कभी राज हट, बाल हट और स्त्री हट के बारे में कहा जाता था कि इन्हें शांत करना बहुत कठिन होता है . आजकल आदिवासी राज्य छत्तीसगढ़ में राजभवन का राज हट चर्चा का विषय बना हुआ है. यहां राज्यपाल के रूप में अनुसूचित जनजाति से अनुसुइया उईके राज्यपाल की भूमिका का निर्वहन कर रही है और आरक्षण के मसले पर उनका हट चर्चा में है. छत्तीसगढ़ में सरकार और राजभवन में एक ऐसी खींचतान चल रही है जिसकी मिसाल शायद देश में नहीं मिल सकती. ऐसा लगता है मानो सविधान का कोई सम्मान राजभवन नहीं करना चाहता और एक हेटी के चक्कर में आरक्षण का मुद्दा एक दावानल की तरह प्रदेश की फिजाओं में धड़क रहा है. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है इसीलिए यहां अक्सर छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग जोर पकड़ती रही है अगर हम कथित रूप से प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी को छोड़ दें तो विगत 22 वर्षों में छत्तीसगढ़ को आदिवासी मुख्यमंत्री तो नहीं मिला है आरक्षण का जो अधिकार था उस पर भी ग्रहण लगा हुआ है.
हद तो तब हो गई है, जब विधानसभा में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण हेतु विशेष सत्र 2 और 3 दिसंबर 20220 को बुलाकर आरक्षण का विधेयक पास कर दिया. मगर अब राज्यपाल अनुसुइया उइके ने प्रश्नों की झड़ी लगा कर के एक ऐसी हठधर्मिता देश को दिखाई है जो आज तक किसी राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ में कम से कम नहीं दिखाई थी. इस मसले को लेकर के एक तरह से सरकार और राज्य भवन में ठन गई है इसमें न तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कोई पहल कर रही है और ना ही देश की उच्चतम न्यायालय ने अभी तक कोई संज्ञान लिया है. परिणाम स्वरूप 30 दिन से ज्यादा हो जाने के बावजूद राजभवन में आरक्षण विधेयक धूल खा रहा है और प्रदेश में आदिवासी समाज में इसको लेकर के राज्यपाल अनुसुइया उइके के विरोध में अब आवाजें उठने लगी हैं और राजभवन को घेरने भी घटना भी घटित हो चुकी है.
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