जीएसटी गब्बर सिंह टैक्स तो है ही, यह गौरमैंट सेवा टैक्स (जीएसटी) भी है. सरकार का इरादा था कि विकास की चाशनी में लपेट कर इसे जनता को खिला दिया जाएगा, ताकि वह गुलाम सैनिक टट्टू (जीएसटी) बन कर गौरमैंट की सेवा करती रहे. इस टैक्स को इस तरह ढाला गया है कि हर जना इस की लपेट में आ जाए. देश के 125 करोड़ मित्रों, भाइयों और बहनों की जबरदस्त सफाई ट्रैप (जीएसटी) स्कीम का अपना अनूठापन है कि इस के फंदे से कोई नहीं बच सकता.

देश के किसान कर्जों से खुदकुशी कर रहे हैं, पर इस जबरन सरकारी टैक्स (जीएसटी) की बदौलत बैंकों से जिन धन्ना सेठों ने धंधों के नाम पर पैसा लिया था, उसे हड़प करने पर किसी एक को भी खुदकुशी नहीं करनी पड़ी. कुछ विदेशों में मौज कर रहे हैं, तो बाकी महलों में रह रहे हैं और उपदेश देने वाले महापंडित जनता स्वाहा तिकड़म (जीएसटी) भव: का मंत्र रातदिन बोल कर बहका रहे हैं. धन्ना सेठों ने जो पैसे बैंकों से हड़पे उन के लिए सरकार जो 2 लाख करोड़ रुपए (2000000000000 रुपए) दे रही है, वे इसी जीएसटी से आएंगे.

आम किसान, मजदूर, नौकरीपेशा, कारीगर, दिहाड़ी बेलदार, कुली, तांगे वाले, मोची, सफाईकर्मी, नौकरानी, धोबन से छीन कर जमा किया गया पैसा किसी विकासफिकास में नहीं लग रहा. इस से फरार्टे से गाड़ियां दौड़ सकें ऐसी सड़कें बनेंगी, हवाईअड्डे बनेंगे, बुलेट ट्रेनें चलेंगी, परमाणु बम बनेंगे, हैलीकौप्टर खरीदे जाएंगे, पुलिस फोर्स बनेगी, कंप्यूटरों का जाल बिछेगा. इस से न गांवों में सीवर डलेंगे, न नहरें बनेंगी, न नलकूप लगेंगे, न मंडियां बनेंगी, न बसें चलेंगी, न लोकल ट्रेनें ज्यादा बनेंगी, न दुकानें बनेंगी, न व्यापारी को राहत मिलेगी, न कारखाने चलाने वालों को सुकून मिलेगा.

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