बिहार के विधानसभा चुनावों में 2 जने जो असल में हारे हैं नीतीश कुमार और चिराग पासवान हैं. इन दोनों को भारतीय जनता पार्टी ने मटियामेट कर दिया. जैसे महाभारत में गीता के पाठ की पट्टी पढ़ा कर कौरवोंपांडवों को एकदूसरे को खत्म करने को तैयार कर लिया गया था वैसे ही नीतीश कुमार और चिराग पासवान के साथ हुआ है.

चिराग पासवान अब गुजरा कल बन सकते हैं और नीतीश कुमार गएगुजरे हो गए हैं. उन के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज है पर राज तो भारतीय जनता पार्टी के पास है और नीतीश कुमार सुशासन बाबू से डबल मोहर बाबू बन कर रह गए हैं. हर फैसले पर पहले भाजपा की हां की मोहर लगेगी उस पर एक मरी सी फीकी सी मोहर दलपलटू नीतीश कुमार की.

नीतीश कुमार को जरा सा भी अपनी इज्जत का खयाल होता तो वे मुख्यमंत्री की कुरसी को लात मार कर भाजपा को अपने खिलाफ शिखंडी चिराग पासवान को खड़ा करने का राजनीतिक हिसाबकिताब करते. पर कमजोर सिर्फ खुशनुमा चेहरे के धनी नीतीश कुमार से इतना भी नहीं हुआ और उन्होंने अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) का क्रियाकर्म मुख्यमंत्री पद की शपथ ले कर कर दिया है.

राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव जीत नहीं सके. पर उन के महागठबंधन ने 110 सीटें ले कर जता दिया कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को जीत मिली थी उस को वे अकेले 31 साल की उम्र में फीका कर सकते हैं. चाचा नीतीश कुमार से वे आगे कितने और कैसे भिड़ते हैं यह देखना है. उम्र तेजस्वी के साथ है नीतीश कुमार के साथ नहीं.

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