राजनीति में अगर सत्ता ही प्रधान सच बन जाए, तो यह लोकतंत्र के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है. राजनीतिक पार्टियों और पेशेवर राजनीतिबाजों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि वे नैतिकता को ताक पर न रखें. कम से कम इनसानियत और समाज के जो सामान्य नियम हैं, उन का तो पालन करना ही चाहिए.

मगर आज हमारे देश में राजनीति इतने निचले स्तर पर आ पहुंची है कि सत्ता के लिए राजनीतिक दल अपना सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार दिखाई देते हैं.

ऐसे में हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के संदर्भ में जो घटनाएं घटित हुई हैं, उन के नेताओं ने जो फैसले लिए हैं, उन्हें देख कर यह कहा जा सकता है कि भाजपा ने सत्ता हासिल करने के लिए हर वह काम करना अपना लक्ष्य बना लिया है, जिस से कुरसी उसे ही मिले, फिर भले ही नियमकायदे या नैतिकता का नुकसान होता हो तो हो जाए, देश का संविधान तारतार हो जाए तो हो जाए.

सब को खत्म करना मकसद

देशभर में हाल ही में घटित घटनाओं को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी और उस के आज के सिपहसालारों के पास देश की हर एक पार्टी को खत्म करने और हर राज्य में सत्ता का सुख भोगना ही लक्ष्य है, चाहे उस के लिए देश की जनता मतदान करे या न करे.

अगर भारतीय जनता पार्टी चुनाव में हार जाती है, तो फिर विधायकों और बड़े नेताओं को खरीदने लग जाती है. ऐसा ही घटनाक्रम मध्य प्रदेश में देखा गया, जहां अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सरकार कमलनाथ के नेतृत्व में काम कर रही थी. मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया के माध्यम से सत्ता बदलाव हो गया और फिर एक बार शिवराज सिंह चौहान की सरकार बन गई. महाराष्ट्र में शिव सेना की सरकार को भाजपा ने उखाड़ फेंका.

इस तरह सभी प्रदेशों में चुनी हुई सरकारों पर दांवपेंच के साथ खेल खेलने का काम आज भाजपा और केंद्र सरकार कर रही है, मगर सब से अजीब बात यह है कि इन नाजायज काम पर कोई भी संवैधानिक सत्ता टिप्पणी नहीं कर रही है और न ही अंकुश लगा रही है, जो लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है.

चेहरे बदलने से भी गुरेज नहीं

भाजपा की नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले कुछ समय में जब केंद्र में फेरबदल किया और बड़े नामचीन चेहरे केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर कर दिए गए, तब सबकुछ शांति के साथ हो गया, जो यह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी में अनुशासन कूटकूट कर भरा हुआ है. मगर इस के साथ यह भी सच है कि अनुशासन के नाम पर एक तानाशाही अंदरखाने में काम कर रही है, जिस का सब से मजेदार उदाहरण इन दिनों छत्तीसगढ़ में देखा जा रहा है.

यहां साल 2023 में विधानसभा के चुनाव हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी अपने केंद्रीय नेताओं और केंद्र सरकार में बैठे हुए चेहरों को बारबार छत्तीसगढ़ भेज रही है और वहां का माहौल बदलने की कोशिश कर रही है. यही नहीं, यहां रातोंरात प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय, जो कि अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधि हैं, को हटा कर अरुण साव (सांसद), जो कि पिछड़ा वर्ग समुदाय से हैं, को पद पर बैठा दिया गया.

इसी तरह नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी धरमलाल कौशिक लंबे समय से अपनी पारी खेल रहे थे. भारतीय जनता पार्टी में यहां नारायण चंदेल, जो कि पिछड़ा वर्ग से हैं, को नेता प्रतिपक्ष बना कर राजनीति की चौपड़ पर आगामी विधानसभा के लिए बिसात बिछा दी है.

लाख टके का सवाल यह है कि धरमलाल कौशिक, जो कि पिछड़ा वर्ग से संबंध रखते हैं, को हटा कर पिछड़ा वर्ग से ही नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाने का क्या संदेश प्रदेश के मतदाताओं और राजनीतिक हलके में जाएगा?

नारायण चंदेल के बजाय किसी सामान्य जाति के बड़े कद के चेहरे जैसे मुख्यमंत्री रह चुके डाक्टर रमन सिंह या बृजमोहन अग्रवाल को इस पद पर आसीन करना ज्यादा मुफीद होता.

भाजपा आजकल ताश के पत्ते की तरह चेहरे बदलती है. वह समझती है कि चेहरे बदल देने से भाजपा की तसवीर बदल जाएगी और वह सत्ता में बनी रहेगी, जबकि होना यह चाहिए कि भाजपा जैसे राजनीतिक दल को अपना चाल, चरित्र और चेहरा बदलना चाहिए, ताकि देशप्रदेश की जनता उसे अपना प्रतिनिधि दल माने.

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