राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भगवा सरकार को अपरोक्ष रूप से चेताया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में अंगरेजी में कहे जाने वाले शब्द ‘डाउट, डिसएग्री और डिस्प्यूट’ भी शामिल हैं. भगवा ब्रिगेड कुछ दिनों से इस बात को सिद्ध करने में लगी है कि किसी को भी धर्म, धर्मग्रंथों, धर्म के विचारों, धर्म से जुड़े देवीदेवताओं के बारे कोई संदेह, भिन्न मत प्रकट करने और विरोध करने का हक नहीं है. देशभर में छोटेछोटे गुट, हिंदू धर्म की सनातन परंपरा की रक्षा के नाम पर, विचारों की अभिव्यक्ति पर तरहतरह से आक्रमण करते रहते हैं.
यह कोई नई बात नहीं है. हर सरकार व संस्था चाहती है कि उस की सत्ता पर कोई रोकटोक न लगे, कोई उस की पोल न खोले. धर्मों ने तो सदियों तक मुंह बंद कर ही सत्तासुख भोगा था और ईशनिंदा को मृत्युदंड के लायक बना दिया. राजाओं, जमींदारों, सेठों ने भी अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले को दंड दिया.
अभी हाल में नोटबंदी पर रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने स्पष्ट कर दिया कि इस के कारण बताना जनहित में न होगा. गनीमत यही है कि सरकार ने नोटबंदी के विरोध को पुराने नोटों को रखने की तरह अपराध नहीं माना है.
जो है, जैसा है, वैसा मान लो की परंपरा ने ही मानव समाज को ज्यादा उन्नति करने से रोका है. जबजब समाज में खुली सोच की छूट मिली है, उन्नति हुई है. ग्रीस और रोमन साम्राज्य बने ही इसलिए थे कि उन्होंने असहमति को स्वीकारा था. मार्टिन लूथर द्वारा पोप का भंडाफोड़ करने की आजादी हासिल कर पाने के कारण यूरोप में वैचारिक क्रांति हुई जिस के कारण भरपूर विकास हुआ. भारत में विचारों की स्वतंत्रता रही पर वह जातिगत व्यवस्था के दायरे में रही और उसे तोड़ने में यह स्वतंत्रता कभी भी सफल नहीं हुई और इसीलिए पर्याप्त प्राकृतिक साधनों के बावजूद भारत बिखरा व पिछड़ा रहा.
आज देश के नागरिकों के पास संवैधानिक अधिकार हैं पर देशवासी उन्हें मानने को तैयार नहीं. अधिकांश लोग अपनी खरीखरी बात कहने से नहीं,
बल्कि सही विचार सुनने व पढ़ने से भी कतराते हैं. प्रणब मुखर्जी ने विचारों की अभिव्यक्ति में जिस डाउट यानी संदेह की बात की है वह तो यहां न के बराबर है. आप विष्णु, राम, कृष्ण, मोहम्मद, ईसा के चरित्र के बारे में कुछ कहने का प्रयास तो करें. आप को, बिना सत्य परखे, अपराधी घोषित कर दिया जाएगा.
आप सरकारी, धार्मिक, सामाजिक मान्यताओं से असहमति प्रकट नहीं कर सकते. अगर करते हैं तो आप को तुरंत अलगथलग कर दिया जाएगा. आप योग और आयुर्वेद को नाटक कह कर देखिए, कौओं के झुंड सिर पर मंडराने लगेंगे.
आप सरकार, धार्मिक संस्थाओं, बैंकों, बड़ी कंपनियों से कोई विवाद नहीं कर सकते. वे बड़ेबड़े वकील लगा कर वर्षों तक आप को उलझाए रख, थका डालेंगे. हमारी सरकारें, समाज, धर्मसंस्थाएं, बैंक, कंपनियां, पार्टियां चाटुकारों को पसंद करती हैं. जो जय बोले, वही जीतता है.