
अपनी सहेली के शादी समारोह से लौट कर जब शिवानी ने रात के 11 बजे घर की डोरबैल बजाई, तो उस के गुस्साए पापा ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘ऐयाशी कर के आ गई… घर आने का यही समय है क्या?’
इस के उलट शिवानी का भाई हर रोज दोस्तों के साथ आवारागर्दी कर के शराब के नशे में चूर घर में आधी रात तक भी आता है, पर उसे पापा कुछ भी नहीं बोलते.
बीसीएससी तबके की औरतें और लड़कियां सदियों से आज तक बेवजह के जोरजुल्म सहती आ रही हैं. अपने ऊपर हो रहे जोरजुल्म के खिलाफ तो हम आवाज उठाते रहते हैं, लेकिन इस समुदाय से जुड़े लोग खुद अपनी लड़कियों और औरतों को कई तरीकों से सताते रहते हैं. अनपढ़ से ले कर इस तबके के पढ़ेलिखे लोग भी किसी न किसी रूप में शामिल रहते हैं.
आज भी ज्यादातर घरों में लड़के और लड़कियों में फर्क सम झा जाता है. सब चाहते हैं कि उन के घर में लड़का पैदा हो. घर में 3-4 लड़कियां पैदा होने के बावजूद लड़के की चाहत में वे छिपछिपा कर लड़की को मां के पेट में ही गिरवा देते हैं. लड़के और लड़की में खानपान, पढ़ाईलिखाई सभी मामलों में फर्क किया जाता है. लड़का है तो उसे दूध और लड़की है तो उसे छाछ पीने को मिलेगी. लड़की सरकारी स्कूल में और लड़का प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए जाएगा.
औरंगाबाद जिले के सरकारी मिडिल स्कूल, भाव विगहा के प्रिंसिपल उदय कुमार ने बताया कि उन के स्कूल में लड़कियां ज्यादा आती हैं. दरअसल, इस गांव में सिर्फ बीसीएससी तबके के लोग रहते हैं. वे अपने लड़कों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं.
ज्यादातर लड़कियां इंटर के बाद ऊंची पढ़ाई या टैक्निकल ऐजूकेशन इसलिए नहीं ले पाती हैं कि पढ़ाने में ज्यादा खर्च आता है. लोग अपनी लड़कियों को शहरों में भेज कर नहीं पढ़ाना चाहते हैं.
इस बात से साफ जाहिर होता है कि आज भी लोगों के अंदर यह सोच घर की हुई है कि बेटियों को अच्छी तालीम देने से कोई फायदा नहीं है. इस के उलट लोग अपने लड़कों को कर्ज ले कर भी ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना चाहते हैं. वे सोचते हैं कि लड़का है तो आने वाले दिनों में वह घर का सहारा बनेगा.
बीसीएससी तबके की पढ़ने वाली छोटीछोटी लड़कियां बरतन धोने, छोटे बच्चों को खिलाने, बकरी चराने के अलावा दूसरे तमाम घरेलू काम भी करती हैं, जबकि लड़के स्कूल से आने के बाद ट्यूशन, मोबाइल और क्रिकेट खेलने में मस्त रहते हैं.
इन जातियों में लड़कियों की शादी 15 से 20 साल तक की उम्र में कर दी जाती है. साधारण घर की लड़कियां तो मायके में भी अपने मातापिता के साथ खेतीकिसानी से जुड़ी मजदूरी में हाथ बंटाती हैं और ससुराल जाने पर वहां भी खूब काम करना पड़ता है.
ईंटभट्ठे पर काम कर रही 23 साल की शादीशुदा रजंती ने बताया कि उस का घर गया जिले के आजाद बिगहा गांव में है. उस के बाबूजी पूरे परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के बनारस के पास ईंटभट्ठे पर काम करने के लिए जाते थे. सिर्फ बरसात के दिनों में 3 महीने वे लोग अपने गांव में रहते थे, बाकी जिंदगी ईंटभट्ठे पर ही गुजारी.
पहले रजंती अपने मांबापू के साथ मिल कर काम करती थी, आज अपने सासससुर और पति के साथ काम करती है. शादी के बाद 3 महीने तक वह अपनी ससुराल में घर पर ही रही, फिर अपनी ससुराल वालों के साथ ईंटभट्ठे पर जाने लगी.
इसी तरह काजल ने बताया, ‘‘मेरी शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी. मु झ से छोटा एक भाई और एक बहन थी. मांबापू दूसरे के खेतों में मजदूरी करते थे. घर पर खाना बनाना और भाईबहन को संभालना मेरा काम रहता था.
‘‘जब वे लोग थोड़ा बड़े हुए और स्कूल जाने लगे, तो मैं मांबापू के साथ खेतों में धान और गेहूं काटने और रोपने के लिए जाने लगी.
‘‘जब शादी हुई तो मैं ससुराल चली गई. 6 महीने घर में रही, उस के बाद मेरे पति अपने गांव के दोस्तों के साथ काम करने के लिए लुधियाना शहर चले गए. सासससुर मु झे अपने साथ मजदूरी पर चलने के लिए बहुत ज्यादा मजबूर करने लगे. मैं बेमन से काम पर जाने लगी. कोई उपाय नहीं था. पति ने भी यही कहा था कि सासससुर जो कह रहे हैं, वही करो.
‘‘अब मैं 4 बजे भोर में उठती हूं. सभी लोगों का खाना बना कर, खा कर काम पर निकल जाती हूं. शाम को काम से वापस आती हूं, फिर बरतन धोती हूं. खाना बनाती हूं. बिस्तर पर जाते ही नींद आ जाती है.’’
ऐसे उदाहरण सिर्फ गांवों में ही देखने को नहीं मिलते हैं, बल्कि शहरों में भी इसी तरह की समस्याएं हैं, लेकिन थोड़े अलग ढंग की.
शिवानी एक कंपनी में टाइपिस्ट की नौकरी करती है. बेटा भी इंजीनियरिंग कर के नौकरी करता है. उसे कभी ताना नहीं सुनना पड़ता है, लेकिन औरत होने के नाते उसे ताने सुनने पड़ते हैं.
कहीं लड़कियों को जब बाजार, पार्टी या दोस्त के यहां जाने की जरूरत पड़ती है, तो बड़ी उम्र की लड़कियों के साथ घर के छोटे लड़कों को उन की हिफाजत के नाम पर साथ भेजा जाता है, जबकि ये छोटे लड़के आफत होने पर किसी भी तरह से अपनी बहन को बचा नहीं सकते हैं, लेकिन परिवार वालों को लड़के पर ज्यादा भरोसा होता है, लड़कियों पर बिलकुल भी नहीं.
लड़कियों को घर की इज्जत सम झा जाता है. बचपन से ही उन्हें सिखाया जाता है कि ऊंची आवाज में बात मत करो, खींखीं कर के मत हंसो. उन पर और भी तमाम तरह की पाबंदियां लगाई जाती हैं.
किसी लड़के से प्यार कर के उस से शादी करने का सपना देखने वाली न जाने कितनी लड़कियों को तो उन के परिवार वालों द्वारा ही हत्या तक कर दी जाती है.
साधारण परिवारों में लड़कियों के साथ बचपन से ले कर बूढ़ी होने तक गैरबराबरी और जोरजुल्म का माहौल रहता है. बचपन में मांबाप और भाई, फिर जवान होने पर शादी के बाद में सासससुर और पति, उस के बाद बुढ़ापे में जवान बेटों द्वारा उन्हें सताने की कहानी आम है.
साधारण हैसियत वाले लोगों के घरों में जरूरी सामान के लिए भी उन में लड़ाई झगड़ा होना आम बात है. पति शराब पी कर घर आता है, फिर पत्नी के साथ गालीगलौज और मारपीट करता है. इस के बावजूद पत्नी पर समाज और परिवार का दबाव बना रहता है कि वह अपने पति को परमेश्वर माने.
आज भी बहुत से घरों में पहले मर्द खाना खाते हैं और बाद में औरतें खाती हैं. अगर सब्जीदाल खत्म हो गई तो औरतें अपने लिए दोबारा नहीं बनाती हैं. वे नमकमिर्च या अचार के साथ रोटी खा कर सो जाती हैं.
बीसीएससी तबके की लड़कियों के साथ हर जगह, जैसे पढ़ाई करते हुए, खेतखलिहान और औफिस तक में काम करते हुए मर्दों का मजाक करना, शरीर को छूना और मौका मिलने पर यौन शोषण का शिकार हो जाना आम बात है.
कमजोर तबके की होने की वजह से वे मुंह खोलना जायज नहीं सम झती हैं. इन्हें पता होता है कि इन दबंग लोगों के सामने उन्हें इंसाफ नहीं मिल पाएगा और सिर्फ बदनामी का ही सामना करना पड़ेगा.
लड़कियों को तो हर बात में परिवार वालों द्वारा तमीज सिखाई जाती है, लेकिन लड़कों को नहीं. घर के लड़के किसी लड़की के साथ गलत ढंग से पेश आते हैं, तो उन्हें कुछ नहीं कहा जाता है.
पर होना तो यह चाहिए कि जिस तरह से लड़कियों को तमीज सिखाते हैं, उसी तरह से लड़कों को भी सहीगलत का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए.
अगर आप आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छा समाज बनाना चाहते हैं तो लड़का और लड़की दोनों को सही और गलत में फर्क करना सिखाएं.
बीसीएससी समाज में तो इस बात की बहुत जरूरत है. इस तबके की लड़कियां बड़ी मेहनती होती हैं. वे किसी भी शारीरिक काम को कर सकती हैं. लेकिन उन्हें उन के ही समाज वाले इज्जत नहीं देते हैं. वे भी अपने में सुधार लाएं और लड़कियों व औरतों को बराबर का समझें.
‘‘अभि, मैं आज कालिज नहीं आ रही. प्लीज, मेरा इंतजार मत करना.’’
‘‘क्यों? क्या हुआ वेदश्री. कोई खास समस्या है?’’ अभि ने एकसाथ कई प्रश्न कर डाले.
‘‘हां, अभि. मानव की आंखों की जांच के लिए उसे ले कर डाक्टर के पास जाना है.’’
‘‘क्या हुआ मानव की आंखों को?’’ अभि की आवाज में चिंता घुल गई.
‘‘वह कल शाम को जब स्कूल से वापस आया तो कहने लगा कि आंखों में कुछ चुभन सी महसूस हो रही है. रात भर में उस की दाईं आंख सूज कर लाल हो गई है.
आज साढ़े 11 बजे का
डा. साकेत अग्रवाल से समय ले रखा है.’’
‘‘मैं तुम्हारे साथ चलूं?’’ अभि ने प्यार से पूछा.
‘‘नहीं, अभि…मां मेरे साथ जा रही हैं.’’
डा. साकेत अग्रवाल के अस्पताल में मानव का नाम पुकारे जाने पर वेदश्री अपनी मां के साथ डाक्टर के कमरे में गई.
डा. साकेत ने जैसे ही वेदश्री को देखा तो बस, देखते ही रह गए. आज तक न जाने कितनी ही लड़कियों से उन की अपने अस्पताल में और अस्पताल के बाहर मुलाकात होती रही है, लेकिन दिल की गहराइयों में उतर जाने वाला इतना चित्ताकर्षक चेहरा साकेत की नजरों के सामने से कभी नहीं गुजरा था.
वेदश्री ने डाक्टर का अभिवादन किया तो वह अपनेआप में पुन: वापस लौटे.
अभिवादन का जवाब देते हुए डाक्टर ने वेदश्री और उस की मां को सामने की कुरसियों पर बैठने का इशारा किया.
मानव की आंखों की जांच कर
डा. साकेत ने बताया कि उस की दाईं आंख में संक्रमण हो गया है जिस की वजह से यह दर्द हो रहा है. आप घबराइए नहीं, बच्चे की आंखों का दर्द जल्द ही ठीक हो जाएगा पर आंखों के इस संक्रमण का इलाज लंबा चलेगा और इस में भारी खर्च भी आ सकता है.
हकीकत जान कर मां का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. वेदश्री मम्मी को ढाढ़स बंधाने का प्रयास करती हुई किसी तरह घर पहुंची. पिताजी भी हकीकत जान कर सकते में आ गए.
वेदश्री ने अपना मन यह सोच कर कड़ा किया कि अब बेटी से बेटा बन कर उसे ही सब को संभालना होगा.
मानव जैसे ही आंखों में चुभन होने की फरियाद करता वह तड़प जाती थी. उसे मानव का बचपन याद आ जाता.
उस के जन्म के 15 साल के बाद मानव का जन्म हुआ था. इतने सालों के बाद दोबारा बच्चे को जन्म देने के कारण मां को शर्मिंदगी सी महसूस हो रही थी. वह कहतीं, ‘‘श्री…बेटा, लोग क्या सोचेंगे? बुढ़ापे में पहुंच गई, पर बच्चे पैदा करने का शौक नहीं गया.’’
‘‘मम्मा, आप ऐसा क्यों सोचती हैं.’’ वेदश्री ने समझाते हुए कहा, ‘‘आप ने मुझे राखी बांधने वाला भाई दिया है, जिस की बरसों से हम सब को चाहत थी. आप की अब जो उम्र है इस उम्र में तो आज की आधुनिक लड़कियां शादी करती दिखाई देती हैं…आप को गलतसलत कोई भी बात सोचने की जरूरत नहीं है.’’
गोराचिट्टा, भूरी आंखों वाला प्यारा सा मानव, अभी तो आंखों में ढेर सारा विस्मय लिए दुनिया को देखने के योग्य भी नहीं हुआ था कि उस की एक आंख प्रकृति के सुंदरतम नजारों को अपने आप में कैद करने में पूर्णतया असमर्थ हो चुकी थी. परिवार में सब की आंखों का नूर अपनी खुद की आंखों के नूर से वंचित हुआ जा रहा था और वे कुछ भी करने में असमर्थ थे.
‘‘वेदश्रीजी, कीटाणुओं के संक्रमण ने मानव की एक आंख की पुतली पर गहरा असर किया है और उस में एक सफेद धब्बा बन गया है जिस की वजह से उस की आंख की रोशनी चली गई है. कम उम्र का होने के कारण उस की सर्जरी संभव नहीं है.’’
15 दिन बाद जब वह मानव को ले कर चेकअप के लिए दोबारा अस्पताल गई तब डा. साकेत ने उसे समझाते हुए बताया तो वह दम साधे उन की बातें सुनती रही और मन ही मन सोचती रही कि काश, कोई चमत्कार हो और उस का भाई ठीक हो जाए.
‘‘लेकिन उचित समय आने पर हम आई बैंक से संपर्क कर के मानव की आंख के लिए कोई डोनेटर ढूंढ़ लेंगे और जैसे ही वह मिल जाएगा, सर्जरी कर के उस की आंख को ठीक कर देंगे, पर इस काम के लिए आप को इंतजार करना होगा,’’ डा. साकेत ने आश्वासन दिया.
वेदश्री भारी कदमों और उदास मन से वहां से चल दी तो उस की उदासी भांप कर साकेत से रहा न गया और एक डाक्टर का फर्ज निभाते हुए उन्होंने समझाया, ‘‘वेदश्रीजी, मुझे आप से पूरी हमदर्दी है. आप की हर तरह से मदद कर के मुझे बेहद खुशी मिलेगी. प्लीज, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिएगा, ये बात मैं दिल से कह रहा हूं.’’
‘‘थैंक्स, डा. साहब,’’ उसे डाक्टर का सहानुभूति जताना उस समय सचमुच अच्छा लग रहा था.
मानव की आंख का इलाज संभव तो था लेकिन दुष्कर भी उतना ही था. समय एवं पैसा, दोनों का बलिदान ही उस के इलाज की प्राथमिक शर्त बन गए थे.
पिताजी अपनी मर्यादित आय में जैसेतैसे घर का खर्च चला रहे थे. बेटे की तकलीफ और उस के इलाज के खर्च ने उन्हें उम्र से पहले ही जैसे बूढ़ा बना दिया था. उन का दर्द महसूस कर वेदश्री भी दुखी होती रहती. मानव की चिंता में उस ने कालिज के अलावा और कहीं आनाजाना कम कर दिया था. यहां तक कि अभि जिसे वह दिल की गहराइयों से चाहती थी, से भी जैसे वह कट कर रह गई थी.
डा. साकेत अग्रवाल शायद उस की मजबूरी को भांप चुके थे. उन्होंने वेदश्री को ढाढ़स बंधाया कि वह पैसे की चिंता न करें, अगर सर्जरी जल्द करनी पड़ी तो पैसे का इंतजाम वह खुद कर देंगे. निष्णात डाक्टर होने के साथसाथ साकेत एक सहृदय इनसान भी हैं.
‘‘देखिए, सब से पहले आवश्यक है आप का अपने ऊपर विश्वास का होना. स्वयं को अबला नहीं, बल्कि दुनिया का सब से सशक्त इंसान समझने का वक्त है. यदि आप मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत हैं तो विश्वास कीजिए कि कोई आप को हाथ तक नहीं लगा सकता. मैं शिक्षकों से भी कहना चाहूंगा कि वे बालिकाओं को मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाएं कि अपने साथ होने वाले हर अनुचित व्यवहार का वे दृढ़ता से मुकाबला कर सकें. यदि कभी कोई आप के साथ किसी प्रकार की हरकत करता है तो आप उसे मुंहतोड़ जवाब दें. यदि फिर भी मसला न सुल झे, तो हमारे पास आइए, हम आप की मदद करेंगे.’’
‘‘पर सर, यदि कभी हमारे शिक्षक ही हमारे साथ कुछ ऐसावैसा करें तो? क्योंकि न्यूजपेपर में तो अकसर ऐसा ही कुछ पढ़ने में आता है.’’
‘‘तो…तो…उसे भी छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. शिक्षक है तो क्या हुआ, आप उस के सौ खून माफ कर देंगी? ऐसे व्यक्ति को शिक्षक बनने का अधिकार नहीं है.’’ सिटी एसपी अमित ने कुछ उत्तेजना से 12वीं में पढ़ने वाली बच्ची के प्रश्न का जवाब तो दे दिया परंतु इस प्रश्न ने उन्हें अंदर तक झक झोर भी दिया. उन के हाथपांवों में कंपन महसूस होने लगा और भरी सर्दी में भी माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. स्कूल स्टाफ के सामने बड़ी मुश्किल से वे स्वयं को संयत कर पाए और तय समय से आधे घंटे पूर्व ही अपना लैक्चर समाप्त कर के फुरती से गाड़ी में आ कर बैठ गए. खिड़की से बाहर की ओर वे गंभीर मुद्रा में देखने लगे.
हमेशा जोशखरोश से भरे रहने वाले और खुशमिजाज एसपी साहब को यों शांत और गंभीर देख कर ड्राइवर रमेश कुछ डरेसहमे से स्वर में बोला, ‘‘सर, कहां चलना है?’’
‘‘घर चलो,’’ एसपी अमित ने कहा.
जैसे ही उन के बंगले के सामने गाड़ी रुकी, वे तेजी से चलते हुए अपने बैडरूम में पहुंचे और दरवाजा बंद कर के अपने बैड पर निढाल से पड़ गए. यह तो अच्छा था कि पत्नी सृष्टि अभी घर पर नहीं थी, वरना उन का यह हाल देख कर परेशान हो जाती. आज उन के विवाह को 3 वर्ष और नौकरी को 5 वर्ष हो गए थे. वे 2 साल की बेटी के पिता भी थे. पत्नी सृष्टि एक सरकारी कालेज में प्रोफैसर और बहुत ही सुल झी हुई महिला थी. वह घरबाहर और नातेरिश्तेदारों की जिम्मेदारियां भलीभांति निभा रही थी. कुल मिला कर बड़ा ही खुशगवार जीवन जी रहे थे वे.
कुछ समय पूर्व ही उज्जैन जिले में तबादला हो कर वे आए थे. एक सरकारी स्कूल में आयोजित बालिका सुरक्षा सप्ताह के दौरान उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. वे बहुत खुशीखुशी आए थे. परंतु एक बालिका के प्रश्न ने उन के भूले साल सामने ला खड़े किए थे.
उस समय एमएससी करने के बाद वे अपने गांव से दूर छोटी बहन के साथ भोपाल में ही रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. सो, अपने खर्चे के लिए कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा दिया करते थे. एक दिन उन की एक सहपाठी का फोन आया, ‘अमित, मेरी आंटी की बेटी 11वीं में है जिसे मैथ्स पढ़ना है. अगर तेरे पास टाइम हो तो देख ले.’
‘हांहां, ठीक है, मैं पढ़ा दूंगा. मेरे पास अभी एक भी ट्यूशन नहीं है.’
सहपाठी ने अपनी आंटी का पता और मोबाइल नंबर उन्हें भेज दिया. उन से बातचीत होने के बाद अगले दिन से उन्होंने बड़ी लगन से उस बच्ची को पढ़ाना प्रारंभ भी कर दिया. बच्ची होनहार थी. मातापिता भी शिक्षित थे. कुल मिला कर अच्छा संस्कारी परिवार था. आंटीअंकल दोनों ही उन से बहुत स्नेह रखते थे. उन की लगन और बच्ची की मेहनत ने असर दिखाया और बच्ची धीरेधीरे अपनी कक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने लगी थी, जिस से आंटीअंकल दोनों ही उन से बहुत खुश थे.
आंटी अकसर उन से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों के बारे में बातचीत करती रहती थीं. उन से बात कर के उन्हें भी बहुत अच्छा लगता था, क्योंकि उन की सकारात्मक बातें सुन कर वे स्वयं उत्साह से भर उठते थे. एक वर्ष में ही उन्होंने अपना विश्वास सब पर भलीभांति जमा लिया था.
बच्ची की अब वार्षिक परीक्षाएं आने वाली थीं, सो, कोर्स पूरा करवा कर रिवीजन वर्क चल रहा था. इन दिनों पढ़ाने को तो कुछ खास नहीं होता था, वे बैठेबैठे पेपर या पत्रिकाएं पलटते रहते. बीचबीच में बच्ची के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दे देते. कई बार उन का युवा मन बच्ची की ओर आकर्षित भी होने लगता. परंतु अगले ही पल अपनी बहकी भावनाओं पर वे काबू पा लेते. पर शायद बेरोजगारी व्यक्ति की विचारधारा, मानसिकता और सोचनेसम झने की शक्ति सभी का हरण कर लेती है, वे 2 वर्ष से बेरोजगार थे.
उस दिन उन की भावनाओं पर से उन का नियंत्रण ही मानो समाप्त हो गया. उस दिन आंटी अर्थात बच्ची की मां की तबीयत खराब थी और डाक्टर ने 6 बजे का टाइम दिया था. सो, वे अंकल के साथ चली गईं. उन के जाते ही उन की अभी तक सुसुप्त भावनाएं मानो कुलांचें भरने लगीं. उन्हें याद ही नहीं कि उन्होंने कब और कैसे बच्ची का हाथ जोर से पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया और आंखें बंद कर लीं.
उन की चेतना कानों में पड़ी बच्ची की आवाज से लौटी, ‘सर, व्हाट आर यू डूइंग?’ बच्ची इस अप्रत्याशित सी घटना से सहम गई थी. झटके से अपना हाथ छुड़ा कर वह कोने में जा कर खड़ी हो गई. बच्ची की आवाज सुन कर वे मानो सोते से जाग गए और सौरी कह कर एक गिलास पानी पी कर अपना सिर नीचा कर के वापस घर की ओर चल दिए.
क्षणिक आवेग ने उन का चरित्र, संस्कार और आत्मनियंत्रण सब तारतार कर दिया. आत्मग्लानि से मन स्वयं के प्रति ही वितृष्णा से भर उठा. पूरे रास्ते वे सिर झुका कर चलते रहे, मानो सड़क पर चलने वाले हर शख्स की नजरें उन्हें ही घूर रही हों. जैसे ही वे घर में घुसे, उन के चेहरे का उड़ा रंग देख कर छोटी बहन बोली, ‘क्या हुआ भैया, इतने घबराए हुए क्यों हो?’
‘नहीं, कुछ नहीं. तुम अपना काम करो. मैं छत पर हूं,’ कह कर वे छत पर आ गए थे.
छत पर खुली हवा में आ कर लंबी सांस ली. मानसिक अंतर्द्वंद्व चरम पर था. ‘कैसे अपना आपा खो दिया मैं ने. यदि उन लोगों ने एफआईआर लिखा दी तो कहीं का नहीं रहूंगा. आजकल तो घूरने तक पर कड़ी सजा का प्रावधान है. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.’ यह सब सोचतेसोचते वे बेचैन हो उठे.
हालात जानने के लिए बच्ची की मां को फोन लगा दिया और बड़ी ही मासूमियत से बोले, ‘आंटी, शुक्रवार को कितने बजे आना है?’
???‘रोज के समय पर ही आ जाना बेटे.’ आंटी को उतने ही प्यार से बात करते देख वे आश्वस्त हो गए कि बच्ची ने आंटी को कुछ नहीं बताया है क्योंकि चलते समय उन्होंने बच्ची से सौरी बोल कर मां को कुछ न बताने की विनती की थी.
2 दिनों तक जब उधर से कोई फोन नहीं आया तो वे आश्वस्त हो गए कि मामला शांत हो गया है. तीसरे दिन सुबहसुबह जब वे नाश्ता कर के उठे ही थे कि मोबाइल बज उठा. मोबाइल स्क्रीन पर आंटी का नाम देखते ही उन के हाथ कांप उठे. किसी तरह साहस कर के उन्होंने ‘हैलो’ बोला. उधर से कड़कती आवाज आई, ‘तुम्हारे मातापिता ने संस्कार नाम की चीज से परिचित कराया है या नहीं. तुम्हें ऐसी हरकत करते हुए खुद पर शर्म नहीं आई?’
सामने छोटी बहन बैठी थी. सो, वे एकदम हड़बड़ा गए और कड़क स्वर में बोले, ‘क्या, क्या किया क्या है मैं ने. अपने शब्दों को लगाम दीजिए.’
‘यह भी मु झे ही बताना पड़ेगा कि तुम ने किया क्या है. बेशर्मी की भी हद होती है.’
‘नहींनहीं आंटी, वह मेरी बहन थी सामने, इसलिए. अब मैं छत पर आ गया हूं. सौरी आंटी, गलती हो गई. मैं हाथ जोड़ कर माफी मांगता हूं.’
‘क्यों, अपनी बहन की इतनी चिंता हो रही है. अपनी सगी बहन के अलावा दूसरी हर लड़की तुम लड़कों को अपनी इच्छापूर्ति का साधन लगती है और तुम उन्हें छेड़ना शुरू कर देते हो. कितनी गंदी मानसिकता है तुम्हारी. तुम्हारे जैसे आवारा कुछ नहीं कर सकते अपनी जिंदगी में. मैं अभी थाने जा रही हूं तुम्हारी रिपोर्ट करने. तुम्हें तो मैं कहीं का नहीं छोड़ूंगी.’
आंटी के क्रोध से वे बुरी तरह घबरा गए. और जब वे कुछ शांत हुईं तो धीरे से अपना बचाव करते हुए वे बोले, ‘आंटी, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, आप जो चाहे सजा दे लें. आप ही बताइए 2 वर्षों से मैं उसे पढ़ा रहा हूं, कभी ऐसा नहीं हुआ. दरअसल, आज उस ने कुछ अलग, अजीब से कपड़े पहने थे, सो, मैं डिस्ट्रैक्ट हो गया था.’
‘क्या कहा? कपड़े ऐसे पहने थे? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? अब क्या लड़कियां अपनी मरजी के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं, क्योंकि उन्हें देख कर लड़के अपनेआप पर काबू नहीं रख पाते. खुद को काबू नहीं कर सकते तो सड़क पर नजरें नीचे कर के चला करो या घर में बैठो. पर मेरी बेटी वही पहनेगी जो उस का दिल करेगा. क्या तुम्हारी बहन तुम से पूछ कर कपड़े पहनती है? क्या अपनी बेटी को भविष्य में तुम ऊपर से नीचे तक तन ढकने वाले कपड़े पहनाओगे?’
आंटी की तर्कयुक्त बातों के आगे उन की तो बोलती ही बंद हो गई. वे दबी आवाज में बोले, ‘नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है. मैं अपनी गलती मानता हूं. मैं बहक गया था. पर मेरा यकीन मानिए मैं ने ऐसावैसा कुछ नहीं किया.’
इतना सुनते ही आंटी फिर भड़क गईं और दहाड़ते हुए बोलीं, ‘और क्या करना चाहते थे मेरी बेटी के साथ? मन तो कर रहा है तुम्हें अभी ही पुलिस के हवाले कर दूं. जेल की सलाखों के पीछे सड़ोगे, तभी सम झ आएगा. मु झे शर्म आती है तुम्हारे मातापिता के संस्कारों पर. यदि उन्हें पता चल जाए तो अपनी परवरिश पर ही शर्म आने लगेगी उन्हें. तुम जानते हो तुम्हारे जैसे सैकड़ों, हजारों युवक बेरोजगार सड़कों पर क्यों घूम रहे हैं, क्योंकि उन के अंदर आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्मनियंत्रण ही नहीं है. जिस दिन इन पर विजय पा लोगे, जिंदगी में कुछ बन जाओगे.’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया.
वे बदहवास से मोबाइल को ही घूरने लगे. उन्हें काटो तो खून नहीं. आंटी ने कुछ ही मिनटों में उन्हें जमीन पर ला पटका था. सच पूछो तो वे घबरा कर रोने लगे थे. ‘क्या करूं, क्या जवाब दूंगा मातापिता को. मु झे क्या हो गया. मेरी एक बेवकूफी ने आज मेरे चरित्र को ही बरबाद कर दिया. यह मैं ने क्या कर दिया,’ सब सोचतेसोचते उन का सिर दर्द करने लगा. तभी बहन ने आवाज लगाई और वे नीचे आ गए.
बहन ने उन के सामने भोजन की थाली लगा दी थी. उन के हलक में तो थूक तक निगलने की गुंजाइश नहीं थी तो खाना कहां नीचे उतरता. सो, ‘भूख नहीं है बाद में खा लूंगा’ कह कर बहन से थाली उठाने को कह दिया. उसी समय उन के फोन की घंटी फिर बजी. फोन आंटी का ही था.
‘तुम्हारी बदतमीजी का फल तुम्हें खुद मिलेगा. मैं क्यों तुम्हारा वह जीवन खराब करूं जिस की अभी शुरुआत ही नहीं हुई है. जाओ, मैं ने तुम्हें अभयदान दिया. पर ध्यान रखना, अपने जीवन में सभी लड़कियों और महिलाओं की उतनी ही इज्जत करना जितनी अपनी मांबहन की करते हो. जीवन में यदि कुछ बन सकोगे तो समाज में इज्जत की दो रोटी खा पाओगे. वरना ऐसे ही सड़क पर चप्पलें चटकाते और लड़कियों को छेड़ते रहोगे,’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया था.
उस के बाद की कई रातों तक ठीक से सो ही नहीं पाए वे. बारबार आंटी की बातें कानों में गूंजतीं. पर वह घटना उन के जीवन की टर्निंग पौइंट बन गई. उस के बाद के 2 साल तक उन्होंने जम कर मेहनत की. उसी मेहनत के परिणामस्वरूप अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने आईपीएस की परीक्षा पास की और एसपी बने. 8 वर्ष पुरानी उस घटना को सोचतेसोचते उन का सिर दर्द से फटने लगा. मन एक बार फिर आत्मग्लानि से भर उठा.
तभी अचानक सृष्टि की आवाज उन के कानों में गूंज उठी.
‘‘क्या हुआ एसपी साहब, आज बड़ी जल्दी घर आ गए. तबीयत तो ठीक है न,’’ कह कर सृष्टि ने उन के माथे पर हाथ रख दिया और घबरा कर बोली, ‘‘अरे, तुम्हें तो तेज बुखार है. क्या हुआ, सुबह तो एकदम ठीक थे. अभी मैं डाक्टर को बुलाती हूं.’’ कह कर वह मोबाइल में नंबर खोजने लगी तो अमित ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है. चाय पिला कर, बस दवाई दे दो, ठीक हो जाऊंगा.’’
सृष्टि चाय बनाने किचन में चली गई, तो वे फिर बेचैन हो उठे. तभी सृष्टि ने हाथ में चायनाश्ते की ट्रे के साथ कमरे में प्रवेश किया. चाय का कप हाथ में पकड़ाते हुए वह उन के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, कुछ बेचैन और परेशान से लग रहे हो. औफिस की कोई परेशानी है क्या. मु झे बताओ, शायद मैं कोई हल निकाल सकूं.’’
‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं. बस, ऐसे ही मन कुछ उदास था. गोलू सो गई क्या? लाओ, उसे मेरे पास सुला दो.’’ कह कर अमित ने बात के रुख को बदलना चाहा. कुछ ही देर में सृष्टि गोलू को अमित की बगल में सुला कर चली गई. जैसे ही उन्होंने बगल में लेटी गोलू की तरफ देखा, तो सोचने लगे, ‘यदि कोई लड़का कभी मेरी गोलू के साथ ऐसी हरकत करेगा तो…तो मैं उसे जान से मार दूंगा. तो क्या मु झे भी उसी समय जान से मार दिया जाना चाहिए था?’ सोचतेसोचते कब आंख लग गई उन्हें भी नहीं पता.
सुबह जब सृष्टि ने उन्हें झक झोरा, तो उन की आंख खुली. चाय पीतेपीते सृष्टि बोली, ‘‘अमित, तुम कल से कुछ परेशान हो, बताओ तो हुआ क्या है? रात में भी तुम बड़बड़ा रहे थे. ‘नहीं, मु झे माफ कर दो. मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. आंटी, मु झे माफ कर दो.’ प्लीज, मु झे बताओ इस तरह अकेले मत घुटो, हुआ क्या है. मैं साइकोलौजी की प्रोफैसर हूं, अवश्य तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊंगी.’’
अमित की आंखें भर आईं और वे दुखी स्वर में बोले, ‘‘सृष्टि मेरे जीवन की एक घटना है जिस ने मेरा जीवन तो बना दिया परंतु वह मेरे अब तक के सफल जीवन का एक काला धब्बा भी है. कल कुछ ऐसा हुआ कि मैं स्वयं की ही नजरों में गिरता जा रहा हूं. पहले तुम मु झ से वादा करो कि तुम मु झे गलत नहीं सम झोगी और मु झे इस झं झावात से निकलने का कोई उपाय बताओगी.’’
‘‘हां भई, पक्का वादा. अब 3 साल में तुम मु झ पर इतना भरोसा तो कर ही सकते हो न,’’ सृष्टि ने अमित का हाथ अपने हाथ में ले कर उस की आंखों में झांकते हुए कहा.
सृष्टि की आंखों में अपने लिए विश्वास देख कर अमित ने रुंधे गले से 8 वर्ष पूर्व का पूरा घटनाक्रम जस का तस सृष्टि को सुना दिया. ‘‘इस दौरान मैं उस घटना को भूल सा गया था पर आज स्कूल में उस बच्ची के एक प्रश्न ने मु झे फिर मेरी ही नजरों के कठघरे में ला खड़ा किया है,’’ कहते हुए अमित शांत हो कर सृष्टि के चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयास करने लगे.
‘‘अमित, तुम्हें पता है हमारे समाज में हो रहे अपराधों का सब से बड़ा कारण आज के युवा की बेरोजगारी है. घर और मातापिता की जिम्मेदारियों के बीच में जब एक युवाओं अथक प्रयास के बाद भी नौकरी प्राप्त नहीं कर पाता या आर्थिक जिम्मेदारियों को उठाने के लायक नहीं हो जाता, तो वह स्वयं को असहाय सा महसूस करने लगता है. और जब यह काफी समय तक होता है तो वह युवा अवसाद से घिरने लग जाता है और उस की यह फ्रस्टे्रशन ही उसे गलत दिशा में मोड़ देती है.
‘‘मैं तुम्हारे इस व्यवहार को सही तो नहीं कह सकती क्योंकि आप कितने ही परेशान क्यों न हो, गलत मार्ग को अपना कर स्वयं पर से नियंत्रण खो देना तो सरासर गलत ही है. पर हां, अपनी गलती की स्वीकारोक्ति ही व्यक्ति की सब से बड़ी सजा होती है. वह तुम्हारा सैल्फरियलाइजेशन ही था जिस के परिणामस्वरूप तुम आज एक आला दर्जे के अधिकारी बन पाए हो. हां, तुम्हें जो आत्मग्लानि है उस से निकलने का एकमात्र रास्ता है कि तुम जा कर उन आंटी से मिल कर माफी मांग लो और उन्हें बताओ कि उस दिन उन के द्वारा तुम्हें दिया गया अभयदान बेकार नहीं गया.’’ ‘‘हां, तुम सही कह रही हो. मैं जब तक उन से मिलूंगा नहीं, चैन से सो नहीं पाऊंगा,’’ कह कर अमित अपनी पुरानी डायरी में आंटी का मोबाइल ढूंढ़ने लगे. उज्जैन से भोपाल की दूरी ही कितनी थी, सो, रविवार के दिन वे भोपाल की अरेरा कालोनी में थे.
‘न जाने वे मु झे माफ करेंगी भी, या नहीं. क्या प्रतिक्रिया होगी उन की मु झे देख कर? पता नहीं उन्हें मैं याद भी होऊंगा या नहीं. परंतु जब तक मैं उन से मिल कर अपने दिल का हाल कह कर माफी नहीं मांग लेता, मेरा प्रायश्चित्त ही नहीं हो पाएगा और मैं ताउम्र तिलतिल कर मरता रहूंगा. एक बार मिलना तो होगा ही. शायद वे मु झे माफ कर सकें,’ सोचतेसोचते वे कब अरेरा कालोनी के ई 7 के कामायनी परिसर में एक एचआईजी मकान के सामने आ कर खड़े हो गए, उन्हें पता ही न चला
उन्होंने धड़कते दिल से घंटी बजाई. दरवाजा आंटी ने ही खोला. अमित ने झुक कर उन के पैर छू लिए. वे बोलीं, ‘‘अरे, कौन हो भाई? मैं पहचान नहीं पा रही हूं.’’
‘‘आंटी, मैं, अमित.’’
‘‘ओहो अमित, कुछ बन पाए या आज भी…’’ आंटी अपनी याददाश्त पर कुछ जोर डालते हुए बोलीं.
‘‘आंटी, मैं आईपीएस हो गया हूं. पर यकीन मानिए कि आज मैं जो कुछ भी हूं आप के कारण हूं. पर 8 वर्ष पुरानी उस घटना के लिए मैं आज भी क्षमाप्रार्थी हूं. आप ने उस दिन क्रोध में मु झे मेरी असलियत, कर्तव्य और जीवन के मूल्य सम झाए थे. पर आज आप प्यारभरा आशीष मु झे दीजिए तो मैं सम झूंगा कि आप ने सच्चे मानो में मु झे माफ कर दिया है.’’
‘‘वैल डन, वैल डन. उस दिन तुम्हारी आत्मग्लानि देख कर मु झे सम झ आ गया था कि तुम बहक गए हो. तुम्हें माफ कर के मैं ने तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया था कि यदि तुम्हें अपने ऊपर वास्तव में पछतावा होगा तो अवश्य जीवन में कुछ बन सकोगे. दरअसल, कभीकभी सजा से अधिक माफ करना आवश्यक होता है क्योंकि हर अपराधी को सजा से नहीं सुधारा जा सकता और न ही हरेक को माफी से. उस समय मैं ने वही किया जो मु झे ठीक लगा.
‘‘मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है. खूब उन्नति करो. पर महिलाओं का सम्मान करना कभी मत छोड़ना,’’ कह कर आंटी ने खुश हो कर उन के ऊपर अपना वरदहस्त रख दिया.
आंटी का प्यारभरा आशीष पा कर अपनी आंखों की कोरों में आए आंसुओं को सिटी एसपी अमित ने धीरे से पोंछ लिया और एक अनजाने बो झ से मुक्त हो कर खुशीखुशी अपने कर्तव्यस्थल की ओर चल दिए.
‘‘हां, वही, तुम्हारा सीनियर, तुम्हारा जिगरी दोस्त, कालेज का गुंडा.’’
‘‘अरे, तुम?’’
‘‘हां, मैं.’’
‘‘पुलिस में?’’
‘‘पहले कालेज में गुंडा हुआ करता था. अब कानून का गुंडा हूं. लेकिन तुम नहीं बदले, पंडित महाराज?’’
उस ने मुझे गले से लगाया. ससम्मान मेरा सामान मुझे लौटाया और अपने औफिस में मुझे कुरसी पर बिठा कर एक सिपाही से चायनाश्ते के लिए कहा.
यह मेरा कालेज का 1 साल सीनियर वही दोस्त था जिस ने मुझे रैगिंग से बचाया था. कई बार मेरे झगड़ों में खुद कवच बन कर सामने खड़ा हुआ था. फिर हम दोनों पक्के दोस्त बन गए थे. मेरे इसी दोस्त को कालेज की एक उच्चजातीय कन्या से प्रेम हुआ तो मैं ने ही इस के विवाह में मदद की थी. घर से भागने से ले कर कोर्टमैरिज तक में. तब भी उस ने वही कहा था और अभी फिर कहा, ‘‘दोस्ती की कोई जाति नहीं होती. बताओ, क्या चक्कर है?’’
मैं ने उदास हो कर कहा, ‘‘पिछले 6 महीने से पुलिस बुलाती है पूछताछ के नाम पर. जमाने भर के सवाल करती है. पता नहीं क्यों? मेरा तो जीना हराम हो गया है.’’
‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी है?’’
‘‘नहीं तो.’’
‘‘अपनी शराफत के चलते कभी कहीं ऐसा सच बोल दिया हो जो किसी के लिए नुकसान पहुंचा गया हो और वह रंजिश के कारण ये सब कर रहा हो?’’
‘‘क्या कर रहा हो?’’
‘‘गुमनाम शिकायत.’’
‘‘क्या?’’ मैं चौंक गया, ‘‘तुम यह कह रहे हो कि कोई शरारत या नाराजगी के कारण गुमनाम शिकायत कर रहा है और पुलिस उन गुमनाम शिकायतों के आधार पर मुझे परेशान कर रही है.’’
‘‘हां, और क्या? यदि तुम मुजरिम होते तो अब तक जेल में नहीं होते. लेकिन शिकायत पर पूछताछ करना पुलिस का अधिकार है. आज मैं हूं, सब ठीक कर दूंगा. तुम्हारा दोस्त हूं. लेकिन शिकायतें जारी रहीं और मेरी जगह कल कोई और पुलिस वाला आ गया तो यह दौर जारी रह सकता है. इसीलिए कह रहा हूं, ध्यान से सोच कर बताओ कि जब से ये गुमनाम शिकायतें आ रही हैं, उस के कुछ समय पहले तुम्हारा किसी से कोई झगड़ा या ऐसा ही कुछ और हुआ था?’’
मैं सोचने लगा. उफ्फ, मैं ने सोचा भी नहीं था. अपने पड़ोसी मिस्टर नंद किशोर की लड़की से शादी के लिए मना करने पर वह ऐसा कर सकता है क्योंकि उस के बाद नंद किशोर ने न केवल महल्ले में मेरी बुराई करनी शुरू कर दी थी बल्कि उन के पूरे परिवार ने मुझ से बात करनी भी बंद कर दी थी. उलटे छोटीछोटी बातों पर उन का परिवार मुझ से झगड़ा करने के बहाने भी ढूंढ़ता रहता था. हो सकता है वह शिकायतकर्ता नंद किशोर ही हो. लेकिन यकीन से किसी पर उंगली उठाना ठीक नहीं है. अगर नहीं हुआ तो…मैं ने अपने पुलिस अधिकारी मित्र से कहा, ‘‘शक तो है क्योंकि एक शख्स है जो मुझ से चिढ़ता है लेकिन यकीन से नहीं कह सकता कि वही होगा.’’
फिर मैं ने उसे विवाह न करने की वजह भी बताई कि उन की लड़की किसी और से प्यार करती थी. शादी के लिए मना करने के लिए उसी ने मुझ से मदद के तौर पर प्रार्थना की थी. लेकिन मेरे मना करने के बाद भी पिता ने उस की शादी उसी की जाति के ही दूसरे व्यक्ति से करवा दी थी.
‘‘तो फिर नंद किशोर ही आप को 6 महीने से हलकान कर रहे हैं.’’
मैं ने कहा, ‘‘यार, मुझे इस मुसीबत से किसी तरह बचाओ.’’
‘‘चुटकियों का काम है. अभी कर देता हूं,’’ उस ने लापरवाही से कहा.
फिर मेरे दोस्त पुलिस अधिकारी रामचरण ने नंद किशोर को परिवार सहित थाने बुलवाया. डांट, फटकार करते हुए कहा, ‘‘आप एक शरीफ आदमी को ही नहीं, 6 महीनों से पुलिस को भी गुमराह व परेशान कर रहे हैं. इस की सजा जानते हैं आप?’’
‘‘इस का क्या सुबूत है कि ये सब हम ने किया है?’’ बुजुर्ग नंद किशोर ने अपनी बात रखी.
पुलिस अधिकारी रामचरण ने कहा, ‘‘पुलिस को बेवकूफ समझ रखा है. आप की हैंडराइटिंग मिल गई तो केस बना कर अंदर कर दूंगा. जहां से आप टाइप करवा कर झूठी शिकायतें भेजते हैं, उस टाइपिस्ट का पता लग गया है. बुलाएं उसे? अंदर करूं सब को? जेल जाना है इस उम्र में?’’
पुलिस अधिकारी ने हवा में बातें कहीं जो बिलकुल सही बैठीं. नंद किशोर सन्नाटे में आ गए.
‘‘और नंद किशोरजी, जिस वजह से आप ये सब कर रहे हैं न, उस शादी के लिए आप की लड़की ने ही मना किया था. यदि दोबारा झूठी शिकायतें आईं तो आप अंदर हो जाएंगे 1 साल के लिए.’’
नंद किशोर को डांटडपट कर और भय दिखा कर छोड़ दिया गया. मुझे यह भी लगा कि शायद नंद किशोर का इन गुमनाम शिकायतों में कोई हाथ न हो, व्यर्थ ही…
‘‘मेरे रहते कुछ नहीं होगा, गुमनाम शिकायतों पर तो बिलकुल नहीं. लेकिन थोड़ा सुधर जा. शादी कर. घर बसा. शराफत का जमाना नहीं है,’’ उस ने मुझ से कहा. फिर मेरी उस से यदाकदा मुलाकातें होती रहतीं. एक दिन उस का भी तबादला हो गया.
मैं फिर डरा कि कोई फिर गुमनाम शिकायतों भरे पत्र लिखना शुरू न कर दे क्योंकि यदि यह काम नंद किशोर का नहीं है, किसी और का है तो हो सकता है कि थाने के चक्कर काटने पड़ें. नंद किशोर ने तो स्वीकार किया ही नहीं था. वे तो मना ही करते रहे थे अंत तक.
लेकिन उस के बाद यह सिलसिला बंद हो गया. तो क्या नंद किशोर ही नाराजगी के कारण…यह कैसा गुस्सा, कैसी नाराजगी कि आदमी आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए. गुस्सा है तो डांटो, लड़ो. बात कर के गुस्सा निकाल लो. मन में बैर रखने से खुद भी विषधर और दूसरे का भी जीना मुश्किल. पुलिस को भी चाहिए कि गुमनाम शिकायतों की जांच करे. व्यर्थ किसी को परेशान न करे.
शायद नंद किशोर का गुस्सा खत्म हो चुका था. लेकिन अब मेरे मन में नंद किशोर के प्रति घृणा के भाव थे. उस बुड्ढे को देखते ही मुझे अपने 6 माह की हलकान जिंदगी याद आ जाती थी. एक निर्दोष व्यक्ति को झूठी गुमनाम शिकायतों से अपमानित, प्रताडि़त करने वाले को मैं कैसे माफ कर सकता था. लेकिन मैं ने कभी उत्तर देने की कोशिश नहीं की. हां, पड़ोसी होते हुए भी हमारी कभी बात नहीं होती थी. नंद किशोर के परिवार ने कभी अफसोस या प्रायश्चित्त के भाव भी नहीं दिखाए. ऐसे में मेरे लिए वे पड़ोस में रहते हुए भी दूर थे.
भारत में हर साल 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है, क्योंकि 1928 में इसी दिन महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन ने अपनी खोज ‘रमन इफैक्ट’ की घोषणा की थी. वे पहले भारतीय थे, जिन्हें विज्ञान के क्षेत्र में ‘नोबल पुरस्कार’ मिला था. उन्हें साल 1954 में ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था.
भले ही चंद्रशेखर रमन को 42 साल की उम्र में ‘नोबल पुरस्कार’ मिला था, पर विज्ञान के प्रति उन की दिलचस्पी स्कूली जीवन में ही पड़ गई थी. शायद इसलिए कि विज्ञान की नई तकनीकों को समझाने के लिए थ्योरी के साथसाथ प्रैक्टिकल तरीके से भी पढ़ाया जाता है और छात्रों से प्रोजैक्ट्स बनवाए जाते हैं, ताकि नएनए आविष्कार होने की उम्मीद बंधी रहे.
दिल्ली के ब्रिटिश स्कूल में 11वीं क्लास में पढ़ने वाले छात्र अर्णव गुप्ता ने अपने एक ऐसे ही प्रोजैक्ट के तहत ऐसा ‘मोटोराइज्ड सोलर ट्रैकर’ बनाया है, जो बिजली पैदा करने के लिए सूर्य की ऊर्जा का इस्तेमाल कर के सौर पैनल की दक्षता को बढ़ाएगा.
दरअसल, ज्यादातर सोलर पैनल जब इंस्टौल किए जाते हैं तो उन्हें दक्षिण दिशा की ओर एक खास अवस्था में फिक्स कर दिया जाता है, लेकिन यह तरीका बहुत असरदार नहीं है, क्योंकि सूर्य की दिशा और दशा पूरे दिन बदलती रहती है, लेकिन इस ‘मोटराइज्ड सोलर ट्रैकर’ की खासीयत यह है कि यह पूरे दिन सौर पैनल को घुमाएगा और पूर्व से पश्चिम की ओर सूर्य की गति को ट्रैक करेगा, जिस से यह पहले से कहीं ज्यादा ऊर्जा का प्रोडक्शन करेगा.
आसान भाषा में समझें तो यह ‘मोटराइज्ड सोलर ट्रैकर’ एक जबरदस्त सन (सूर्य) लोकेशन सैंसर है जो डीसी मोटर को घुमाता है, जो बदले में सोलर पैनल को घुमाता है, ताकि पैनल का मुंह पूरे दिन सूर्य की ओर रहे और ज्यादा से ज्यादा बिजली का प्रोडक्शन हो.
इस तकनीकी से दूरदराज के गांवों और कसबों में बिजली की सप्लाई हो सकेगी. इतना ही नहीं, इस सौर ऊर्जा का इस्तेमाल हमारे घरों, दफ्तरों और स्कूलों में भी किया जा सकेगा.
विष्य में नतीजा कुछ भी निकले, पर छात्रों को इस तरह के प्रोजैक्टों पर काम करते रहना चाहिए, क्योंकि ये उन का आत्मविश्वास बढ़ाते हैं. छात्र जब अपने हाथों से मौडल बनाते हैं और प्रदर्शनियों में प्रस्तुतियां देते हैं, तो सार्वजनिक तौर पर बोलने से उन का मंच का डर भी दूर हो जाता है.
यही वजह है कि आजकल स्कूलों में इस तरह की गतिविधियों को बहुत ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार भी समयसमय पर छात्रों के लिए विज्ञान से जुड़ी प्रतियोगिताएं आयोजित कराती रहती है. प्राइवेट स्कूलों के साथसाथ सरकारी स्कूल भी विज्ञान से जुड़े प्रोजैक्ट और सैमिनार कराने में पीछे नहीं हैं.
इसी का सुखद नतीजा है कि साल 2017 में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय डांगीगुनाऊं के एक छात्र रोहित रौतेला ने विज्ञान प्रतियोगिता में ब्लौक और जिला लैवल पर पहला नंबर हासिल किया था. रोहित ने ‘अपशिष्ट प्रबंधन और जलाशयों का संरक्षण’ नामक सब्जैक्ट पर अपना प्रोजैक्ट तैयार किया था.
इस के अलावा अगर मांबाप खुद जागरूक हो कर अपने बच्चों को विज्ञान से जुड़ी ऐसी गतिविधियों के बारे में बताएंगे और उन्हें इन में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करेंगे तो यकीनन नएनए आविष्कारों की राह निकलेगी.
‘यार, हौट लड़कियां देखते ही मुझे कुछ होने लगता है.’
मेरे पतिदवे थे. फोन पर शायद अपने किसी दोस्त से बातें कर रहे थे. जैसे ही उन्होंने फोन रखा, मैं ने अपनी नाराजगी जताई, ‘‘अब आप शादीशुदा हैं. कुछ तो शर्म कीजए.’’
‘‘यार, यह तो मर्द के ‘जिंस’ में होता है. तुम इस को कैसे बदल दोगी? फिर मैं तो केवल खूबसूरती की तारीफ ही करता हूं. पर डार्लिंग, प्यार तो मैं तुम्हीं से करता हूं,’’ यह कहते हुए उन्होंने मुझे चूम लिया और मैं कमजोर पड़ गई.
एक महीना पहले ही हमारी शादी हुई थी, लेकिन लड़कियों के मामले में इन की ऐसी बातें मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थीं. पर ये थे कि ऐसी बातों से बाज ही नहीं आते. हर खूबसूरत लड़की के प्रति ये खिंच जाते हैं. इन की आंखों में जैसे वासना की भूख जाग जाती है.
यहां तक कि हर रोज सुबह के अखबार में छपी हीरोइनों की रंगीन, अधनंगी तसवीरों पर ये अपनी भूखी निगाहें टिका लेते और शुरू हो जाते, ‘क्या ‘हौट फिगर’ है?’, ‘क्या ‘ऐसैट्स’ हैं?’ यार, आजकल लड़कियां ऐसे बदनउघाड़ू कपड़े पहनती हैं, इतना ज्यादा ऐक्सपोज करती हैं कि आदमी बेकाबू हो जाए.’
कभी ये कहते, ‘मुझे तो हरी मिर्च जैसी लड़कियां पसंद हैं. काटो तो मुंह ‘सीसी’ करने लगे.’ कभीकभी ये बोलते, ‘जिस लड़की में सैक्स अपील नहीं, वह ‘बहनजी’ टाइप है. मुझे तो नमकीन लड़कियां पसंद हैं…’
राह चलती लड़कियां देख कर ये कहते, ‘क्या मस्त चीज है.’
कभी किसी लड़की को ‘पटाखा’ कहते, तो कभी किसी को फुलझड़ी. आंखों ही आंखों में लड़कियों को नापतेतोलते रहते. इन की इन्हीं हरकतों की वजह से मैं कई बार गुस्से से भर कर इन्हें झिड़क देती.
मैं यहां तक कह देती, ‘सुधर जाओ, नहीं तो तलाक दे दूंगी.’
इस पर इन का एक ही जवाब होता, ‘डार्लिंग, मैं तो मजाक कर रहा था. तुम भी कितना शक करती हो. थोड़ी तो मुझे खुली हवा में सांस लेने दो, नहीं तो दम घुट जाएगा मेरा.’
एक बार हम कार से डिफैंस कौलोनी के फ्लाईओवर के पास से गुजर रहे थे. वहां एक खूबसूरत लड़की को देख पतिदेव शुरू हो गए, ‘‘दिल्ली की सड़कों पर, जगहजगह मेरे मजार हैं. क्योंकि मैं जहां खूबसूरत लड़कियां देखता हूं, वहीं मर जाता हूं.’’
मेरी तनी भौंहें देखे बिना ही इन्होंने आगे कहा, ‘‘कई साल पहले भी मैं जब यहां से गुजर रहा था, तो एक कमाल की लड़की देखी थी. यह जगह इसीलिए आज तक याद है.’’
मैं ने नाराजगी जताई, तो ये कार का गियर बदल कर मुझ से प्यारमुहब्बत का इजहार करने लगे और मेरा गुस्सा एक बार फिर कमजोर पड़ गया.
लेकिन, हर लड़की पर फिदा हो जाने की इन की आदत से मुझे कोफ्त होने लगी थी. पर हद तो तब पार होने लगी, जब एक बार मैं ने इन्हें हमारी जवान पड़ोसन से फ्लर्ट करते देख लिया. जब मैं ने इन्हें डांटा, तो इन्होंने फिर वही मानमनौव्वल और प्यारमुहब्बत का इजहार कर के मुझे मनाना चाहा, पर मेरा मन इन के प्रति रोजाना खट्टा होता जा रहा था.
धीरेधीरे हालात मेरे लिए सहन नहीं हो रहे थे. हालांकि हमारी शादी को अभी डेढ़दो महीने ही हुए थे, लेकिन पिछले 10-15 दिनों से इन्होंने मेरी देह को छुआ भी नहीं था. पर मेरी शादीशुदा सहेलियां बतातीं कि शादी के शुरू के महीने तक तो मियांबीवी तकरीबन हर रोज ही… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या थी. इन की अनदेखी मेरा दिल तोड़ रही थी. मैं तिलमिलाती रहती थी.
एक बार आधी रात में मेरी नींद टूट गई, तो इन्हें देख कर मुझे धक्का लगा. ये आईपैड पर पौर्न साइट्स खोल कर बैठे थे और…
‘‘जब मैं यहां मौजूद हूं, तो तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या मुझ में कोई कमी है? क्या मैं ने तुम्हें कभी ‘न’ कहा है?’’ मैं ने दुखी हो कर पूछा.
‘‘सौरी डार्लिंग, ऐसी बात नहीं है. क्या है कि मैं तुम्हें नींद में डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था. एक टैलीविजन प्रोग्राम देख कर बेकाबू हो गया, तो भीतर से इच्छा होने लगी.’’
‘‘अगर मैं भी तुम्हारी तरह इंटरनैट पर पौर्न साइट्स देख कर यह सब करूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?’’
‘‘अरे यार, तुम तो छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही हो,’’ ये बोले.
‘‘लेकिन, क्या यह बात इतनी छोटी सी थी?’’
कभीकभी मैं आईने के सामने खड़ी हो कर अपनी देह को हर कोण से देखती. आखिर क्या कमी थी मुझ में कि ये इधरउधर मुंह मारते फिरते थे?
क्या मैं खूबसूरत नहीं थी? मैं अपने सोने से बदन को देखती. अपने हर कटाव और उभार को निहारती. ये तीखे नैननक्श. यह छरहरी काया. ये उठे हुए उभार. केले के नए पत्ते सी यह चिकनी पीठ. डांसरों जैसी यह पतली काया. भंवर जैसी नाभि. इन सब के बावजूद मेरी यह जिंदगी किसी सूखे फव्वारे सी क्यों होती जा रही थी.
एक रविवार को मैं घर का सामान खरीदने बाजार गई. तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए मैं जरा जल्दी घर लौट आई. घर का बाहरी दरवाजा खुला हुआ था. ड्राइंगरूम में घुसी तो सन्न रह गई. इन्होंने मेरी एक सहेली को अपनी गोद में बैठाया हुआ था.
मुझे देखते ही ये घबरा कर ‘सौरीसौरी’ करने लगे. मेरी आंखें गुस्से और बेइज्जती के आंसुओं से जलने लगीं.
मैं चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी. पति नाम के इस प्राणी का मुंह नोच लेना चाहती थी. इसे थप्पड़ मारना चाहती थी. मैं कड़कती बिजली बन कर इस पर गिर जाना चाहती थी. मैं गहराता समुद्र बन कर इसे डुबो देना चाहती थी. मैं धधकती आग बन कर इसे जला देना चाहती थी. मैं हिचकियां लेले कर रोना चाहती थी. मैं पति नाम के इस जीव से बदला लेना चाहती थी.
मुझे याद आया, अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके बिल क्लिंटन भी अपनी पत्नी हिलेरी क्लिंटन को धोखा दे कर मोनिका लेविंस्की के साथ मौजमस्ती करते रहे थे, गुलछर्रे उड़ाते रहे थे. क्या सभी मर्द एकजैसे बेवफा होते हैं? क्या पत्नियां छले जाने के लिए ही बनी हैं. मैं सोचती.
रील से निकल आया उलझा धागा बन गई थी मेरी जिंदगी. पति की ओछी हरकतों ने मेरे मन को छलनी कर दिया था. हालांकि इन्होंने इस घटना के लिए माफी भी मांगी थी, फिर मेरे भीतर सब्र का बांध टूट चुका था. मैं इन से बदला लेना चाहती थी और ऐसे समय में राज मेरी जिंदगी में आया.
राज पड़ोस में किराएदार था. 6 फुट का गोराचिट्टा नौजवान. जब वह अपनी बांहें मोड़ता था, तो उस के बाजू में मछलियां बनती थीं. नहा कर जब मैं छत पर बाल सुखाने जाती, तो वह मुझे ऐसी निगाहों से ताकता कि मेरे भीतर गुदगुदी होने लगती.
धीरेधीरे हमारी बातचीत होने लगी. बातों ही बातों में पता चला कि राज प्रोफैशनल फोटोग्राफर था.
‘‘आप का चेहरा बड़ा फोटोजैनिक है. मौडलिंग क्यों नहीं करती हैं आप?’’ राज मुझे देख कर मुसकराता हुआ कहता.
शुरूशुरू में तो मुझे यह सब अटपटा लगता था, लेकिन देखते ही देखते मैं ने खुद को इस नदी की धारा में बह जाने दिया.
पति जब दफ्तर चले जाते, तो मैं राज के साथ उस के स्टूडियो चली जाती. वहां राज ने मेरा पोर्टफोलियो भी बनाया. उस ने बताया कि अच्छी मौडलिंग असाइनमैंट्स लेने के लिए अच्छा पोर्टफोलियो जरूरी था. लेकिन मेरी दिलचस्पी शायद कहीं और ही थी.
‘‘बहुत अच्छे आते हैं आप के फोटोग्राफ्स,’’ उस ने कहा था और मेरे कानों में यह प्यारा सा फिल्मी गीत बजने लगा था :
‘अभी मुझ में कहीं, बाकी थोड़ी सी है जिंदगी…’
मैं कब राज को चाहने लगी, मुझे पता ही नहीं चला. मुझ में उस की बांहों में सो जाने की इच्छा जाग गई. जब मैं उस के करीब होती, तो उस की देहगंध मुझे मदहोश करने लगती. मेरा मन बेकाबू होने लगता. मेरे भीतर हसरतें मचलने लगी थीं. ऐसी हालत में जब उस ने मुझे न्यूड मौडलिंग का औफर दिया, तो मैं ने बिना झिझके हां कह दिया.
उस दिन मैं नहाधो कर तैयार हुई. मैं ने खुशबूदार इत्र लगाया. फेसियल, मैनिक्योर, पैडिक्योर, ब्लीचिंग वगैरह मैं एक दिन पहले ही एक अच्छे ब्यूटीपार्लर से करवा चुकी थी. मैं ने अपने सब से सुंदर पर्ल ईयररिंग्स और डायमंड नैकलैस पहना. कलाई में महंगी घड़ी पहनी और सजधज कर मैं राज के स्टूडियो पहुंच गई.
उस दिन राज बला का हैंडसम लग रहा था. गुलाबी कमीज और काली पैंट में वह मानो कहर ढा रहा था.
‘‘हे, यू आर लुकिंग ग्रेट,’’ मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर वह बोला. यह सुन कर मेरे भीतर मानो सैकड़ों सूरजमुखी खिल उठे.
फोटो सैशन अच्छा रहा. राज के सामने टौपलेस होने में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ. मेरी देह को वह एक कलाकार सा निहार रहा था.
किंतु मुझे तो कुछ और की ही चाहत थी. फोटो सैशन खत्म होते ही मैं उस की ओर ऐसी खिंची चली गई, जैसे लोहा चुंबक से चिपकता है. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था. मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया.
‘‘नहीं नेहा, यह ठीक नहीं. मैं ने तुम्हें कभी उस निगाह से देखा ही नहीं. हमारा रिलेशन प्रोफैशनल है,’’ राज का एकएक शब्द मेरे तनमन पर चाबुकसा पड़ा.
‘…पर मुझे लगा, तुम भी मुझे चाहते हो…’ मैं बुदबुदाई.
‘‘नेहा, मुझे गलत मत समझो. तुम बहुत खूबसूरत हो. पर तुम्हारा मन भी उतना ही खूबसूरत है, लेकिन मेरे लिए तुम केवल एक खूबसूरत मौडल हो. मैं किसी और रिश्ते के लिए तैयार नहीं और फिर पहले से ही मेरी एक गर्लफ्रैंड है, जिस से मैं जल्दी ही शादी करने वाला हूं,’’ राज कह रहा था.
तो क्या वह सिर्फ एकतरफा खिंचाव था या पति से बदला लेने की इच्छा का नतीजा था?
कपड़े पहन कर मैं चलने लगी, तो राज ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया. उस ने स्टूडियो में रखे गुलदान में से एक पीला गुलाब निकाल लिया था. वह पीला गुलाब मेरे बालों में लगाते हुए बोला, ‘‘नेहा, पीला गुलाब दोस्ती का प्रतीक होता है. हम अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं.’’
राज की यह बात सुन कर मैं सिहर उठी थी. वह पीला गुलाब बालों में लगाए मैं वापस लौट आई अपनी पुरानी दुनिया में…
उस रात कई महीनों के बाद जब पतिदेव ने मुझे प्यार से चूमा और सुधरने का वादा किया, तो मैं पिघल कर उन के आगोश में समा गई.
खिड़की के बाहर रात का आकाश न जाने कैसेकैसे रंग बदल रहा था. ठंडी हवा के झोंके खिड़की में से भीतर कमरे में आ रहे थे. मेरी पूरी देह एक मीठे जोश से भरने लगी.पतिदेव प्यार से मेरा अंगअंग चूम रहे थे. मैं जैसे बहती हुई पहाड़ी नदी बन गई थी. एक मीठी गुदगुदी मुझ में सुख भर रही थी. फिर… केवल खुमारी थी. और उन की छाती के बालों में उंगलियां फेरते हुए मैं कह रही थी, ‘‘मुझे कभी धोखा मत देना.’’
कमरे के कोने में एक मकड़ी अपना टूटा हुआ जाला फिर से बुन रही थी. इस घटना को बीते कई साल हो गए हैं. इस घटना के कुछ महीने बाद राज भी पड़ोस के किराए का मकान छोड़ कर कहीं और चला गया. मैं राज से उस दिन के बाद फिर कभी नहीं मिली. लेकिन अब भी मैं जब कहीं पीला गुलाब देखती हूं, तो सिहर उठती हूं. एक बार हिम्मत कर के पीला गुलाब अपने जूड़े में लगाना चाहा था, तो मेरे हाथ बुरी तरह कांपने लगे थे.