Social Story : गांव की गोरियां

Social Story : सोशल मीडिया भी गजब ही है भैया. यहां कबाड़ भरा है तो जुगाड़ भी भरा है. अब टिक टौक और लाइक को ही ले लो. एक अलग ही दुनिया. कुछ सैकंड का धमाल, दुनिया में कर दो कमाल. अब तो बड़ेबड़े नामचीन भी इस के असर से अछूते नहीं हैं. शहर की गोरीचिट्टी छोरियां इंगलिश में गिटपिट बोलें, लड़कों के मजे लें और अपने हुस्न के जलवे बिखेर कर खूब लाइक बटोरें.

पर गांवदेहात की लड़कियों को भी कम मत सम?ाना. टिक टौक और लाइक पर छाई हुई हैं ये कसे बदन की तितलियां. कभी गौर किया है इन बिजली सी चमकती ठेठ गोरियों पर. सपना चौधरी के ‘तेरी आंख्यां का यू काजल…’ गीत पर ठुमके लगा कर सपना चौधरी को ही पानी भरवा दें. सब से बड़ी बात तो यह कि ऐसी लड़कियां ज्यादा अमीर घरों की नहीं होती हैं. उन के कच्चेपक्के घरों, बिना ओट की छतों से अंदाजा लगा सकते हैं कि वे किसी अगड़े समाज से नहीं आती हैं, पर उन में अपना हुनर दिखाने की ललक होती है.

हां, एक बात जरूर है कि कैमरे के सामने आने से पहले वे अपना होमवर्क बड़े अच्छे ढंग से करती हैं. कैसे अपनी फिगर का इस्तेमाल करना है, कैसे कपड़े पहनने हैं कि बदन उतना ही दिखे कि आह निकल जाए. वे मेकअप पर भी खूब ध्यान देती हैं और जो भी पेश करती हैं, उस में उन की मेहनत दिखाई देती है.

इस सब में फिल्मी गानों, संवादों और चुटकुलों का भी बड़ा अहम रोल होता है. देशी बोली के तड़कतेभड़कते गाने और लड़कियों का कूल्हे मटकाना जबरदस्त जुगलबंदी बन जाता है. इस में बहुत सी लड़कियां अपने डांस को और मस्त बनाने के लिए कपड़े भी इतने बदनदिखाऊ पहन लेती हैं कि मनचलों की आहें निकल जाती हैं. फिर कुछ लड़कियां तो एडल्ट चुटकुले भी अपने दिलकश अंदाज में सुना देती हैं.इस से उन के चाहने वालों की लिस्ट लंबी हो जाती है.

सपना चौधरी के गाने पहले सस्ते वीडियो कैसेट पर बजते थे, फिर जब उन की देखादेखी बहुत सी लड़कियों ने ऐसे छोटेछोटे वीडियो बना कर टिक टौक वगैरह पर डालने शुरू कर दिए तो उन के भी फैन बनते चले गए.

हरियाणा की सोनाली फोगाट तो इतनी मशहूर हो गईं कि उन को हरियाणा विधानसभा की टिकट तक मिल गई. उन के वीडियो भी कम दिलचस्प नहीं हैं. पूजा जैन से ढिंचक पूजा बन चुकी यह लड़की अब इंटरनैट की सनसनी है.

Family Story : रामलाल की घर वापसी

Family Story : तकरीबन 7-8 घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था. रामलाल ने कमला को भी अपने साथ बस से उतार लिया था.

‘‘देखो कमला, तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है, तो तुम उस के साथ क्यों रहना चाहती हो?’’

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनी रही. उस ने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा.

‘‘पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे, तो क्या कहोगे?’’

‘‘कह दूंगा कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्दबाजी में ब्याह करना पड़ा.’’

कमला कुछ नहीं बोली. दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गए.

रामलाल के सामने पिछले एक महीने में घटी एकएक बात किसी फिल्म की तरह सामने आ रही थी.

रामलाल शहर में मजदूरी करता था. ब्याह नहीं हुआ था, इसलिए जो मजदूरी मिलती उस में उस का खर्च आराम से चल जाता. थोड़ेबहुत पैसे जोड़ कर वह गांव में अपनी मां को भी भेज देता. गांव में एक बहन और मां ही रहते हैं. एक बीघा जमीन है, पर उस से सभी की गुजरबसर होना मुमकिन नहीं था. गांव में मजदूरी मिलना मुश्किल था, इसलिए उसे शहर आना पड़ा.

‘शहर गांव से तो बहुत दूर था, ऊपर उसे कौन रोजरोज गांव आना है…’ सोच कर रामलाल यहीं काम करने भी लगा था. एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था. एक स्टोव और कुछ बरतन. शाम को जब काम से लौटता तो 2 रोटी बना लेता और खा कर सो जाता. दिनभर का थका होता, इसलिए नींद भी अच्छी आती.

रामलाल ईमानदारी से काम करता था, इस वजह से सेठ भी उस से खुश रहता था. वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता.

सालभर हो गया था रामलाल को शहर में रहते हुए. इस एक साल में वह अपने गांव भी नहीं जा पाया था. उस दिन उस ने देर तक काम किया था. वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था. जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वह सेठ से कुछ पैसे ले ले. उस ने अपनी जेब टटोली 10 का सिक्का उस के हाथ में आ गया.

‘चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा, कल सेठ से पैसे मिल ही जाएंगे.’ रामलाल ने गहरी सांस ली. 2 रोटी बनाई और खा कर सो गया.

सुबह जब रामलाल नहा कर काम पर जाने के लिए निकला, तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं. सरकार ने लौकडाउन लगा दिया है. बहुत देर तक तो वह इस का मतलब ही नहीं सम झ पाया. केवल यही सम झ में आया कि वह आज काम पर नहीं जा पाएगा. वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया. मकान मालिक उस के कमरे के सामने ही मिल गया था.

‘देखो रामलाल, महीनेभर का लौकडाउन है. कोई वायरस फैल रहा है. तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो.’

रामलाल वैसे ही लौकडाउन का मतलब नहीं सम झ पाया था, उस पर वायरस की बात तो उसे बिलकुल भी सम झ में नहीं आई.

‘कमरा खाली कर दो… मु झ से कोई गलती हो गई क्या?’

‘नहीं, पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे, तो कमरे का किराया कैसे दोगे?’

‘क्या महीनेभर काम बंद रहेगा?’

‘हां, घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे.’

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा. उस के पास तो केवल 10 का सिक्का ही है. वह कुछ नहीं बोला, उदास कदमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया.

जब रामलाल की नींद खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था. उस ने बाहर निकल कर देखा. बाहर सुनसान था. उसे पैसों की चिंता सता रही थी अगर वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से कम खाने का जुगाड़ तो हो जाता.

अगर वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे जरूर दे सकते हैं. उस ने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका. बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उस की हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई. वह फिर से दरी पर लेट गया. उस की नींद जब खुली, उस समय रात के 2 बज रहे थे. भूख के चलते उस के पेट में दर्द सा हो रहा था.

वह उठा और स्टोव जला लिया, पर आटा रखने वाले डब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी. वह जानता था कि उस में थोड़ा सा ही आटा बचा है. अगर अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा. उस ने निराशा के साथ डब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया. 2 छोटीछोटी रोटियां ही बन पाईं. एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डब्बे में रख दिया.

सुबह हो गई थी. रामलाल ने बाहर झांक कर देखा. पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी. वह कमरे से बाहर निकल आया. उस के कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए.

सेठ का घर बहुत दूर था. छिपतेछिपाते वह उन के घर के सामने पहुंच गया था. दिन पूरा निकल आया था. यह सोच कर कि सेठ जाग गए होंगे, उस के हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे. उन के नौकर ने दरवाजा खोला था.

‘जी मैं रामलाल हूं, सेठजी के यहां ठेके पर काम करता हूं.’

‘हां तो…’

‘मुझे कुछ पैसे चाहिए.’

‘हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे. सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते.’

‘पर, वह लौकडाउन लग गया है, न तो काम तो महीनेभर बंद रहेगा.’

‘तभी आना…’

‘तुम एक बार उन से बोलो तो सही, वे मु झे बहुत चाहते हैं.’

‘अच्छा रुको, मैं पूछता हूं,’ नौकर को शायद दया आ गई थी उस पर.

नौकर के साथ सेठ भी बाहर आ गए थे. उन के चेहरे पर झुं झलाहट के भाव साफ झलक रहे थे, जिन्हें रामलाल नहीं पढ़ पाया.

सेठजी को देखते ही उस ने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे, पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया.

‘अब तुम्हारी इतनी हिम्मत हो गई कि घर चले आए…’

‘सेठजी कल आप से पैसे ले नहीं पाया था. मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लौकडाउन हो गया है. इसलिए आना पड़ा,’ रामलाल ने सकपकाते हुए कहा.

‘चल यहां से… बड़ा पैसे लेने आया है. मैं घर पर लेनदेन नहीं करता.’

सेठ ने उसे गुस्साई निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया. उस ने सेठजी के पैर पकड़ लिए, ‘मेरे पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं. थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर.’

सेठ उसे ठोकर मारते हुए अंदर चले गए. हक्काबक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. तभी पुलिस की गाडि़यों के आने की आवाज गूंजने लगी. वह डर गया और भागने लगा. छिपतेछिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया, पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया. वह कुछ बोल पाता, इस के पहले ही उस के ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे.

रामलाल दर्द से कराह उठा. पुलिस वालों ने गंदीगंदी गालियां देनी शुरू कर दी थीं. तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नौजवान आ कर रुक गए. उन्होंने पुलिस वालों से कुछ बात की. पुलिस ने उन्हें जाने दिया. रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया. वह हांफते हुए अपने कमरे
की दरी पर लेट गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन्हें पोंछने वाला कोई नहीं था. उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

मां की याद आते ही उस के आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी. रोतेरोते वह सो गया था. दोपहर का समय ही रहता होगा, जब उस की आंख खुली. उस का सारा बदन दुख रहा था. पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था. वह कराहता हुआ उठा. बहुत जोर की भूख लगी थी. वह जानता था कि डब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है.

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा. वह अब क्या करे? उस के सामने अनेक सवाल थे. मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था, सीधे अंदर घुस आया था, ‘तुम कमरा कब खाली कर रहे हो?
वह सकपका गया.

‘मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रुक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो, ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ़ सकूं.’

रामलाल हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया था.

‘नहीं, माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा. तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो… नहीं तो मु झे जबरदस्ती करनी पड़ेगी,’ कहता हुआ वह चला गया.

रामलाल को सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह चुपचाप बैठा रहा. अभी तो उसे शाम के खाने की भी फिक्र थी.

सूरज ढलने को था. रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था, खामोश. और वह करता भी क्या? उस ने कमरे का दरवाजा जरा सा खोल कर देखा. बाहर पुलिस नहीं थी. वह बाहर निकल आया. थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी.

वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया. कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे. वह भी लाइन में लग गया. हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे, इसलिए समय लग रहा था. उस का नंबर आया. एक आदमी ने उस के हाथ में खाने का पैकेट रखा, साथ में और लोग भी उस के चारों ओर खड़े हो गए. कैमरे का फ्लैश चमकने लगा. फोटो खिंचवा कर वे लोग जा चुके थे.

रामलाल भी अपने कमरे की ओर लौट पड़ा, ‘चलो, आज के खाने का इंतजाम तो हो गया. इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह खा लेंगे.’

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी, इसलिए कमरे में आते ही उस ने पैकेट खोल लिया था. पैकेट में केवल 2 मोटी सी पूरी थी और जरा सी सब्जी. सब्जी बदबू मार रही थी, शायद वह खराब हो गई थी.

हक्काबक्का रामलाल पूरी को कुछ देर तक यों ही देखता रहा, फिर उस ने मोटी पूरी को चबाना शुरू कर दिया. दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा. वह अब क्या करे. कमरा भी खाली करना है.

अपने गांव भी नहीं लौट सकता, क्योंकि ट्रेनें और बसें बंद हो चुकी हैं, पैसे भी नहीं हैं. रामलाल समझ नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करे.

रामलाल ने सुबह ही पता लगा लिया था कि सरकार की ओर से खाने का इंतजाम किया गया है, इसलिए वह ढ़ूंढ़ते हुए यहां आ गया था. उस के जैसे यहां बहुत सारे लोग लाइन में लगे थे. वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे. यहीं उस की मुलाकात मदन से हुई थी, जो उस के पास वाले जिले का था. उस से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपनेअपने गांव लौट रहे हैं. मदन भी उन के साथ जा रहा है.

रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है. उसे भी इन के साथ गांव चले जाना चाहिए. पर क्या इतनी दूर पैदल चल पाएगा? पर, अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं. अगर मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा. गहरी सांस ले कर उस ने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया.

शाम को वह अपना सामान बोरे में भर कर तय जगह पर पहुंच गया, जहां मदन उस का इंतजार कर रहा था. सैकड़ों की तादाद में उस के जैसे लोग थे, जो अपनाअपना सामान सिर पर रख कर पैदल चल रहे थे. इन में बच्चे भी थे और औरतें भी.

रात का अंधकार फैलता जा रहा था, पर चलने वालों के कदम नहीं रुक रहे थे. कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ का फोटो खींच रहे थे. इसी वजह से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था. वे गालियां बक रहे थे और लौट जाने को कह रहे थे. भीड़ उन की बात सुन नहीं रही थी. पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था.

‘आप सभी की जांच की जाएगी और रुकने का इंतजाम किया जाएगा, कोई आगे नहीं बढ़ेगा,’ लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था.

सारे लोग रुक गए थे. एकएक कर सभी की जांच की गई. फिर सभी को इकट्ठा कर आग बु झाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई. दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी. मदन भी आंख बंद किए

कराह रहा था. और भी लोगों को परेशानी हो रही थी, पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था.

दवा छिड़कने वाले कर्मचारी उलटासीधा बोल रहे थे. सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था. सैकड़ों लोग और कमरे कम. बिछाने के लिए केवल दरी थी. पानी के लिए हैंडपंप था. औरतों के लिए ज्यादा परेशानी थी. 2 रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था.

‘हरामखोरों ने परेशान कर दिया,’ बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला, एक औरत ने उसे रोक लिया, ‘क्या बोला… हरामखोर… अरे, हम तो अच्छेभले जा रहे थे, हमें जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं.’

उस औरत की आवाज सुन कर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे.

‘भूखों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए…’ वह फिर बड़बड़या.

‘रोकने का इंतजाम नहीं था तो क्यों रोका… 2 सूखी रोटी दे कर अहसान जता रहे हैं,’ किसी ने जोर से बोला था, ताकि सभी सुन लें. पर, साहब को यह पसंद नहीं आया. उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था, ‘कौन बोला… जरा सामने तो आओ… यहां मेरी बेटी की बरात लग रही है क्या… जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवा कर खिलवाएं.’

सारे सकपका गए. वे सम झ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटने पड़ेंगे. छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसेतैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते. बाथरूम तक का इंतजाम नहीं था. औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं.

कोई नेताजी आए थे उन से मिलने. वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से शिकायत नहीं करेगा, इसलिए बाकी सारे लोग तो खामोश रहे, पर एक बूढ़ी औरत खामोश नहीं रह पाई.

जैसे ही नेताजी ने मुसकराते हुए पूछा, ‘कैसे हो आप लोग… हम ने आप के लिए बहुत सारा इंतजाम किया है उम्मीद है कि आप अच्छे से होंगे.’

बुजुर्ग औरत यह सुन कर भड़क गई, ‘दो सूखी रोटी और सड़ी दाल दे कर अहसान जता रहे हो.’

किसी को उम्मीद नहीं थी. सभी लोग सकपका गए. एक कर्मचारी उस औरत की ओर दौड़ा, पर वह खामोश नहीं हुई, ‘हुजूर, यहां कोई इंतजाम नहीं है. हम लोग एक कमरे में भेड़बकरियों की तरह रह रहे हैं.’

नेताजी कुछ नहीं बोले. वे लौट चुके थे. उन के जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था.

फिर सरकार ने बस भिजवाई थी, ताकि सभी लोग अपनेअपने गांव लौट सकें. मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे, तभी किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई दी थी.

रामलाल उधर पहुंच गया था. एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ कर पीठ पर मुक्के मार रहा था. वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी.

‘इसे क्यों मार रहे हो भाई?’ रामलाल से सहन नहीं हो रहा था.

‘तू बीच में मत पड़. यह मेरी घरवाली है. सम झ गया तू,’ उस ने अकड़ कर कहा.

‘घरवाली है तो ऐसे मारोगे.’

‘तुझे क्या, जा अपना काम कर.’

रामलाल का खून खौलने लगा था, ‘पर बता तो सही, इस ने किया क्या है?’

‘यह औरत मनहूस है. इस के चलते ही मैं परेशान हो रहा हूं,’ कहते हुए उस ने जोर से औरत के बाल खींचे. वह दर्द से रो पड़ी. रामलाल सहन नहीं कर सका. उस ने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया.

‘तुम मेरे साथ बैठो. देखता हूं, कौन माई का लाल है, जो तुम्हें हाथ लगाएगा?’

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी. उस ने अपना नाम कमला बताया था. उस ने तो केवल यह सोचा था कि उस के आदमी का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तो वह ही उसे ले जाएगा. पर, वह उसे लेने नहीं आया.

‘अच्छा ही हुआ. उस ने इस की जिंदगी खराब कर रखी थी, पर अब यह जाएगी कहां?’ सवाल तो रामलाल के मन में था, पर जवाब उस के पास नहीं था. बस से उतर कर उस ने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था.

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी. उसे नहीं मालूम था कि उस का भविष्य क्या है, पर रामलाल उसे अच्छा लगा था. वह जिन यातनाओं से हो कर गुजरी है, शायद उसे उन से छुटकारा मिल जाए.

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थीं.

रामलाल उन से लिपट पड़ा, ‘‘मां…’’ उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. रो तो मां भी रही थी, जब से लौकडाउन लगा था, तब से ही मां उस के लिए बेचैन थीं. उन्होंने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था. दोनों रो रहे थे, कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी.

अपने आंसू पोछ कर उस ने कमला की ओर इशारा किया. ‘‘मां, आप की बहू…’’

यह सुन कर चौंक गईं मां, ‘‘बहू… तू ने बगैर मु झ से पूछे ब्याह रचा लिया…?’’

‘‘मां, मजबूरी थी, लौकडाउन के चलते… गांव आना था इसे कहां छोड़ता… बेसहारा है न मां.’’

मां ने नजर भर कर कमला को देखा.

‘‘चल, अच्छा किया.’’ कह कर मां ने कमला का माथा चूम लिया.

Family Story : रफूचक्कर

Family Story : ईशा बिजनौर जिले के नगीना इलाके में अपने अम्मीअब्बा के साथ रहती थी. उस से बड़ी दो बहनों की शादी पहले ही हो चुकी थी, बाकी के 2 भाई मुंबई में स्टोर चलाते थे.

घर पर केवल ईशा और उस के अम्मीअब्बा ही रहते थे. उन का घर मेन रोड पर था. जब ईशा छत पर कपड़े फैलाने जाती थी, तो अकसर आनेजाने वाले लड़के उसे हसरतभरी निगाहों से देखते थे.

ईशा की उम्र अभी 17 साल थी, पर वह थी बड़ी गजब की खूबसूरत. सुनहरे बाल, गोरा चमकता चेहरा, छोटीछोटी कत्थई आंखें, सुर्ख होंठ, पतली कमर, उभरी हुई छाती. ऐसा लगता था जैसे सारा रस छाती में भर गया हो, जिसे पीने के लिए हर कोई बेताब रहता था और उसे अपना बनाने की तरकीब सोचता रहता था.

उन्हीं में से एक लड़का था इमरान. ईशा जब भी छत पर जाती थी, तब इमरान हमेशा उसे हसरतभरी निगाहों से देखता रहता था और वह ईशा का ऐसा दीवाना बना हुआ था कि दोपहर की भरी गरमी हो या तूफानी बारिश या फिर कड़ाके की ठंड… ईशा की एक झलक पाने के लिए वह बेकरार रहता था. इन सब मौसम की परवाह न करते हुए उस के घर के पास खड़ा रहता था.

ईशा समझ गई थी कि इमरान उसे दिलोजान से चाहता है. ईशा के दिल में भी इमरान के लिए प्यार के बीज फूटने लगे थे और अब वह भी कोई न कोई बहाना बना कर छत पर आ जाती और इमरान को अपनी एक कातिल मुसकान से घायल कर जाती.

कई दिनों तक यों ही आंखोंआंखों में वे दोनों एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार करते रहे, फिर उन की जिंदगी में आखिरकार वह दिन भी आ ही गया, जब दोनों ने एकदूसरे से मिल कर अपने प्यार का इजहार किया.

ईशा के अम्मीअब्बू पास के एक गांव में अपने किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे. बादलों की गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश हो रही थी.

इमरान इस तेज बारिश में ईशा के दीदार के लिए पागलों की तरह बारिश में खड़ा था. उस का पूरा बदन पानी में भीग चुका था.

ईशा अपने घर मे अकेली थी. तभी उस ने इमरान की झलक पाने के लिए छत पर जा कर नजर दौड़ाई, तो देखा इमरान बारिश में खड़ा हुआ भीग रहा था. दूरदूर तक इमरान के सिवा कोई नजर नहीं आ रहा था. सब लोग तेज आंधी और बारिश की वजह से अपनेअपने घरों में कैद थे.

ईशा भी छत पर गई, तो पलभर में ही बुरी तरह भीग गई. उस ने जल्दी से इमरान को अपने घर में आने का इशारा किया और नीचे चली आई.

दरवाजा खुला था. इमरान फौरन मौका देख कर घर के अंदर दाखिल हो गया. ईशा बरामदे में ही खड़ी थी और इमरान को तौलिया दे कर बोली, ‘‘सिर पोंछ लो, नहीं तो सर्दी लग जाएगी.’’

इमरान की नजर जब ईशा के भीगे हुए बदन पर पड़ी, तो वह मदहोश हो गया. ईशा की उठी हुई छाती उस के कपड़े से चिपकी हुई अलग ही नजर आ रही थी.

ईशा के भीगे हुए बदन से कपड़े ऐसे चिपके हुए थे कि बदन का एकएक अंग साफ नजर आ रहा था. उस की पतली कमर देख कर इमरान का मन ललचाने लगा था.

इमरान ने आगे बढ़ कर ईशा को अपने आगोश में भर लिया और उस पर चुम्मों की बौछार कर दी. वह उस की उभरी हुई छाती को अपने सख्त हाथों से मसलने लगा.

इमरान की इन हरकतों से ईशा को एक अजब ही मजा आने लगा था. वह धीरेधीरे अपने बदन को इमरान को सौंपने लगी.

इमरान ने पलभर में ही बारिश से भीगे ठंडे बदन को अपने बदन की गरमी से गरम कर दिया था. ईशा ने पूरी तरह अपना कमसिन बदन इमरान को सौंप दिया था.

इमरान ने ईशा को अपनी गोद में उठा कर वहीं पड़े पलंग पर लिटा दिया. पलभर में ही वे दोनों पसीने से सराबोर हो गए.

ईशा के बदन से कपड़े हटते ही उस का गोरा और कमसिन बदन संगमरमर की तरह चमकने लगा. ईशा दर्द से तड़पने लगी. उस का कुंआरा बदन आज इमरान के आगोश में आ कर एक अजीब और मीठा दर्द महसूस कर रहा था.

कुछ देर दोनों ऐसे ही एकदूसरे का साथ देते रहे, फिर ठंडे पड़ कर एकदूसरे से अलग हो गए.

वे दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए थे और साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे.

ईशा बोली, ‘‘इमरान, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. चलो, हम कहीं भाग चलें.’’

इमरान ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी में गलत कदम नहीं उठाना. ऐसा करने से घर वालों की बेइज्जती होगी. हम दोनों एकदूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. पहले हम कोशिश करेंगे कि हमारे घर वाले हमारी शादी के लिए राजी हो जाएं. अगर उन्होंने हमारी बात नहीं मानी, तो हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’

ईशा बोली, ‘‘ठीक है, मैं अपने घर वालों को मनाने की पूरी कोशिश करूंगी. अगर वे नहीं माने तो तुम्हें मेरा साथ देना होगा, क्योंकि मेरे घर वाले ऊंचनीच का भेदभाव करते हैं. वे अपनेआप को ऊंची जाति का समझते हैं.’’

‘‘वे क्या जानें दो दिलों की मुहब्बत के बारे में. उन्हें तो बस अपनी जात प्यारी है,’’ इमरान बोला.

‘‘इमरान, तुम कोशिश तो करो. क्या पता कि वे हमारी मुहब्बत को समझे… हमारे प्यार को कबूल कर लें और हमारा निकाह करा दें,’’ ईशा की यह बात सुन कर इमरान ने उस से रुखसती ली और अपने घर चला गया.

इमरान पिछड़ी मुसलिम जाति की सलमानी बिरादरी से ताल्लुक रखता था, जबकि ईशा मुसलिम समुदाय की खान बिरादरी से ताल्लुक रखती थी.

उत्तर प्रदेश में बिरादरीवाद कुछ ज्यादा ही रहता है. वहां कोई भी अपनी बिरादरी की लड़की या लड़के की शादी किसी गैरबिरादरी में नहीं करता है. अगर करता है तो उन के समुदाय के लोग उन से बातचीत तो बंद करते ही हैं, साथ ही उन्हें यह भी ताना मारते हैं कि इसे अपनी बिरादरी में लड़का या लड़की नहीं मिली, जो दूसरों के यहां रिश्ता कर दिया.

इमरान ने जब अपने अब्बा से खान बिरादरी की ईशा से शादी करने की बात कही, तो पहले तो उस के अब्बा ने नानुकर की, पर जब इमरान अपनी जिद पर अड़ा रहा, तो उन्हें इमरान के आगे झुकना पड़ा और वे इस शादी के लिए राजी हो गए.

ईशा ने जब अपने अब्बा से इमरान से शादी करने की बात कही, तो वे यह सुनते ही आगबबूला हो गए और गुस्से में कहने लगे, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती एक गैरबिरादरी के लड़के से शादी करने की सोच रखते हुए. हम किसी भी कीमत पर उस लड़के से तेरी शादी नहीं करेंगे.

‘‘अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो तेरे ऊपर इश्क का भूत सवार हो गया. यह सब हमारी आजादी का नतीजा है,’’ कहते हुए उन्होंने ईशा पर कड़ी नजर रखने की हिदायत दी.

ईशा रोतीबिलखती रही और अपनी मुहब्बत की भीख मांगती रही, पर उस के अम्मीअब्बा इमरान से उस की शादी के लिए राजी न हुए.

ईशा की उम्र 18 साल होने में अभी एक महीना बाकी था. वह अपनी मरजी से इमरान से शादी करने के लिए अभी मजबूर थी और उस एक महीने का इंतजार कर रही थी कि कब उस की उम्र 18 साल हो और वह इमरान के साथ रफूचक्कर हो जाए.

ईशा ने इमरान को अपने अम्मीअब्बा की सारी बातें अपनी एक सहेली के जरीए बता दीं, जो उस की खास
सहेली थी.

अब इमरान और ईशा की प्रेमकहानी प्रेमपत्र के जरीए चलने लगी, जिस को ईशा की एक सहेली अच्छी तरह से अंजाम दे रही थी.

दोनों तरफ एकदूसरे को पाने की आग लगी थी. उन का एकदूसरे से मिलनाजुलना मुश्किल हो रहा था. बस, प्रेमपत्र के जरीए ही वे अपने अपने प्यार का इजहार करते और अपने दिल की बात एकदूसरे से शेयर करते.

एक महीने तक वे दोनों अपनेअपने दिल पर पत्थर रख कर बिना एकदूसरे से मिले अपनी बात प्रेमपत्र के द्वारा ही बताते रहे.

फिर आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब ईशा 18 साल की हो गई. वह आज बहुत खुश थी. उस के सपनों का राजकुमार अब उसे मिलने वाला था.

ईशा उस की बांहों में अपनेआप को सौंप कर उस से जीभर कर प्यार करने के लिए बेचैन थी, इसलिए आज उस के चेहरे पर अजीब सी खुशी दिखाई दे रही थी.

ईशा ने अपनी सहेली के जरीए प्रेमपत्र भेज दिया, जिस में उस ने लिखा था, ‘आज रात को 4 बजे जब सब गहरी नींद में सो रहे होंगे, तब तुम मुझे लेने आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’

काली घनी रात थी. सब लोग गहरी नींद में सो रहे थे. ईशा के अम्मीअब्बा भी गहरी नींद मे सो चुके थे. ईशा का रास्ता साफ हो चुका था. रात के 4 बजने में अभी भी थोड़ा समय बाकी था.

ईशा बड़ी बेसब्री से सुबह के 4 बजने का इंतजार कर रही थी. पर आज उसे ऐसा लग रहा था कि घड़ी जहां की तहां रुकी हुई है और वक्त आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.

ईशा कभी घर के अंदर तो कभी छत पर जा कर इमरान के आने का इंतजार कर रही थी, पर दूरदूर तक इमरान दिखाई नहीं दे रहा था.

ईशा बेचैन हो रही थी और सोच रही थी कि कब इमरान आएगा और उसे अपने साथ ले जाएगा, पर आज वक्त कुछ धीमा हो गया था. ईशा को आज की रात का 1-1 मिनट घंटों के बराबर लग रहा था.

काफी देर तक यों ही तड़पने के बाद आखिरकार 4 बजे ईशा छत पर गई और उसे दूर कहीं इमरान के आने की आहट सुनाई दी.

ईशा ने फौरन छत से उतर कर अपना सामान उठाया और हलके से घर का दरवाजा खोला, तो उसे बाहर इमरान दिखाई दिया. दोनों ने फौरन तेज कदमों के साथ वह जगह छोड़ दी और रफूचक्कर हो गए.

अगले दिन जब सुबह को ईशा घर में कहीं नजर नहीं आई और घर का दरवाजा भी खुला देखा, तो उस के अम्मीअब्बा समझ गए कि ईशा इमरान के साथ घर छोड़ कर रफूचक्कर हो गई है.

ईशा के अम्मीअब्बू को ईशा की इस हरकत पर बड़ा गुस्सा आया और ईशा को कोसने लगे कि ऐसी नालायक बेटी किसी को न दे, जिस ने जीतेजी उन की नाक कटवा दी और उन्हें बेइज्जत कर दिया.

इमरान और ईशा ने भाग कर शादी कर ली और अपनी जिंदगी जीने लगे. लोग कुछ दिन तक दोनों को बुराभला कहते रहे, फिर इस मामले को धीरेधीरे भूल गए.

अगर ईशा के अम्मीअब्बा पहले ही उस की बात मान लेते तो आज उन्हें यह दिन न देखना पड़ता और न यों रुसवा होना पड़ता. उन की बेटी भी उन के पास होती और इज्जत भी बनी रहती.

तकरीबन एक साल के बाद ईशा इमरान के साथ एक बेटा गोद में ले कर आई, जो उन दोनों का था. वे दोनों पहले इमरान के घर गए. इमरान के अम्मीअब्बू ने अपनी बहू को प्यार से अपने घर में रख लिया.

कुछ दिनों के बाद ईशा भी इमरान और अपने बेटे को ले कर अपने अम्मीअब्बा से मिलने गई, तो उन्होंने भी ईशा की हरकत को नजरअंदाज कर गले से लगा लिया और इमरान को भी अपना दामाद मान लिया.

फिर वे सब हंसीखुशी रहने लगे.

Short Story : हमसफर

Short Story : साजिद की एक साल पहले रेशमा से शादी हुई थी. रेशमा जैसी खूबसूरत और गदराए बदन की बीवी पा कर साजिद बहुत खुश था और बड़े मजे से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

रेशमा को पा कर तो साजिद ने अपने भाईबहनों और करीबी रिश्तेदारों से भी मिलनाजुलना छोड़ दिया था और दिनरात उस की बांहों में पड़ा रहता था.

साजिद की इस हरकत से जहां एक तरफ उस के परिवार वालों के साथ खटास पैदा हुई, वहीं उस की माली हालत भी बद से बदतर होने लगी, क्योंकि अब वह काम से भी जी चुराने लगा था.

साजिद का भले ही छोटा सा घर था, पर रेशमा उस के साथ खुश थी, लेकिन जब से साजिद आएदिन काम से छुट्टी करने लगा, तब से घर का खर्चा उठाना मुश्किल हो गया था.

एक दिन रेशमा ने इस की शिकायत साजिद से की, ‘‘तुम दिनरात यहीं पड़े रहोगे, तो घर का खर्चा कैसे चलेगा?’’

साजिद भले ही रेशमा को दिलोजान से चाहता था, पर वह था बड़े गुस्सैल स्वभाव का. अपने मर्द होने के घमंड में वह उस पर बरस पड़ा, ‘‘तू अपनी औकात में रह. अब तू मुझे बताएगी कि मैं क्या करूं और क्या न करूं? औरत है तो औरत बन कर रह, मर्द बनने की कोशिश मत कर.’’

साजिद का यह रूप देख कर रेशमा के होश ही उड़ गए. उस ने साजिद को समझते हुए कहा, ‘‘आप तो नाराज हो गए. मैं ने ऐसी कौन सी गलत बात कह दी, जो आप इतना भड़क रहे हो?’’

साजिद ने झट से रेशमा को एक तमाचा रसीद कर दिया और बोला, ‘‘मुझ से जबान लड़ाती है… जा, मैं तुझे तलाक देता हूं, तलाक… तलाक… तलाक…’’

रेशमा की जिंदगी पलभर में बरबाद हो गई और वह अपने मायके चली गई.

5-6 महीने में तलाक का मामला निबट गया, पर मेहर के पैसे देने में साजिद की काफी जमापूंजी खत्म हो गई. साजिद ने दूसरी शादी करने का इरादा किया और नई बीवी की तलाश में लग गया.

साजिद ने कई लोगों से अपने रिश्ते की बात की, लेकिन कई महीने गुजर गए, पर उसे कोई कुंआरी लड़की नहीं मिली.

नए हमसफर की तलाश में साजिद वक्त से पहले बूढ़ा होने लगा था. वह समझ चुका था कि उसे अब मनमुताबिक रिश्ता नहीं मिल पाएगा.

एक दिन एक पड़ोसी ने साजिद को बताया, ‘‘हमारी नजर में एक औरत है, जिस के शौहर का इंतकाल हो गया है और वह अपने यतीम बच्चों के साथ अकेले जिंदगी गुजार रही है.’’

साजिद ने पड़ोसी से मिन्नतें करते हुए कहा, ‘‘आप जल्द से जल्द मेरा निकाह करा दो. मैं आप का यह अहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगा.’’

पड़ोसी ने उस औरत के परिवार वालों से साजिद के साथ निकाह का जिक्र किया. कुछ दिन बाद वे लोग साजिद के घर आए और उस की कमाई के बारे में पूछा.

पर जब साजिद ने उन्हें अपनी साधारण सी कमाई के बारे में बताया, तो उन्होंने इस निकाह से साफ मना
कर दिया.

उस औरत के भाई ने साफसाफ कह दिया, ‘‘इतनी साधारण कमाई से आप अपना खर्च तो उठा नहीं सकते, अपनी बीवी और उस के बच्चों का खर्चा कहां से उठा पाओगे?’’

यह सुन कर साजिद पूरी तरह टूट गया. वह समझ गया कि अब उस की शादी होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. अब उसे उस का हमसफर कभी नहीं मिल पाएगा.

साजिद की जिंदगी का खालीपन अब उसे काटने को दौड़ने लगा. तनहाई उसे अंदर ही अंदर तोड़ने लगी. उस की रातें उसे काटने को दौड़तीं. वह रातभर करवटें बदलता रहता और अपने हमसफर की याद में तड़प कर रह जाता.

साजिद की आंखों में अपने हमसफर की तलाश की बेचैनी साफ दिखाई देती थी. जब कभी कोई दोस्त साजिद से उस की शादी की बात करता, तो वह तड़प उठता और उस की आंखों से आंसू छलक पड़ते.

एक दिन की बात है. अपने एक दोस्त से बात करते हुए साजिद का गला रुंध गया. वह दबी आवाज में बोला, ‘‘क्या करूं यार… कितने सालों से अपने हमसफर की तलाश कर रहा हूं, पर मुझे मेरा हमसफर मिल ही नहीं पा रहा है. कितने लोगों से मिन्नतें कीं, पर अभी तक मुझे मेरा हमसफर मिल नहीं पाया.

‘‘कभी कोई छोटा घर कह कर मुझे दुत्कार देता है, तो कभी कोई मेरी साधारण कमाई को ले कर सवाल उठाता है और कहता है कि तुम इतनी कमाई में बीवीबच्चों का खर्च कैसे उठाओगे?

‘‘अब तो ऐसा लगता है कि शायद मुझे मेरा हमसफर कभी मिल ही नहीं पाएगा. घर में खानेपीने की अलग परेशानी है. वक्त पर खाना न मिलने से मेरा शरीर कमजोर होता जा रहा है. अब तो मेरा काम करने में भी मन नहीं लगता है. कभीकभी सोचता हूं कि मैं खुदकुशी कर लूं.’’

साजिद की ऐसी मायूसी भरी बातें सुन कर उस के दोस्त की आंखों मे आंसू आ गए. वह अच्छी तरह समझ गया कि साजिद कितनी परेशानी में जिंदगी जीने को मजबूर है.

काफी अरसा इसी तरह गुजर गया, पर साजिद को उस का हमसफर न मिला. कई सालों के बाद उस ने परेशान हो कर एक बूढ़ी औरत को अपने घर में रख लिया, जिस का इस दुनिया में कोई नहीं था. उस औरत की उम्र तकरीबन 60 साल थी, जबकि साजिद की उम्र अभी 40 साल के आसपास थी.

साजिद ने उस बूढ़ी औरत पर अपने घर की जिम्मेदारी सौंप दी, ताकि उसे खानापीना तो वक्त पर मिल सके, क्योंकि जिंदगी तो उसे किसी तरह गुजारनी ही थी.

भले ही साजिद को हमसफर न मिला, पर जिंदगी तो अब उस बूढ़ी औरत के साथ गुजर ही रही थी. घर
में कुछ रौनक तो आ ही गई थी. घर का सूनापन अब खत्म हो चुका था, पर अकेलापन अभी भी था.

साजिद को हमेशा यह मलाल रहता था कि उस ने अच्छीभली रेशमा को क्यों तलाक दे दिया. उसे कभीकभार रेशमा दिखाई देती थी, जो अपने नए शौहर के साथ मजे से रह रही थी. वह कमाई भी अच्छी करता था और रेशमा से प्यार भी बहुत करता था. उस ने तो रेशमा को मेहंदी लगाने का काम भी शुरू करा दिया था, ताकि रेशमा के हाथों में कभी पैसे की कमी न रहे.

Love Story : फिर कब आओगे

Love Story : जमीला फूटे हुए अंडे को देख रही थी. कुछ कबूतर लड़भिड़ रहे थे, इसी से एक अंडा गिर कर फूट गया था. लड़कपन में वह झब्बू साह के घर खेलने जाया करती थी. उन के यहां ढेरों कबूतर थे. एक जोड़ी कबूतर वहीं से वह ले आई थी. हालांकि, अब्बा नाराज हुए थे, पर खाला जुबैदा खातून ने उन को चुप करा दिया था.

धीरेधीरे जमीला बड़ी हुई. कबूतर कभी उस के कंधों पर आ बैठते, तो कभी हाथों पर आ जाते और कभी उस के दुपट्टे में छिप कर आंखमिचौली करते. तब वह अजीब गुदगुदी से सिहर जाती.

जल्दी ही जमीला का निकाह हो गया. पर कुदरत को यह सब मंजूर न था. शहर में दंगा हुआ और उस का शौहर हमेशा के लिए उसे छोड़ कर चला गया. तब से जमीला के भीतर और बाहर धुआं ही धुआं भर गया. 2 सालों से वह इसी तरह घुटघुट कर जी रही थी.

अचानक ही दरवाजे पर बड़ी जोर से दस्तक हुई.

‘इस वक्त दोपहर में कौन हो सकता है?’ जमीला सोचने लगी, ‘बिना नामपता जाने कैसे दरवाजा खोलूं. अभीअभी तो पुलिस की गाड़ी इधर से गुजरी है.’

शहर में फिर दंगा भड़क उठा था. कई धमाको हो चुके थे. दर्जनभर लाशें बिछ चुकी थीं. जमीला चंद कदम आगे बढ़ कर ठिठक गई.

कोई दरवाजे को बारबार थपथपा रहा था. एकाध बार ‘बचा लो’ की हलकी आवाज भी उभरी थी.

‘जरूर फिर कहीं कुछ हुआ है,’ डर जमीला के पैर जकड़ रहा था और इनसानियत आगे धकेल रही थी.

आखिरकार इनसानियत की जीत हुई. जमीला ने दरवाजा खोल दिया. सामने डरा हुआ एक नौजवान हाथ जोड़े खड़ा था. जमीला की खामोश मंजूरी पा कर वह भीतर चला आया. लेकिन यह क्या, घबरा कर वह जमीला को गौर से देख कर वापस जाने लगा.

तब तक जमीला सबकुछ समझ गई थी. वह झट से बोली, ‘‘इस तरह घबरा कर क्यों जाने लगे, क्या तुम…?’’

वह नौजवान रुक कर बोला, ‘‘तुम तो मुसलमान हो, यहां मेरी जान को खतरा है…’’

‘‘इस तरह क्यों कहते हो? क्या सभी मुसलमान एकजैसे होते हैं? क्या सभी हिंदू दयावान ही होते हैं? अगर ऐसा नहीं है, तो तुम्हें मुझ से खौफ नहीं खाना चाहिए. वैसे, तुम कहां से आ रहे हो? क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘मेरा नाम अमर है. मैं अपने गांव जा रहा था… रास्ते में कुछ लोगों ने मुझे पकड़ लिया… किसी तरह खुद को छुड़ा कर भागा हूं. आगे जाने की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि सड़कों पर लोगों का हुजूम है.’’

जमीला ने दरवाजा बंद कर दिया और अमर को भीतर आने का इशारा किया. फिर कोठरी में चौकी पर बैठते हुए वह बोली, ‘‘सामने खाट पर बैठ जाओ. वैसे, किसी ने देखा तो नहीं न तुम्हें यहां आते हुए?’’

‘‘नहीं,’’ अमर ने भी हौले से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें अब भी डर लग रहा है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘भूख लगी है?’’

अमर कुछ बोला नहीं. वह चुपचाप जमीला की ओर देखता रहा.

‘‘प्यास तो लगी होगी?’’

अमर फिर भी चुप रहा.

‘‘तो फिर चले जाओ यहां से… न खाओगे, न बोलोगे, तो क्या भूखेप्यासे और गूंगे बन कर यहां रुकोगे?’’ जमीला मीठा गुस्सा बरसाते हुए रसोईघर में चली गई.

फिर एक थाली में खाना परोस कर जमीला खाला जुबैदा खातून के कमरे में दे आई.

घर में ये ही 2 जने थे. जुबैदा खातून ज्यादातर खाट पर ही पड़ी रहती थीं. हां, लाठी के सहारे वे कभीकभार आंगन में टहलने लगती थीं.

उन्होंने पूछा, ‘‘बेटी, किस से बातें कर रही थी?’’

जमीला पहले तो हंसी, फिर बोली, ‘‘एक बुद्धू है खाला. पास ही के गांव का है… भटका हुआ यहां आया है.’’

‘‘उसे खाना नहीं खिलाया?’’

जमीला फिर हंसी और बोली, ‘‘यही तो मुसीबत है. वह ठहरा हिंदू और हम…’’

‘‘तो देखो, वह न खाए तो जबरदस्ती मत खिलाना. उस से कहना कि जब बाहर कहर बरपना बंद हो जाए, तभी यहां से बाहर निकले. बेटी, इनसानियत से बढ़ कर कोई मजहब नहीं है. तू ने अभी तक खाना खाया कि नहीं?’’

‘‘नहीं खाला, घर में आया मेहमान भूखा हो तो मैं कैसे खा लूं?’’

अमर उन दोनों की बातें सुन रहा था. उस के दिल में हिंदूमुसलमान का कोई फर्क न था, पर वह डरा हुआ जरूर था.

जमीला फिर आ कर अमर के सामने चौकी पर बैठ गई. उस ने एक नजर अमर पर डाली. वह भी उसे ही देख रहा था. ज्यों ही जमीला की नजर उस पर पड़ी, वह सहम गया. जमीला उस के डर और भोलेपन को देख भीतर से मुसकरा उठी, पर चेहरे को जरा सख्त बनाए रखा.

जमीला अमर के बारे में सोच रही थी कि अचानक उस की आवाज ने चौंका दिया, ‘‘जमीला, क्या तुम खाना नहीं खाओगी?’’ अमर की आवाज में अपनापन था.

‘न जाने यह कमल किस तरह खिल गया?’ जमीला ने अमर को देख कर सोचा, तो अमर एक बार फिर झेंप गया. लेकिन फिर वह उस की हिरनी जैसी काली, चंचल गहरी आंखों में डूब गया.

अमर ने देखा कि इन आंखों से खूबसूरत कोई और जगह नहीं, फूलों का कोई बगीचा भी नहीं. सागर जैसी इस गहराई में प्यार की लहरें हैं, जो उस की तरफ बढ़ रही हैं.

अचानक जमीला की आवाज ने अमर को चौंका दिया, ‘‘अगर तुम खाना नहीं खाओगे, तो मैं भी नहीं खाऊंगी.’’

‘‘मुझे तो जोरों की भूख लगी है, इसीलिए कह रहा हूं,’’ कह कर अमर हंस दिया.

‘‘कहीं तुम्हारा धर्म तो नहीं बिगड़ जाएगा न?’’

‘‘कैसा धर्म? इनसानियत से बढ़ कर भी कोई धर्म है क्या? जल्दी से दो न मुझे खाना.’’

‘‘अभी देती हूं,’’ कहते हुए जमीला उठ गई.

शाम को जमीला चाय बना कर लाई. एक प्याला अमर के हाथों में थमाया, दूसरा खुद ले कर पीने बैठ गई.

‘‘चाय कैसी लगी?’’ थोड़ी देर बाद जमीला ने पूछा.

‘‘बहुत अच्छी.’’

‘‘और मैं?’’

‘‘तुम… तुम…’’

‘‘हांहां… मैं… बुद्धू…’’ खिलखिला कर हंसते हुए जमीला खड़ी हो गई.

अमर ने देखा, छिपकली की तरह दीवार से लग कर जमीला ने अपने बदन को ऐंठा और हौलेहौले रसोईघर की तरफ चल दी.

जमीला इस वक्त खिली हुई थी. उस का चेहरा सुर्ख हो उठा था. अमर उसे अपने दिल में जगह देने के लिए बेताब सा हो गया.

दूसरे दिन रात के 11 बजे बिलकुल नजदीक ही बम फटने की आवाज आई. धमाका इतना जोरदार था कि बरामदे में खाट पर सोई जमीला हड़बड़ा कर उठ बैठी. उसे लगा, जैसे धरती हिल गई हो.

अमर तो सोया ही नहीं था. कमरे से बाहर आ कर चारदीवारी से उचक कर बाहर देखने की कोशिश करने लगा, पर जमीला ने उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, ‘‘बुद्धू, तुम्हारी यह बचकानी हरकत हम सब को ले डूबेगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें इतनी चिंता क्यों होने लगी है? कहीं मुझे पनाह देने की वजह से तो तुम नहीं डर रहीं? आखिर मैं शरणार्थी ही तो हूं.’’

‘‘क्या कहा? तुम शरणार्थी हो?’’ जमीला झुंझला उठी, ‘‘क्या तुम खुद को शरणार्थी महसूस कर रहे हो? पर शरणार्थी के साथ धोखा भी हो सकता है अमर. तुम्हें काफिर समझ कर उन लोगों के हाथों सौंप भी सकती हूं. बोलो, ऐसा कर सकती हूं कि नहीं?’’

अमर जल्दी से बोल पड़ा, ‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकती…’’

‘‘क्यों नहीं कर सकती… आखिर क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम मुझे चाहती हो…’’ अमर ने कहा.

‘‘तुम झूठ बोलते हो.’’

‘‘यह सच है. मैं नहीं जानता था… मुहब्बत भी कभीकभी इतनी जल्दी हो जाती है. तुम मुझ से प्यार करने लगी हो… और मैं भी…’’

इतना सुनते ही जमीला अमर के सीने से चिपक गई. पहली बार उसे महसूस हुआ कि वह नदी बन कर किसी सागर में उतरती जा रही है. सारे बांधों को तोड़ते हुए, जैसे उस में समाती जा रही है.

सुबह जमीला रोटियां सेंकसेंक कर अमर की थाली में रखती जा रही थी और वह वहीं पीढ़े पर बैठा खा रहा था. अचानक वह बोल बैठा, ‘‘तुम मुझे इस तरह अपने करीब बिठा कर खाना खिला रही हो, जैसे हम दोनों के बीच मियांबीवी का रिश्ता हो.’’

जमीला ने तवे को चूल्हे से उतार दिया, फिर दुपट्टे से माथे पर आए पसीने को पोंछा और अमर की आंखों में झांकती हुई बोली, ‘‘अगर मैं कहूं कि रिश्ता बना लो… यही, जो तुम ने अभी कहा है, तो क्या तुम तैयार हो जाओगे?’’

‘‘मैं तैयार हूं… पर, क्या तुम्हारे धर्म के लोग अड़चन नहीं डालेंगे?’’

‘‘अड़चन तो डालेंगे… और लड़ भी लूंगी मैं उन से, लेकिन मुश्किल है कि तुम अपनों से नहीं लड़ पाओगे अमर. लड़ने की ताकत तुम में है ही नहीं. अगर होती तो तुम मेरे घर छिप कर न बैठते?’’

अमर को लगा, सचमुच वह जमीला से बहस नहीं कर पाएगा. फिर भी उस ने छेड़ा, ‘‘यह जानते हुए भी तुम ने मुझे अपने यहां छिपा कर रखा और प्यार दिया.’’

‘‘इसलिए कि तुम भोले हो… तुम्हारी इसी नादानी और भोलेपन ने ही मुझे खींच लिया.’’

‘‘जमीला, तुम ठीक कहती हो. तुम सचमुच बहुत हिम्मत वाली हो. तुम ने बता दिया कि मुहब्बत ही असली धर्म है. मैं कोशिश करूंगा कि खुद को तुम्हारे जैसा बनाऊं.’’

‘‘लेकिन अमर, याद रहे… मुझे पाने के लिए वह सब तुम नहीं करोेगे, जो आशिक अकसर कर दिया करते हैं. प्यार से लोगों को समझा सको, तभी मुझे भी पा सकते हो.’’

‘‘पर, दुनिया वाले इतनी आसानी से नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों नहीं मानेंगे? अगर नहीं मानेंगे तो पछताना भी उन्हीं को पड़ेगा न…’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘क्योंकि प्यार नहीं पछताता. मौका पड़ने पर अपनी जिद पर अड़ जाता है. चलो, अब चाय पी लो.’’

‘‘तो अब तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे लिए सब सह लूंगा.’’

जमीला एकटक अमर को देखने लगी और अमर जमीला को.

शौहर की मौत के बाद से जमीला की हंसी ही जैसे छिन गई थी. बाद में निकाह के कई रिश्ते भी आए, पर उस ने कोई दिलचस्पी न दिखाई. कुम्हार के चाक पर गढ़ी हुई यह हसीना जब कभी बाहर कदम रखती तो शोहदों का कलेजा बाहर निकल आता. हालांकि, उस के चेहरे पर संजीदगी छाई रहती, पर आंखों से मस्ती और देह से खूशबू छलकती थी.

इन 3 दिनों में ही वे दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे. जमीला ने इतनी खुशी पाई, इतना प्यार पाया, जो सालों में उसे न मिला था. अमर ने जब अपने हाथों से उसे खाना खिलाया, तो वह मजहब की दीवार को भूल गई.

अपने शौहर नसीम के साथ कुछ वक्त उस ने गुजारा था, पर उस ने कभी ढंग से चंद बातें भी न की थीं. वह तो नशे में सिर्फ कड़वी बातें ही कहता था.

कुदरत का खेल भी निराला होता है. एक उस की जिंदगी में आया, पर जल्दी ही चला गया. जमीला उसे हमेशा के लिए भूल गई. पर, दूसरा जो आया, उसे वह अब कहां भूल सकती थी…

यही सोचतेसोचते आधी रात बीत गई. जमीला को नींद न आई, क्योंकि अमर को भोर में ही अपने गांव चले जाना था. फिर कब आएगा, यह तो वही जाने.

जमीला यह कहां जानती थी कि इतनी जल्दी वह एक अजनबी से इस तरह घुलमिल जाएगी… उस की आंखें भर आईं. वह भीतर से आ कर आंगन में बैठ गई.

अमर के दिल में भी यही तूफान चल रहा था. उसे चारों तरफ जमीला ही जमीला दिखाई दे रही थी. एक पल के लिए भी जब बिस्तर पर लेटे रहना उस के लिए मुश्किल हो गया, तो वह भी कमरे से निकल पड़ा.

सामने देखा कि जमीला बैठी हुई है. वह भी उस के नजदीक आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘जमीला, तुम कब से यहां बैठी हो?’’

पर जमीला कुछ न बोली. अमर ने उस का चेहरा ऊपर उठाते हुए वही सवाल दोहराया, तो जमीला हिचकियां लेने लगी. चांद की रोशनी में आंसुओं से लबालब उस की आंखें एकटक अमर को देखने लगीं.

यह देख कर अमर का दिल डूबने लगा. पौ फटने में अभी देर थी. अमर जाने के लिए खड़ा हो गया, तो जमीला ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘फिर कब आओगे?’’

अमर ने भरे गले से कुछ बोलना चाहा, पर होंठों ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

लेखक – डा. महेश चंद

Family Story : पागल आदमी

Family Story : कुदरत ने बहुत सारे हक अपने पास रखे हुए हैं, इसीलिए इनसान जैसा चाहता है, वैसा होता नहीं है. वह सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है.

प्रोफैसर मुकेश बालियान अपने रूम में अकेले बैठे थे. अनमने मन से आज दिन में ही वे शराब पीने बैठ गए थे. अभी उन्होंने एक पैग खाली किया था, लेकिन पता नहीं क्यों अभी दूसरा पैग लगाने को मन नहीं हो रहा था. वे अपनी जिंदगी में बिलकुल अकेला महसूस कर रहे थे. बेवजह ही वे मुसकरा रहे थे और उस मुसकराहट के साथ अचानक से रो भी पड़े थे.

औरतों की तरह मर्द दूसरों के सामने मुश्किल से ही रोता है, लेकिन अकेले में वह अपने दुख में फूटफूट कर रोता है और अपनी बुजदिली को छिपाता है.

जब भावनाओं का जोर कुछ कम हुआ, तो प्रोफैसर मुकेश बालियान ने आंखों में आए आंसुओं को रूमाल से पोंछने के बाद मन को हलका करने के लिए एक सिगरेट सुलगा ली.

सिगरेट से उड़ते धुएं के छल्ले उन्हें अपनी जिंदगी के छल्लों की तरह एकदम खोखले लग रहे थे. वे सोचने लगे कि आज डायरैक्टर को इस्तीफा सौंपने के बाद उन का और यवनिका का साथ हमेशाहमेशा के लिए छूट जाएगा.

यह प्यार भी अजीब चीज है, साथी का साथ छूटने से ऐसा लगता है जैसे जिंदगी खत्म हो गई हो. जीतेजी मौत का सा अहसास होने लगता है. जिस ने कभी टूट कर प्यार किया हो, वही तो इस को महसूस कर सकता है. उन पत्थरदिलों का क्या, जिन्होंने प्यार को हवस या खिलौना समझा?

प्रोफैसर मुकेश बालियान ने सिगरेट का आखिरी छल्ला हवा में उड़ाया और फिर अपना इस्तीफा लिखना शुरू किया.

लिखने के लिए कुछ ज्यादा नहीं था. बस, वे तो अपना एक वादा पूरा कर रहे थे, जिस के पूरा होने से किसी की जिंदगी खुशियों से लबरेज हो जानी थी. जैसा उन के साथ हुआ किसी और के साथ न हो, इसीलिए वे इस्तीफा दे रहे थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान की ट्रेन मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन से शाम 5 बज कर 15 मिनट पर छूटनी थी. अपने जरूरी सामान का सूटकेस और एक बैग उन्होंने पहले ही तैयार कर लिया था.

एसी 2 में टिकट का जुगाड़ भी जैसेतैसे हो ही गया था. वे अपना इस्तीफा डायरैक्टर को सौंप कर मुंबई छोड़ने की पूरी तैयारी में थे. मुंबई छोड़ने की वे किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होने देना चाहते थे.

इस्तीफा लिखने के बाद प्रोफैसर मुकेश बालियान ने डायरैक्टर कुलदीप खंडेलवाल से मिलने के लिए समय मांगा. डायरैक्टर अभी औफिस में ही थे.

प्रोफैसर मुकेश बालियान के इस्तीफे को अचानक अपने सामने देख कर उन का चौंक जाना लाजिमी था. ऐसे हालात में जो बातचीत हो सकती थी, वह हुई, लेकिन जब कोई अपनी जिद पर अड़ा हो, तो उसे कौन रोक सकता है?

आखिरकार प्रो. मुकेश बालियान का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. सारी औपचारिकताएं पूरी करवा ली गईं.

प्रो. मुकेश बालियान टैक्सी पकड़ कर मुंबई सैंट्रल रेलवे स्टेशन पहुंच गए. उन की ट्रेन ‘तेजस राजधानी ऐक्सप्रैस’ मुंबई छोड़ने के लिए तैयार थी.

प्रोफैसर मुकेश बालियान ट्रेन में अपनी सीट पर लेट गए और पुरानी यादों में खो गए. उन की कहानी का कथानक कुछ ऐसा था…

आज से तकरीबन 30 साल पहले प्रोफैसर मुकेश बालियान इसी ट्रेन से पहली बार मुंबई आए थे. उन्होंने सांख्यिकी की एक नैशनल लैवल की प्रतियोगिता पास की थी और उन का एडमिशन मुंबई के एक नामचीन जैव सांख्यिकी संस्थान में हो गया था.

उन्हें खुशी थी कि पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठा रही थी. उन्हें तो बस मेहनत कर के एमएससी बायो स्टैट की डिगरी अच्छे अंकों से हासिल करनी थी.

पहले ही दिन मुकेश बालियान की मुलाकात अजनबी यवनिका से हुई थी. मुलाकात क्या, यह तो पहली नजर का प्यार था.

‘‘मुकेश, किस जगह से हो तुम?’’ यवनिका ने सवाल पूछा था.

‘‘मैं उत्तर प्रदेश से,’’ मुकेश ने छोटा सा जवाब दिया था.

‘‘अरे, उत्तर प्रदेश तो बहुत बड़ा है. उत्तर प्रदेश में कहां से हैं?’’ यवनिका सही जगह जान लेना चाहती थी.

‘‘बिजनौर जिले से.’’

‘‘अरे, यह बिजनौर कहां है? यह नाम तो मैं पहली बार सुन रही हूं.’’

‘‘यवनिका, चाय तो लो. चाय ठंडी हो रही है. मेरठ का नाम तो सुना होगा तुम ने, बस उसी से 100 किलोमीटर उत्तर दिशा में उत्तराखंड के बौर्डर पर बिजनौर जिला है.’’

‘‘मतलब, हरिद्वार के आसपास.’’

‘‘बिलकुल सही यवनिका.’’

मुकेश सोचने लगा था कि यवनिका बहुतकुछ पूछने वाली है, लेकिन मुकेश के मन में भी जिज्ञासा जगी. उस ने पूछा, ‘‘यवनिका, तुम कहां से हो?’’

‘‘मैं तो महाराष्ट्र की हूं, नागपुर से,’’ यवनिका ने बताया.

इस से पहले कि यवनिका कुछ और पूछती, मुकेश ने उठते हुए कहा, ‘‘ठीक है यवनिका, कल मिलते हैं.’’
यवनिका ने अनमने मन से कहा, ‘‘ठीक है.’’

लेकिन यवनिका के मन में मुकेश को ले कर अभी भी कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह तो सारे सवाल आज ही पूछ लेना चाहती थी. वह वहां से प्यासे पपीहे की तरह उठी.

जल्दी ही मुकेश और यवनिका में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन दोनों की अच्छी जोड़ी बन गई थी. संस्थान में यह कोई अचंभे की बात नहीं थी. वहां तो कई प्रेमी जोड़े थे. ऐसे कई छात्र जोड़े थे, जो पहले एमएससी करते, फिर यहीं से पीएचडी करते और यहीं प्रोफैसर बन जाते थे.

मुकेश और यवनिका के परिवार वाले भी उन के प्रेम संबंधों के बारे में जान गए थे, लेकिन उन्हें भी कोई एतराज नहीं था. उन दोनों के परिवार सुलझे हुए और समझदार थे.

एक बार संस्थान की ओर से हिमाचल प्रदेश के कुल्लूमनाली, शिमला और धर्मशाला के लिए 10 दिन का टूर गया था. यवनिका और मुकेश वहां रूमानी दुनिया में खो गए थे.

जवानी के जोश में मुकेश सबकुछ कर लेना चाहता था, लेकिन यवनिका ने कहा था, ‘‘मुकेश, हम कोई नादान बच्चे नहीं हैं, जो ऐसी गलती करें. हम जानवर नहीं हैं कि अपनी हवस पर कंट्रोल न रख सकें. हम इनसान हैं. यह सब काम शादी के बाद.’’

उस दिन से मुकेश की नजरों में यवनिका की इज्जत कई गुना बढ़ गई थी. वह देखता था कि हवस के मारे प्रेमी जोड़े कितने मौजमस्ती में डूबे रहते हैं और फिर आएदिन जानवरों की तरह आपस में ऐसे लड़ते हैं, जैसे उन में कोई शर्महया बची ही न हो.

मुकेश सोचने लगा कि यवनिका कितनी समझदार है. वह चाहती तो मौजमस्ती के लिए कुछ भी कर सकती थी, लेकिन हर चीज का एक दायरा और समय होता है. सच्चा प्यार हवस का गुलाम नहीं होता. प्यार तो जिंदगी में कुरबानी मांगता है.

समय गुजरता गया और उसी संस्थान से मुकेश और यवनिका ने पीएचडी भी कर ली. इस के बाद यवनिका और मुकेश अपने अपनेअपने घर चले गए. दोनों पढ़लिख कर भी अभी बेरोजगार थे और नौकरी की तलाश में थे.

यवनिका के पापा को उस की शादी करने की जल्दी थी. वह 28 साल पार कर चुकी थी.

एक दिन यवनिका के पापा नितिन साल्वे ने उस से कहा, ‘‘यवनिका, मुझे तुम्हारी शादी की बड़ी चिंता है. मैं बूढ़ा तो हो ही रहा हूं, मेरा लिवर भी जवाब दे रहा है. मुकेश अच्छा लड़का है, लेकिन वह अभी बेरोजगार है और नौकरी तलाश रहा है. मैं उस के हाथ में तुम्हारा हाथ कैसे दे दूं, आखिर बेटी का बाप हूं? बेटी के सुख में ही तो बाप का सुख बसता है,’’ कह कर यवनिका के पापा कुछ मायूस से हो गए थे.

तब यवनिका बोली, ‘‘पापा, कुछ दिन और इंतजार कर लेते हैं. मुकेश नौकरी की तलाश तो कर ही रहा है.’’

‘‘यवनिका, मैं ने बहुत सोचसमझ कर यह कहने की हिम्मत की है. बेरोजगारी के जमाने में नौकरी का क्या भरोसा? मेरी चिंता कड़वी हकीकत है. आज अगर भावनाओं में बह कर मैं तुम्हारा हाथ एक बेरोजगार के हाथ में दे दूं, तो कल तुम्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, तुम्हें इस का अंदाजा भी नहीं है.’’

यवनिका जानती थी कि उस के पापा सही बोल रहे हैं. इतने नामचीन संस्थान से पीएचडी करने के बाद भी लोग उस की बेरोजगारी पर तंज कसने से नहीं चूकते थे.

यवनिका ने कहा, ‘‘पापा, बस कुछ दिन का समय और दे दो. किसी न किसी संस्थान में हम दोनों की नौकरी लग ही जाएगी.’’

‘‘यवनिका, मैं 2 साल से इंतजार ही तो कर रहा हूं, नहीं तो कब का तुम्हारे हाथ पीले कर देता. अब एक अच्छा सा लड़का निगाह में आया है, तो तुम से यह सब कह रहा हूं.

‘‘अपनी ही बिरादरी का एक लड़का मुंबई में इनकम टैक्स महकमे में अफसर लगा है. वह हैंडसम है और अच्छी पगार वाला है. और सब से बड़ी बात है कि अपने हाथ में है.

‘‘वह जिन का लड़का है, वे हमें अच्छे से जानते हैं. मैं चाहता हूं बेटी कि इस मौके को हाथ से न जाने दूं और अपने प्राण निकलने से पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं.’’

उस रात यवनिका ने मुकेश से फोन पर लंबी बातचीत की. मुकेश ने कहा, ‘यवनिका, ऐसा लगता है कि यह पीएचडी ही बोझ बन गई है. किसी कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई करता हूं, तो कंपनी वाले यह कह कर टरका देते हैं कि कल तुम्हारी सरकारी नौकरी लग गई, तो हमारी नौकरी छोड़ कर भाग जाओगे.’

‘‘तो मुकेश अब क्या करना है? मैं तो बहुत परेशानी में हूं. पापा मेरी शादी करने की जिद पर अड़े हुए हैं.’’

‘यवनिका, जब इतना अच्छा लड़का मिल रहा है, तो शादी कर लो न. पापा की बात मान लो. मेरी नौकरी के इंतजार में तो तुम बुढि़या हो जाओगी. मेरी तो अपने मांबाप से भी खटपट हो गई है. मैं अलग रह रहा हूं. एडहौक पर एक डिगरी कालेज में नौकरी कर के किसी तरह अपना खर्चा चला रहा हूं.’

‘‘तो क्या हुआ मुकेश, मैं भी ऐसी ही कोई प्राइवेट नौकरी कर लूंगी. आखिर मैं ने भी तो पीएचडी की हुई है. रहेंगे तो दोनों साथ.’’

‘नहीं यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि अपने चलते तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूं.’

‘‘तुम पागलों जैसी बातें क्यों कर रहे हो मुकेश? हम ने प्यार किया है. मैं तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में सोच भी कैसे सकती हूं?’’ यवनिका ने गुस्सा जताते हुए कहा.

लेकिन मुकेश तो जैसे आज ज्ञान का पितामह बना बैठा था. वह फिर से ज्ञान बखारने लगा, ‘यवनिका, हालात को समझो. आदमी तो अकेले भी जिंदगी काट लेता है, लेकिन औरत के लिए अकेले जिंदगी काटना इस दुनिया में मुहाल हो जाता है. और ध्यान रखो तुम…’

‘‘मुकेश, यह क्या पागलपन लगा रखा है? कहीं भांग तो खाना नहीं शुरू कर दिए हो? क्या बेवकूफों वाले उपदेश दिए जा रहे हो? कहीं मुझ से छुटकारा तो नहीं पाना चाहते हो? कहीं अपने गांव में जा कर किसी दूसरी लड़की से तो चक्कर नहीं चला बैठे?’’

‘बस, इन औरतों के साथ यही परेशानी होती है. जरा सी बात हुई नहीं कि दूसरी औरत का शक दिमाग में बैठ जाता है. मैं तुम्हारा भला चाह रहा हूं और तुम बेबुनियाद आरोप लगाए जा रही हो. अगर ऐसा है तो ऐसा ही सही.’

‘‘मुकेश, जब किसी मर्द को किसी औरत से छुटकारा पाना होता है, तो वह ऐसी ही पागलों जैसी बातें करने लगता है. जाओ मरो तुम उस चुड़ैल के साथ… और आज के बाद फिर कभी मुझे फोन करने की कोशिश भी मत कर लेना,’’ यवनिका ने गुस्से में फोन काट दिया और फफकफफक कर रोने लगी.

मुकेश भी अपनी बेबसी पर रो रहा था. उसे लगा कि अगर उस के पास अच्छा रोजगार होता, तो यवनिका उस की होती. वह शान से उसे दुलहन बना कर अपने घर लाता. वह अब किस मुंह से यवनिका के पापा से यवनिका का हाथ मांगने जाए? प्यार में मजबूर कर के यवनिका को लाना उस की जिंदगी को बरबाद करने के सिवा क्या होगा? क्या प्यार का मतलब यही है? नहींनहीं… किसी की जिंदगी को बरबाद करना प्यार नहीं है.

कुछ दिनों के बाद यवनिका की इनकम टैक्स अफसर दौलत साल्वे के साथ धूमधाम से शादी हो गई. वह अपने पति के साथ मुंबई में रहने लगी. सभी सुख और आराम उस की जिंदगी में थे. उसे मुकेश की याद अभी भी आती थी, लेकिन सिर्फ चिढ़ और नफरत के साथ. उस ने तो मुकेश को अपनी जिंदगी से निकाल ही फेंका था.

यवनिका की किस्मत देखिए कि शादी के कुछ ही महीनों बाद वह उसी संस्थान में असिस्टैंट प्रोफैसर बन गई, जहां से उस ने पीएचडी की थी. वहां पहुंच कर यवनिका को मुकेश के साथ बिताए पुराने दिन याद आए, लेकिन उन में अब सिर्फ नफरत का धुआं था. वे दिन अब उसे काटने को दौड़ते थे.

यवनिका की जिंदगी खुशियों से लबालब भरी थी. पति दौलत साल्वे उसे बहुत प्यार करता था और उस की हर इच्छा पूरी करने के लिए उतावला रहता था. यवनिका की शानदार नौकरी लगने से उस की खुशियां आसमान छू रही थीं.

खुशियों से भरी जिंदगी के इसी मुहाने पर तकरीबन एक साल के बाद एक दिन… मुकेश यवनिका के सामने आ गया. उसे सामने देख कर पहले तो वह हैरान रह गई और फिर बिना सोचेसमझे नफरत की आग के साथ तिड़क कर बोली, ‘‘तुम और यहां…?’’

‘‘हां, मैं यवनिका, लेकिन तुम मुझे देख कर इतना चौंक क्यों गई हो?’’

‘‘अब क्या लेने आए हो यहां? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है. मैं अब शादीशुदा हूं.’’

‘‘यवनिका, तुम्हें तुम्हारी शादी की बधाई. बस, मैं तो तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि मेरी भी यहां असिस्टैंट प्रोफैसर के पद पर नौकरी लग गई है.’’

‘‘क्या? क्या कहा… तुम यहां असिस्टैंट प्रोफैसर बन गए हो? और वह चुड़ैल, डायन कहां है, जिस के लिए तुम ने मुझे छोड़ा?’’

‘‘यवनिका, फिर वही पागलपन. मेरी जिंदगी में तुम्हारे सिवा कोई दूसरी थी ही नहीं. तुम ने बेवजह ही मुझ पर शक किया है.’’

‘‘तुम मर्द सफेद झूठ बोलने में माहिर होते हो और औरतों को निहायत ही बेवकूफ समझते हो, नहीं तो दुनिया का कोई भी प्रेमी अपनी प्रेमिका की शादी होते हुए नहीं देख सकता.

‘‘तुम उस डायन को कहीं भी छिपा लो, जिस ने तुम्हें मुझ से छीना है, लेकिन एक दिन तो वह सामने आएगी ही. मैं भी देखती हूं कि वह कितनी हुस्न की परी है.’’

अभी यवनिका और मुकेश की बात चल ही रही थी कि तभी उधर से प्रोफैसर राजीव खंडेलवाल आ गए और उन्हें अपनी बातें बंद करनी पड़ीं.

कुछ ही दिनों में यवनिका को यकीन हो गया कि मुकेश की जिंदगी में कोई दूसरी नहीं है. तब एक दिन यवनिका ने मुकेश से अपने दिल की बात कही, ‘‘मुकेश, भले ही मेरा पति मुझ से बहुत प्यार करता है, लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं अभी भी सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे पास लौट आने के लिए तैयार हूं, बस अपने प्यार की खातिर.’’

यह सुन कर मुकेश हंसा और फिर बोला, ‘‘यवनिका, मैं ने अभी तक किताबों में ही पढ़ा था कि औरत प्यार में पागल हो जाती है और आज देख भी रहा हूं.’’

‘‘मुकेश, तुम मर्द क्या समझोगे औरत के दिल को? ये पत्थरदिल मर्दों की दुनिया औरत के कोमल दिल को समझ पाती, तो यह दुनिया ही अलग होती. छोड़ो इन सब बातों को, अब इन में क्या रखा है. मुकेश, तुम अपना फैसला सुनाओ.’’

‘‘यवनिका, यह सही है कि तुम्हारा फैसला बहुत बड़ा है. एक औरत के लिए प्यार सब से कीमती चीज है. इस के लिए वह अपनी इज्जत और समाज की भी परवाह नहीं करती है, लेकिन जिस मर्द को तुम इतनी आसानी से पत्थरदिल कह देती हो, वह ऐसा होता नहीं है. वह कम जज्बाती होता है और दुनियादारी की परवाह करने वाला ज्यादा होता है. मैं चाहूं तो जज्बातों में बह कर तुम्हें भगा ले जाऊं, लेकिन इस के बाद जो होगा, उस की तुम ने कल्पना भी नहीं की है.’’

‘‘क्या होगा, जरा मैं भी तो सुनूं?’’

‘‘सब से पहले तो यह समाज तुम्हें कलंकिनी कहेगा. तुम्हारा पति अंदर तक टूट जाएगा और तुम्हारे मांबाप कभी तुम्हें माफ नहीं कर पाएंगे.’’

‘‘मुकेश, तुम डरपोक हो. इन बातों से मुझे डराओ मत. अपना फैसला सुनाओ. हां या न?’’

‘‘यवनिका, मैं इतना मतलबी नहीं कि तुम्हारी जिंदगी में भूचाल पैदा कर दूं और दुनिया हम पर थूके. मर्द जिंदगी में एक ही बार प्यार करता है, चाहे शादी वह हजार कर ले. औरत भी एक मर्द के दिल को नहीं समझ सकती. तुम मेरा फैसला सुनना चाहती हो तो सुनो… मैं ने तो जिंदगीभर कुंआरा रहने का फैसला किया है.’’

यह सुन कर यवनिका अपना सिर पकड़ कर बैठ गई, फिर अचानक से बोली, ‘‘इसीलिए… इसीलिए, मुझे तुम से नफरत हो गई है… जिद्दी आदमी. न तुम ने तब मेरी बात मानी और न अब मान रहे हो. आखिर क्यों रहोगे तुम सारी जिंदगी कुंआरे, बस मुझ पर अहसान चढ़ाने के लिए? लेकिन, मैं तो कह रही हूं कि अब भी मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘देखो यवनिका, मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं ने तुम से प्यार किया था और अब किसी और से नहीं कर सकता. एक मर्द यह काम कर ही नहीं सकता कि वह एक बार में 2 औरतों से प्यार करे.

‘‘हां, औरतों को कुदरत ने यह ताकत बख्शी है कि वह एक बार में एक से ज्यादा मर्दों से प्यार कर सकती है और जब मैं यह बात कह रहा हूं, तो मैं प्यार की बात कर रहा हूं, हवस की नहीं.’’

‘‘तुम से बातों में मैं नहीं जीत सकती मुकेश.’’

‘‘यवनिका, आखिरी बात… प्यार का मतलब सिर्फ शादी करना नहीं होता है. मैं तुम्हारे शरीर को छुए बगैर भी तुम से प्यार कर सकता हूं और जिंदगीभर कर सकता हूं,’’ कह कर मुकेश वहां से उठ कर चला गया.

यवनिका के मन में कई सवाल उठे और खत्म भी हो गए. लेकिन यह सुन कर उसे संतुष्टि हुई कि मुकेश उसे जिंदगीभर प्यार करता रहेगा. बाकी सब बातें यवनिका के लिए छोटी हो गई थीं. वह होंठों पर मुसकान लिए अपनी कार की ओर बढ़ गई.

सच में मुकेश उसी संस्थान में रहा. 26 साल गुजर गए थे, लेकिन न तो उस ने शादी की और न ही उस का किसी लड़की या औरत से कोई अफेयर सुना गया. ऐसा लगता था मानो यवनिका से उस ने अपने प्यार को शिद्दत से निभाया था.

यवनिका ने एक दिन मुकेश को बताया, ‘‘मुकेश, अब हम बुढ़ापे की दहलीज पर हैं और मै इतिहास को दोहराते देख रही हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं यवनिका…’’

‘‘मेरे बेटे दुष्यंत की गर्लफ्रैंड ने बोल दिया है कि अगर दुष्यंत की नौकरी नहीं लगी, तो उस के पापा उस की शादी कहीं और कर देंगे. तुम तो जानते ही हो कि दुष्यंत ने अपनी गर्लफैं्रड सोफिया के साथ यहीं से पीएचडी की है. अब तुम्हें तो सब पता ही है कि यहां नौकरी एकदम से तो मिलती नहीं है. कोई वैकेंसी ही नहीं है.’’

मुकेश ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, ‘‘अगर मान लो कि वैकेंसी क्रिएट हो जाए, तब…?’’

‘‘मैं ने डायरैक्टर से बात की है. वे दुष्यंत को इसी कंडीशन पर यहीं लगवाने को तैयार हैं.’’

‘‘तो यवनिका, तुम बिलकुल चिंता मत करो. कल ही यहां एक वैकेंसी क्रिएट होगी.’’

यह सुन कर यवनिका बड़ी जोर से हंसी और बोली, ‘‘मुकेश, या तो तुम बुढ़ापे में सठिया गए हो या फिर तुम ने कोई जादूवादू सीख लिया है. भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कल ही यहां वैकेंसी क्रिएट हो जाएगी?’’

‘‘मैं कह रहा हूं न, इसलिए ऐसा होगा.’’

‘‘अच्छा जादूगर साहब, आप की बात मान लेते हैं.’’

अगले दिन जैसे ही यवनिका को पता चला कि मुकेश इस्तीफा दे कर अपने गांव चला गया है, तो वह दौड़ते हुए डायरैक्टर के कमरे में पहुंच गई. आज उस ने डायरैक्टर से अंदर आने की इजाजत भी नहीं मांगी.

वह हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘सर, क्या सचमुच मुकेश सर इस्तीफा दे कर अपने गांव चले गए हैं?’’

डायरैक्टर यवनिका की भावनाओं को समझेते थे. उन के ‘हां’ में जवाब देते ही यवनिका ऐसे बिलख कर रो पड़ी, जैसा उस का अपना कोई सगा मर गया हो.

मुकेश का जाना यवनिका के लिए किसी हादसे से कम नहीं था. तन भले ही यवनिका ने अपने पति के नाम कर दिया था, लेकिन मन तो उस का मुकेश में ही रमा था.

यवनिका के होंठों पर बस 2 ही शब्द थरथराए, ‘‘पागल आदमी.’’

Hindi Story : कमरिया लचके रे

Hindi Story : ‘कमरिया लचके रे, बाबू, जरा बच के रे…’ की आवाज चारों ओर गूंजी तो डांस देखने के लिए आए सभी दर्शक उतावले हो गए.

सामने के स्टेज पर एक पतली कमर वाली 22 साल की लड़की अपनी कमर को हिलाहिला कर मस्ती में नाचे जा रही थी और दर्शक आंखें फाड़फाड़ कर उस की नंगी कमर और गहरी नाभि को अपनी आंखों में बसा लेना चाहते थे.

गाने के बदलते बोल के साथ वह लड़की अपने डांस के स्टैप लगातार बदल रही थी, जिस से देखने वाले लोगों की नजरें किसी एक अंग पर नहीं ठहर पा रही थीं.

आंखों में हवस और होंठों पर भद्दी गालियां देते हुए आगे की लाइन में बैठे लोगों ने नोट उड़ाना शुरू कर दिया था. उन नोटों को एक लड़का लगातार उठाने का काम कर रहा था.

कुछ देर बाद ही डांसर की गोरी कमर पसीने से तर हो गई थी, जिस से देखने वालों को वह और भी सैक्सी और मस्त नचनिया लग रही थी.

डांस खत्म हो चुका था. दर्शक ‘एक बार और, एक बार और’ की मांग करते रहे, पर वह डांसर अपना पसीना पोंछते हुए तंबू के पीछे आ गई थी.

देखने वाले हवस के मारे जोश में थे, पर इस नाचने वाली लड़की के लिए यह रोजीरोटी कमाने के लिए उस का काम भर था.

इस खूबसूरत लड़की का नाम शबनम था. शबनम नाम होने से लोग उसे मुसलमान समझते थे, पर शबनम को खुद नहीं पता था कि वह मुसलमान है या हिंदू है. उस ने जब से होश संभाला था, तब से अपनेआप को इसी डांस पार्टी में पाया था और अपनी रोजीरोटी चलाने के लिए उसे यह काम करना पड़ा था. दीनधर्म के बारे में कभी सोचा ही नहीं और न ही शबनम को कभी अपना धर्म जानने की जरूरत महसूस हुई.

शबनम को तो डांस करना भी किसी ने नहीं सिखाया, बस अपने साथ वाली दीदी लोगों को नाचते देख कर वह कब खुद भी स्टेज पर नाचने लगी, उसे खुद भी पता नहीं चला. हां, पर स्टेज पर वह शौक से नहीं नाची, बल्कि उसे बताया गया था कि उसे पैसे चाहिए तो नाचना ही पड़ेगा.

इस डांस पार्टी के मालिक का नाम धर्मा पंडित था. 50 साल का धर्मा पंडित बड़ा रोबीला लगता था.

लंबाचौड़ा शरीर और बड़ीबड़ी गोल आंखें. वह सामने वाले से बात करते समय अपनी धाक बड़ी आसानी से जमा लेता था.

धर्मा पंडित की इस डांस पार्टी में तकरीबन 20 से 25 लोग काम करते थे, जिन में से 6 लेडीज डांसर थीं. कुछ लोग आरकेस्ट्रा पर काम करते थे, तो कुछ लोग डांस पार्टी के तंबू वगैरह का काम संभालते थे.

लेडीज डांसर सभी के आकर्षण का केंद्र थीं. हालांकि, ये डांसर फिल्मी गानों पर नाचती थीं, पर धर्मा पंडित ने अपनी इस डांस पार्टी को नाम दिया था ‘क्लासिकल डांस पार्टी’ और अपनी इस डांस पार्टी को धर्मा पंडित कसबों और गांवों में ले जाता था और एक जगह तकरीबन 15 से 20 दिन तक कार्यक्रम करता था.

जिस भी कसबे और गांव में धर्मा पंडित की डांस पार्टी जाती थी, वहां पर जम कर प्रचारप्रसार कराने के लिए नाचने वाली लड़कियों के छोटे कपड़े पहने हुए पोस्टर तैयार कराए जाते थे और सड़कों के किनारे लगवा दिए जाते थे, जिन्हें देख कर लोग अच्छीखासी तादाद में डांस देखने आते थे और जम कर पैसे भी लुटाते थे.

धर्मा पंडित की डांस पार्टी में नाचने वाली लड़कियों की खूबसूरती देख कर गांवकसबे के शोहदे कई बार इन लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध भी बनाना चाहते थे और इस के लिए वे अपना रोबताब दिखा कर धर्मा पंडित से बात भी करते थे, पर यहां तो धर्मा पंडित का अलग ही रूप देखने को मिलता था.

वह इन हुस्न के सौदागरों को साफ मना कर देता था, ‘‘ये क्लास्किल और फिल्मी डांस दिखाने वाले कलाकार हैं. यह तो समय की मांग ने इन के कपड़ों को जरूर छोटा कर दिया है, पर जब तक ये मेरे पास हैं, तब तक इन्हें जिस्म बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

धर्मा पंडित के इस रूप को देख कर लोग चिढ़ जाते थे और पीठ पीछे धर्मा पंडित को खूब गरियाते थे. उन्हें लगता था कि धर्मा पंडित खाली इस तरह की बड़ी बातें कर के अपनी नाचने वालियों का रेट बढ़ाना चाहता है और फिर वे और ज्यादा पैसे देने की बात भी कहते, पर धर्मा पंडित टस से मस नहीं होता था और फिर बारबार परेशान किए जाने पर वह अगले गांव की तरफ चल देता था.

अब धर्मा पंडित और उस की डांस पार्टी कमलापुर नामक गांव में जाने वाली थी. कमलापुर में जम कर इस डांस पार्टी का प्रचारप्रसार भी कर दिया गया था. इस के चलते वहां के नौजवानों में आने वाली डांस पार्टी को ले कर बहुत जोश था. मजे की बात तो यह थी कि सिर्फ नौजवान ही नहीं, बल्कि बड़ी उम्र के लोग भी डांस देखने के लिए उतावले थे और इसीलिए खुद को सजानेसंवारने में लगे हुए थे.

गांव के नुक्कड़ पर इकबाल नाम के लड़के का लकड़ी का बनाया हुआ खोखा था, जिस में उस ने एक बड़ा सा आईना रख कर उसे एक सैलून की शक्ल देने की कोशिश की थी. गांव के लोग यहां पर अपने दाढ़ीबाल कटवाने आते थे.

इकबाल कुछ खास लोगों को ही अपने चेहरे पर पीली वाली क्रीम की मालिश करवाने को कहता था, ‘‘यह पीली वाली क्रीम बादाम क्रीम है, जिस को लगाने से चेहरा एकदम सलमान खान की तरह चमकीला हो जाता है,’’ सलमान खान के एक पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए इकबाल कहता, तो लोग तुरंत ही अपना चेहरा आगे कर देते और इकबाल खूब मेहनत से उन के चेहरे पर मसाज करता.

मसाज के बाद लोग अपना चेहरा आईने में देखते तो उन्हें खुद भी फर्क साफ नजर आता और वे इकबाल
को पैसे देने के साथसाथ शुक्रिया कहना न भूलते.

गांव की तरफ से शहर की ओर जाने वाली रोड के किनारे बहुत चहलपहल थी, क्योंकि आज क्लासिकल डांस पार्टी का कमलापुर गांव मे पहला शो था. स्टेज के आगे एक तख्त पर चादर बिछा दी गई थी, जो गांव के चौधरी साहब के लिए थी. इस के बाद की लाइन में प्लास्टिक के तार से बिनी हुई कुरसियां और इस के बाद दरी और टाट को धूल झाड़ कर बिछा दिया गया था.

धर्मा पंडित अपने साथ गांव के चौधरी साहब को बड़े आदरभाव से अंदर लाया और सब से आगे पड़े तख्त पर बिठा दिया.

50 साल के आसपास के चौधरी साहब भी तन कर बैठ गए और उन के गुरगे पास ही नीचे जमीन पर बैठ गए और सभी की निगाहें स्टेज के परदे के खुलने का इंतजार करने लगीं.

इंतजार लंबा हो रहा था, तो सभी लोग सीटियां बजा कर शोर करने लगे. आखिरकार परदा खुला और शबनम एक नौजवान दिलीप के साथ स्टेज पर आई. एक भड़काऊ भोजपुरी गाना भी बजने लगा, जिस के बोल थे, ‘हमार मिक्सी, तोहार मिक्सी, दोनों के मिक्सी बा कालाकाला… हमार पीसे नरम मसाला, तोहार पीसे गरम मसाला…’

इस गीत पर शबनम और दिलीप एकदूसरे की कमर से कमर चिपकाते हुए मसाला पीसने का इशारा करते, तो दर्शकों के बीच जोश की लहर फैल जाती और वे भी खड़े हो कर नाचने लगते और पैसे लुटाते.

हालांकि, चौधरी साहब का मन भी नाचने का कर रहा था, पर उन्होंने अपनी शान का खयाल करते हुए सिर्फ पैसे ही लुटाए.

शबनम के जाते ही दूसरी डांसर ने अपने नाच का जलवा दिखाया और उस के बाद 3 गीत और बजाए गए, जिन पर भी भड़काऊ नाच का मजा दर्शकों ने उठाया.

रात हो चली थी और शो भी खत्म हो गया था. चौधरी साहब के गुरगे भी उन्हें बड़े से मकान के बाहर तक छोड़ गए थे.

चौधरी साहब बड़े ही अदब से घर में गए और सीधे हाथमुंह धोने चले गए. घर में उन की 20 साल की रीता नाम की एक विधवा बेटी ही थी, जो चौधरी साहब के इंतजार में अभी तक जाग रही थी.

‘‘बाबूजी, आप के लिए खाना लगा दूं?’’ रीता ने पूछा, तो चौधरी साहब ने यह कहते हुए मना कर दिया, ‘‘सरखु के यहां कुछ आयोजन था, इसलिए वहां पर भोजन कर लिया है.’’

इतना कह कर चौधरी साहब सीधा अपने कमरे में चले गए.

रीता, जो पिता के इंतजार में भूखी बैठी थी, का मन भी अकेले खाने का नहीं हुआ और रसोईघर में कुंडी लगा कर वह भी सोने चले गई.

रीता की 18 साल की उम्र में ही शादी कर दी गई थी और अगले साल ही वह विधवा हो गई थी और फिर उस ने अपने पिता की देखभाल करने के लिए अपने मायके में ही रहना ठीक समझा.

हालांकि, चौधरी साहब ने अपने रोब का इस्तेमाल करते हुए 2-3 जगह रीता की शादी की बात चलाई, पर कुछ बात नहीं बनी.

किसी भी नौटंकी या डांस पार्टी के लोगों में सब से ज्यादा नोट उड़ाने वाले ग्राहक को पहचानने का एक गजब का टैलेंट धर्मा पंडित में भी था. उस ने अच्छी तरह से देखा था कि कल के शो में सब से ज्यादा पैसे चौधरी साहब ने ही उड़ाए थे. धर्मा पंडित और उस की डांस पार्टी के लिए ऐसे ही ग्राहक अच्छे माने जाते हैं.

2 दिन के बाद धर्मा पंडित ने अपने डांसर दिलीप को चौधरी के घर पर भेज कर संदेश भिजवाया कि उस ने एक खास शो रखवाया है, जिस में सिर्फ चौधरी साहब और उन के अपने आदमी ही होंगे.

दिलीप की बात सुन कर चौधरी साहब को बहुत खुशी मिली और उन्होंने भी अपनी पसंद बताते हुए कहा कि एक नाच शबनम का भी जरूर होना चाहिए.

दिलीप ने मुसकरा कर देखा और वापस जाने लगा. जाते समय उस की नजर रीता से टकरा गई, जो छत पर कपड़े फैला कर नीचे आ रही थी.

रीता जैसी खूबसूरत लड़की दिलीप ने कभी नहीं देखी थी. उस के पैर ठिठक गए थे, पर अगले ही पल वह आगे बढ़ गया.

उस दिन अकेले में चौधरी साहब ने शबनम का जो नाच देखा, तो वे तो उस के जिस्म और नाच के कायल हो गए.

उस दिन चौधरी साहब ने धर्मा पंडित को उस के हाथ में पैसे देते हुए कहा, ‘‘बड़ा खूबसूरत हीरा है तुम्हारा. इसे तो हमारे जैसे जौहरी के पास होना चाहिए.’’

चौधरी साहब ने अपनी बाईं आंख दबा दी थी. धर्मा पंडित भी बिना मुसकराए नहीं रहा था.

चौधरी साहब की पत्नी को मरे हुए 10 बरस हो चले थे और उन के मन में औरत की देह भोगने की बेतहाशा चाह थी, जो शबनम की नंगी कमर, गहरी नाभि और मांसल सीना देख कर और भी भड़क उठी थी, इसीलिए उस दिन के बाद कई बार अकेले ही शबनम के शो के लिए उन्होंने धर्मा पंडित से बात की थी.

पर उस दिन तो चौधरी साहब ने हद कर दी, जब उन्होंने अपनी उम्र की परवाह न करते हुए शबनम के जिस्म को भोगने की बात कह दी, पर धर्मा पंडित नहीं डिगा.

‘‘हम लड़कियों को नचाते जरूर हैं, पर उन से जिस्म का धंधा नहीं करवाते चौधरी साहब. हां, अगर आप को नाच अकेले में देखना हो, तो उस के लिए आप का हमेशा स्वागत रहेगा,’’ धर्मा पंडित ने मुसकराते हुए चौधरी साहब से कहा.

धर्मा पंडित की यह बात चौधरी साहब को अच्छी नहीं लगी, पर बदले में वे कुछ नहीं बोले.

उधर दिलीप, जो रीता को देख कर पहली नजर में ही उस से एकतरफा प्यार कर बैठा था, वह रीता के पास जाने और मिलने की ताक में रहता था. आज जब दिलीप ने चौधरी साहब और धर्मा पंडित को आपस में बातें करते देखा, तो वह बिना हिचके तुरंत ही चौधरी साहब के घर पहुंच गया और कुंडी खटका दी.

अंदर से बिना दरवाजा खोले ही दरवाजे में बनी एक छोटी सी खिड़की को रीता ने खोला और उस की आंखें सीधा दिलीप से टकराईं, तो वह कुछ हड़बड़ाते हुए बोली, ‘‘बाबूजी घर में नहीं हैं. जब वे आ जाएं, तब आना.’’

दिलीप ने कहा, ‘‘मुझे पता है कि वे घर में नहीं हैं, इसीलिए मैं आया हूं और यह कहना चाहता हूं कि आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं.’’

रीता ने तुरंत ही उस छोटी सी खिड़की को बंद कर दिया. उस का दिल भी हलका सा धड़क कर रह गया था, पर ये शब्द उस के मन को रोमांचित जरूर कर गए थे.

रीता विधवा जरूर थी, पर थी तो अभी जवान ही. उस के भी अरमान थे कि उसे कोई अपनी बांहों में इतनी
जोर से जकड़ ले कि उन के बीच बिलकुल भी फासला न रह जाए. कोई उस के होंठों पर अपने होंठ रख दे, पर मजबूर थी.

लेकिन दिलीप की यह बात रीता के मन को छू गई थी, जैसे तपती धूप के बाद बारिश की कुछ बूंदों ने तनमन को भिगो दिया हो, पर वह तो एक विधवा है, कैसे किसी को प्यार कर सकती है… पर क्यों? उस के विधवा होने में उस का क्या कसूर है? और फिर एक विधवा भी तो एक औरत ही होती है…

दिलीप के मन में रीता के लिए प्यार था और वह उस से शादी करना चाहता था, क्योंकि रीता भले ही विधवा थी, पर वह बिलकुल वैसी लड़की थी जैसी उसे अपने लिए चाहिए थी. लेकिन वह जानता था कि गांव के चौधरी साहब की विधवा बेटी के मन को जीतने के लिए उसे चौधरी साहब के मन को भी जीतना होगा.

‘‘बड़ा खोएखोए से रहते हैं सरकार,’’ चौराहे पर चौधरी साहब को अकेला देख कर दिलीप ने पूछा, तो चौधरी साहब भी डांस मंडली के आदमी को देख कर मन की बात कह बैठे, ‘‘क्या बताएं… शबनम पर हमारा दिल आ गया है, पर तुम्हारा धर्मा पंडित मान ही नहीं रहा है.’’

बस, यही शब्द सुनना चाहता था दिलीप. उस ने तपाक से बात बनाई और चौधरी साहब को भरोसा दिलाया कि वह उन्हें शबनम के जिस्म को भोगने का मौका जरूर दिलवाएगा.

यहां से दिलीप का चौधरी साहब के घर पर आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. वह बेधड़क चौधरी साहब के घर जाता, तो चौधरी साहब उसे सीधा अपने पास बुला लेते और दोनों बतियाते रहते. इस बीच रीता से दिलीप की नजरें भी दोचार हो जाती थीं.

एक दिन मौका देख कर दिलीप ने रीता का हाथ पकड़ लिया. रीता ने झट से हाथ छुड़ा लिया और तुरंत ही वहां से यह कहते हुए भाग गई, ‘‘मैं एक विधवा हूं और यह सब मेरे लिए पाप है.’’

दिलीप का चौधरी के घर आनाजाना बढ़ गया था और अब तक डांस कंपनी के दूसरे लोगों को रीता और दिलीप के संबंधों की भनक भी लग गई थी.

धर्मा पंडित की डांस कंपनी में भूलर नाम का एक 25 साल का लड़का था, जो बिजली का इंतजाम देखता था. वह था तो अनाथ, पर ऊंची जाति का था और धर्मा पंडित ने उसे गोद लिया हुआ था.

भूलर को वह हर सम्मान मिलता था, जो एक डांस कंपनी के मालिक के बेटे को मिलना चाहिए. जब भूलर को दिलीप और रीता के संबंधों की खबर मिली, तो उस पर जाति का घमंड हावी हो गया.

‘‘यह निचली जाति का चौधरी साहब की लड़की के साथ मजे लेना चाह रहा है, पर हम इस का मनसूबा कभी कामयाब नहीं होने देंगे.’’

भूलर ने नमकमिर्च लगा कर धर्मा पंडित को सारी बता दी. यों तो धर्मा पंडित सैकुलर होने का दावा करता था और अपनी डांस मंडली के लोगों के लिए खुद को पिता के जैसा दिखाता था, पर उसे यह कतई मंजूर नहीं हुआ कि उस की डांस मंडली में काम करने वाला कोई निचली जाति का किसी ऊंची जाति की लड़की से इश्क लड़ाए.

हालांकि, धर्मा पंडित के लिए यह बहुत आसान होता कि वह अपनी डांस मंडली को किसी दूसरे गांव में ले जाए और दिलीप और रीता का मामला यहीं खत्म हो जाए, पर ऐसा करने के बाद भी दिलीप और रीता का प्रेम बदस्तूर कायम रह सकता था और हो सकता था कि वे दोनों भाग कर शादी भी कर लेते.

धर्मा पंडित को कुछ ऐसा सोचना होगा, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. धर्मा पंडित मन ही मन गहरी सोच में डूबने लगा था.

2-3 दिन बीतने के बाद धर्मा पंडित चौधरी से मिलने उस के घर गया. उसे देख कर चौधरी साहब बहुत खुश हुए और दालान में कुरसियां डलवा कर मीठा शरबत और पान मंगवाया.

थोड़ी देर वे दोनों इधरउधर की बातें करते रहे, फिर धर्मा पंडित ने फुसफुसाते हुए चौधरी साहब से कहा, ‘‘बड़े जागेजागे से लग रहे हैं, क्या बात है? रातों में नींद नहीं आ रही लगता है…’’

धर्मा पंडित की बात सुन कर पहले तो चौधरी साहब थोड़ा सा सकुचाए, फिर मुसकराते हुए कहने लगे, ‘‘क्या बताऊं धर्मा, जब से तुम्हारी उस नचनिया शबनम को देखा है, तब से तो मेरी रातों की नींद ही उड़ गई है. अब तो मन में यही आता है कि जब तक उसे बांहों में भर कर उस का सारा रस न निकाल लूं, तब तक शायद ही इस दिल को चैन मिले.’’

धर्मा पंडित का तुरुप का पत्ता कामयाब हो गया था. उस ने चौधरी साहब से कहा कि वह तो 1 या 2 रातें नहीं, बल्कि हर रात शबनम को उन के साथ सुला सकता है, पर चौधरी साहब को अपने घर की विधवा बेटी का भी ध्यान रखना चाहिए.

धर्मा पंडित ने चौधरी साहब को उन की विधवा बेटी का ब्याह कर देने की बात कही, तो उन्हें अचानक धर्मा पंडित के मुंह से अपनी विधवा बेटी के दूसरे ब्याह की बात सुन कर झटका सा लगा, मानो वे नींद से जागे हों, पर फिर उन्होंने कहा, ‘‘आजकल किसी विधवा से कौन शादी करना चाहेगा?’’

धर्मा पंडित ने तुरंत भूलर का नाम पेश कर दिया और फिर धीरे से चौधरी साहब को दिलीप और रीता के बढ़ते प्यार की बात भी बता दी और दिलीप धोबी जाति का है, यह बताना भी नहीं भूला था धर्मा पंडित.

चौधरी साहब के अहंकार को ठेस लगी कि एक निचली जाति का लड़का उन की विधवा बेटी से इश्क लड़ा रहा है. उन का ऊंची जाति का घमंड जाग उठा और उन्होंने बिना ज्यादा कुछ सोचेसमझे धर्मा पंडित से रीता की शादी भूलर के साथ कर देने के लिए हां कर दी.

शबनम के जिस्म का लालच चौधरी साहब के दिमाग में अब भी चल रहा था, पर धर्मा पंडित अभी भी संतुष्ट नहीं हुआ था. उस ने चौधरी साहब को अपनी बातों में लिया और कहा कि भूलर अभी भी एक डांस मंडली वाले का बेटा जाना जाता है और चौधरी एक ऐसे लड़के से अपनी विधवा बेटी की शादी करे, यह कुछ शोभा नहीं देता. इस के लिए जरूरी है कि उन का दामाद कुछ खास हो.

‘‘तो उस के लिए मुझे क्या करना होगा?’’ चौधरी साहब ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, बस आप शहर में एक अच्छा सा मकान अपनी बेटी और दामाद को दिलवा दीजिए और कोई छोटामोटा धंधा चालू करवा दीजिए, जिस से आप की बेटी भी सुखी रहेगी और आप के दामाद का नाम भी होगा.’’

चौधरी साहब को धर्मा पंडित की यह बात पसंद आ गई. उन्होंने जब अपनी बेटी रीता से उस के दोबारा ब्याह की बात कही, तो वह सोच में पड़ गई. उस के मन में तो दिलीप के लिए प्यार था, पर एक विधवा भला कब अपने मन की बात अपने पिता से कह सकती है?

रीता ने कुछ देर नानुकर की, पर चौधरी साहब ने फैसला सुना दिया था, इसलिए वह चुप रही. वह चाह कर भी दिलीप का नाम नहीं ले सकी, क्योंकि वह जानती थी कि एक विधवा के लिए किसी दूसरे मर्द से प्यार करना महापाप समझ जाता है.

रीता ने चुपचाप अपने पिता के फैसले को स्वीकार कर लिया था.

चौधरी ने शहर में एक 2 कमरे का मकान देखा और उस से कुछ दूरी पर ही एक दुकान देख कर उस में खाद और बीज भंडार का उद्घाटन कर दिया.

रीता और भूलर की शादी एक सादा समारोह में हो गई थी. भरी आंखों से चौधरी ने रीता को विदा किया.

पूरा गांव चौधरी साहब के इस कदम की बहुत तारीफ कर रहा था. धर्मा पंडित की यह सारी योजना सही से कामयाब हो सके, इस के लिए उस ने बड़ी चालाकी से दिलीप को 15 दिन पहले ही शहर में किसी ऐसे काम से भेज दिया था, जिस से कि वह जल्दी वापस न आ सके.

आज जब दिलीप वापस आया, तो धर्मा पंडित ने उसे शाबाशी दी और कहा, ‘‘आज शाम को चौधरी साहब के घर पर हम सब को एक भोज के लिए चलना है.’’

बेचारा दिलीप सब बातों से अनजान था, इसलिए उस ने हामी में सिर हिला दिया.

रात को धर्मा पंडित और दिलीप चौधरी साहब के घर पहुंचे, तो वहां पर बढि़या शराब और मीट का इंतजाम था. धर्मा पंडित ने बोटी खाने से तो इनकार किया, हालांकि उस ने मीट की करी लेने से कोई परहेज नहीं किया और अपनी पांचों उंगलियां मीट के रस में डुबोडुबो कर चाट डालीं.

आज धर्मा पंडित कुछ ज्यादा ही अपनेपन से दिलीप को शराब पिला रहा था. दिलीप पर अब शराब हावी हो रही थी और उस की आंखें अपनेआप बंद होने लगी थीं. उसे लगा कि वह बेहोश हो रहा है, पर वह चाह कर भी अपनी बेहोशी को रोक नहीं पाया और अगली सुबह जब उस की आंख खुली तो उस ने पुलिस को अपने चारों तरफ पाया.

पुलिस इंस्पैक्टर ने दिलीप को घूरते हुए कहा, ‘‘इसे गिरफ्तार कर लो और इस की इतनी तुड़ाई करो कि अगली बार यह किसी चौधरी के घर में चोरी करने से पहले हजार बार सोचे.’’

दिलीप अपने बेकुसूर होने की दुहाई देता रहा, पर पुलिस इंस्पैक्टर ने उस की पैंट की जेब से नोटों की गड्डियां बरामद कर ली थीं.

दिलीप को पुलिस वैन में बिठा लिया गया था. उस की आंखें अभी भी रीता को ढूंढ़ रही थीं, पर रीता अब उसे कहां मिलने वाली थी?

आज रात चौधरी साहब की हवेली गुलजार थी और कुछ ज्यादा ही रोशन थी. चौधरी साहब धर्मा पंडित के साथ अपने सोफे पर धंसे हुए थे और उन के सामने शबनम अपनी नंगी कमर और गहरी नाभि हिलाहिला कर नाच रही थी. चौधरी साहब आज शबनम का सारा रस निकाल लेने वाले थे.

हवेली में गाना गूंज रहा था, ‘कमरिया लचके रे… बाबू, जरा बच के रे… दिल मेरा धड़के रे…’

Social Story : यह कैसा प्यार है

Social Story : यमुनानगर में बसे छोटे मौडल टाउन इलाके का एक लड़का गगन शर्मा वहां के मुकुंदलाल कालेज में बीकौम थर्ड ईयर का छात्र था और सुमनप्रीत कौर भी यमुनानगर से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर एक छोटे से कसबे मुस्तफाबाद की लड़की थी, जो उसी कालेज में पढ़ती थी. वह बीकौम के फर्स्ट ईयर की छात्रा थी.

सुमनप्रीत का कद 5 फुट, 3 इंच लंबा था, उस का रंग गोरा, लंबे और घने काले बाल, समुद्र के हलके नीले पानी जैसी आंखें, तीखी नाक, लंबी सुराहीदार गरदन और ऊंचे उठे उभार उसे दूसरी लड़कियों से अलग बनाते थे.

वहीं गगन शर्मा 5 फुट, 6 इंच का गोराचिट्टा लड़का था. उस का चौड़ा सीना, घुंघराले बाल, छोटीछोटी बारीक सी मूंछें थीं. वह साधारण सी पैंटशर्ट पहन कर आता था, मगर उस में भी ऐसा लगता था, मानो कहीं का राजकुमार हो.

लेकिन लड़कियों के मामले में गगन शर्मीला था, पर वह पढ़ाई में होशियार था और हर साल पूरी क्लास तो क्या राज्यभर में अव्वल रहता था, इसलिए सारा कालेज उसे जानतापहचानता था.

सुमनप्रीत कौर ने भी गगन के बारे में सुना, तो मन में मिलने की भी इच्छा होने लगी.

आखिरकार एक दिन उन दोनों का आमनासामना भी हो गया. कैंटीन में सुमनप्रीत कौर और उस की एक सहेली रजनीत कौर बैठी कौफी पी रही थीं कि तभी अचानक 2 लड़के कैंटीन में आए और कोई भी टेबल खाली न होने पर वापस जाने लगे.

तभी उन में से एक लड़के पम्मे ने कहा, ‘‘गगन, वह सीट खाली है. चल, वहां चल कर बैठते हैं.’’

‘‘नहीं यार पम्मे, वहां नहीं यार. वे लड़कियां बैठी हैं. ऐसे किसी को डिस्टर्ब क्यों करें…’’

‘‘अरे, लड़कियां हैं तो क्या हुआ, उन से पूछ कर ही बैठेंगे,’’ पम्मे ने कहा.

ये बातें सुमनप्रीत और उस की सहेली रजनीत कौर ने सुन ली थीं.

रजनीत कौर ने गगन की बात सुन कर इशारा कर के सुमनप्रीत को बताया, ‘‘यही गगन है और साथ में उस का दोस्त परमजीत सिंह है.’’

इतने में परमजीत सिंह वहां आ गया और उन दोनों से वहां बैठने की इजाजत मांगी.

रजनीत कौर ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, सामने की सीट खाली है, आप बैठिए.’’

लेकिन सुमनप्रीत कौर कुछ नहीं बोल पाई. वह तो बस गगन को एकटक देखे जा रही थी.

गगन और पम्मा दोनों ‘धन्यवाद’ कह कर बैठ गए.

रजनीत कौर ने उन्हें सुमनप्रीत कौर से मिलवाया, ‘‘यह है मेरी सहेली सुमनप्रीत कौर… और सुमन, ये हैं गगन शर्मा और परमजीत सिंह.’’

लेकिन सुमनप्रीत को तो जैसे होश ही नहीं था. वह तो बुत बनी केवल गगन को देखे जा रही थी.

रजनीत कौर ने सुमनप्रीत को कुहनी मारी, तब सुमन को अहसास हुआ कि उसे कुछ कहा है किसी ने.

सब ने आपस में ‘हायहैलो’ किया. इतने में वेटर आया और उन दोनों का और्डर दे गया. सब चुपचाप अपनी कौफी पी रहे थे, लेकिन सुमन की नजरें गगन से हट ही नहीं रही थीं.

इतने में क्लास का समय हो गया. वे सब अपनीअपनी क्लास में चले गए.

रजनीत कौर ने सुमनप्रीत से कहा, ‘‘सुमन, क्या हुआ? तुम किस दुनिया में खोई हुई थी?’’

‘‘पता नहीं यार, मुझे क्या हो गया है. कहीं दिल ही नहीं लग रहा है. ऐसा लगता है कि गगन के सामने बैठी रहूं,’’ सुमनप्रीत ने कहा.

‘‘कहीं तुझे प्यार तो नहीं हो गया न…? पर यह लड़का तो किसी लड़की को पलट कर देखता ही नहीं है. बस, अपनी किताबों में ही मस्त रहता है.’’

सुमनप्रीत को खुद ही नहीं समझ आ रहा था कि उसे क्या हुआ है. हर पल उस के दिमाग पर गगन ही छाया हुआ है, लेकिन गगन कभी किसी लड़की की तरफ न तो देखता था, न ही बात करता था.

सुमनप्रीत ने गगन से बात करने के लिए परमजीत से दोस्ती कर ली, क्योंकि गगन और परमजीत हर समय साथ रहते थे. दोनों की पक्की यारी थी. परमजीत के बहाने सुमनप्रीत की कभीकभार गगन से भी बात हो जाती थी.

सुमनप्रीत ने गगन की नजदीकियां पाने का एक नया रास्ता निकाला और अकाउंट्स न समझ आने का बहाना बनाया और गगन को यह सब्जैक्ट सम?ाने की रिक्वैस्ट की, तो परमजीत के जोर देने पर गगन मान गया.

अब तो रोज कालेज के बाद थोड़ी देर वहीं रुक कर सुमनप्रीत गगन से अकाउंट्स सीखती थी. उधर, परमजीत भी सुमनप्रीत को चाहने लगा था, पर सुमनप्रीत के दिल में तो गगन बैठा था.

साल खत्म होने को आया, मगर सुमनप्रीत गगन से अपने प्यार का इजहार न कर सकी. वह 2 बातों से डरती थी कि गगन ब्राह्मण है और वह सिख है. घर वाले किसी कीमत पर नहीं मानेंगे. दूसरा यह कि गगन भी उसे चाहता है या नहीं?

गगन बीकौम पास कर के चला गया. उस की कार के एक शोरूम में अच्छी नौकरी लग गई, लेकिन परमजीत फेल हो गया. लेकिन गगन लंच टाइम में फ्री होता था, तो कालेज पहुंच जाता था और पम्मा और सुमनप्रीत को थोड़ी देर अकाउंट्स समझ जाता था.

एक बार गगन को कंपनी की तरफ से ट्रेनिंग के लिए 4-5 दिन के लिए गुरुग्राम जाना था. यह सुन कर सुमनप्रीत सुन कर उदास हो गई कि इतने दिन गगन को नहीं देख पाएगी.

मगर जब गगन ट्रेनिंग पर चला गया, तो वहां उस का मन नहीं लगा. उसे हरपल सुमनप्रीत ही आंखों के सामने नजर आती थी. वह सम?ा नहीं पा रहा था कि उसे क्या हो रहा है.

गगन ने फोन पर परमजीत से भी कहा, ‘‘यार पम्मे, सुमनप्रीत ठीक तो है न? पता नहीं, क्यों मुझे हरपल उस का ही खयाल आ रहा है. ऐसा लगता है जैसे वह मेरे पास है और कोई उसे मुझ से छीन कर दूर ले जा रहा है. पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ?’’

परमजीत ने महसूस किया कि गगन को सुमनप्रीत से प्यार हो रहा है. हालांकि, वह खुद भी सुमनप्रीत से प्यार करता था, लेकिन अपने दोस्त के लिए वह अपना प्यार भूल गया, कुरबान कर दिया अपना प्यार अपने जिगरी दोस्त पर.

‘‘ओए गगन, तुझे प्यार हो गया है. अब ट्रेनिंग से आते ही जल्दी से अपने प्यार का इजहार भी कर देना. कहीं ऐसा न हो कि कोई दुलहनिया ले जाए और तू बरात में नाचता ही रह जाए,’’ ऐसा कह कर परमजीत जोरजोर से हंसने लगा.

लेकिन गगन सोच रहा था कि क्या सचमुच जो प्यार नाम की चिडि़या को पहचानता भी नहीं था, उसे प्यार हो गया है?

खैर, ट्रैनिंग से वापस आ कर गगन ने परमजीत से बात की, तो उस ने समझाया, ‘‘बुद्धू, जो तुझे सुमन की दूरी बरदाश्त नहीं हुई, हरपल उस की याद सताती रही, यही तो प्यार है… और अब देर मत कर, कल ही प्रपोज कर दे सुमनप्रीत को. उस का जन्मदिन भी है कल.’’

अगले दिन गगन ने होटल मधु में एक छोटी सी सरप्राइज पार्टी रखी. रजनीत कौर और परमजीत सिंह बहाने से सुमनप्रीत को वहां ले गए, लेकिन वहां गगन की तरफ से पार्टी को देख कर सुमन फूली न समाई.

केक काटने के बाद गगन हाथ में एक फूल लिए सुमन के सामने घुटनों के बल बैठ कर बोला, ‘‘सुमन, क्या तुम मेरा प्यार स्वीकार करोगी? क्या तुम जिंदगी के हर सुखदुख में मेरा साथ दोगी? अगर तुम मुझे अपने लायक समझती हो, तो क्या मुझ से शादी करोगी?’’

सुमन ने एक पल के लिए भी नहीं सोचा और ‘हां’ कह दिया.

‘‘सुमन, अभी समय है, सोच लो. तुम महलों में पली हो, मेरा छोटा सा घर है. नौकरी भी कोई बहुत बड़ी नहीं है, बस ठीकठाक गुजरबसर ही होती है.’’

‘‘गगन, मुझे केवल तुम चाहिए. तुम्हारा साथ होगा तो मैं भूखी भी रह लूंगी. न होगा मखमल का बिस्तर, तो तुम्हारे सीने पर सिर टिका कर चैन की सांस लूंगी. बस, तुम न मुझे छोड़ना मत, चाहे तो सारी दुनिया मैं छोड़ दूंगी.’’

इस के बाद उन दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. वे साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.

सुमनप्रीत की बीकौम पूरी हुई, तो घर वालों ने शादी के लिए जोर डालना शुरू कर दिया. सुमन ने घर में गगन के बारे में बताया तो तूफान आ गया सुमनप्रीत के पापा ने नाराजगी में कहा, ‘‘हम सरदार हैं और वह शर्मा. यह मेल कभी नहीं हो सकता. गगन अकेला नौकरी करने वाला है. उस के पापा कोई काम नहीं करते हैं. उस का बड़ा भाई भी नौकरी करता है, मगर उस का अपना अलग परिवार है. मांबाप की जिम्मेदारी भी गगन पर है. जिस लाड़प्यार से तुम पली हो, वहां तुम्हारा गुजारा नहीं हो सकता.’’

जिस तरह से घर वालों ने अपना गुस्सा जाहिर किया था, उस से सुमन समझ चुकी थी कि इस शादी के लिए वे किसी भी कीमत पर राजी नहीं होंगे.

लेकिन गगन का परिवार इस शादी के लिए तैयार था. वे लोग जातपांत, बिरादरी जैसी दकियानूसी बातों को नहीं मानते थे, क्योंकि गगन के पापा की भी इंटरकास्ट मैरिज थी.

लेकिन गगन का परिवार सुमनप्रीत के परिवार के बराबर नहीं था. सुमनप्रीत के पापा रेलवे से अच्छी पोजिशन से रिटायर हुए थे. उस का भाई चंडीगढ़ में लैक्चरर था और पुरखों की जमीन व जायदाद भी काफी थी.

लेकिन प्यार का जोश, दीवानापन ऐसी बातें कहां समझता है. सुमनप्रीत चुप हो गई, मगर दिमाग में शैतानी खयाल आ रहे थे, इसलिए कंप्यूटर कोर्स के बहाने फिर से यमुनानगर जाने लगी और एक दिन उन दोनों ने भाग कर कोर्टमैरिज कर ली. गगन सुमनप्रीत को अपने घर ले आया.

खैर, जब सुमनप्रीत के घर वालों को इस शादी के बारे में पता चला, तो उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की. छोटा सा कसबा है, बात फैलने पर बदनामी होगी. बस, इतना ही कहा कि आज से सुमनप्रीत उन के लिए मर चुकी है.

लेकिन ससुराल वालों ने सब रीतिरिवाजों के साथ अपनी बहू का गृहप्रवेश कराया. जिस दिन शादी हुई, उस के 2 दिन बाद ही गगन की प्रमोशन हो गई.

अब तो सुमनप्रीत को भाग्यशाली समझ जाने लगा. सबकुछ ठीक चल रहा था. एक साल में ही सुमनप्रीत ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया.

सुमनप्रीत ने गगन से कहा, ‘‘गगन, मेरी इच्छा है कि मैं अपनी बेटी का नाम मेरे पापा के नाम हरजोत सिंह पर हरलीन कौर रखूं, लेकिन कहीं मम्मीडैडी को बुरा न लगे जाए…?’’

‘‘नहीं सुमन, मम्मीडैडी बुरा नहीं मानेंगे. हम इस का नाम हरलीन कौर ही रखेंगे,’’ गगन ने कहा.

बच्ची का नाम हरलीन कौर रखा गया. एक दिन गगन और सुमनप्रीत उस बच्ची को ले कर मायके गए और बच्ची को उस के नाना की गोद में रख दिया.

बच्ची को देख कर सुमनप्रीत के मम्मीपापा के मन में भी प्यार उमड़ा और उन्होंने सुमनप्रीत की गलती को भुला कर उसे गले से लगाया.

दोनों परिवार मिल गए. सुमनप्रीत की जिंदगी में अब और भी खुशियां बढ़ गई थीं. मायके का प्यार जो फिर से मिल गया था.

इधर बच्ची के आने से खर्च बढ़ने लगा. अभी तो गगन को प्रमोशन पर प्रमोशन मिल रहा था. सुमनप्रीत ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई.

गगन ने उसे पत्राचार से एमकौम कराई और उस के बाद कंप्यूटर का एक कोर्स भी कराया.

अब तक हरलीन स्कूल जाना शुरू हो गई थी, तो सुमनप्रीत ने कहा, ‘‘गगन, हरलीन स्कूल चली जाती है. आप भी सुबह से जा कर शाम को घर आते हो.

घर पर कुछ खास काम तो रहता नहीं है, क्यों न मैं किसी स्कूल में नौकरी के लिए ट्राई करूं?’’

सुमनप्रीत की खुशी के लिए गगन ने उसे नौकरी करने के लिए मना नहीं किया.

सुमनप्रीत ने अपनी बेटी के ही स्कूल में नौकरी के लिए अप्लाई किया और उसे वहां नौकरी भी मिल गई.

हरलीन अब 10 साल की हो गई थी. सुमनप्रीत की दूसरी बेटी पैदा हुई, जिस का नाम प्रेजी रखा.

अब 2 बच्चों का खर्च और मांबाप की उम्र के हिसाब से बीमारी का बढ़ता खर्च… धीरेधीरे घर में तनाव भरा माहौल रहने लगा.

सुमनप्रीत ने अब महाराजा अग्रसेन कालेज में अपना बायोडाटा भेज दिया और वहां से नौकरी का बुलावा
आ गया.

गगन और सुमनप्रीत की आमदनी से बस गुजारा ही होता था. सुमनप्रीत को अपनी इच्छाओं को मारना पड़ता था, लेकिन कब तक?

कालेज में सुमनप्रीत की दोस्ती अपने से 6 साल छोटे आयुष के साथ हो गई, जो एक ऊंचे और अमीर खानदान से था, जो वहां शौकिया नौकरी करता था. वह सुमनप्रीत की हर इच्छा पूरी करता था, इसलिए वह उस की तरफ खिंचती चली गई.

जहां एक तरफ गगन और ज्यादा कमाने और सुमनप्रीत की इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिनरात जद्दोजेहद करता था, वहीं दूसरी तरफ सुमनप्रीत आयुष के रंग में रही.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, सुमनप्रीत का भी परदाफाश हुआ. गगन को एक दिन खबर मिली कि इस समय सुमन और आयुष किसी मीटिंग या कालेज में नहीं हैं, बल्कि होटल में रंगरलियां मना रहे हैं.

गगन भड़का हुआ होटल गया और दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया और सुमन को घर ले आया.

इस समय हरलीन 14 साल की और प्रेजी 4 साल की थी. गगन ने सुमनप्रीत को बहुत समझाया, लेकिन वह खुले शब्दों में विरोध करते हुए बोली, ‘‘गगन, जब तुम मेरी इच्छाएं पूरी नहीं कर सकते, तो मुझे तलाक दे दो. मैं आयुष के साथ नया सफर शुरू करना चाहती हूं. वह मुझे हर तरह से खुश रखेगा.’’

‘‘सुमन, प्लीज ऐसा मत करो. बच्चियों के बारे में भी सोचो. तुम ने अब तक जो भी किया, मैं सब भुला दूंगा. तुम्हारी हर गलती माफ कर दूंगा. तुम अपने बच्चों के साथ मेरा परिवार बन कर एक अच्छी बीवी, अच्छी मां और अच्छी बहू की तरह रहो.’’

‘‘बहुत बन चुकी मैं अच्छी बीवी, बहू और मां, पर मुझे अपनी जिंदगी भी जीनी है. कब तक मैं दूसरों के लिए जीऊं?’’

‘‘मैं तुम्हें हर खुशी दूंगा, तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगा. मैं दिनरात मेहनत करूंगा. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. मैं बहुत प्यार करता हूं तुम से,’’ गगन ने कहा.

‘‘मिस्टर गगन, प्यार से पेट नहीं भरता. प्यार से तन नहीं सजता. प्यार चांदतारों की भी ख्वाहिश करता है. मेरी भी कुछ ऐसी हसरतें हैं, जो आयुष पूरी कर सकता है.’’

एक दिन गगन के पास कोर्ट से तलाक के पेपर आ गए. रात को गगन जब औफिस से घर आया, तो गुस्से में बोला, ‘‘सुमन, यह क्या है? तुम ने तलाक के लिए अर्जी दी है?’’

सुमन ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, तो और क्या करूं मैं? तुम्हें कितनी बार कहा कि मुझे तलाक दो. तुम तो तलाक लोगे नहीं, तो सोचा कि मैं ही यह शुभ काम कर दूं.’’

गगन ने रोते हुए कहा, ‘‘सुमन, प्लीज ऐसा मत करो. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘अब मैं बिलकुल भी तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मेरे पास और वक्त नहीं है इंतजार के लिए. मैं ने अपना जीवनसाथी चुन लिया है, जो मेरे लिए चांदतारे भी तोड़ कर लाएगा.’’

‘‘ये सिर्फ बातें हैं. वह तुम्हें हमेशा के लिए नहीं अपनाएगा. अधर में छोड़ देगा, तब पछताओगी.’’

‘‘जो होगा देखा जाएगा, मैं फैसला ले चुकी हूं. इन पेपर पर साइन करो, वरना मैं यहीं खुदकुशी कर लूंगी,’’ सुमनप्रीत ने कहा.

गगन ने कहा, ‘‘मैं ऐसे तलाक नहीं दूंगा. अगर तलाक लेना है, तो कोर्ट में जा कर ही क्यों न फैसला किया जाए…’’

दोनों ने कोर्ट में बच्चों की कस्टडी के लिए एप्लीकेशन दे दी. केस अभी भी चल रहा है, लेकिन गगन अभी भी सुमनप्रीत को मना रहा है कि वह आयुष को भूल जाए और उस की जिंदगी में वापस आ जाए.

पर यह कैसा प्यार है, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने की चाहत में सबकुछ भूल चला है?

Hindi Story : बेवफा कौन ?

Hindi Story : रघुवर  को कब शराब के शौक ने घेर लिया, उसे एहसास ही नहीं हुआ. उसकी ऐसे-ऐसों से मित्रता हो गई कि जो अपने आप में इस क्षेत्र के अखंड खिलाड़ी थे.  कहते हैं न, आदमी को एक ऐब पकड़ता है, तो दूसरे ऐब भी आने घेरने लगते हैं, सो रघुवर दास को दूसरी कई बुराइयों ने भी भी  जकड़ लिया.  परिणाम स्वरूप कोयला खान जाते समय नूर होटल में बैठकी भी जमने लगी है.

वहां खूब खाते-पीते और दूसरों की भी सेवा करते. फिर संध्या समय लौटते, तो बैठकी होती. धीरे धीरे हाथों में पैसे की तंगी होने लगी तो एक मित्र रामनारायण ने कहा, -“तुम्हें कितने पैसे चाहिए…. मैं हूं न .”

रघुवर  का चेहरा खिल गया.

रामनारायण ने कहा, – “ चलो, प्रभात  के पास, कितना पैसा चाहिए, मैं ब्याज में दिलवाता हूं .”

रघुवर ने मालिक राम की ओर देखा तो उसने भी सिर हिला कर पुष्टि की,-” कभी कभी मैं भी लेता हूं .”

-” कितना ब्याज है .” संशय से भर कर रघुवर दास ने जानना चाहा.

– “देखो, कम पैसे कम लोगे तो 10% ज्यादा लोगे तो 8% .”

” भैय्या, ऐसा क्यों ?”

– “हम भी स्वयं खुद लेते हैं ! ऐसा तो सभी जगह है… आखिर उन्हें भी तो बाल बच्चे पालने हैं, फिर कितना रिस्क है…घर से पैसे निकाल कर देते हैं . मजाक है क्या.”

रामनारायण ने बात समझायी तो रघुवर सहमत हो गया.

अब शराब के लिए पैसे ब्याज पर लिए जाने लगे थे. शुरू में रघुवर को लगा वह गलत कर रहा है, यह भविष्य के लिए घातक है मगर तब तक मदिरा का आनंद सर चढ कर बोलने लगा था. मित्रों ने समझाया था,- “हम लोग  कोयला खदान में काम करने वाले लोग हैं, अगर हमें स्वस्थ रहना है तो शराब पीनी होगी . नहीं पियोगे तो हाथ पैर में दर्द रहेगा, काम नहीं कर पाओगे…मन नहीं लगेगा .”

मालिकराम का उद्घोष था ,- “आखिर कमाते किसके लिए हो बंधु ! क्या बाल बच्चों का पालन-पोषण उनके लिए खपना ही हमारा जीवन है, क्या हम कुछ अपने लिये  नहीं जी सकते…”

रघुवर को बातें जंचती थी और वह बातें उसके मस्तिष्क पर गहरा असर डालती थी. कहते हैं न जैसा माहौल, वैसा वैसा चढ़े रंग ! बस रघुवर के साथ भी यही हुआ. वह एक नंबर का मदिरा प्रेमी बन गया और ब्याज पर रुपए लेकर जिंदगी का सुख भोगने लगा . मगर इसका परिणाम, भविष्य में  तो उसे ही भोगना था….

रघुवर को अचानक पता चला – उसे कैंसर है….!

शराब व सूदखोरी के संजाल में वह बुरी तरह फंसा ही हुआ था, अभी हाल मे शादी हुई थी, पत्नी रत्ना ! जैसा नाम, सचमुच वैसे ही रूप लावण्य से परिपूर्ण रत्नावती थी. उसकी सुंदरता के आगे कोई ठहर नहीं पाती थी . रघुवर का इलाज कोयला खदान की सबसे वृहदकाय हॉस्पिटल में होने लगा, इधर ‘म‌द्म’ का नशा छुट नहीं रहा !

एक दिन प्रभात  घर आ पहुंचा . रघुवर बीमार लेटा हुआ था . प्रभात आया तो पति का मित्र मान, रत्ना आगंतुक को भीतर ले आई .

-” भैय्या ! यह क्या सुन रहा हूं. बहुत दुख हुआ .” प्रभात ने दुखी स्वर में कहा.

– “अब क्या कहूं… कब क्या होगा, किसे पता था… प्रभात .”

– “ओह !बड़ी दुखद खबर है.मेरे लायक कोई भी सेवा हो तो कहना….”

रत्ना प्रभात की बातें सुन रही थी .घर की स्थिति खराब होती जा रही थी, राशन नहीं था, पैसे नहीं थे. ड्यूटी पर रघुवर जा नहीं पा रहा है .

रघुवर ने ने कहा, -” भैय्या ! तुमने तो हमेशा  मदद  की है, अभी भी तुम्हारा भरोसा है .”

-“हां, कहो… मैं हूं न !”

अब अक्सर प्रभात घर आ जाता, घंटों रत्ना से बातें करता .रत्ना उससे प्रभावित होती चली गई, उस पर विश्वास करने लगी है. कमजोर लता थोड़ा सा सहारा पा जाए तो उस पर ही आसरा कर बैठती है . रघुवर इलाज , पानी के लिए हॉस्पिटल जाता.कोयला खदान के चक्कर लगाता कभी लोन के लिए कभी पी.एफ की राशि से लोन के लिए. उसकी स्थिति दिनोंदिन खराब हो रही थी.

एक दिन  रघुवर  घर पहुंचा, संध्या का वक्त था .रत्ना को आवाज दी… दरवाजा खुला, तो देखा भीतर प्रभात बैठा है ! उसे तो मानो काठ मार गया…

” रत्ना ! यह ठीक नहीं है .” रघुवर का का स्वर दुःख से भरा हुआ था.

” मगर यह तो आपके मित्र हैं, आपके बारे में ही बातचीत कर रहे थे, हाल-चाल पूछ रहे थे.”

– “तुम जानती हो… मुझे यह पसंद नहीं .”

– “और आपको पता है,  बीमार हो… घर का खर्चा चलाने लायक भी  नहीं रहे .”

– “तो ?” तो क्या हुआ… मुझे लोन मिल जाएगा . तुम्हारा भविष्य सुरक्षित है .”

रघुवर असहाय है, क्या करें… एक तरफ बीमारी दूसरी तरफ रत्ना की जवां उम्र .  उसे लगा रत्ना प्रभात की ओर आकर्षित हो रही है, प्रभात अक्सर घर आता, उसका हाल चाल लेता, फिर खूब हंसता और रत्ना को हंसाता.

रघुवर एक दो दफे प्रतिकार की भाषा में बात की तो रत्ना  बोली,-”  तुम बीमार हो… अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दो…. और हां मुझ पर विश्वास रखो. ”

रघुवर मानो मन मसोस कर रह जाता . समय की मार त्रासदी यही तो है, कभी अपनी पत्नी रत्ना की खूबसूरती पर उसे नाज था, उसे लग रहा था, आज वह सबसे लावण्यमयी रत्ना उसके हाथों से निकल रही है और वह असहाय है…

एक दिन तो पराकाष्ठा हो गई. रत्ना बाथरूम में नहा रही थी . रघुवर बिस्तर पर पड़ा हुआ था .अचानक प्रभात आ गया.

” भैय्या कैसे हो ? कुछ मदद हो तो कहना… बिल्कुल संकोच नहीं….”

– “हां… हां अब… और किसको कहूगा .” तभी बाथरूम से रत्ना ने झांक कर देखा सामने प्रभात बैठा है . प्रभात ने रत्ना को देखा और सौंदर्य देखता रह गया,  रघुवर की आंखें भीग गई . वह सोच रहा था मैं  कितना असहाय हो चुका हूं.

रघुवर की नासाज तबीयत के बारे मे जानने, एक दिन प्रभात रघुवर के घर पहुँचा.दरवाज़ा रघुवर की पत्नी रत्ना ने खोला.  आज उसकी सुंदरता देख प्रभात सोच में पड़ गया. उसकी आँखों में एक बार फिर धूर्तता चमकने लगी . अपनी आवाज़ में शहद सी मधुरता घोलकर वह रघुवर से बोला,-” रघुवर,  तुम दवाई लो और आराम करो.जल्द ही ठीक हो जाओगे .”

रघुवर-“लेकिन मैं  अभी काम पर नही जा पा रहा हूँ .घर कैसे चलेगा.दवा कहाँ से आएगी.यही चिंता खाए जा रही है. आखिर तुम से कब तक मदद लूं.”

प्रभात,-”तुम परेशान मत हो बंधु,मैं सब इंतज़ाम कर दूँगा.”

प्रभात की‌ निगाहें  बहुत दिनों से रत्ना पर थी उसकी दुकान से  राशन आ रहा.पैसा आ गया.दवाइयां भी आने लगी.प्रभात  जब तब घर आने लगा.वह रत्ना से बात करने और उसे छूने की कोशिश करता.रत्ना उसके आने से सहम जाती.

एक रात रघुवर की तबियत बिगड़ गई.अस्पताल में डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए 75 हज़ार जमा करने की बात कही. रघुवर ने प्रभात को बुलाया . प्रभात तो मौक़े का इंतज़ार कर रहा था . तिरछी नज़रों से रत्ना को देखते हुए बोला,-“तुम्हारे ऊपर बहुत उधार हो गया है रघुवर और अब फिर इतना रूपया  !!! मुश्किल होगा व्यवस्था करना. हाँ, एक उपाय हैं यदि तुम दो चार दिन के लिए रत्ना को मेरे साथ भेज दो तो .”

-“प्रभातऽऽऽऽऽ .”  रघुवर चिल्लाने की कोशिश करने लगा और गश खाकर गिर पड़ा.

निरीह रत्ना एक बार प्रभात को देखती है और फिर पति  को . धीरे धीरे  उसका चेहरा कठोर हो गया.बोली -”मैं तैयार हूँ .”

प्रभात की आंखें चमक उठीं तुरंत रत्ना को लेकर दूसरे कमरे में चला गया. रघुवर बेबस देखता रहा.

आज उसे अपनी शराब पीने की लत का परिणाम देखने को मिल रहा था जिसका खामियाजा रत्ना भुगत रही थी.

रत्ना बाहर आयी.उसके हाथ मे ढेर सारे हज़ार रुपये थे. रघुवर अस्पताल में भर्ती हो गया .इधर प्रभात जब जब तब रत्ना के पास आता .मोहल्ले में चर्चा होने लगी .

10 दिन बाद जब रघुवर स्वस्थ हो घर पहुँचा तो रत्ना की लाश पंखे पर टंगी थी .इधर रघुवर रत्ना कि लाश से लिपट लिपट कर रो रहा था और कभी शराब न पीने की कसमें खा रहा था और उधर ख़बर छपी ……चरित्रहीन रत्ना ने की आत्महत्या .”खबर पढ़कर रघुवर अपना दिमाग़ी संतुलन खो बैठा.शराब के कारण एक और हसता खेलता परिवार उजाड़ दिया.

Funny Story : भैयाजी का चुनावी कन्फैशन

Funny Story : मेरे मोबाइल फोन पर उन के मैसेज बारबार रहे थे कि मेरा वोट मेरी आवाज है. मैं अपनी आवाज को किसी के पास बिकने दूं. पर दूसरी ओर भैयाजी बराबर कह रहे थे कि रे लल्लू, मेरा वोट केवल और केवल उन की आवाज है. वे मेरी आवाज खरीदने के बाद ही संसद में अपनी आवाज उठाने लायक हो पाएंगे. मैं ने उन के मैसेज को इग्नोर कर इस बार भी मान लिया कि मेरा वोट उन की ही आवाज है.

वैसे दोस्तो, मेरे पास बेचने को अब मेरी आवाज बोले तो मेरा वोट ही बचा है. बाकी तो मेरा सबकुछ बिक चुका है, देश की संपत्तियों की तरह. सो, चुनाव के दिनों में उसे बेच कर कुछ दिन मैं भी हलकीफुलकी मस्ती कर लेता हूं.

अब के फिर चुनाव केड्राई डेको भी मुझे तर रखने वाले भैयाजी को वोट डालने के बाद मैं उन के घर गया उन का धन्यवाद करने. धन्य हों ऐसे भैयाजी, जोड्राई डेको भी अपने वोटरों को ड्राई नहीं रहने देते. उन को तर रखने का इंतजाम वे पहले ही कर देते हैं.

ऐसे भैयाजी जनता को बहुत सत्कर्मों के बाद मिलते हैं. हम ने पिछले जन्म में पता नहीं ऐसे क्या सत्कर्म किए थे, जो इस जन्म में हमें ऐसे ही खानदानी भैयाजी मिले.

भैयाजी केड्राई डेका कर्ज उतारने मैं उन के घर गया, तो वे अंधेरे कमरे में बैठे थे. राजमुजरा या राजमुद्रा में, वे ही जानें. पहले तो मैं ने सोचा कि चुनाव की थकान निकाल रहे होंगे. चुनाव के दिनों में तो जो नेता लोहे का भी हो तो वह भी थकान से चूरचूर हो जाए.

अपने भैयाजी तो ठहरे हाड़मांस के. इतने दिनों तक जागे, नींद आई. सोएसोए भी जागते रहते, जागतेजागते ही सोए रहते. जितना नेता चुनाव के दिनों में दिनरात एक करते हैं, इतना जो कोई साधारण से साधारण जीव स्वर्ग पाने के लिए करे तो उसे मोक्ष प्राप्त करने से कोई रोक पाए.

मैं ने उन के कमरे की दीवारों से आंखकान लगाए, तो भीतर अपने भैयाजी की आवाज सुनाई दी, भैयाजी दिखाई दिए. उन के चारों ओर मच्छर गुनगुना रहे थे. उन्होंने अपने आगे संविधान रखा था और खुद संविधान के आगे घुटने टेके क्षमायाचना की मुद्रा में.

तब पहली बार पता चला कि नेता भी किसी के आगे घुटने टेकते हैं, वरना मैं तो सोचता था कि नेता सभी को अपने आगे घुटने टिकवाते हैं.

भैयाजी हाथ जोड़े संविधान के आगे घुटने टेके कह रहे थे, ‘हे संविधान, चुनाव के दिनों में जो मैं ने अपने मौसेरे भाइयों को भलाबुरा कहा, मैं तुम्हें साक्षी मान कर उस के लिए उन से माफी मांगता हूं. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. जो रोटी के बदले मुझे कुरसी की भूख होती, तो मैं अपने मौसेरे भाइयों को जो मैं ने इस चुनाव में कहा, कभी कहता. इस अपराध के लिए वे मुझे माफ करें.

चुनाव के दिनों में जो मैं ने दिवंगत नेताओं को भलाबुरा कहा, मैं तुम्हें साक्षी मान कर उस के लिए उन से माफी मांगता हूं. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. जो रोटी के बदले मुझे कुरसी की भूख होती, तो मैं अपने दिवंगत नेताओं को जो मैं ने इस चुनाव में कहा, कभी कहता. इस अपराध के लिए वे मुझे माफ करें.

हे संविधान, चुनाव के दिनों में जो मैं ने जनता को लुभाने, रिझाने पटाने के लिए उन को झूठे आश्वासन दिए, तुम्हें साक्षी मान कर उस के लिए मैं दिल की गहराइयों से जनता से माफी मांगता हूं. ये मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. जो रोटी के बदले मुझे कुरसी की भूख होती, तो मैं भोलीभाली जनता को जो मैं ने इस चुनाव में झाठी गारंटियां दीं, कभी देता. इस अपराध के लिए झूठे आश्वासन हेतु मुझे माफ करें.

हे संविधान, झू बोलना हर पार्टी के, हर किस्म के नेता के अधिकार क्षेत्र में आता है. जनता से झू बोलना उस का मौलिक अधिकार है. जनता को छलना, दलना उस का पहला फर्ज है. पर चुनाव के दिनों में स्वयंमेव हर नेता को झू बोलने का विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है.

इस महापर्व में नेता के हजार झू भी माफी लायक होते हैं. दरअसल, इन दिनों उसे खुद पता नहीं होता कि वह जो बोल रहा है, क्या बोल रहा है. चुनाव के दिनों में जो मन में आए, बोलना उस का धर्म होता है, क्योंकि इन दिनों वह केवल और केवल अपने प्रचारी धर्म का पालन कर रहा होता है. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. इस अपराध के मेरा झू मुझे माफ करे.

हे संविधान, तुम मुझे समाज में जातिगत, धार्मिक, सांस्कृतिक प्रदूषण को फैलाने के दोष से दोषमुक्त करना.

मैं मानता हूं कि प्रदूषणों में सब से खतरनाक प्रदूषण जातिगत प्रदूषण होता है. पर क्या करूं, इन प्रदूषणों को समाज में फैलाने पर ही कोई अच्छा नेता बन पाता है.

समाज में जातिगत, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाए बिना स्वस्थ राजनीति हो ही नहीं सकती. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. इस अपराध के लिए जाति, धर्म मुझे माफ करे.

हे संविधानहे संविधान…’  

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