‘‘मेरे मुंह से तो वहां एक शब्द भी नहीं निकलेगा. उस स्थिति की कल्पना कर के ही मेरी जान निकली जा रही है,’’ नेहा की आवाज में कंपन था.
‘‘तुम बस मेरे साथ रहना. वहां बोलना कुछ नहीं पड़ेगा तुम्हें.’’
‘‘मुझे सचमुच लड़नाझगड़ना नहीं आता है.’’
‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो. किसी औरत से उलझने के समय पुरुष के साथ एक औरत का होना सही रहता है.’’
‘‘ठीक है, मैं आ जाऊंगी,’’ नेहा का यह जवाब सुन कर संजीव खुश हुआ और पहली बार उस ने अपनी पत्नी से कुछ देर अच्छे मूड में बातें कीं.
बाद में जब नेहा ने अपने मातापिता को सारी बात बताई, तो उन्होंने फौरन उस के इस झंझट में पड़ने का विरोध किया.
‘‘सविता जैसी गिरे चरित्र वाली औरतों से उलझना ठीक नहीं बेटी,’’ नीरजा ने उसे घबराए अंदाज में समझाया, ‘‘उन के संगीसाथी भले लोग नहीं होते. संजीव या तुम पर उस ने कोई झूठा आरोप लगा कर पुलिस बुला ली, तो क्या होगा?’’
‘‘नेहा, तुम्हें संजीव के भैयाभाभी की समस्या में फंसने की जरूरत ही क्या है?
तुम्हारे संस्कार अलग तरह के हैं. देखो, कैसे ठंडे पड़ गए हैं तुम्हारे हाथ… चेहरे का रंग उड़ गया है. तुम कल नहीं जाओगी,’’ राजेंद्रजी ने सख्ती से अपना फैसला नेहा को सुना दिया.
‘‘पापा, संजीव को मेरा न जाना बुरा लगेगा,’’ नेहा रोंआसी हो गई.
‘‘उस से मैं कल सुबह बात कर लूंगा. लेकिन अपनी तबीयत खराब कर के तुम किसी का भला करने की मूर्खता नहीं करोगी.’’
नेहा रात भर तनाव की वजह से सो नहीं पाई. सुबह उसे 2 बार उलटियां भी हो गईं. ब्लडप्रैशर गिर जाने की वजह से चक्कर भी आने लगे. वह इस कदर निढाल हो गई कि 4 कदम चलना उस के लिए मुश्किल हो गया. वह तब चाह कर भी संजीव के साथ सविता से मिलने नहीं जा सकती थी.’’
राजेंद्रजी ने सुबह फोन कर के नेहा की बिगड़ी तबीयत की जानकारी संजीव को दे दी.
संजीव को उन के कहे पर विश्वास नहीं हुआ. उस ने रूखे लहजे में उन से इतना ही कहा, ‘‘जरा सी समस्या का सामना करने पर जिस लड़की के हाथपैर फूल जाएं और जो मुकाबला करने के बजाय भाग खड़ा होना बेहतर समझे, मेरे खयाल से उस की शादी ही उस के मातापिता को नहीं करनी चाहिए.’’
राजेंद्रजी कुछ तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करना जरूर चाहते थे, पर उन्हें शब्द नहीं मिले. वे कुछ और कह पाते, उस से पहले ही संजीव ने फोन काट दिया.
उस दिन के बाद से संजीव और नेहा के संबंधों में दरार पड़ गई. फोन पर भी दोनों अजनबियों की तरह ही बातें करते.
संजीव ने फिर कई दिनों तक जब नेहा से लौट आने का जिक्र ही नहीं छेड़ा, तो वह और उस के मातापिता बेचैन हो गए. हार कर नेहा ने ही इस विषय पर एक रात फोन पर चर्चा छेड़ी.
‘‘नेहा, अभी भैयाभाभी की समस्या हल नहीं हुई है. तुम्हारे लौटने के अनुरूप माहौल अभी यहां तैयार नहीं है,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर संजीव ने फोन काट दिया.
विवाहित बेटी का घर में बैठना किसी भी मातापिता के लिए चिंता का विषय बन ही जाता है. बीतते वक्त के साथ नीरजा और राजेंद्रजी की परेशानियां बढ़ने लगीं. उन्हें इस बात की जानकारी देने वाला भी कोई नहीं था कि वास्तव में नेहा की ससुराल में माहौल किस तरह का चल रहा है.
समय के साथ परिस्थितियां बदलती ही हैं. सपना और राजीव की समस्या का भी अंत हो ही गया. इस में संजीव ने सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
अपने एक दोस्त और उस की पत्नी के साथ जा कर वह सविता से मिला, फिर उस के पति से टैलीफोन पर बात कर के उसे भी सविता के प्रति भड़का दिया.
संजीव की धमकियों व पति के आक्रोश से डर कर सविता ने नौकरी ही छोड़ दी. प्रेम का भूत उस के सिर से ऐसा उतरा कि उसे राजीव की शक्ल देखना भी गवारा न रहा.
कुछ दिनों तक राजीव घर में मुंह फुलाए रहा, पर बाद में उस के स्वभाव में परिवर्तन आ ही गया. अपनी पत्नी के साथ रह कर ही उसे सुखशांति मिलेगी, यह बात उसे समझ में अंतत: आ ही गई.
सपना ने अपने देवर को दिल से धन्यवाद कहा. नेहा से चल रही अनबन की उसे जानकारी थी. उन दोनों को वापस जोड़ने की जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली.
सपना के जोर देने पर राजीव शादी की सालगिरह मनाने के लिए राजी हो गया.
सपना अपने पति के साथ जा कर नेहा व उस के मातापिता को भी पार्टी में आने का निमंत्रण दे आई.
‘‘उस दिन काम बहुत होगा. मुझे तैयार करने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी होगी, नेहा. तुम जितनी जल्दी घर आ जाओगी, उतना ही अच्छा रहेगा,’’ भावुक लहजे में अपनी बात कह कर सपना ने नेहा को गले लगा लिया.
नेहा ने अपनी जेठानी को आश्वासन दिया कि वह जल्दी ही ससुराल पहुंच जाएगी. उसी शाम उस ने फोन कर के संजीव को वापस लौटने की अपनी इच्छा जताई.
‘‘मैं नहीं आऊंगा तुम्हें लेने. जो तुम्हें ले कर गए थे, उन्हीं के साथ वापस आ जाओ,’’ संजीव का यह रूखा सा जवाब सुन कर नेहा के आंसू बहने लगे.
राजेंद्रजी, नीरजा व नेहा के साथ पार्टी के दिन संजीव के यहां पहुंचे. उन के बुरे व्यवहार के कारण संजीव व उस के मातापिता ने उन का स्वागत बड़े रूखे से अंदाज में किया.
ससुराल के जानेपहचाने घर में नेहा ने खुद को दूर के मेहमान जैसा अनुभव किया. मुख्य मेजबानों में से एक होने के बजाय उस ने अपनेआप को सब से कटाकटा सा महसूस किया.
सपना ने नेहा को गले लगा कर जब कुछ समय जल्दी न आने की शिकायत की, तो नेहा की आंखों में आंसू भर आए.
‘‘मुझे माफ कर दो, भाभी,’’ सपना के गले लग कर नेहा ने रुंधे स्वर में कहा, ‘‘मेरी मजबूरी को आप के अलावा कोई दूसरा शायद नहीं समझे. मातापिता की शह पर अपने पति के परिवार से मुसीबत के समय दूर भाग जाना मेरी बड़ी भूल थी. मुझ कायर के लिए आज किसी की नजरों में इज्जत और प्यार नहीं है. अपने मातापिता पर मुझे गुस्सा है और अपने डरपोक व बचकाने व्यवहार के लिए बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही है.’’
‘‘तुम रोना बंद करो, नेहा,’’ सपना ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई, ‘‘देखो, पहले के संयुक्त परिवार में पली लड़कियों का जीवन की विभिन्न समस्याओं से अकसर परिचय हो जाता था. आजकल के मातापिता वैसी कठिन समस्याओं से अपने बच्चों को बचा कर रखते हैं. तुम अपनी अनुभवहीनता व डर के लिए न अपने मातापिता को दोष दो, न खुद को. मैं तुम्हें सब का प्यार व इज्जत दिलाऊंगी, यह मेरा वादा है. अब मुसकरा दो, प्लीज.’’
सपना के अपनेपन को महसूस कर रोती हुई नेहा राहत भरे भाव से मुसकरा उठी. तब सपना ने इशारा कर संजीव को अपने पास बुलाया.
उस ने नेहा का हाथ संजीव को पकड़ा कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘देवरजी, मेरी देवरानी नेहा अपने मातापिता से मिले सुरक्षाकवच को तोड़ कर आज सच्चे अर्थों में अपने पति के घरपरिवार से जुड़ने को तैयार है. आज के दिन अपनी भाभी को उपहार के रूप में यह पक्का वादा नहीं दे सकते कि तुम दोनों आजीवन हर हाल में एकदूसरे का साथ निभाओगे?’’
नेहा की आंखों से बह रहे आंसुओं को देख संजीव का सारा गुस्सा छूमंतर हो गया.
‘‘मैं पक्का वादा करता हूं, भाभी,’’ उस ने झुक कर जब नेहा का हाथ चूमा तो वह पहले नई दुलहन की तरह शरमाई और फिर उस का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा.



