देश में नौकरियों की कितनी कमी है पर देश की सरकार को तो छोडि़ए. देश के मीडिया और देश की जनता तर्क को बढ़ती और परेशान करने वाली बेरोजगारी से कोर्ई फर्क नहीं पड़ रहा है. 2 छोटे मामलों में साफ होता है.

दिल्ली में बरसात से पहले डेंगू फैलाने वाले मच्छरों का पता करने का ठेका दिया जाता है इस साल कम से कम 3500 डोमेस्टिक ब्रीङ्क्षडग चैकर रखे जाते हैं. बरसात आने पर उन्हें हटा दिया जाता है. अब दिल्ली में ये सब सरकारी पैसे पाने वाले युवा कर्मचारी अचानक खाली होने पर हायहाय कर रहे हैं पर कोई सुन नहीं रहा क्योंकि इन के पास अगले 6-7 महीनों के लिए कोई काम होता ही नहीं. इन्हें भी जो स्विल आती है या इन्होंने काम पर सीखी होती है, वह सिर्फ मच्छरों के बारे में होती है.

इसी तरह दिल्ली बस सेवा में कौंट्रेक्ट पर रखे गए 1600 ड्राइवरों की नौकरी खत्म कर दी गई क्योंकि कंपनी का ठेका खत्म हो गया और नए टेंडर में किसे काम मिलेगा यह पता नहीं. इन ड्राइवरों को बसें चलानी ही आती हैं और आगे टेंडर के पास होने और अगली कंपनी के जम जाने तक इन को खाली रहना पड़ेगा.

इन दोनों तरह के काम करने वालों के पास और कोई अकल भी नहीं होती, न ही यह कुछ और सीखना चाहते हैं कि आड़े वक्त काम आ जाए गांवों से सीधे अब ये लोग आमतौर खाली बैठने के आदी होते है और 10-20 दिन खाली बैठ कर गांव लौट जाएंगे. वहां जो भी काम होगा करेंगे और जो थोड़ी आमदनी हो रही होगी उसी में बांटेंगे.यह समस्या देश भर में है. कहा जाता है कि देश में बेरोजगारी 8' है पर असल में ह कहीं ज्यादा है. बस इतना फर्क है कि इस देश का बेरोजगार बिना आदमनी रहने का आदी है, आधे पेट रह सकता है और सब से बड़ी बात है अपनी बुरी हालत के लिए अपने कर्मों को दोष देना जानता है.

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