देशभर से करोड़ों मजदूर जो दूसरे शहरों में काम कर रहे थे कोरोना की वजह से पैदल, बसों, ट्रकों, ट्रैक्टरों, साइकिलों, ट्रेनों में सैकड़ों से हजारों किलोमीटर चल कर अपने घर पहुंचे हैं. इन में ज्यादातर बीसीएससी हैं जो इस समाज में धर्म की वजह से हमेशा दुत्कारेफटकारे जाते रहे हैं. इस देश की ऊंची जातियां इन्हीं के बल पर चलती हैं. इस का नमूना इन के लौटने के तुरंत बाद दिखने लगा, जब कुछ लोग बसों को भेज कर इन्हें वापस बुलाने लगे और लौटने पर हार से स्वागत करते दिखे.

देश का बीसीएससी समाज जाति व्यवस्था का शिकार रहा है. बारबार उन्हें समझाया गया है कि वे पिछले जन्मों के पापों की वजह से नीची जाति में पैदा हुए हैं और अगर ऊंचों की सेवा करेंगे तो उन्हें अगले जन्म में फल मिलेगा. ऊंची जातियां जो धर्म के पाखंड को मानने का नाटक करती हैं उस का मतलब सिर्फ यह समझाना होता है कि देखो हम तो ऊंचे जन्म में पैदा हो कर भगवान का पूजापाठ कर सकते हैं और इसीलिए सुख पा रहे हैं.

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अब कोरोना ने बताया है कि यह सेवा भी न भगवान की दी हुई है, न जाति का सुख. यह तो धार्मिक चालबाजी है. ऐसा ही यूएन व अमेरिका के गोरों ने किया था. उन्होंने बाइबिल का सहारा ले कर गुलामों को मन से गोरों का हुक्म मानने को तैयार कर लिया था. जैसे हमारे बीसीएससी अपने गांव तक नहीं छोड़ सकते थे वैसे ही काले भी यूरोप, अमेरिका में बिना मालिक के अकेले नहीं घूम सकते थे. अगर अमेरिका में कालों पर और भारत में बीसीएससी पर आज भी जुल्म ढाए जाते हैं तो इस तरह के बिना लिखे कानूनों की वजह से. हमारे देश की पुलिस इन के साथ उसी वहशीपन के साथ बरताव करती है जैसी अमेरिका की गोरी पुलिस कालों के साथ करती है.

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