शैतान भाग 2 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

वह ड्राइंगरूम में पहुंची तो वहां सोनिया की सहेली कंजा सोफे पर अरसलान से सटी बैठी थी. रानिया को उस का यह अंदाज बड़ा बुरा लगा. वहीं पर सोनिया के वकील भी मौजूद थे. वकील ने कहा, ‘‘मिस रानिया, आप कल 11 बजे यहां हाजिर रहिएगा.’’

‘‘मैं तो यहीं रहती हूं साहब, जब आप कहेंगी, आ जाऊंगी.’’

‘‘मुझे बताया गया था कि आज आप अपने घर चली जाएंगी.’’ वकील साहब ने कहा.

कंजा बीच में बोल पड़ी, ‘‘दरअसल, मैं ने और अरसलान ने सोचा कि फिजा को जेहनी सुकून के लिए मेरे घर मेरे बच्चे और उस की ट्रेंड आया के पास छोड़ दिया जाए. क्योंकि फिजा के दिलोदिमाग में सोनिया की मौत का असर पड़ सकता है. जब फिजा हमारे यहां चली जाएगी तो रानिया की यहां क्या जरूरत रहेगी.’’

उस की इस बात पर रानिया को गुस्सा आ गया. उस ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘मेरे खयाल से अभी घर में फिजा के बड़े मौजूद हैं, वे इस बारे में फैसला लेंगे. आप का ताल्लुक सिर्फ इतना है कि आप सोनिया मैम की सहेली हैं.’’

‘‘मैं तो सोनिया की सहेली हूं, लेकिन तुम तो मुलाजिम के अलावा कुछ नहीं हो.’’

रानिया ने तड़प कर अरसलान की ओर देखा कि वह उस का कुछ सपोर्ट करेगा. पर वह चुप बैठा था. वहां मौजूद सोनिया की खाला ने कहा, ‘‘मैं फिजा को अपने घर भेज देती हूं, वहां मेरी बेटियां उसे संभाल लेंगी.’’

वकील ने कहा, ‘‘आप लोग बेकार की बहस कर रहे हैं. सोनिया की वसीयत के मुताबिक वसीयत खोलते वक्त सिर्फ 3 लोग मौजूद रहेंगे. इन में एक हैं मिस रानिया, इसलिए इन का यहां रहना जरूरी है, इसलिए यही बेहतर होगा कि फिजा उन्हीं के पास रहे. इतने दिनों से वही उस की देखभाल कर रही हैं और इस वक्त इन्हीं की जरूरत भी है. क्यों अरसलान साहब, यह बात सही है न?’’

अरसलान ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं वकील साहब.’’

कंजा ने बेकरार हो कर उस की तरफ देखा तो अरसलान ने धीरे से उस का हाथ दबा दिया. रानिया ने उठ कर कहा, ‘‘क्या अब मैं फिजा के पास जाऊं?’’

‘‘हां, आप जाएं और आप यहीं रुकेंगी. बच्ची के पास.’’ वकील ने मजबूत लहजे में कहा.

इस के बाद रानिया फिजा के पास लेट गई. अरसलान की बेरुखा और दोगला बर्ताव देख कर वह बहुत दुखी थी. उस की आंखों से आंसू बहने लगे. उसे याद आया कि एक बार सोनिया ने उस से कहा था, ‘‘मेरी कंजा से कोई खास दोस्ती नहीं है. पता नहीं यह तलाकशुदा महिला क्यों बारबार मेरे घर चली आती है?’’

शायद सोनिया को अंदाजा था कि वह अरसलान के पीछे लगी है. इन 8 महीनों में सोनिया से रानिया की अच्छी दोस्ती हो गई थी. रानिया की यह अच्छी आदत थी कि वह चुपचाप सब सुनती थी, इसलिए सोनिया उस से अपने मन की बातें कर के दिल हलका कर लेती थी.

एक बार उस ने अपनी मोहब्बत की पूरी कहानी बताई थी. उस ने कहा था, ‘‘यह सच है कि मुझे अरसलान से पहली नजर में मोहब्बत हो गई थी. पहली बार जब अरसलान कार्टन सप्लाई के लिए हमारी फैक्टरी में आया था, तब उस का कारोबार बहुत छोटा था. मैं ने उसे पार्टनरशिप का औफर दिया था, ताकि उस का काम बड़े पैमाने पर हो सके और आमदनी भी बढ़े. उस के बाद हम ने साथ मिल कर बिजनैस बढ़ाया.

‘‘उसी दौरान मुझे मालूम हुआ कि अरसलान की मंगनी उस की कजिन रूही से हो चुकी है. मैं पीछे हट गई और अरसलान को भूल जाना चाहा, पर उसी दौरान रूही का किडनैप हो गया. अरसलान ने बताया कि अपहर्त्ताओं ने 50 लाख रुपए मांगे हैं. 50 लाख रुपए उस ने मुझ से इस वादे के साथ मांगे कि रूही के छूट जाने के बाद वह मुझ से शादी कर लेगा.

‘‘मैं ने अरसलान को 50 लाख रुपए दे दिए. मैं ने पुलिस को भी खबर कर दी. जांच करते हुए पुलिस वहां पहुंची तो अपहर्त्ता भाग चुके थे. रूही रस्सियों से बंधी थी. उस की आंखों पर पट्टी बंधी थी. रूही ने बताया कि अपहर्त्ता 3 थे और उन्होंने मास्क पहन रखे थे, इसलिए वह किसी को पहचान नहीं सकी.’’

सोनिया का कहना था कि उसे शक है कि यह किडनैपिंग का प्रोपेगैंडा अरसलान का था. उसी ने सारा खेल खेला था.

‘‘आप अपने शौहर पर इलजाम लगा रही हैं. यह जान लेने के बाद भी आप ने उन से शादी की?’’

‘‘क्योंकि मैं उस वक्त उस के इश्क में अंधी थी.’’

सोनिया ने आगे कहा, ‘‘अरसलान कंजा के साथ मिल कर मेरी मौत का इंतजार कर रहा है. मैं अपनी दौलत इस लालची इंसान और उस बेशर्म औरत के लिए नहीं छोड़ूंगी.’’

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उस वक्त कंजा का नाम सुन कर रानिया मन ही मन हंसी, क्योंकि कंजा खुद को अरसलान की महबूबा समझ रही थी. उसी वक्त सोनिया की खाला उस के कमरे में आ गईं. आते ही उन्होंने कहा, ‘‘अरे, तुम यहां बैठी हो रानिया. तुम परेशान न हो, मैं अरसलान से कहूंगी कि फिजा की सही देखभाल के लिए तुम्हारा यहां रहना जरूरी है.’’

रानिया चुपचाप बैठी रही.

खाला ने आगे कहा, ‘‘कंजा फिजा के मामले में बेकार में टांग अड़ा रही है. पर मैं उस की एक नहीं चलने दूंगी. वह बेवजह अरसलान पर डोरे डाल रही है. एक बार मेरी बेटी शीना इस घर में दुलहन बन कर आ जाए तो मैं कंजा का पत्ता ही काट दूंगी. ऐसा हो गया तो तुम्हारी जौब भी सेफ रहेगी.’’

रानिया समझ गई कि सब लोग अपनीअपनी चाल चल रहे हैं. शीना शादी कर के करोड़ों की मालकिन हो जाएगी.  सोनिया की मौत हो गई. लाश घर में पड़ी थी और सभी लोग अपनाअपना उल्लू सीधा करने में लगे थे.

सोनिया की मौत के गम में रानिया कमरे में बैठी थी, तभी अरसलान की बड़ी बहन कमरे में आ कर बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि अरसलान कम से कम फिजा का खयाल करते हुए उस बेशर्म औरत के चंगुल से निकल जाए. दौलत के पीछे भागना छोड़ कर वह ऐसी लड़की से शादी करे, जो फिजा को दिल से प्यार करे और बिखरा घर संभाले. मैं उस से तुम्हारा जिक्र जरूर करूंगी.’’

उस की बात पर रानिया कुछ नहीं बोली. उस की झुकी आंखों व लाल होते चेहरे से शायद उस की रजामंदी मिल गई थी.

उस ने आगे कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि अरसलान दिलफेंक है. कई लड़कियों से अफेयर चला चुका है. मैं उसे बहुत समझाती थी कि सोनिया से बेवफाई न करे, पर वह नहीं माना.’’

इस से रानिया को लगा कि अरसलान ने मोहब्बत का जाल फेंक कर उसे भी बेवकूफ बनाया है. उसी वक्त बाहर से आवाजें आनी लगीं. सब लोग कब्रिस्तान से वापस आ गए थे. वह फिजा के बालों में हाथ फेरती वहीं बैठी रही. दरवाजा खटखटा कर के अरसलान कमरे में आया. फिजा को देख कर बोला, ‘‘फिजा तो अच्छी है न, तुम ने उसे संभाल लिया है न?’’

‘‘जी वह अब ठीक है.’’

इस के बाद अरसलान ने रूखे लहजे में पूछा, ‘‘तुम ने आपा को क्या पढ़ाया है?’’

‘‘मैं ने… मैं ने तो कुछ नहीं कहा.’’ रानिया चौंक कर बोली.

‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम ने मेरी आपा के दिमाग में यह बात भरी है कि फिजा के लिए मुझे तुम से ही शादी करनी चाहिए. रानिया, मैं ने रात के अंधेरे में तुम से जो वादे किए थे, उन्हें दिन के उजाले में भूल जाओ. झूठे वादे करना मेरी आदत है, उस पर यकीन न करना.’’ इस के बाद वह कहकहा लगा कर हंस पड़ा.

रानिया उस का असली चेहरा देख कर दंग रह गई. अरसलान ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं ने पहले दिन ही तुम्हारी आंखों में अपने लिए पसंदगी देख ली थी. जो लड़की खुद पसंद करे, उसे फंसाना मेरे लिए बड़ा आसान होता है. 2-3 मोहब्बत भरी मुलाकातों के बाद शादी के झूठे ख्वाब दिखा कर तुम्हारा जिस्म हासिल कर लिया. बस इतना ही मेरा मकसद था.’’

रानिया का चेहरा गुस्से से लाल पड़ गया. वह तीखे स्वर में बोली, ‘‘बिलकुल उसी तरह, जिस तरह तुम ने रूही की नजर पहचानी थी, सोनिया की नजर पहचानी थी. अपने दोस्तों के जरिए रूही को अगवा करवा कर उस की भी इज्जत लूट ली और उस के वापस आने पर ऐसी बेरुखी दिखाई कि उस मासूम ने मजबूर हो कर खुदकशी कर ली.’’

अरसलान की आंखों में हैरत थी. वह गुस्से से चीखा, ‘‘यह क्या बकवास कर रही हो? यह कहानी तुम्हें सोनिया ने ही सुनाई होगी? तुम इस का कोई सबूत नहीं दे सकती. अब चुप हो जाओ और मैं कहता हूं कि तुम यहां रह सकती हो. हमारे रात के अंधेरे का ताल्लुक वैसा ही रहेगा या फिर खामोशी से 5 लाख रुपए ले कर यहां से निकल जाओ. पर अपनी जुबान बंद रखना.’’

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‘‘मैं ने तुम्हें देवता समझा था, तुम तो शैतान निकले. तुम्हारी हर बात मानती रही, यहां तक कि अपनी इज्जत भी गंवा दी और उस का तुम यह बदला दे रहे हो मुझे?’’

‘‘मैं तुम से शादी क्यों करूं? जरा अक्ल से सोचो, तुम्हारे पास देने को अब बचा ही क्या है?’’ यह कह कर वह कमरे से बाहर निकल गया.

रानिया रो पड़ी. एक आवारा आदमी के पीछे उस ने अपना सब कुछ लुटा दिया. उस का दिल चाहा खुदकुशी कर के मर जाए. तभी उस ने सोचा कि अगर वह मर गई तो फिजा एकदम अकेली व बेसहारा हो जाएगी. उसे सही मायनों में फिजा से मोहब्बत हो गई थी. वह कुछ देर सोचती रही, उस के बाद उस ने एक फैसला लिया और बात करने कमरे से बाहर निकली.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

बस तुम्हारी हां की देर है: भाग 3

तुम सब को तो जेल होगी ही और तुम्हारा बाप, उसे तो फांसी न दिलवाई मैं ने तो मेरा भी नाम मनोहर नहीं,’’ बोलतेबोलते मनोहर का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

मनोहर की बातें सुन कर सब के होश उड़ गए, क्योंकि झूठे और गुनहगार तो वे लोग थे ही अत: दिन में ही तारे नजर आने लगे उन्हें.

‘‘क्या सोच रहे हो रोको उसे. अगर वह पुलिस में चला गया तो हम में से कोई नहीं बचेगा और मुझे फांसी पर नहीं झूलना.’’ अपना पसीना पोछते हुए नीलेश के पिता ने कहा.

उन लोगों को लगने लगा कि अगर यह बात पुलिस तक गई तो इज्जत तो जाएगी ही, उन का जीवन भी नहीं बचेगा. बहुत गिड़गिड़ाने पर कि वे जो चाहें उन से ले लें, जितने मरजी थप्पड़ मार लें, पर पुलिस में न जाएं.

‘कहीं पुलिसकानून के चक्कर में उन की बेटी का भविष्य और न बिगड़ जाए,’ यह सोच कर मनोहर को भी यही सही लगा, लेकिन उन्होंने उन के सामने यह शर्त रखी कि नीलेश दिव्या को जल्द से जल्द तलाक दे कर उसे आजाद कर दे.

मरता क्या न करता. बगैर किसी शर्त के नीलेश ने तलाक के पेपर साइन कर दिए, पहली सुनवाई में ही फैसला हो गया.

वहां से तो दिव्या आजाद हो गई, लेकिन एक अवसाद से घिर गई. जिंदगी पर से उस का विश्वास उठ गया. पूरा दिन बस अंधेरे कमरे में पड़ी रहती. न ठीक से कुछ खाती न पीती और न ही किसी से मिलतीजुलती. ‘कहीं बेटी को कुछ हो न जाए, कहीं वह कुछ कर न ले,’ यह सोचसोच कर मनोहर और नूतन की जान सूखती रहती. बेटी की इस हालत का दोषी वे खुद को ही मानने लगे थे. कुछ समझ नहीं आ रहा था उन्हें कि क्या करें जो फिर से दिव्या पहले की तरह हंसनेखिलखिलाने लगे. अपनी जिंदगी से उसे प्यार हो जाए.

‘‘दिव्या बेटा, देखो तो कौन आया है,’’ उस की मां ने लाइट औन करते हुए कहा तो उस ने नजरें उठा कर देखा पर उस की आंखें चौंधिया गईं. हमेशा अंधेरे में रहने और एकाएक लाइट आंखों पर पड़ने के कारण उसे सही से कुछ नहीं दिख रहा था, पर जब उस ने गौर से देखा तो देखती रह गई, ‘‘अक्षत,’’ हौले से उस के मुंह से निकला.

नूतन और मनोहर जानते थे कि कभी दिव्या और अक्षत एकदूसरे से प्यार करते थे पर कह नहीं पाए. शायद उन्हें बोलने का मौका ही नहीं दिया और खुद ही वे उस की जिंदगी का फैसला कर बैठे. ‘लेकिन अब अक्षत ही उन की बेटी के होंठों पर मुसकान बिखेर सकता था. वही है जो जिंदगी भर दिव्या का साथ निभा सकता है,’ यह सोच कर उन्होंने अक्षत को उस के सामने ला कर खड़ा कर दिया.

बहुत सकुचाहट के बाद अक्षत ने पूछा, ‘‘कैसी हो दिव्या?’’ मगर उस ने कोई जवाब

नहीं दिया. ‘‘लगता है मुझे भूल गई? अरे मैं अक्षत हूं अक्षत…अब याद आया?’’ उस ने उसे हंसाने के इरादे से कहा पर फिर भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

धीरेधीरे अक्षत उसे पुरानी बातें, कालेज के दिनों की याद दिलाने लगा. कहने लगा कि कैसे वे दोनों सब की नजरें बचा कर रोज मिलते थे. कैसे कैंटीन में बैठ कर कौफी पीते थे. अक्षत उसे उस के दुख भरे अतीत से बाहर लाने की कोशिश कर रहा था, पर दिव्या थी कि बस शून्य में ही देखे जा रही थी.

दिव्या की ऐसी हालत देख कर अक्षत की आंखों में भी आंसू आ गए. कहने लगा, ‘‘आखिर तुम्हारी क्या गलती है दिव्या जो तुम ने अपनेआप को इस कालकोठरी में बंद कर रखा है? ऐसा कर के क्यों तुम खुद को सजा दे रही हो? क्या अंधेरे में बैठने से तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी या जिसने तुम्हारे साथ गलत किया उसे सजा मिल जाएगी, बोलो?’’

‘‘तो मैं क्या करूं अक्षत, क्या कंरू मैं? मैं ने तो वही किया न जो मेरे मम्मीपापा ने चाहा, फिर क्या मिला मुझे?’’ अपने आंसू पोंछते हुए दिव्या कहने लगी. उस की बातें सुन कर नूतन भी फफकफफक कर रोने लगीं.

दिव्या का हाथ अपनी दोनों हथेलियों में दबा कर अक्षत कहने लगा, ‘‘ठीक है, कभीकभी हम से गलतियां हो जाती हैं. लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं है कि हम उन्हीं गलतियों को ले कर अपने जीवन को नर्क बनाते रहें… जिंदगी हम से यही चाहती है कि हम अपने उजाले खुद तय करें और उन पर यकीन रखें. जस्ट बिलीव ऐंड विन. अवसाद और तनाव के अंधेरे को हटा कर जीवन को खुशियों के उजास से भरना कोई कठिन काम नहीं है, बशर्ते हम में बीती बातों को भूलने की क्षमता हो.

‘‘दिव्या, एक डर आ गया है तुम्हारे अंदर… उस डर को तुम्हें बाहर निकालना होगा. क्या तुम्हें अपने मातापिता की फिक्र नहीं है कि उन पर क्या बीतती होगी, तुम्हारी ऐसी हालत देख कर. अरे, उन्होंने तो तुम्हारा भला ही चाहा था न… अपने लिए, अपने मातापिता के लिए,

तुम्हें इस गंधाते अंधेरे से निकलना ही होगा दिव्या…’’

अक्षत की बातों का कुछकुछ असर होने लगा था दिव्या पर. कहने लगी, ‘‘हम अपनी खुशियां, अपनी पहचान, अपना सम्मान दूसरों से मांगने लगते हैं. ऐसा क्यों होता है अक्षत?’’

‘‘क्योंकि हमें अपनी शक्ति का एहसास नहीं होता. अपनी आंखें खोल कर देखो गौर से…तुम्हारे सामने तुम्हारी मंजिल है,’’ अक्षत की बातों ने उसे नजर उठा कर देखने पर मजबूर कर दिया. जैसे वह कह रहा हो कि दिव्या, आज भी मैं उसी राह पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, जहां तुम मुझे छोड़ कर चली गई थी. बस तुम्हारी हां की देर है दिव्या. फिर देखो कैसे मैं तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भर दूंगा.

अक्षत के सीने से लग दिव्या बिलखबिलख कर रो पड़ी जैसे सालों का गुबार निकल रहा हो उस की आंखों से बह कर. अक्षत ने भी उसे रोने दिया ताकि उस के सारे दुखदर्द उन आंसुओं के सहारे बाहर निकल जाएं और वह अपने डरावने अतीत से बाहर निकल सके.

बाहर खड़े मनोहर और नूतन की आंखों से भी अविरल आंसू बहे जा रहे थे पर आज ये खुशी के आंसू थे.

सुगंधा लौट आई- भाग 3 : क्या थी सुगंधा की अनिल को छोड़ने की वजह?

शकुंतला सिन्हा

और आगे निजी बातें पूछने के लिए सुगंधा से बहुत फटकार मिली. जब मैं ने कहा कि आप ने मेरे निकटतम मित्र की जिंदगी बरबाद कर दी है और वह आप की याद में काफी दिनों तक शराब के नशे में डूबे इधरउधर भटक रहा था.’’

मैं ने पूछा ‘‘उस ने क्या कहा?’’

वह बोली ‘‘मैं अनिल को बहुत प्यार करती थी और उन का सम्मान आज भी करती हूं. वे बहुत टैलेंटेड हैं और वे अपने काम में ज्यादा ध्यान न दे कर मेरे पीछेपीछे अपना समय बरबाद कर रहे थे. मैं उन्हें ऊंचाईयों पर देखना चाहती हूं. मुझे लगा कि मैं उन की उन्नति में बाधा बन गई थी इसीलिए दिल पर पत्थर रख कर उन से दूर चली गई.’’

‘‘अगर आज वे कहीं से मिल जाएं तो आप दोबारा उन्हें स्वीकार करेंगी?’’ मेरे कलीग के पूछने पर सुगंधा बोली, ‘‘अगर अनिलजी मेरे सामीप्य से अपने मुकाम तक पहुंचने में कामयाब होंगे तो मैं समझूंगी कि मेरा त्याग और मेरी उपासना सफल रही और मैं अपने को खुशनसीब समझूंगी.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मेरा वह दोस्त आज भी आप के इंतजार में पलकें बिछाए बैठा है और अब उस ने इतना कुछ हासिल कर रखा है जिसे जान कर आप को गर्व होगा और आप इसे अपने वर्षों की उपासना का नतीजा ही समझें.’’

‘‘वे कहां है आजकल? मुझे बस इतना पता है कि मैनेजमैंट करने के बाद वे विदेश चले गए थे.’’ सुगंधा ने मेरे  कलीग से कहा.

‘‘फिलहाल मुझे भी ठीक से पता नहीं है फिर भी मैं जल्द ही पता कर आप को बता दूंगा. वैसे आप का जौइनिंग लैटर रैडी है. आज फ्राइडे है, आप मंडे को ज्वाइन करेंगी. तब तक हमारे चीफ भी यहां होंगे और आप सीधा उन्हें ही रिपोर्ट करेंगी.’’ मेरे कलीग ने कहा.

मैं मुंबई आ गया. सोमवार को अपने केबिन में बैठा था, मेरी पीए ने फोन पर कहा ‘‘सर, सुगंधा मैम हैज कम. शी इज गोइंग टू रिपोर्ट यू.’’

‘‘सैंड हर इन.’’

‘‘गुड मौर्निंग सर, दिस इज सुगंधा योर सौफ्टवेयर इंजीनियर रिपोर्टिंग टू यू.’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘वैलकम इन अवर फैमिली, मेरा मतलब मेरी कंपनी में. मेरी कंपनी ही मेरी फैमिली रही है अब तक.’’

सुगंधा मुझे अभी भी नहीं पहचान सकी थी. मैं ने उस से कहा ‘‘आप अपने केबिन में जा कर अपनी जौब की जानकारी लें. कल सुबह आप मुझे मिलेंगी फिर बाकी काम मैं समझा दूंगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं ने अपने केबिन डोर पर अपना नेम प्लेट ‘अनिल कुमार’ लगवा दी थी. मैं क्लीन शेव्ड हो कर अपनी कुर्र्सी पर बैठा था. सुगंधा नौक कर मेरे केबिन में आई

और मुझे देख कर ठिठक कर खड़ी हो गई और बोली ‘‘आप?’’

‘‘लगता है तुम ने मेरी नेम प्लेट नहीं देखी?’’

‘‘मैं ने गौर नहीं किया.’’

‘‘यही मेरी कंपनी और फैमिली है. आज से तुम भी इसी फैमिली की अतिविशिष्ट सदस्य हुई. मुझे उम्मीद थी मेरी सुगंधा एक न एक दिन जरूर आएगी इसीलिए तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में मैं ने आज तक सोचा ही नहीं.’’

मेरे कलीग ने तुम्हारे दूर जाने का कारण मुझे बता दिया था. मुझे तुम पर नाज है और तुम्हें सैल्यूट करना होगा.

मैं ने उठ कर सैल्यूट किया और उसे गले लगाया. मेरा कलीग केबिन के शीशे के पारदर्शी दीवार के उस पार से यह नजारा देख रहा था. उस ने मुझे कनखी मारी और हम तीनों मुस्करा उठे.

Valentine’s Special- भाग-3: वैलेंटाइन के फूल

अगले दिन से ही मानसी ने अपने फ्लैट के सीसीटीवी की जांच कराई. घर में कोई नौकर तो रखा ही नहीं था, लिहाजा मानसी को कुछ पता नहीं चल सका.

एक दिन जब मानसी सब्जी ले कर अपने फ्लैट पर पहुंची, तो दूसरे कमरे में हितेश तेज आवाज में किसी से बहस कर रहा था,

‘‘आप मु झे चुनाव के लिए टिकट इसलिए नहीं देना चाहते कि मेरी पत्नी और मेरी वीडियो क्लिप की खबर मीडिया में चल रही है, पर  यह बात पूरी तरह से सच नहीं है.

‘‘असल में वे सैक्स वीडियो तो मैं ने ही नैतिक के मोबाइल में डाल कर सैक्स साइट पर अपलोड किए थे, क्योंकि मु झे उन दोनों पर शक था और मैं नैतिक और मानसी को अलग करना चाहता था…’’

हितेश के आगे के शब्द तो मानसी के लिए माने नहीं रखते थे, क्योंकि उस के पति की ये बातें उस के कानों में जहर के समान लग रही थीं. मानसी ने तुरंत ही अपने मोबाइल को निकाल कर हितेश की वीडियो रिकौर्डिंग शुरू कर दी, जिस में वह अनजाने में ही अपने जुर्म का इकरार करता हुआ नजर आ रहा था.

अपने मोबाइल के उस वीडियो को मानसी ने पुलिस के सामने सुबूत के तौर पर पेश कर दिया, जिसे आधार मानते हुए पुलिस ने हितेश को गिरफ्तार कर के सख्ती से पूछताछ की.

पहले तो हितेश अनजान बन कर नाटक करता रहा, पर पुलिस की सख्ती के आगे उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया, जिस में हितेश ने यह मान लिया कि वह छोटी जाति की मानसी को हमेशा से ही अपने पैर की जूती बना कर रखना चाहता था और उस की जाति का इस्तेमाल अपनी राजनीति में करना चाहता था, ताकि उसे दलित वर्ग उद्धारक के रूप में पहचान मिल सके और अपनी इस दलित और सवर्ण वर्ग की शादी की बातें वह अकसर सोशल मीडिया के द्वारा प्रचारित करवाता था.

उसे उन दोनों के पुराने दोस्त नैतिक से मानसी की नजदीकियां सहन नहीं हुईं और इसीलिए उस ने अपनी और मानसी की सैक्स वीडियो क्लिप बना कर एक दिन धोखे से नैतिक का मोबाइल ले कर तकनीक की मदद से मोबाइल में डाल दी, ताकि वह असली कुसूरवार नैतिक को दिखा सके और मानसी की नजरों में उसे गिरा सके.

हितेश ने यह भी कुबूल किया कि माल के अंदर वे लड़के भी भाड़े के गुरगे थे. पुलिस ने नैतिक को रिहा कर दिया. यह वैलेंटाइन डे का अगला दिन यानी 15 फरवरी का दिन था. नैतिक मानसी के दरवाजे पर सुर्ख लाल गुलाबों का बुके ले कर खड़ा था. मानसी उसे देख कर थोड़ा चकित भी हुई.

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ नैतिक ने पूछा.

मानसी चुपचाप अंदर चली आई और पीछे से नैतिक भी आ गया. उस ने बुके मानसी की तरफ बढ़ाया.

‘‘यह सब क्यों?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘क्योंकि मैं चाहता हूं कि हमारी दोस्ती को एक नया नाम मिले और मैं और तुम एक रिश्ते में बांध जाएं…’’ नैतिक ने कहा.

‘‘मतलब?’’ चौंक पड़ी थी मानसी.

नैतिक ने मानसी के सामने तुरंत ही शादी का प्रस्ताव रख दिया.

‘‘पर मैं तो शादीशुदा हूं.’’

‘‘ऐसे आदमी की बीवी बनने से

क्या फायदा जो अपनी बीवी की इज्जत को पूरी दुनिया के सामने नीलाम करने से भी न हिचके,’’ नैतिक की आंखों में गुस्सा था.

कुछ देर तक खामोश रहने के बाद मानसी बोली, ‘‘पर मेरे वे वीडियो…’’

‘‘मैं ऐसी चीजों की परवाह नहीं करता… और वैसे भी मैं ने एक साइबर ऐक्सपर्ट की मदद से तुम्हारे सारे वीडियो उन साइटों से डिलीट करवा दिए हैं… अब कोई उन्हें नहीं देख सकता.’’

नैतिक के यह बात सुन कर मानसी के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई. मानसी ने नैतिक की प्यार भरी जिद पर उस से शादी करने के लिए हामी भर ली.

कुछ समय बाद ही मानसी ने हितेश को तलाक दे दिया. वैलेंटाइन डे तो कब का बीत गया था, पर मानसी और नैतिक के जिंदगी में वैलेंटाइन आज से शुरू हुआ था.

खूबसूरती की मल्लिका अनारा बेगम- भाग 2: एक हिंदू राजा ने मुस्लिम स्त्री से ऐसे निभाया प्यार

‘‘अच्छी बात है,’’ सहसा महाराज ने आवाज में नरमी के साथ कहा. दासी नि:शब्द वहीं हाथ जोड़े खड़ी रही.

‘‘हमें बेगम का दीदार करवाओ, हम तुम्हें मुंहमांगा इनाम देंगे.’’

‘‘जरूर दीदार करवाऊंगी, तब आप को मुझ पर यकीन हो जाएगा कि हमारी मालकिन हकीकत में हुस्न और इल्म की मलिका हैं.’’ दासी अदब के साथ बोली.

इस पर महाराजा ने तुरंत उसे एक अंगूठी बतौर बख्शीश दे दी.

बादशाह के दरबार में गजसिंह का बहुत ही मानसम्मान था. शाहजहां उन की खूब इज्जत करते थे. आनबान का विशेष खयाल रखते थे. खातिरदारी में कोई शिकायत नहीं आने देना चाहते थे. साथ ही मन ही मन डरते भी थे कि गजसिंह किसी बात को ले कर नाराज न हो जाएं.

गजसिंह दासी जरीन का बेसब्री से इंतजार  में करने लगे थे. नवाब साहब से उन्होंने खूब दोस्ती गांठ रखी थी. कभी उन के यहां जाना, तो कभी उन को अपने यहां बुलाना. यह सिलसिला चलता रहता था.

फिर एक दिन दासी जरीन आई. वह बहुत खुश थी. एकांत में गजसिंह से मिल कर बोली, ‘‘हुजूर, आज ही दोपहर को बेगम साहिबा आप का दीदार करना चाहती हैं.’’

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‘‘मगर कहां?’’ गजसिंह ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘यमुना के उस पार, पेड़ों के पीछे झुरमुट में.’’ जरीन ने महाराजा साहब से धीमे से कहा.

गजसिंह ने अपनी खुशी को बेकाबू होने से रोकते हुए कहा, ‘‘उन्हें हमारी ओर से पूरा यकीन दिला देना.’’

उस के बाद वह अपने विश्वस्त अंगरक्षकों के साथ यमुना नदी के पार समय रहते पहुंच गए. तेज धूप से रात में ठिठुरे पेड़ों और झाडि़यों को राहत मिल रही थी. यमुना का पानी भी छोटीछोटी लहरों के साथ तट से टकरा रहा था. गजसिंह ने एक घने झुरमुट में अपने सभी अंगरक्षकों को सावधान कर दिया. उस के बाद उन्होंने विशेष दासी देवली को एकांत में आने का इशारा किया.

उस के आने पर निर्देश दिया, ‘‘तुम बेगम की नाव के पास चली जाना. बेहद सावधानी से इस बात का ध्यान रखना कि आसपास कोई संदिग्ध व्यक्ति न हो.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए, हुजूर.’’ देवली इतना कह कर चली गई.

थोड़ी देर में एक नाव धीमी गति से आती दिखाई दी. छोटी सी नाव के तट के पास आने से पहले गजसिंह एक बड़े वृक्ष के मोटे तने के पीछे छिप गए. वह निकट आती नाव को अपलक देखने लगे. देखते ही देखते नाव तट पर आ लगी. उसे 2 मल्लाह खेव रहे थे.

उस में सवार जरीन नीचे उतरी. उस के साथ बुरके में एक और औरत थी. निश्चित तौर पर वही अनारा बेगम थी. जरीन ने इधरउधर देखा, तभी वहां देवली आ गई. जरीन के कुछ बोलने से पहले ही बोल पड़ी, ‘‘बेगम साहिबा, मैं महाराजा गजसिंह राठौड़ की खास बंदी हूं. आप मेरे साथ चलिए.’’

‘‘नहीं जरीन, हम इन्हें नहीं जानते.’’ बुरके में आई अनारा सुमधुर आवाज में बोली.

जरीन के कुछ कहनेसुनने से पहले ही गजसिंह तेजी से वृक्ष की ओट से बाहर निकल आए, ‘‘जरीन, हम यहां हैं.’’

जरीन ने इधरउधर देखा और बेगम साहिबा को ले कर एक झुरमुट में घुस गई. झुरमुट क्या था, वह पूरी तरह झाडि़यों और लताओं से चारों ओर से घिरी शांत एकांत जगह थी.

घनी लताओं में छोटेछोटे फूल भी खिले थे. वे गंधहीन थे, किंतु उन की खास किस्म की खूबसूरती सुगंधित होने का एहसास देने जैसी थी.

जरीन ने तुरंत अदब बजा कर कहा, ‘‘महाराज, मेरा ईनाम?’’

महाराजा ने भी झट से अपने गले का एक बड़ा हार उतार कर उसे सौंप दिया. जरीन थोड़ी दूर चली गई. रह गई बुरके में बेगम. अनारा बेगम. बुरके में तराशी गई प्रतिमा की तरह खड़ी सामने आई.

गजसिंह उस के समीप जा कर धीमी आवाज में बोले, ‘‘इस परदे को दूर कीजिए बेगम साहिबा.’’

कुछ पल में जैसे ही सामने खड़ी बेगम ने बुरका उतारा, उस के अद्वितीय सौंदर्य और कोमलांगी काया को देख कर गजसिंह सहसा बोल पड़े, ‘‘अति सुंदर. हम नहीं जानते थे कि यह प्यार किस किस्म का है, पर इतना जरूर है कि हम आप से मिलने को तड़प रहे थे. रातदिन बेचैनी की सांसें चल रही थीं..’’

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बेगम चुपचाप निस्तब्ध गजसिंह की बातें सुनती रही और वह लगातार बोलते जा रहे थे, ‘‘शायद इसीलिए प्रेममोहब्बत प्यार करने वालों के बारे में लोगों ने कहा है कि वे जन्मजन्मांतर से प्रेम करते आए हैं.’’

अनारा जवाब में कुछ भी नहीं बोली. तब गजसिंह उस के और समीप आ गए. बेगम का चेहरा धूपछांह वाली रोशनी में और भी चमक रहा था. हाथ में बुरका थामे खड़ी बेगम की ओर महाराजा ने हाथ बढ़ाया. थोड़ा पीछे हटती हुई अनारा बोल पड़ी, ‘‘ओह!’’

महाराजा स्तब्ध खड़े उसे निहारते रहे. बेगम साहिबा की आवाज सुनने का इंतजार करते रहे. जब वह कुछ नहीं बोली, तब वह खुद ही बोल पड़े, ‘‘जरीन सच में ही कहती थी कि हमारी अनारा बेगम साहिबा चांद का टुकड़ा हैं. उस ने आप के बारे में इस तरह बताया था कि मानो वह नहीं आप ही खुद हम से बातचीत कर रही हों. इस पहली मुलाकात में हम सब कुछ नहीं कहते हैं, सिर्फ इतना ही वादा करते हैं कि हम आप के लिए सब कुछ न्यौछावर कर सकते हैं.’’

इतना सुनने के बाद अनारा बेगम ने अपनी पंखुडि़यों सी पलकों को आहिस्ता से खोला. बहुत ही मद्धिम स्वर में बोली, ‘‘आप के बारे में बहुत कुछ सुन चुकी हूं, हम भी वफा नहीं छोड़ेंगे, आप यकीन रखें.’’

इतना सुनना था कि महाराजा का मन दहक उठा. उन्होंने बढ़ कर अनारा बेगम के हाथ थाम लिए. और उन्हें चूम कर कहा, ‘‘विदा.’’

बेगम ने सिर्फ खामोशी से सलाम किया.

उस के बाद दिनप्रतिदिन उन का प्यार बढ़ता चला गया. महाराजा गजसिंह अपना सारा धैर्य, संस्कार, सरोकार, गौरव, मानमर्यादा और अपनी आनबान को भूल कर अनारा बेगम के प्यार में खो गए.

अनारा बेगम ने भी किसी की परवाह न कर के गजसिंह को अपना तनमन समर्पित कर दिया. उन का इश्क परवान चढ़ने लगा.

वे खुलेआम मिलने लगे. उन के प्यार के चर्चे भी शुरू हो गए. मुसलमानों को यह अनुचित लगा. उन्होंने नवाब फजल से इस की शिकायत कर दी. पहले तो नवाब को विश्वास नहीं हुआ, पर बाद में जब उन्हें भी सच्चाई मालूम हुई, तब वह भी सजग हो गए.

फिर क्या था, उन्होंने अनारा पर प्रतिबंध लगा दिया. अनारा बेगम कहीं आजा नहीं सकती थीं. ड्योढ़ी पर भी कड़ा पहरा बिठा दिया गया था.

एक बार जरीन ने देवली को अपने यहां बुलवाया. बेगम ने दर्द भरे स्वर में कहा, ‘‘मैं महाराजा के पास आऊंगी. मैं उन के बिना रह नहीं सकती. उन्हें मेरी ओर से हाथ जोड़ कर कहना कि वह मुझे यहां से आजाद करवा लें.’’

देवली ने बेगम को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘महाराजा तो स्वयं आप के प्यार में बेचैन हैं. उन्होंने कहा है कि आप उन से एक बार मिल लें, सिर्फ एक बार. क्या आप उन से मिल नहीं सकतीं?’’

‘‘कैसे मिल सकती हूं देवली, नवाब साहब खुद बादशाह सलामत के खास आदमी हैं. मुझे डर इस बात का है कि कहीं मेरी वजह से कोई बड़ा खूनखराबा न हो जाए.’’

‘‘मैं इस का क्या जवाब दूं? आप किसी भी तरह उन से एक बार बस मिल लीजिए.’’

कुछ क्षणों तक सन्नाटा छाया रहा. बेगम सोचती रहीं. सहसा चेहरे पर प्रसन्न्नता की रेखा उभरी. वह बोली, ‘‘महाराजा गजसिंह महल के पश्चिमी झरोखे में आ सकते हैं क्या? उन्हें कहना कि मैं वहां उन का इंतजार करूंगी.’’

देवली ने आ कर यह बात महाराजा गजसिंह को बताई. सुन कर महाराजा और भी व्याकुल हो गए. उन्हें लगा कि बेगम के बिना यह जीवन, यह भोगविलास, यह शौर्य और शानोशौकत सब व्यर्थ है. अनारा बेगम का प्यार और साहस देख कर वह बेचैन हो उठे.

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‘‘मैं आऊंगा देवली, तू बेगम से जा कर कह दे कि वह झरोखे में रस्सी की सीढि़यां बना कर डाल दें. मैं उस रस्सी से झरोखे में पहुंच जाऊंगा.’’

देवली चली गई. निश्चित समय पर महाराजा अपने व्यक्तित्व की महत्ता को भूल कर साधारण प्रेमी की भांति चल पड़े. वह हाथी पर थे. जैसे ही हाथी झरोखे के नीचे पहुंचा वैसे ही बेगम ने रस्सी की सीढि़यां लटका दीं. महाराजा पलक झपकते उस पर चढ़ गए.

‘‘बेगम!’’ गजसिंह अनारा का हाथ थामते हुए बोले.

‘‘महाराजा, आप कुछ भी कहिए, पर यह सच है कि हम मोहब्बत की राह में बहुत आगे बढ़ गए हैं. अब मैं आप के बगैर जिंदा नहीं रह सकूंगी. पता नहीं आप क्या सोचते हैं.’’ बेगम ने भी राजा का हाथ थामते हुए कहा.

ऐ दिल संभल जा: क्या डाक्टर गोविंद से रीमा अपने दिल की बात कह पाई?

रीमा की आंखों के सामने बारबार डाक्टर गोविंद का चेहरा घूम रहा था. हंसमुख लेकिन सौम्य मुखमंडल, 6 फुट लंबा इकहरा बदन और इन सब से बढ़ कर उन का बात करने का अंदाज. उन की गंभीर मगर चुटीली बातों में बहुत वजन होता था, गहरी दृष्टि और गजब की याददाश्त. एक बार किसी को देख लें तो फिर उसे भूलते नहीं. उन  की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के गुण सभी गाते थे. उम्र 50 वर्ष के करीब तो होगी ही लेकिन मुश्किल से 35-36 के दिखते थे. रीमा बारबार अपना ध्यान मैगजीन पढ़ने में लगा रही थी लेकिन उस के खयालों में डाक्टर गोविंद आजा रहे थे.

रीमा ने जैसे ही पन्ना पलटा, फिर डाक्टर गोविंद का चेहरा सामने आ गया जैसे हर पन्ने पर उन का चेहरा हो वह हर पन्ने के बाद यही सोचती कि अब नहीं सोचूंगी उन के बारे में.

‘‘रीमा, जरा इधर आना,’’ रमा की मम्मी किचन से चिल्लाई.

‘‘अभी आई,’’ कहती हुई रीमा मैगजीन रख कर किचन में आ गई.

‘इस लड़की ने जब से कालेज में दाखिला लिया है, इस का दिमाग न जाने कहां रहता है’ मम्मी बड़बड़ा रही थी.

रीमा मैनेजमैंट का कोर्स कर रही है. मम्मी उसे कालेज भेजना ही नहीं चाहती थी. वह हमेशा चिल्लाती रहती कि 20वां चल रहा है, इस के हाथ पीले कर दो, लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने से क्या लाभ.

रीमा की जिद और पापा के सपोर्ट की वजह से उस का दाखिला कालेज में हुआ. मम्मी कम पढ़ीलिखी थी. उन का पढ़ाई पर जोर कम ही था. मम्मी की बातों से रीमा कुढ़ती रहती. और जब से उस ने डाक्टर गोविंद को देखा है, उसे और कुछ दिखता ही नहीं.

डाक्टर गोविंद जब क्लास ले रहे होते, रीमा सिर्फ उन्हें ही देखती रह जाती. वे किस टौपिक पर चर्चा कर रहे हैं, इस की भी सुध उसे कई बार नहीं होती. यह तो शुक्र था उस के सहपाठी अमित का, जो बाद में उस की मदद करता, अपने नोट्स उसे दे देता और यदि कोई टौपिक उस की समझ में नहीं आता तो वह उसे समझा भी देता.

वैसे रीमा खुद भी तेज थी. कोई चीज उस की नजरों से एक बार गुजर जाती, उसे वह कभी नहीं भूलती. डाक्टर गोविंद भी उस की तारीफ करते. उन के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर रीमा को बहुत अच्छा लगता. शर्म से उस की नजरें झुक जातीं. उसे ऐसा लगता कि डाक्टर गोविंद सिर्फ उसे ही देख रहे हैं. उस के चेहरे को पढ़ रहे हैं.

डाक्टर गोविंद रीमा के रोल मौडल बन गए. वह हर समय उन की तारीफ करती रहती. कोई स्टूडैंट उन के खिलाफ कुछ कहना चाहता तो वह एक शब्द न सुनती. एक दिन उस की सहेली सुजाता ने यों ही कह दिया, ‘गोविंद सर कुछ स्टूडैंट्स पर ज्यादा ही ध्यान देते हैं.’ बस, इतनी सी बात पर रीमा उस से झगड़ पड़ी. उस से बात करनी बंद कर दी.

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रीमा भावनाओं में बह रही थी. उस ने डाक्टर गोविंद को समझने की कोशिश भी नहीं की. उन के दिल में अपने सभी छात्रों के लिए समान स्नेह था. वे सभी को प्रोत्साहित करते और जहां जरूरत होती, प्रशंसा करते. यह सब रीमा को नजर नहीं आता. वह कल्पनालोक की सैर करती रहती. उसे हर पल, चारों ओर डाक्टर गोविंद ही नजर आते.

उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह अपने दिल की बात डाक्टर गोविंद को जरूर बताएगी. कल वे मेरी ओर देख कर कैसे मुसकरा रहे थे. वे भी उस में दिलचस्पी लेते हैं. उस से अधिक बातें करते हैं. अगर वे मुझे पसंद नहीं करते तो क्यों सिर्फ मुझे नोट्स देने के बहाने बुलाते. देर तक मुझ से बातें करते रहते. शायद वे मुझ से अपनी चाहत का इजहार करना चाहते हैं लेकिन संकोचवश कर नहीं पाते.

रीमा को रातभर नींद नहीं आई, उनींदी में रात काटी और सुबह समय से पहले कालेज पहुंच गई. क्लास शुरू होने में अभी देर थी. मैरून कलर की कमीज, चूड़ीदार पजामा और गले में मैचिंग दुपट्टा डाले रीमा गजब की खूबसूरत लग रही थी. वह चहकती हुई सीढि़यां चढ़ रही थी. डाक्टर गोविंद अपनी क्लास ले कर उतर रहे थे. ‘‘अरे रीमा, तुम आ गई.’’

‘‘नमस्ते सर,’’ कहते हुए रीमा झेंप गई.

‘‘यह लो,’’ उन्होंने अपने हाथ में लिया गुलाब का फूल रीमा की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्यू सर,’’ कह कर रीमा जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ गई. वह क्लास में जा कर ही रुकी. उस की सांसें तेजतेज चल रही थी. वह बैंच पर बैठ गई. गुलाब का फूल देखदेख बारबार उस के होंठों पर मुसकराहट आ रही थी. उसे लगा उस का सपना साकार हो गया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. तभी अमित आ गया.

‘‘अकेली बैठी यहां क्या कर रही हो? अरे, गुलाब का फूल. बहुत खूबसूरत है. मेरे लिए लाई हो तो दो न. शरमा क्यों रही हो?’’ अमित ने गुलाब छूने के लिए हाथ बढ़ाया.

रीमा बिफर पड़ी. ‘‘यह क्या तरीका है? ऐसे क्यों बिहेव कर रहे हो, जंगली की तरह.’’

‘‘अरे, तुम्हें क्या हो गया? मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं किया. वैसे, बिहेवियर तो तुम्हारा बदला हुआ है. कहां खोई रहती हैं मैडम आजकल?’’

‘‘सौरी अमित, पता नहीं मुझे क्या हुआ अचानक…’’

‘‘अच्छा, छोड़ो इन बातों को. सैमिनार हौल में चलो.’’

‘‘क्यों? अभी तो गोविंद सर की क्लास है.’’

‘‘अरे पागल, गोविंद सर अब क्लास नहीं लेंगे. वे आज ही यहां से जा रहे हैं. उन का दिल्ली यूनिवर्सिटी में वीसी के पद पर चयन हुआ है. सभी लोग हौल में जमा हो रहे हैं. उन का विदाई समारोह है. उठो, चलो.’’

रीमा की समझ में कुछ नहीं आया. वह सम्मोहित सी अमित के पीछेपीछे चल पड़ी. सैमिनार हौल में छात्र जमा थे. रीमा को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ हो गया, उसे पता ही नहीं चला. वह कल्पनालोक में विचरती रही और हकीकत में उस का सारा नाता टूटता गया.

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वह इन्हीं विचारों में मग्न थी कि गोविंद सर की बातों ने उस का ध्यान भंग किया.

‘‘मैं भले ही यहां से जा रहा हूं लेकिन चाहता हूं कि जीवन में किसी मोड़ पर कोई स्टूटैंट मुझे मिले तो वह तरक्की की नई ऊंचाई पर मिले. एक छात्र का एकमात्र उद्देश्य अपनी मंजिल पाना होना चाहिए. अन्य बातों को उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि एक बार मन भटका, तो फिर अपना लक्ष्य पाना अत्यंत मुश्किल हो जाता है. मेरे लिए सभी छात्र मेरी संतान के समान हैं. मैं चाहता हूं कि सभी खूब पढ़ें और अपना व अपने मातापिता का नाम रोशन करें.’’

तालियों की गड़गड़ाहट में उन की आवाज दब गई. सभी उन्हें विदा करने को खड़े थे. कई  छात्रों की आंखें नम थीं लेकिन होंठों पर मुसकराहट तैर रही थी. डाक्टर गोविंद के शब्दों में जाने क्या जादू था कि रीमा भी नम आंखों और होंठों पर मुसकराहट लिए अपना हाथ हिला रही थी. गुलाब का फूल अपनी खुशबू बिखेर रहा था.

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बैलेंसशीट औफ लाइफ- भाग 1: अनन्या की जिंदगी में कैसे मच गई हलचल

औफिस में अनन्या अपने सहकर्मियों के साथ जल्दीजल्दी लंच कर रही थी. लंच के फौरन बाद उस का एक महत्त्वपूर्ण प्रेजैंटेशन था, जिस के लिए वह काफी उत्साहित थी. इस मीटिंग की तैयारी वह 1 हफ्ते से कर रही थी. उस की अच्छी फ्रैंड सनाया ने टोका, ‘‘खाना तो कम से कम आराम से खा लो, अनन्या. काम तो होता रहेगा.’’

‘‘हां, जानती हूं, पर इस प्रेजैंटेशन के लिए बहुत मेहनत की है, राहुल का स्कूल उस का होमवर्क, उस का खानापीना सुमित ही देख रहा है आजकल.’’ ‘‘सच में, तुम्हें बहुत अच्छा पति मिला है.’’

‘‘हां, उस की सपोर्ट के बिना मैं कुछ कर ही नहीं सकती.’’ लंच कर के अनन्या एक बार फिर अपने काम में डूब गई. पवई की इस अत्याधुनिक बिल्डिंग के अपने औफिस के हर व्यक्ति की प्रशंसा की पात्र थी अनन्या. सब उस के गुणों की, मेहनत की तारीफ करते नहीं थकते थे. आधुनिक, स्मार्ट, सुंदर, मेहनती, प्रतिभाशाली अनन्या

10 साल पहले सुमित से विवाह कर दिल्ली से यहां मुंबई आई थी और पवई में ही अपने फ्लैट में अनन्या, सुमित और उन का बेटे राहुल का छोटा सा परिवार खुशहाल जीवन जी रहा था. अनन्या ने अपने काम से संतुष्ट हो कर घड़ी पर एक नजर डाली. तभी व्हाट्सऐप पर सुमित का मैसेज आया, ‘‘औल दि बैस्ट’, साथ ही किस की इमोजी. अनन्या को अच्छा लगा, मुसकराते हुए जवाब भेजा. अचानक उस के फोन की स्क्रीन पर मेघा का नाम चमका तो उस ने हैरान होते हुए फोन उठा लिया. मेघा उस की कालेज की घनिष्ठ सहेली थी. वह इस समय दिल्ली में थी.

मेघा ने कुछ परेशान सी आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘अनन्या, तुम औफिस में हो?’’ ‘‘अरे, क्या हुआ? न हाय, न हैलो, सीधे सवाल तुम ठीक तो हो न?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं अनन्या, पर बड़ी गड़बड़ हो गई.’’

‘‘क्या हुआ? कुछ बताएगी भी.’’ ‘‘मार्केट में राघव की आत्मकथा ‘‘बैलेंसशीट औफ लाइफ’’ आई है न. उस ने तेरा और अपना पूरा किस्सा इस में लिख दिया है.’’

‘‘क्या?’’ तेज झटका लगा अनन्या को.

‘‘हां, मैं ने अभी पढ़ी नहीं है पर मेरे पति संजीव को बुक पढ़ कर किसी ने बताया कि किसी अनन्या की कहानी लिख कर तो इस ने शायद उस की लाइफ में तूफान ला दिया होगा. संजीव समझ गए कि शायद यह अनन्या तुम ही हो, आज शायद संजीव यह बुक लाएंगे तो पढ़ूंगी. मेरा तो दिमाग ही घूम गया सुन कर. सुमित जानता है न उस के बारे में?’’

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‘‘हां, जानता तो है कि मैं और राघव एकदूसरे को पसंद करते थे और हमारा विवाह उस के महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के चलते हो नहीं पाया और उस ने धनदौलत के लिए किसी बड़े बिजनैसमैन की बेटी से विवाह कर लिया था और आज वह भी देश का जानामाना नाम है.’’ मेघा ने अटकते हुए संकोचपूर्वक कहा, ‘‘अनन्या, सुना है तुम्हारे और उस के बीच होने वाले सैक्स की बात उस ने…’’

अनन्या एक शब्द नहीं बोल पाई, आंखें अचानक आंसुओं से भरती चली गईं. अपमान के घूंट चुपचाप पीते हुए, ‘‘बाद में फोन करती हूं.’’ कह कर फोन रख दिया.

मेघा ने उसी समय मैसेज भेजा, ‘‘प्लीज डौंट बी सैड, फ्री होते ही फोन करना.’’ कुछ पल बाद सनाया ने आ कर उसे झंझोड़ा तो जैसे वह होश में आई, ‘‘क्या हुआ अनन्या? एसी में भी इतना पसीना.. तेरी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हांहां, बस ऐसे ही.’’ ‘‘टैंशन में हो?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं,’’ अनन्या फीकी सी हंसी हंस दी. यों ही कह दिया, ‘‘प्रेजैंटेशन के बारे में सोच रही थी.’’ ‘‘कोई और बात है जानती हूं, तू इतनी कौन्फिडैंट है, प्रेजैंटेशन के बारे में सोच कर माथे पर इतना पसीना नहीं आएगा. नहीं बताना चाहती तो कोई बात नहीं. ले, पानी पी और चल.’’

अनन्या ने उस दिन कैसे अपना प्रेजैंटेशन दिया, वही जानती थी. अतीत की परछाईं से उस ने स्वयं को बड़ी मुश्किल से निकाला था. मन अतीत में पीछे ले जाता रहा था और दिमाग वर्तमान पर ध्यान देने के लिए आगे धकेलता रहा था. तभी वह सफल हो पाई थी. उस के सीनियर्स ने उस की तारीफ कर उस का मनोबल बढ़ाया था. ‘‘तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही,’’ कह कर वह घर के लिए जल्दी निकल गई. राहुल स्कूल से डे केयर में चला जाता था. सुमित आजकल उसे लेता हुआ ही घर आता था, वह चुपचाप घर जा कर बैड पर पड़ गई.

राघव उस का पहला प्यार था. कौलेज में वह उस के प्यार में ऐसे मगन हुई कि यही मान लिया कि जीवन भर का साथ है. राघव एक छोटे से कसबे से दिल्ली में किराए का कमरा ले कर पढ़ता था. राघव के बहुत बार आग्रह करने पर वह एक ही बार उस के कमरे पर गई थी. वहीं भावनाओं में बह कर अनन्या ने पूर्ण समर्पण कर दिया था. आगे विवाह से पहले कभी ऐसा न हो, यह सोच कर फिर कभी उस के कमरे पर नहीं गई थी. पर दिल्ली के मशहूर धनी बिजनैसमैन की बेटी गीता से दोस्ती होने पर राघव को गीता के साथ ही भविष्य सुरक्षित लगा तो कई बहानों से दूरियां बनाते हुए राघव अनन्या से दूर होता चला गया.

अनन्या भी राघव में आए परिवर्तन को भलीभांति भांप गई थी. उस ने पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई, कैरियर पर लगा दिया था और अपने प्यार को कई परतों में दिल में दबा कर यह जख्म समय के ऊपर ही भरने के लिए छोड़ दिया था. कुछ समय बाद मातापिता की पसंद सुमित से विवाह कर मुंबई चली आई और सुमित व राहुल को पा बहुत संतुष्ट व सुखी थी पर आजकल जो आत्मकथा लिखने का फैशन बढ़ता जा रहा है, उस की चपेट में कहीं उस का वर्तमान न आ जाए, यह फांस अनन्या के गले में ऐसे चुभ रही थी कि उसे एक पल भी चैन नहीं आ रहा था. जिस प्यार के एहसास की खुशबू को अपने दिल में ही दबा उस की स्मृति से लंबे समय तक सुवासित हुई थी, आज जैसे उस एहसास से दुर्गंध आ रही थी.

अपनी सफलता, प्रसिद्धि के नशे में चूर राघव ने अपनी आत्मकथा में उस का प्रसंग लिख उस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी. कहीं ससुराल वाले, मायके और राहुल बड़ा हो कर यह सब जान न ले. कितने ही अपने, दोस्त, परिचत, रिश्तेदार उस के चरित्र पर दाग लगाने के लिए खड़े हो जाएंगे. औफिस में जिन लोगों की नजरों में आज अपने लिए इतना स्नेह और सम्मान दिखता है, उस का क्या होगा? राघव ने यह क्यों नहीं सोचा? अपने लालच, फरेब, महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में लिख कर अपनी चालबाजियां दुनिया के सामने रखता, एक लड़की जो अब कहीं शांति से अपने परिवार के साथ जी रही है, उस के शांत जीवन में कंकड़ मार कर उथलपुथल मचाने का क्या औचित्य है?

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अनन्या के मन में क्रोध, अपमान की इतनी तेज भड़ास थी कि उस ने मेघा को फोन मिलाया. मेघा ने फोन उठाते ही प्यार से कहा, ‘‘अनन्या, तू बिलकुल परेशान मत होना, पढ़ कर तुझे बताऊंगी क्या लिखा है उस ने.’’

‘‘नहीं, रहने दे मैं कल औफिस जाते हुए खरीद लूंगी, अगर बुक स्टोर में दिख गई तो. पढ़ लूं फिर बताऊंगी उसे, छोड़ूगी नहीं उसे.’’ दोनों ने कुछ देर बातें करने के बाद फोन रख दिया.

लक्ष्य- भाग 1: क्या था सुधा का लक्ष्य

निलेश और सुधा दोनों दिल्ली के एक कालेज में स्नातक के छात्र थे. दोनों में गहरी दोस्ती थी. आज उन की क्लास का अंतिम दिन था. इसलिए निलेश कालेज के पार्क में गुमसुम अपने में खोया हुआ फूलों की क्यारी के पास बैठा था. सुधा उसे ढूंढ़ते हुए उस के करीब आ कर पूछने लगी,  ‘‘निलेश यहां क्यों बैठे हो?’’

उस का जवाब जाने बिना ही वह एक सफेद गुलाब के फूल को छूते हुए कहने लगी, ‘‘इन फूलों में कांटे क्यों होते हैं. देखो न, कितना सुंदर होता है यह फूल, पर छूने से मैं डरती हूं. कहीं कांटे न चुभ जाएं.’’ निलेश से कोई जवाब न पा कर उस ने फिर कहा, ‘‘आज किस सोच में डूबे हो, निलेश?’’

निलेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘सोच रहा हूं कि जब हम किसी से मिलते हैं तो कितना अच्छा लगता है पर बिछड़ते समय बहुत बुरा लगता है. आज कालेज का अंतिम दिन है. कल हम सब अपनेअपने विषय की तैयारी में लग जाएंगे. परीक्षा के बाद कुछ लोग अपने घर लौट जाएंगे तो कुछ और लोग की तलाश में भटकने लगेंगे. तब रह जाएगी जीवन में सिर्फ हमारी यादें इन फूलों की खूशबू की तरह. यह कालेज लाइफ कितनी सुहानी होती है न, सुधा.

‘‘हर रोज एक नई स्फूर्ति के साथ मिलना, क्लास में अनेक विषयों पर बहस करना, घूमनाफिरना और सैर करना. अब सब खत्म हो जाएगा.’’ सुधा की तरफ देखता हुआ निलेश एक सवाल कर बैठा, ‘‘क्या तुम याद करोगी, मुझे?’’

‘‘ओह, तो तुम इसलिए उदास बैठे हो. आज तुम शायराना अंदाज में बोल रहे हो. रही बात याद करने की, तो जरूर करूंगी, पर अभी हम कहां भागे जा रहे हैं?’’ वह हाथ घुमा कर कहने लगी, ‘‘सुना है दुनिया गोल है. यदि कहीं चले भी जाएं तो हम कहीं न कहीं, किसी मोड़ पर मिल जाएंगे. एकदूसरे की याद आई तो मोबाइल से बातें कर लेंगे. इसलिए तुम्हें उदास होने की जरूरत नहीं.’’

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सुधा का अंदाज देख कर निलेश गंभीर होते हुए बोला, ‘‘दुनिया बहुत बड़ी है, सुधा. क्या पता दुनिया की भीड़ में हम खो जाएं और फिर कभी न मिलें? इसलिए आज तुम से अपने दिल की बातें करना चाहता हूं. क्या पता कल हम मिलें, न मिलें. नाराज मत होना.’’ वह घास पर बैठा उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘सुधा, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

यह सुनते ही सुधा के चेहरे का रंग बदल गया. वह उत्तेजित हो कर बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हो, निलेश? हमारे बीच प्यार कब और कहां से आ गया? हम एक अच्छे दोस्त हैं और दोस्त बन कर ही रहना चाहते हैं. अभी हमें अपने कैरियर के बारे में सोचना चाहिए, न कि प्यार के चक्कर में पड़ कर अपना समय बरबाद करना चाहिए. प्यार के लिए मेरे दिल में कोई जगह नहीं.

‘‘सौरी, तुम बुरा मत मानना. सच तो यह है कि मैं शादी ही नहीं करना चाहती. शादी के बाद लड़कियों की जिंदगी बदल जाती है. उन के सपने मोती की तरह बिखर जाते हैं. उन की जिंदगी उन की नहीं रह जाती, दूसरे के अधीन हो जाती है. वे जो करना चाहती हैं, जीवन में नहीं कर पातीं. पारिवारिक उलझनों में उलझ कर रह जाती हैं. मेरे जीवन का लक्ष्य है कुशल शिक्षिका बनना. अभी मुझे बहुत पढ़ना है.’’

‘‘सुधा, पढ़ने के साथसाथ क्या हम प्यार नहीं कर सकते? मैं तो प्यार में सिर्फ तुम से वादा चाहता हूं. भविष्य में तुम्हारे साथ कदम मिला कर चलना चाहता हूं. जब अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे तभी हम घर बसाएंगे. अभी तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं, और रही बात शादी के बाद की, तो तुम जो चाहे करना. मैं कभी तुम्हें किसी भी चीज के लिए टोकूंगा नहीं.’’

‘‘पर मैं कोई वादा करना नहीं चाहती. अभी कोई भी बंधन मुझे स्वीकार नहीं.’’ तब सुधा की यह बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘प्यार इंसान की जरूरत होती है. आज भले ही तुम इस बात को न मानो, पर एक दिन तुम्हें यह एहसास जरूर होगा. इन सब खुशियों के अलावा अपने जीवन में एक इंसान की जरूरत होती है. जिसे जीवनसाथी कहते हैं. खैर, मैं तुम्हारी सफलता में बाधक बनना नहीं चाहता. दिल ने जो महसूस किया, वह तुम से कह बैठा. बाकी तुम्हारी मरजी.’’

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वह अनमना सा उठा और घर की तरफ चल पड़ा. उस के पीछेपीछे सुधा भी चल पड़ी. कुछ देर चुपचाप उस के साथसाथ चलती रही. अब दोनों बस स्टौप पर खड़े थे, अपनीअपनी बस का इंतजार करने लगे. तभी सुधा ने खामोशी तोड़ने के उद्देश्य से उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे जीवन में भी तो कोई लक्ष्य होगा. स्नातक के बाद क्या करना चाहोगे क्या यों ही लड़की पटा कर शादी करने का इरादा?’’

यह सुन कर निलेश झुंझलाते हुए बोला, ‘‘ऐसी बात नहीं  है, सुधा. मैं तुम्हें पटा नहीं रहा था. अपने प्यार का इजहार कर रहा था. पर जरूरी तो नहीं कि जैसा मैं सोचता हूं वैसा ही तुम सोचो, और प्यार किसी से जबरदस्ती नहीं किया जाता. यह तो एक एहसास है जो कब दिल में पलने लगता है, हमें पता ही नहीं चलता. आज के बाद कभी तुम से प्यार का जिक्र नहीं करूंगा. दूसरी बात, जीवन के लक्ष्य के बारे में अभी मैं ने कुछ सोचा नहीं. वक्त जहां ले जाएगा, चला जाऊंगा.’’

‘‘निलेश, यह तुम्हारी जिंदगी है, कोई और तो नहीं सोच सकता. समय को पक्ष में करना तो अपने हाथ में होता है. अपने लक्ष्य को निर्धारित करना तुम्हारा कर्तव्य है.’’

इस पर निलेश बोला, ‘‘हां, मेरा कर्तव्य जरूर है लेकिन अभी तो स्नातक की परीक्षा सिर पर सवार है. उस के बाद हमारे मातापिता जो कहेंगे वही करूंगा.’’ तभी सुधा की बस आ गई और वह बाय करते हुए बस में चढ़ गई. निलेश भी अपने गंतव्य पर चला गया.

सुधा अब अपने घर आ चुकी थी. जब खाना खा कर वह अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी तो सोचने लगी,

क्या सचमुच निलेश मुझ से प्यार करता है? या यों ही मुझे आजमा रहा था. पर उस ने तो अपने जीवन का निर्णय मातापिता पर छोड़ रखा है. उन्हीं लागों को हमेशा प्रधानता देता है. क्या जीवन में वह मेरा साथ देगा? अच्छा ही हुआ जो उस का प्यार स्वीकार नहीं किया. प्यार तो कभी भी किया जा सकता है, पर जीवन का सुनहला वक्त अपने हाथों से नहीं जाने दूंगी. समय के भरोसे कोई कैसे जी सकता है? जो स्वयं अपना निर्णय नहीं ले सकता वह मेरे साथ कदम से कदम मिला कर कैसे चल सकता है? क्या कुछ पल किसी के साथ गुजार लेने से किसी से प्यार हो जाता है? निलेश न जाने क्यों ऐसी बातें कर रहा था? यह सोचतेसोचते वह सो गई.

अगले दिन वह परीक्षा की तैयारी में लग गई. निलेश से कम ही मुलाकात होती. एकदिन सुबह वह उठी तो रमन, जो निलेश का दोस्त था ने बुरी खबर से उसे अवगत कराया कि निलेश के पापा एक आतंकी मुठभेड़ में मारे गए हैं. आज सुबह 6 बजे की फ्लाइट से वह अपने गांव के लिए रवाना हो गया. उस के पापा की लाश वहीं गांव में आने वाली है. वह बहुत रो रहा था. उस ने कहा कि तुम्हें बता दें.

यह सुन वह बहुत व्याकुल हो उठी. उस को फोन लगाने लगी पर उस का फोन स्विच औफ आ रहा था. वह दुखी हो गई, उसे दुखी देख उस की मां ने सवाल किया कि सुधा क्या बात है, किस का फोन था? तब उस ने रोंआसे हो कर कहा, ‘‘मां, निलेश के पापा की आतंकी मुठभेड़ में मृत्यु हो गई,’’ यह कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए और कहने लगी, क्यों आएदिन ये आतंकी देश में उत्पात मचाते रहते हैं? कभी मंदिर में धमाका तो कभी मसजिद में करते हैं तो कहीं सरहद पर गोलीबारी कर बेकुसूरों का सीना छलनी कर देते हैं. क्या उन की मानवता मर चुकी है या उन के पास दिल नहीं होता जो औरतों के सुहाग उजाड़ लेते हैं. आतंक की डगर पर चल कर आखिर उन्हें क्या सुख मिलता है?’’

सुधा के मुख से यह सुन उस की मां उस के करीब जा कर समझाने लगी, ‘‘बेटी, कुछ लोगों का काम ही उत्पाद मचाना होता है. अगर उन के दिल में संवेदना होती तो ऐसा काम करते ही क्यों? पर तुम निलेश के पिता के लिए इतनी दुखी न हो. सैनिक का जीवन तो ऐसा ही होता है बेटी, उन के सिर पर हमेशा कफन बंधा होता है. वे देश के लिए लड़ते हैं, पर उन का परिवार एक दिन अचानक ऐसे ही बिखर जाता है. मरता तो एक इंसान है लेकिन बिखर जाते हैं मानो घर के सभी सदस्य. हम उस शहीद को नमन करते हैं. ऐसे लोग कभी मरते नहीं बल्कि अमर हो जाते हैं.’’

पर सुधा अपने कमरे में आ कर सोचने लगी कि काश, निलेश के लिएवह कुछ कर पाती. आज वह कितना दुखी होगा. एक तरफ मैं ने उस का प्यार ठुकरा दिया, दूसरी तरफ उस के सिर से पिता का साया उठ गया. इस समय मुझे उस के साथ होना चाहिए था. आखिर दोस्त ही दोस्त के काम आता है. कई बार जब मैं निराश होती तो वह मेरा साहस बढ़ाता. आज क्या मैं उस के लिए कुछ नहीं कर सकती? वह बारबार फोन करती पर कोई जवाब नहीं आता तो निराश हो जाती.

2 महीने बाद परीक्षा हौल में उस की आंखें निलेश को ढूंढ़ रही थीं. पर उस का कोई अतापता नहीं था. वह सोचने लगी, क्यों उस के विषय में वह चिंतित रहने लगी है? वह मात्र दोस्त ही तो था, एकदिन जुदा तो होना ही था. फिर उसे ध्यान आया कि कहीं उस की परीक्षा खराब न हो जाए, और वह अपना पेपर पूरा करने लगी.

शैतान भाग 3 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

किचन के पास उसे अरसलान मिल गया. उस ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरसलान, मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल जाऊंगी, पर तुम फिजा को मुझे दे दो.’’

‘‘यह क्या बकवास है?’’ वह उलझ कर बोला.

‘‘यह बकवास नहीं है, वकील से कह कर एक दस्तावेज तैयार कराओ, जिस में लिखा हो, अगले 10 सालों तक तुम मुझे फिजा का गार्जियन रख रहे हो. मैं जहां रहूंगी, फिजा वहीं रहेगी. तुम हर महीने खर्चे की रकम देते रहोगे? मैं एक फ्लैट अलग ले लूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें वहीं फ्लैट दे दूंगा, जहां हम मिलते थे.’’

‘‘पर तुम वहां नहीं आ सकोगे. हफ्ते में एक बार आप बच्ची को बाहर ले जा सकते हो.’

‘‘ठीक है, मैं वकील से बात करता हूं.’’ उस ने कहा.

ठीक 11 बजे रानिया ड्राइंगरूम में पहुंच गई, जहां सब लोग इकट्ठे थे. वह एक कोने के सोफे पर फिजा को गोद में ले कर बैठ गई. वहां सोनिया के डाक्टर व उस के दफ्तर के मैनेजर राशिदी भी थे. वकील ने वसीयत के बारे में कहना शुरू किया, ‘‘वसीयत के मुताबिक जिन को यहां होना चाहिए, वे यहां हैं, पर यहां ज्यादा लोग नहीं रह सकते. इसलिए मिस कंजा और खाला आप बाहर चली जाएं प्लीज. यह कानूनी मामला है.’’

कंजा ने घूर कर वकील को देखा, फिर अरसलान की तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह रोक लेगा. पर वह सिर झुकाए बैठा रहा. दोनों गुस्से से बाहर निकल गईं.

वकील ने कहना शुरू किया, ‘‘वसीयत डेढ़ माह पहले लिखी गई थी. डाक्टर साहब और मैनेजर राशिदी इस के गवाह हैं. इस पर सिविल जज के साइन करवा लिए गए हैं. सारा काम पक्का है.’’

अरसलान बेचैन हो कर बोला, ‘‘यह सारी बातें छोडि़ए, आप वसीयत पढ़ कर सुनाइए.’’

‘‘वसीयत के मुताबिक सोनिया मैडम की तमाम जायदाद की वारिस उन की बेटी फिजा है.’’ वकील ने कहा.

‘‘बकवास है, इतनी सी बच्ची यह बिजनैस और कारखाना कैसे चला सकती है?’’ अरसलान ने गुस्से से कहा.

‘‘इस की चिंता आप मत कीजिए अरसलान मियां. इस के लिए सोनिया मैडम ने 4 लोगों की एक कमेटी बना दी है. जिस में मैनेजर राशिदी, डाक्टर साहब, उन के पापा के दोस्त अजमल साहब और मैं शामिल हूं. हम सब के काम की निगरानी रानिया को सौंपी गई है.’’ वकील ने कहा.

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‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ अरसलान ने चिढ़ कर कहा.

‘‘यह इस तरह हो सकता है अरसलान साहब कि सोनिया को आप पर भरोसा नहीं था. वह जानती थी कि आप अपनी नई जिंदगी में मगन हो कर फिजा को भूल जाएंगे या आप उसे अपने रास्ते से हटा देंगे.’’

‘‘वसीयत में मेरे लिए क्या हुक्म है?’’ अरसलान ने धीरे से पूछा.

‘‘आप की किस्मत का फैसला रानिया मैडम के हाथों है, क्योंकि सोनिया मैडम सारे अधिकार उन्हें दे गई हैं.’’ वकील साहब ने कहा, ‘‘कमेटी के सारे काम भी रानिया मैडम से पूछ कर उन की ही सलाह से होंगे. सोनिया मैडम एक खत भी रानिया मैडम के लिए छोड़ गई हैं.’’

यह सुन कर रानिया मन ही मन शर्मिंदा हो गई. उस ने दिल ही दिल में सोनिया का शुक्रिया अदा किया.

वकील साहब ने कागजात देख कर कहा, ‘‘अरसलान, आप के लिए वसीयत में खास हिदायतें हैं. आप जनरल मैनेजर राशिदी और रानिया की इजाजत से ही औफिस जा सकते हैं और इन की मरजी से ही आप को काम मिलेगा. एक खास शर्त उन्होंने यह रखी है कि इस कोठी में आप तभी रह सकते हैं, जब आप रानियाजी से शादी कर लेंगे और बाहर कोई अफेयर नहीं चलाएंगे.’’

अरसलान गुस्से से तिलमिला कर बोला, ‘‘यह आप सब की मिलीभगत है. आप सब ने मेरे खिलाफ साजिश रची है. मैं इस के खिलाफ अदालत जाऊंगा.’’

‘‘अरसलान साहब, आप कोर्ट जाने की तो बात भी न करें, मेरे पास इस की रिपोर्ट मौजूद है कि सोनियाजी को दवा के कैप्सूल में जहर दिया गया था.’’ डाक्टर साहब बोले.

यह सुन कर अरसलान डर कर चुप हो गया. सोनिया ने एक खत रानिया के लिए भी लिखा था. उस खत को पढ़ने के लिए वह दूसरे कमरे में चली गई. खत खोल कर उस ने उसे पढ़ना शुरू किया—

‘मेरी दोस्त रानिया, शायद मेरी सौंपी गई जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है, पर मुझे यकीन है कि मोहब्बत में तुम सब निभा लोगी. अरसलान सिर्फ दौलत से प्यार करता है, इसलिए मैं ने उसे अपनी वसीयत में कुछ नहीं दिया है. अब यह तुम्हारे हाथ में है कि तुम उस के झांसे में न आओ और मेरे बिजनैस से उसे दूर रखो. वह एक बेवफा अय्याश इंसान है.’

रानिया ने इतना ही पढ़ा था कि उसे दरवाजे पर आहट महसूस हुई. देखा तो अरसलान सामने खड़ा था. वह धीरे से बोला, ‘‘रानिया, मैं अपनी भूलों का प्रायश्चित करता हूं. अब मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. सारी उम्र मैं तुम्हारा वफादार रहूंगा, यह वादा है.’’

‘‘अरसलान, मेरा दिल सोनिया जितना बड़ा नहीं है, फिर भी मैं एक फैसले पर पहुंच गई हूं. यह फैसला मैं सब के सामने सुनाना चाहती हूं.’’ कह कर रानिया ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ी. वह पीछे चलतेचलते गिड़गिड़ाया, ‘‘रानिया, मुझे एक मौका दो.’’

‘‘मेरे पास अब तुम्हें देने को कुछ नहीं है.’’

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‘‘तुम किसी से शादी तो करोगी ही, फिर मैं क्या बुरा हूं. देखो मैं फिजा का बाप हूं. कम से कम इस बात को तो ध्यान में रखो.’’

‘‘मैं ने इंकार नहीं किया है अरसलान. अभी मेरा फैसला सुनाना बाकी है.’’ वह बोली.

ड्राइंगरूम में सब मौजूद थे. वकील साहब ने कहा, ‘‘मिस रानिया, हम सब आप का फैसला जानना चाहते हैं.’’

रानिया ने आत्मविश्वास से कहा, ‘‘मैं सपनों में रहने वाली एक आम सी लड़की थी. मैं ने भी अरसलान साहब जैसे खूबसूरत इंसान को अपने ख्वाबों में बसाया था. जब यह भी मुझ पर मेहरबान हुए तो मैं ने इन्हें देवता समझ कर इन की हर बात मानी, पर मुझे नहीं पता था कि यह देवता के रूप में एक शैतान हैं.’’

‘‘रानिया मेरी बात सुनो…’’ अरसलान ने बीच में टोका.

‘‘अरसलान साहब, मुझे अपनी बात पूरी करने दीजिए.’’ अरसलान को चुप कराते हुए रानिया बोली, ‘‘सब कुछ लुट जाने के बाद आज मेरी आंखें खुलीं तो अरसलान साहब चाहते हैं कि मैं वही गलती दोबारा करूं. लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी. मेरी मंजिल फिजा की अच्छी देखभाल और बेहतरीन परवरिश है.’’

रानिया का फैसला सुन कर अरसलान का चेहरा लटक गया. उस ने आगे कहा, ‘‘अरसलान साहब, हर सूरत में आप आज शाम 5 बजे से पहले यह घर छोड़ देंगे. और जब तक आप घर नहीं छोड़ेंगे, ये तमाम लोग यहीं रहेंगे. फिजा की गार्जियन होने के नाते उस की हिफाजत के लिए यह मैं जरूरी समझती हूं.’’

अरसलान एकदम से उठ खड़ा हुआ और गुस्से से बोला, ‘‘यह मेरा घर है, मुझे यहां से कोई नहीं निकाल सकता और तेरी तो औकात ही क्या है?’’

रानिया ने वकील की तरफ देख कर कहा, ‘‘वकील साहब, इन्हें बताइए कि जब तक फिजा बालिग नहीं हो जाती, तब तक इस घर की मालिक मैं हूं और उस की भलाई और हिफाजत के लिए मेरा यह फैसला जरूरी है.’’

वकील ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘अरसलान साहब, आप वसीयत लागू करवाने में जरा सी भी अड़चन डालेंगे तो हम पुलिस व कोर्ट की मदद लेंगे. फिर आप का क्या अंजाम होगा, आप समझ सकते हैं.’’

अरसलान बैठ गया. रानिया ने कागजात देखते हुए कहा, ‘‘अरसलान साहब, आप अपने साथ अपनी जरूरत की चीजें ले जा सकते हैं. अगर आप इसी शहर में रहना चाहते हैं तो मैनेजर राशिदी आप को हर महीने 10 हजार रुपए देंगे और अगर आप दुबई वाले औफिस में काम करना चाहते हैं तो हर माह आप को तनख्वाह 4 हजार दरहम मिलेगी. रहने का इंतजाम औफिस की तरफ से होगा. यह आप की मरजी है, जहां आप जाना चाहें.’’

अरसलान के चेहरे पर मुर्दनी छा गई. उस ने मरी सी आवाज में कहा, ‘‘मैं दुबई के औफिस जाना चाहूंगा.’’

‘‘राशिदी साहब, आप अरसलान साहब को दुबई भिजवाने का इंतजाम करा दीजिए. इन्हें खर्च वगैरह दे दीजिएगा. मैं काम से बाहर जा रही हूं. 5 बजे तक आ जाऊंगी. तब तक घर साफ हो जाना चाहिए.’’ रानिया ने मजबूत लहजे में कह कर फिजा को गोद में लिया और बाहर निकल गई. राशिदी उसे बाहर तक छोड़ने आए. चलतेचलते उन्होंने कहा, ‘‘मैडम, यह अच्छा हुआ कि वह दुबई जा रहा है. वहां का जीएम बहुत तेज है. वह उसे सही तरीके से हैंडल करेगा और हमारी भी परेशानी खत्म हो गई.’’

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‘‘हां राशिदी साहब, सोनियाजी ने जो कुछ किया, बहुत सोचसमझ कर किया. अगर वह यहीं रहता तो दिमाग पर एक बोझ सा रहता.’’

रानिया ने गाड़ी में बैठते हुए ड्राइवर से कहा, ‘‘कब्रिस्तान चलो.’’

राशिदी ने सोचा कि सोनिया के पास जा कर उस के एहसानों का शुक्रिया अदा करेंगी. कब्रिस्तान में सोनिया की कब्र के पास बैठ कर रानिया ने कहा था कि अब वह ख्वाबों की दुनिया से निकल कर हकीकत की जमीन पर खड़ी है. वह फिजा की पूरे दिल से देखभाल व परवरिश करेगी. उसे मां का प्यार देगी. कभी पीछे मुड़ कर मोहब्बत की तरफ नहीं देखेगी. कभी कोई शिकायत का मौका नहीं देगी. यही उस का मरहूमा सोनिया से वादा था.

खूबसूरती की मल्लिका अनारा बेगम- भाग 3: एक हिंदू राजा ने मुस्लिम स्त्री से ऐसे निभाया प्यार

महाराजा ने उस के नाजुक हाथ को चूमते हुए कहा, ‘‘बेगम, मैं बहुत ही अय्याश रहा हूं, लेकिन आप से प्यार होने के बाद मेरा दिल बदल गया है. मैं भी बदल गया हूं. मुझे लगता है कि वह गजसिंह जो औरतों को खेल और भोग विलास की वस्तु समझता था, मर गया है.’’

प्रकाश धीमा था. बेगम रुंधे गले से बोली, ‘‘कुछ कीजिए न, मुझ से अब अलगाव नहीं सहा जाता. मैं कब तक मोहब्बत की झूठी बातों से नवाब को भरमाए रखूंगी. जिंदगी जीने का असली लुत्फ तो आप के साथ है. सच, मैं आप के इश्क के साए में इन बलिष्ठ भुजाओं में ही दम लेना और तोड़ना चाहती हूं. मैं नवाब के साथ हरगिज नहीं रह सकती.’’

गजसिंह बाहर फैले अंधेरे को देखते रहे, बेगम खिड़की की चौखट पर सिर रख कर लंबीलंबी सांसें ले रही थी. गज सिंह ने तभी कहा, ‘‘अनारा मेरी जान, चिंता मत करो, मैं आप के लिए संसार की सारी खुशियां छोड़ सकता हूं. मैं आप को वचन देता हूं कि आप को प्राण रहते नहीं छोड़ूंगा. मैं राजपूताने का वीर हूं. क्षत्रिय हूं. क्षत्रियों में राठौड़ हूं. हम राजपूत अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए सिर कटने के बाद भी धराशाई नहीं होते. आप को अपनी तलवार पर हाथ रख कर भरोसा देता हूं कि आप का वही ओहदा होगा, जो हमारे महलों में पटरानी का होता है.’’

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‘‘फिर आप मुझे यहां से ले चलिए,’’ अनारा बेगम ने कहा.

‘‘मैं आप को अभी ले जा सकता हूं.’’

‘‘फिर देरी क्यों?’’

और फिर उसी वक्त रात के अंधेरे में दोनों प्रेमी झरोखे से उतर कर चल दिए.

खामोश रात और दोनों के खामोश इरादे. किसी को कुछ पता न चला. सिर्फ जरीन जानती थी कि अनारा बेगम कहां गई है. दूसरे दिन आगरा में तूफान मच गया.

आगरा के हर प्रतिष्ठित व्यक्ति के यहां इसी चर्चा का बाजार गरम था. लोगों को पता था कि अनारा बेगम कहां गई हैं? पर सब चुप थे. हां, यह निर्विवाद रूप से कहा जाता रहा कि बेगम की उम्र नवाब फजल से बहुत कम थी. कुल मिला कर नवाब अनारा बेगम के लायक नहीं थे.

नवाब साहब जो मुगल सम्राट शाहजहां के कृपापात्र थे, जहांपनाह के हुजूर में हाजिर हुए.

‘‘क्या बात है नवाब साहब?’’ बादशाह शाहजहां ने पूछा.

नवाब फजल ने सारी बातें दर्द भरी आवाज में सम्राट शाहजहां को सुना दी.

‘‘आप फिक्र न करो.’’

शाहजहां ने तुरंत महाराजा गजसिंह को तलब किया. गजसिंह ने भी हाजिर हो कर औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बादशाह से कहा, ‘‘जहांपनाह कहिए, कैसे याद किया?’’

सुन कर बादशाह ने तनिक आदेश भरे स्वर में कहा, ‘‘अनारा बेगम कहां हैं?’’

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‘‘मुझे नहीं मालूम, और आप ने मुझ से ऐसा सवाल किया ही क्यों? मैं मुगलिया सल्तनत की देखभाल करता हूं. उस के मनसबदारों, सरदारों की बीबियों की नहीं.’’ गजसिंह कठोरता से एक ही सांस में बोलते चले गए.

शाहजहां ने प्रश्नवाचक नजरें गजसिंह पर डालीं. ईरानी कालीन पर थोड़ी चहलकदमी करते हुए कहा, ‘‘मुगलिया सल्तनत पर आप के बहुत एहसान हैं. आप ने अपनी बहादुरी और जवांमर्दी से हमारे तख्तोताज की कई बार हिफाजत की है, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि औरत आप की कमजोरी रही है. ऐसी हालत में आप हमारे किसी खैरख्वाह को नाराज कर हमारे बीच झगड़ा भी करा सकते हैं. आप हमारी बात पर गौर कीजिए कि इस से फसाद भी हो सकता है.’’

गजसिंह की भौहें तन गई थीं. रूखेपन से बोले, ‘‘एक अदना सा मनसबदार मुझ पर बेबुनियाद दोष लगा रहा है आलमपनाह. राठौड़ का रक्त अभी ठंडा नहीं हुआ है कि मुगल जब चाहें उन्हें ललकार दें. यदि मुझ पर झूठा दोष लगाने का साहस किया गया तो नवाब को बहुत बुरे अंजाम से टकराना पड़ेगा.’’

अब शाहजहां ने अपना रुख बदला. वह समझ गए कि महाराजा गजसिंह राठौड़ इस तरह की डांटडपट और धमकियों में नहीं आ सकते. तुरंत मधुरता से बोले, ‘‘आप मेरी बात का मतलब नहीं समझे. आप मुझ पर यकीन क्यों नहीं करते? मुझ में भी आप का खून है. मैं आप को तहेदिल से कहता हूं, मामू आप मुझे अपना समझ कर सब कुछ सचसच बता दें. मैं आप से एक शहंशाह की हैसियत से नहीं जाती तौर पर अर्ज कर रहा हूं, मैं आप के हक में ही फैसला करूंगा.’’

‘‘वायदा करते हो.’’

‘‘वायदा करता हूं मामू.’’ शाहजहां ने विनीत स्वर में कहा, ‘‘मैं नहीं चाहता कि ऐसी मामूली बातें खौफनाक अंजाम में बदल जाएं.’’

गजसिंह ने सारी बातें बता कर कहा, ‘‘बेगम हमारे पास हैं. हम उन से अलग नहीं रह सकते. हम उन के लिए सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार हैं. आप की नजरेइनायत और ओहदा भी. यह भी सच है कि हम उस के लिए दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत से टकरा भी सकते हैं.’’

‘‘हम से भी मामू?’’ सम्राट शाहजहां ने कहा.

‘‘गुस्ताखी मुआफ हो, वक्त आया तो मुगल सल्तनत से भी.’’ गज सिंह की आंखें झुक गई थीं.

बादशाह ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘आप के राठौड़ वंश में बेगम का ओहदा क्या रहेगा?’’

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‘‘हम उन्हें बड़ी इज्जत देंगे, जो अपनी महारानी को दे रहे हैं. जहांपनाह, हम उन्हें बहुत प्यार करते हैं. हम उन के साथ पूरी वफा से पेश आएंगे.’’ गजसिंह ने जवाब दिया.

शाहजहां ने कहा, ‘‘हम आप को उसे गैर तरीके से बख्शते हैं. आप उसे जोधपुर भेज दीजिए. पीछे से आप भले जाइए, लेकिन बहुत ही खुफिया से. हम नवाब को दक्षिण भेज देते हैं.’’

‘‘हम आप का यह एहसान कभी नहीं भूल सकेंगे.’’ गजसिंह ने सिर झुका लिया.

महाराजा गजसिंह ने अनारा बेगम को अपनी मौत तक एक हिंदू रानी की तरह इज्जत दी. आज भी जोधपुर में महाराजा की प्रेम दीवानी की याद में अनारा की बावड़ी बनी हुई है.

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