दिल्ली व उत्तर भारत के अनेक शहरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इन जगहों में जिंदगी गुजारना एक आफत सा हो गया है. अफसोस यह है कि इस का नोटबंदी की तरह का कोई सरल उपाय नहीं कि मंत्र पढ़ा और कालेधन की समस्या को चुटकियों में समाप्त कर दिया. यह समस्या फिलहाल वर्तमान राजनेताओं के बस के परे है क्योंकि एक तो यह विश्वव्यापी असर का परिणाम है और दूसरा यह कि मानव जिस आधुनिक जीवनशैली का आदी हो गया है उसे वह छोड़ने वाला नहीं है.
यह कहना कि प्रदूषण केवल पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के खेतों में फसल काटे जाने के बाद बची जड़ों को जलाने या डीजल गाडि़यों व जेनरेटरों से होता है, काफीकुछ अधूरा है. इस प्रदूषण के बहुत से कारण हैं और उन के एकसाथ जुड़ जाने और वर्षा न होने व तेज हवाएं न चलने के कारण यह समस्या उग्र हो जाती है.
इन सैकड़ों कारणों का एकसाथ एक ही आदेश से निवारण करना असंभव है. इस के लिए जीवनशैली बदलनी होगी और यह देश खासतौर पर इस के लिए तैयार है ही नहीं. हमारे यहां दूसरों के दुखदर्द को देखने व महसूस करने की आदत ही नहीं है. हम तो जुगाड़ संस्कृति का ढोल पीटने वाले हैं जो 2 मिनट हाथ सेंकने के लिए एक पूरा पेड़ जला कर राख कर दें और राख का निबटान तक न करें.
हम तो वे लोग हैं जो एक तरफ गंगायमुना की सफाई के नाम पर अरबों रुपए लगाएं और फिर सफाई का बजट पास करने वाले मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री ही नदियों किनारे आरतियों, पूजा सामग्रियों, मूर्तियों को बहा कर व छठपूजा के बहाने से उसे खराब कर दें और अपनी पीठ थपथपाने भी लगें.