणाम के बाद अगर सपा की प्रदेश में सरकार नहीं बनी तो अखिलेश यादव के खिलाफ मुलायम परिवार में विरोध के नये सुर सुनाई देंगे. अभी तक अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, इस कारण सपा संगठन पर उनका कब्जा आसानी से हो गया. अगर अखिलेश दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बने तो हालात बदले होंगे. ऐसे में कुर्सी से हटने के बाद अखिलेश को चुनौतियों का सामना करना सरल नहीं होगा.