हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में हार जीत के समीकरण प्रदेश की राजनीति के धुरी बने दो लाख कर्मचारी और लाखों भूतपूर्व सैनिक और उनके परिजन तय करेंगे.

प्रदेश की राजनीति पर दबदबा रखने वाले कर्मचारी इस समय प्रदेश सरकार से 4-9-14 की मांग कर रहे हैं. हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों के घोषणापत्र में इस मांग को पूरा करने का वादा किया गया है. लेकिन कर्मचारियों का समर्थन किसे मिल पाएगा, यह देखने वाली बात होगी.

प्रदेश की राजनीति में कर्मचारियों का हमेशा से ही दबदबा रहा है, दोनों ही पार्टियां कर्मचारी वर्ग को मनाने में लगी हैं. प्रदेश कर्मचारियों की राजनीति का इतिहास देखा जाए तो सबसे पहले कर्मचारियों ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को विरोध का स्वाद चखाया.

1990 में कर्मचारियों की हुई हड़ताल में नो वर्क नो पे लागू करने वाले शांता कुमार को 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के 68 में से केवल 6 विधायक ही भाजपा के चुनकर आए थे. उस चुनाव में खुद मुख्यमंत्री शांता कुमार ने दो जगह से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से ही हार गए. उसके बाद से प्रदेश में कर्मचारियों से नाराजगी मोल लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

प्रदेश के कर्मचारियों के अध्यक्ष एसएस जोगटा का कहना है कि जो पार्टी कर्मचारी हितैषी प्रतीत होगी, कर्मचारी उसे ही वोट देंगे. प्रदेश में लाखों भूतपूर्व सैनिक और उनके परिवार वाले हैं. उनका कहना है कि अभी तक वन रेंक वन पेंशन की मांग पूरी नहीं हुई. इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमैंट ओर यूनाइटेड फ्रंट आफ एक्स सर्विसमैन के प्रमुख जनरल सतवीर सिंह ने प्रदेश के भूतपर्व सैनिकों से अपील की कि वे वन रैंक वन पेंशन वादे के अनुसार दिलाए जाने के लिए दबाव बनाएं.

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